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रविवार, 30 सितंबर 2018

भागती गाड़ियों में,उजबुजाती बातें हैं




लिखने को, 
कहने को,
छुपा लेने को,
ज़ाहिर करने को,
अनगिनत बातें हैं। 
हौसला है सच कहने का, 
लेकिन, वक़्त किसके पास है ?
जिनके पास कुछ देर ठहरने का समय है,
उनके पास खुद की बहुत सारी बातें हैं !
भीड़ में,
भागती गाड़ियों में,
 उजबुजाती बातें हैं,
गाड़ी का शीशा नीचे करो,
तो प्राकृतिक गर्मी बर्दाश्त नहीं होती,
और उस पर बातों की बेशुमार भीड़ से,
ट्रैफिक जाम रहता है,
धीरे धीरे घर पहुँचो,
तो  ... बात कौन करे,
सोने दो भाई। 

शनिवार, 29 सितंबर 2018

अपने दिल को सुरक्षित रखें : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार दोस्तो,
विश्व हृदय दिवस प्रति वर्ष 29 सितम्बर को मनाया जाता है. अव्यवस्थित जीवन शैली और असंतुलित खानपान के कारण हृदय रोग पीड़ितों की संख्या तेजी से बढ़ी है. व्यस्त जिंदगी में लोग अपने स्वास्थ्य की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिसके चलते उन्हें खामियाजा उठाना पड़ रहा है. हृदय रोग विशेषज्ञों के अनुसार दिल की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है. ऐसा माना जाता है कि महिलाओं में हृदय रोग की संभावनाएं ज्यादा होती हैं. इसके बाद भी वे इसके जोखिमों को नजरअंदाज कर देती हैं. वर्तमान जीवन-शैली तनाव, थकान, प्रदूषण आदि अनेक कारणों से रक्त का आदान-प्रदान करने वाले इस अति महत्वपूर्ण अंग को अपना काम करने में मुश्किल होती है जिसके चलते हृदय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है.


एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में प्रतिवर्ष होने वाली मौतों का एक मुख्य कारण हृदय की बीमारियां और हृदयाघात है. इसी कारण जनसामान्य को दिल के प्रति विशेष रूप से जागरूक करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 2000 से विश्व हृदय दिवस मनाने की शुरुआत की गई. सन 2013 तक इसे सितम्बर के अंतिम रविवार को मनाया जाता था किन्तु सन 2014 से इसे 29 सितम्बर को मनाया जाना आरम्भ किया गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की भागीदारी से स्वयंसेवी संगठन वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन प्रतिवर्ष विश्व हृदय दिवस मनाता है. अपने देश में तो अब कम उम्र के लोग भी इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं. आज की भागदौड़ वाली जीवन शैली में लोगों में तनाव कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. इसलिए इस बीमारी से पूरी तरह बचना तो मुश्किल है, लेकिन जहां तक संभव हो, इससे दूरी बनाए रखनी चाहिए.तनाव के समय आवश्यकता होती है कि हम अपने हृदय की आवाज सुनें, हृदय को दुरुस्त रखने के लिए तनाव दूर भगाएं.

दिल स्वस्थ है तो इन्सान खुद ही स्वस्थ रहेगा. दिल के स्वास्थ्य के लिए निम्न बातों को अपनाना चाहिए.
प्रत्येक व्यक्ति को व्यायाम करना चाहिए.
प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे तक व्यायाम करना चाहिए.
तेज़ क़दमों से टहलना चाहिए.
सेहत के अनुरूप ही खान-पान तथा आहार लेना चाहिए.
नमक की कम मात्रा का सेवन करें.
भोजन में कम वसा वाले आहार ग्रहण करना चाहिए.
ताजी सब्जियां और फल अधिक मात्रा में लेना चाहिए.
तम्बाकू जैसे पदार्थों से हमेशा दूरी बनाएँ रखें.
योग और ध्यान करने की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए.
नींद दिल को स्वस्थ रखने के लिए ज़रूरी है.

आशा है आप सभी अपने दिल को स्वस्थ रखते हुए लगातार बुलेटिन का आनंद उठाते रहेंगे.

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शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

शहीद ऐ आज़म की १११ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

 
"अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है . लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ? तभी हमें आत्म -बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें ."

