प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
प्रणाम |
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और १९ दिसम्बर सन् १९२७ को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
काकोरी काण्ड में अशफ़ाक़ की भूमिका
बंगाल
में शचीन्द्रनाथ सान्याल व योगेश चन्द्र चटर्जी जैसे दो प्रमुख व्यक्तियों
के गिरफ्तार हो जाने पर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का पूरा दारोमदार
बिस्मिल के कन्धों पर आ गया। इसमें शाहजहाँपुर से प्रेम कृष्ण खन्ना, ठाकुर रोशन सिंह के अतिरिक्त अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का योगदान सराहनीय रहा। जब आयरलैण्ड
के क्रान्तिकारियों की तर्ज पर जबरन धन छीनने की योजना बनायी गयी तो
अशफ़ाक़ ने अपने बड़े भाई रियासत उल्ला ख़ाँ की लाइसेंसी बन्दूक और दो पेटी
कारतूस बिस्मिल को उपलब्ध कराये ताकि धनाढ्य लोगों के घरों में डकैतियाँ
डालकर पार्टी के लिये पैसा इकट्ठा किया जा सके। किन्तु जब बिस्मिल ने
सरकारी खजाना लूटने की योजना बनायी तो अशफ़ाक़ ने अकेले ही कार्यकारिणी
मीटिंग में इसका खुलकर विरोध किया। उनका तर्क था कि अभी यह कदम उठाना खतरे
से खाली न होगा; सरकार हमें नेस्तनाबूद कर देगी। इस पर जब सब लोगों ने
अशफ़ाक़ के बजाय बिस्मिल पर खुल्लमखुल्ला यह फब्ती कसी-"पण्डित जी! देख ली
इस मियाँ की करतूत। हमारी पार्टी में एक मुस्लिम को शामिल करने की जिद का
असर अब आप ही भुगतिये, हम लोग तो चले।" इस पर अशफ़ाक़ ने यह कहा-"पण्डित जी
हमारे लीडर हैं हम उनके हम उनके बराबर नहीं हो सकते। उनका फैसला हमें
मन्जूर है। हम आज कुछ नहीं कहेंगे लेकिन कल सारी दुनिया देखेगी कि एक पठान
ने इस ऐक्शन को किस तरह अन्जाम दिया?" और वही हुआ, अगले दिन ९ अगस्त १९२५
की शाम काकोरी स्टेशन से जैसे ही ट्रेन आगे बढी़, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने चेन खींची, अशफ़ाक़ ने ड्राइवर की कनपटी पर माउजर रखकर उसे अपने कब्जे में लिया और राम प्रसाद बिस्मिल
ने गार्ड को जमीन पर औंधे मुँह लिटाते हुए खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया।
लोहे की मजबूत तिजोरी जब किसी से न टूटी तो अशफ़ाक़ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त
को पकडाया और घन लेकर पूरी ताकत से तिजोरी पर पिल पडे। अशफ़ाक़ के तिजोरी
तोडते ही सभी ने उनकी फौलादी ताकत का नजारा देखा। वरना यदि तिजोरी कुछ देर
और न टूटती और लखनऊ से पुलिस या आर्मी आ जाती तो मुकाबले में कई जाने जा सकती थीं; फिर उस काकोरी काण्ड को इतिहास में कोई दूसरा ही नाम दिया जाता।
आज उनकी ११७ वीं जयंती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ जी को शत शत नमन करते हैं !
सादर आपका
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जय हनुमान महाबलवान
एक दीप बन राह दिखाए
188. हस्ताक्षर
साजन के गाँव में.
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अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ की ११७ वीं जयंती
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
जवाब देंहटाएंअशफ़ाक साहब को आदरांजली...
शुभ संध्या शिवम् भाई
एक अच्छी बुलेटिन
आभार
सादर
बहुत सुन्दर ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिये बहुत धन्यबाद।
अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ को नमन। आज की सुन्दर प्रस्तुति में 'उलूक' के पन्ने को जगह देने के लिये आभार शिवम जी ।
जवाब देंहटाएंअमर शहीद अशफाक उल्ला खां को हमारा सलाम !
जवाब देंहटाएंविविध रंगों से परिपूर्ण सरस ब्लॉग बुलेटिन।
धन्यवाद मिश्रा जी.रचनाओं के सुंदर समनवयन हेतु.
जवाब देंहटाएंअमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ को विनम्र श्रद्धांजलि ! पठनीय रचनाओं के सूत्र देता सुंदर बुलेटिन..आभार मुझे भी इसका हिस्सा बनाने के लिए..
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
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