लहरें कभी नहीं सोचती
किनारों को छूने के लिए
मैं ही क्यूँ बेकरार रहूँ !
मुमकिन है सोचती हो
लेकिन मोह किनारे का
उसे खींचता है ज़ोर से
और लोग ... तालियाँ बजाते हैं !
12 घण्टे समंदर के किनारे
लहरों से खेलते हुए
तस्वीरें लेते हुए
वे यही सोचते हैं
... सबकुछ कितना सुंदर है !
यह है समंदर की बात, उससे भी अधिक है ख़ास आज का दिन , ,,, भाई दूज , भाई-बहन के अटूट रिश्ते का दिन
आत्मा से अपने भाइयों का नाम लेकर बहनें कहती हैं,
"... भईया चललें अहेरिया
... बहिनी देली असीस हो न
जिय जिय हो रे मेरो भईया
जिय भईया लाख बरीस हो न "
सब कुछ बहुत सुन्दर है । सुन्दर बुलेटिन।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति
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