- शहीद ऐ आज़म सरदार भगत सिंह जी
 


शहीद ऐ आज़म सरदार भगत सिंह जी की १११ वीं जयंती पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से उन्हें शत शत नमन ।

इंक़लाब जिंदाबाद ।।
सादर आपका 
 
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सब जादू-टोने का असर है

उर्मिला

राशिफल - लघुकथा

मर्दानगी पे चोट है सुप्रीम कोर्ट का विवाहेतर संबंध पे दिया गया फैसला।

तुम सा कोई नहीं ....

क्यों कभी ऐसा होता है

बिना मालिक के भी कोई जीवन है?

बुढापा: बोझ नहीं, बढ़िया भी हो सकता हैं...!!

रंगसाज़

आँख का रंग तुलु होते हुए देखा...गुलज़ार

436.सरकार

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अब आज्ञा दीजिये ... 

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 27 सितंबर 2018

धारा 377 के बाद धारा 497 की धार में बहता समाज : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
विगत दो-तीन दिन से सर्वोच्च न्यायालय ऐतिहासिक निर्णय देने में लगा है. इसी श्रेणी में आज उसके द्वारा व्याभिचार कानून से सम्बंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 पर फैसला सुनाया गया. न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने एकमत से फैसला सुनाया कि व्याभिचार अपराध नहीं है. विगत माह देश की शीर्ष अदालत में इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा था कि व्याभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है. हाल-फिलहाल व्यभिचार से संबंधित आईपीसी की धारा 497 के बारे में इतना समझिये कि यह धारा किसी विवाहित महिला से शारीरिक सम्बन्ध बनाये जाने से सम्बंधित है. इसमें दो पक्ष हैं. एक- यदि महिला से कोई गैर-पुरुष बिना सहमति सम्बन्ध बनाता है तो शिकायत पश्चात् सम्बन्ध बनाये जाने पुरुष के खिलाफ रेप का केस दर्ज किया जायेगा. दो- यदि विवाहित महिला अपनी सहमति से किसी गैर-मर्द से सम्बन्ध बनाती है तो उस ऐसी स्थिति में उस पुरुष पर तब कार्यवाही हो सकती है जबकि महिला का पति शिकायत कर दे. यहाँ इसका कोई अर्थ नहीं कि महिला की सहमति से सम्बन्ध बने थे. इसमें भी दोषी वह पुरुष रहता है जिसने सम्बन्ध बनाये. वह व्याभिचार के अपराध का दोषी होगा और उसे इसके लिए पाँच वर्ष की कारावास की सजा या आर्थिक दंड अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है. इस मामले में पत्नी को अपराध में हिस्सेदार नहीं माना जाएगा. हालाँकि यह अपराध महिला के पति की सहमति द्वारा समझौता करने योग्य है. इस धारा को लेकर आधुनिकतावादी, नारीवादी इसलिए खिलाफ थे क्योंकि उनका मानना था कि सहमति से सम्बन्ध बनाये जाने के बाद भी महिला के पति द्वारा शिकायत करना दर्शाता है कि वह महिला उस पुरुष की संपत्ति है. 


यहाँ भले ही इस धारा को समाप्त करने सम्बन्धी फैसला आया है मगर इसके परिणामों को भारतीय समाज के परिदृश्य में देखने की आवश्यकता है. विगत कई वर्षों से लिव-इन-रिलेशन के चलन में आने के बाद से विवाह संस्था कमजोर होती दिखाई दे रही है. इसके बाद समलैंगिक संबंधों के हितों की रक्षा की खातिर धारा 377 की समाप्ति ने विवाह संस्था के साथ-साथ परिवार की नींव को हिलाया है. ऐसे संक्रमणकाल में अदालत के इस फैसले से स्त्री, पुरुष दोनों ही दो अलग-अलग बिन्दुओं पर प्रभावित दिख रहे हैं. अब स्त्री (पत्नी) किसी पुरुष (पति) की संपत्ति के तौर पर नहीं दिख रही है. इसके साथ ही पुरुषों को इस रूप में राहत मिली है कि व्याभिचार कानून के नाम पर अब सिर्फ उन्हें ही अपराधी नहीं माना जा सकता है. इसके बाद भी कहीं न कहीं ये फैसला समाज में व्याभिचार को ही बढ़ावा देगा.

समाज में आज भी बहुतेरे नारीवादी मंचों से महिलाओं के शोषण की बात उठती है, उनके पक्ष में आवाज़ उठाई जाती है. एकाधिक खबरें ऐसी भी आईं हैं जहाँ पति को अपनी ही पत्नी से देह-व्यापार करवाए जाने का अपराधी माना गया. ऐसे में इस फैसले से शोषित पत्नी की दशा और ख़राब होने का खतरा नहीं है? आधुनिकता की दौड़ में अंधे होकर दौड़ रहे समाज में इस फैसले का भी स्वागत हुआ है. इसके परिणाम आने में अभी समय लगेगा. तब तक सब खुद को आधुनिक, समान समझ कर गर्व कर ही सकते हैं.

बहरहाल, अब धारा 377 के बाद इस पर भी सामाजिक बहस की गुंजाइश बची नहीं है. इसलिए इस फैसले का स्वागत किया जाये और आज की बुलेटिन की तरफ चला जाये.

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बुधवार, 26 सितंबर 2018

श्रद्धांजलि - जसदेव सिंह जी और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
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जाने-माने खेल कमेंटेटर जसदेव सिंह का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार को यहां निधन हो गया। वे 87 वर्ष के थे। उनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री हैं। जसदेव ने 1968 से 2000 के दौरान आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए नौ ओलिंपिक, आठ हॉकी विश्व कप और छह एशियाई खेलों की कमेंट्री की। उन्होंने कई स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोहों पर भी कमेंट्री की।

कुछ साल पहले उन्होंने अपने जीवन की कहानी 'मै जसदेव सिंह बोल रहा हूं…' के रूप में एक किताब की शक्ल दी थी। उन्हें 1985 में पद्मश्री और 2008 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

जसदेव की आवाज देश के कई ऐतिहासिक पलों को आम लोगों तक पहुंचाने का माध्यम बनी। फिर चाहे वह 1975 का हॉकी विश्व कप का फाइनल हो या अंतरिक्ष में पहले भारतीय राकेश शर्मा का पहुंचना।

जसदेव ने 1955 में जयपुर में ऑल इंडिया रेडियो में काम करना शुरू किया था। वे आठ साल बाद दिल्ली आ गए। उन्होंने 35 साल तक दूरदर्शन के लिए काम किया। खास यह है कि उन्होंने खुद कभी कोई खेल नहीं खेला।

(साभार : भास्कर.कॉम)

आज जसदेव सिंह जी को हम सब स्मरण करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~











आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

मंगलवार, 25 सितंबर 2018

एकात्म मानववाद के प्रणेता को सादर नमन : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
दीनदयाल उपाध्याय, जिनका आज जन्मदिवस है, एक प्रखर विचारक, उत्कृष्ट संगठनकर्ता तथा ऐसे नेता थे जिन्होंने जीवनपर्यंन्त व्यक्तिगत ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को महत्त्व दिया. वे भारतीय जनता पार्टी के लिए वैचारिक मार्गदर्शन और नैतिक प्रेरणा के स्रोत हैं. उनकी पुस्तक एकात्म मानववाद (इंटीगरल ह्यूमेनिज्म) है, जिसमें साम्यवाद और पूंजीवाद की समालोचना की गई है. 


उनका जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के गाँव नगला चंद्रभान में हुआ था. उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा माता का नाम रामप्यारी था. रेलवे की नौकरी में व्यस्तता के कारण उनके पिता ने उनको और उनकी माता जी को ननिहाल भेज दिया. तीन वर्ष की उम्र में उनके पिता का देहांत हो गया. विपत्ति ने यहाँ ही पीछा न छोड़ा. सात वर्ष की उम्र में उनकी माँ का भी निधन हो गया. कुछ समय बाद बीमारी के कारण उनके भाई का भी देहान्त हो गया. अपने मामा के सहयोग से उनकी शिक्षा होती रही. सन 1937 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा में उन्होंने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर कीर्तिमान स्थापित किया. बिड़ला कॉलेज में इससे पूर्व किसी भी छात्र के इतने अंक नहीं आए थे. दीनदयाल जी को स्वर्ण पदक प्रदान करते हुए बिड़ला जी ने उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की. इसके बाद दीनदयाल जी बी०ए० करने के लिए कानपुर आ गए. यहाँ उनमें राष्ट्रसेवा का बीज अंकुरित हुआ. दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में रुचि लेने लगे. सन 1939 में प्रथम श्रेणी में बी०ए० उत्तीर्ण करने के बाद वे एम०ए० करने के लिए आगरा चले गये. यहाँ नानाजी देशमुख और भाऊ जुगाडे के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे. इसी बीच उनकी चचेरी बहन का बीमारी से निधन हो गया. इस घटना से वे बहुत उदास रहने लगे और एम०ए० की परीक्षा नहीं दे सके.

आगरा से वे लखनऊ आये और यहाँ से राष्ट्रधर्म प्रकाशन संस्थान की स्थापना की. यहीं से एक मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म सहित पांचजन्य (साप्ताहिक) तथा स्वदेश (दैनिक) का प्रकाशन शुरु किया. दीनदयाल जी ने 21 सितम्बर 1951 को उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक सम्मेलन आयोजित करके भारतीय जनसंघ की नींव डाली. सन 1968 में उन्हें अध्यक्ष बनाया गया. दीनदयाल उपाध्याय जी ने राजनीति के साथ-साथ विचारात्मक योगदान भी दिया. उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार रखे. जिनमें एकात्म मानववाद, लोकमान्य तिलक की राजनीति, जनसंघ का सिद्धांत और नीति, जीवन का ध्येय राष्ट्र जीवन की समस्यायें, राष्ट्रीय अनुभूति, कश्मीर, अखंड भारत, भारतीय राष्ट्रधारा का पुनः प्रवाह, भारतीय संविधान, इनको भी आज़ादी चाहिए, अमेरिकी अनाज, भारतीय अर्थनीति, विकास की एक दिशा, बेकारी समस्या और हल, टैक्स या लूट, विश्वासघात, द ट्रू प्लान्स, डिवैलुएशन ए, ग्रेटकाल आदि प्रमुख हैं. उनके लेखन का एकमात्र लक्ष्य भारत की विश्व पटल पर पुनर्प्रतिष्ठा और विश्व विजय स्थापित करना था. विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों से संपन्न दीनदयाल उपाध्याय जी की मृत्यु मात्र 52 वर्ष की उम्र में 11 फ़रवरी 1968 को मुग़लसराय के पास रेलगाड़ी में यात्रा करते समय संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी. उनका पार्थिव शरीर मुग़लसराय स्टेशन के वार्ड में मिला था.

भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य को, जिसने सभ्यतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए अपना सर्वस्व राष्ट्र को समर्पित किया, उनके जन्मदिवस पर बुलेटिन परिवार की ओर से सादर नमन.

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सोमवार, 24 सितंबर 2018

ईश्वर सब कुछ बारीकी से देखता है !




पूजा मन की पवित्रता है, आडम्बर नहीं । ईश्वर भेदभाव नहीं करता, सच तो यही है कि वह फुटपाथ पर सोता है । वह कब किसकी झोली में आशीष बन आ जाए, कोई नहीं समझ सकता ।
आपके आगे कोई अजनबी भी आ जाए, हाथ बढ़ा दे तो उसे प्रसाद न देकर, आप किसी अपने को दें, तो वह पूजा व्यर्थ है । दुआएँ तभी फलती हैं, जब आपका मन, आपकी दृष्टि में भेदभाव ना हो । ईश्वर सब कुछ बारीकी से देखता है !

रविवार, 23 सितंबर 2018

मानवीयता की प्रतिमूर्ति रवि शाक्या को नमन : ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार दोस्तो,
आज आपके सामने एक ऐसे व्यक्ति की कहानी लाना चाहते हैं, जो सरकारी सेवा में है और जिम्मेवार पद पर है. इसके बाद भी सामाजिक कार्यों में जमकर रुचि लेते हैं, सक्रिय रहते हैं. यूँ तो उन्हें हमारे जनपद जालौन के लोग ट्री-मैन कहकर सम्मान देते हैं पर यह कहानी उससे कुछ अलग है. पहले आपको कुछ बता दें उनके ट्री-मैन संबोधन के लिए. असल में आप रेलवे में पदासीन हैं किन्तु पर्यावरण के लिए, पौधारोपण के लिए लगातार, नियमित रूप से सक्रिय रहते हैं. वे न केवल सक्रिय रहते हैं वरन पौधारोपण के लिए पौधे भी उपलब्ध करवाते हैं, उनकी सुरक्षा करवाते हैं, उनके पल्लवित-पुष्पित करवाते हैं. जगह का चयन करके वे पौधारोपण करवाने के बाद उनकी सुरक्षा का ख्याल रखते हैं.

इसके अलावा रेलवे में अपनी सेवाएँ देने के कारण वे लाखों-लाख लोगों के संपर्क में भी आते हैं. सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय होने के कारण वे यहाँ भी अपने सक्रिय मन-मष्तिष्क के चलते कार्यशील रहे. नौकरी को महज नौकरी न मानते हुए उसके अन्दर से भी सामाजिकता निकालते रहे. ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व माननीय रविकांत शाक्या जी के इस कार्य को आप सब उन्हीं की जुबानी पढ़ें तो ज्यादा आनंद आएगा. हम तो इस बुलेटिन के माध्यम से सम्पूर्ण बुलेटिन परिवार की तरफ से उनका हार्दिक वंदन-अभिनन्दन करते हैं. लीजिये, देखिये, वे क्या कार्य कर रहे हैं, उन्हीं की जुबानी.

बांये रवि शाक्या जी 

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कभी कभी जिंदगी में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं घट जाती हैं जिन के कारण जीवन मे काफी बदलाव आ जाता है। ऐसे ही लगभग 35 वर्ष पूर्व मेरे फुफेरे भाई का बेटा मनोज जो मुझसे लगभग 3 वर्ष बड़ा था और इंटर में पढ़ रहा था अचानक घर मे पड़ी डांट के कारण घर से चला गया। जिसे आज तक परिवारीजन ढूंढ रहे हैं उसके लौट आने का विश्वास अभी भी है उन्हें। भाई के परिवार का दुख देखकर मुझे भी एक लक्ष्य प्रदान कर दिया और इसकी शुरुआत मेरी रेलवे में जॉब लगने के वर्ष 1995 से हुई।
ट्रेन में टिकट जांच के दौरान घर से भागे, बिछुड़े बालक, बालिकाएं, युवक, युवतियां मिले, जिनमे मध्य-प्रदेश, उत्तर-प्रदेश, राजस्थान, बिहार, नेपाल, बंगाल , हरियाणा इत्यादि से भागे हुए थे। उन्हें येन-केन-प्रकारेण, साम, दाम, दंड, भेद से इमोशनली ब्लैकमेल कर उनके घर से सम्पर्क स्थापित कर उन्हें स्वयं के खर्च पर उनके परिवारीजनों का सौंपा। परिवारीजन के आने तक अपने घर मे रखा। आज भी बहुत से परिवार ऐसे हैं जो जुड़े हुए हैं। कई बार कुछ परिजनो ने पैसे देने का प्रयास किया पर उनकी आंखों की तरल दृष्टि ही मेरा परितोष होती है लगता है कि मेरा भतीजा वापस मिल गया।
इसी कड़ी में दिनांक 20 सितंबर को सिरौली (खागा) निवासी रामजी उर्फ पुष्पराज सिंह सेंगर को उसके घर पहुंचाया। अब तक कुल 79 बच्चे सकुशल घर पहुंच चुके हैं और उनके परिवार की अप्रतिम खुशी मेरे लिए भी मुस्कुराहट का कारण बनी।

शनिवार, 22 सितंबर 2018

दुर्गा खोटे और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
दुर्गा खोटे
दुर्गा खोटे (अंग्रेज़ी: Durga Khote, जन्म: 14 जनवरी, 1905; मृत्यु: 22 सितंबर, 1991) अपने ज़माने में हिन्दी व मराठी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उन्होंने अनेक हिट फ़िल्मों में शानदार अभिनय किया। आरम्भिक फ़िल्मों में नायिका की भूमिकाएँ करने के बाद जब वे चरित्र अभिनेत्री की भूमिकाओं में दर्शकों के सामने आईं, तब उनके बेमिसाल अभिनय को आज तक लोग याद करते हैं। दुर्गा खोटे ने क़रीब 200 फ़िल्मों के साथ ही सैंकड़ों नाटकों में भी अभिनय किया और फ़िल्मों को लेकर सामजिक वर्जनाओं को दूर करने में अहम भूमिका निभाई।


आज अभिनेत्री दुर्गा खोटे जी की 27वीं पुण्यतिथि पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

जन्मदिन पर "संकटमोचन" पाबला सर को ब्लॉग बुलेटिन का प्रणाम

प्रिय ब्लॉगर  मित्रों,
प्रणाम |

आज हिन्दी ब्लॉग जगत में 'संकटमोचन' कहे जाने वाले हरदिलअज़ीज़ बी॰एस॰पाबला जी का जन्मदिन है| 


ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से पाबला सर को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं और सादर प्रणाम | 


सादर आपका

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गुरुवार, 20 सितंबर 2018

युगदृष्टा श्रीराम शर्मा आचार्य जी को सादर नमन : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
आज शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो श्रीराम शर्मा आचार्य नाम से अपरिचित हो. उन्हें देश के युगदृष्टा मनीषी के रूप में स्वीकार किया जाता है. उन्होने आधुनिक एवं प्राचीन विज्ञान तथा धर्म को समन्वित करके उसके द्वारा आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया. इसी उद्देश्य के लिए उनके द्वारा अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की गई. उनका सम्पूर्ण  व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक का समन्वित रूप कहा जा सकता है. आज इसी विभूति का जन्मदिन है. उनका जन्म 20 सितम्बर 1911 को उत्तर प्रदेश के आगरा के आँवलखेड़ा ग्राम में हुआ था. साधना के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही दिखने लगा था. वे अपने सहपाठियों, छोटे बच्चों को सुसंस्कारिता अपनाने वाली विद्या का ज्ञान देने लगे थे. किशोरावस्था में ही समाज सुधार की रचनात्मक प्रवृत्तियाँ उनमें विकसित हो चुकी थीं. वे चाहते थे कि लोग स्वावलम्बी बनें, राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान उसका जागे. 


सन् 1926 में महामना मदनमोहन मालवीय जी से काशी में गायत्री मंत्र की दीक्षा लेने के बाद आराधना उनके जीवन का अंग बन गई. आध्यात्मिक रुचि होने के साथ-साथ उनमें राष्ट्रवाद की भावना भी चरम पर थी. सन 1927 से 1933 तक वे एक स्वयंसेवक, स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सक्रिय रहे. अनेकानेक मित्रों के साथ भूमिगत हो कार्य करते रहे तथा समय आने पर जेल भी गये. वे जेल में भी निरक्षर साथियों को शिक्षण देकर व स्वयं अंग्रेजी सीखकर लौटै. उन्होंने मालवीय जी से एक मूलमंत्र सीखा कि जन-जन की साझेदारी बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति के अंशदान से, मुट्ठी भर फण्ड से रचनात्मक प्रवृत्तियाँ संचालित की जा सकती हैं. इसी मन्त्र के सहारे उन्होंने गायत्री परिवार का आधार निर्मित किया. सन 1935 के बाद उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया. आगरा में सैनिक समाचार पत्र के कार्यवाहक संपादक के रूप में कार्य किया. बाद में सन 1938 की बसंत पंचमी को अखण्ड ज्योति पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित किया. इसके बाद पुनः सारी तैयारी के साथ विधिवत सन 1940 की जनवरी से अखण्ड ज्योति पत्रिका का शुभारंभ किया गया. यह पत्रिका आज दस लाख से भी अधिक संख्या में विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित होती है तथा करोड़ों व्यक्तियों द्वारा पढ़ी जाती है. आचार्य जी द्वारा अनेक पुस्तकें लिखी गईं जो आध्यात्म, परिवार, धर्म, वेद, स्वास्थ्य आदि विषय पर ज्ञान देती हैं.

श्रीराम मत्त, गुरुदेव, वेदमूर्ति, युग ॠषि, गुरुजी आदि अन्य नामों से प्रसिद्ध आचार्य जी का देहांत 02 जून 1990 को हरिद्वार में हुआ. आज उनके जन्मदिन पर बुलेटिन परिवार की तरफ से उनको सादर नमन.

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बुधवार, 19 सितंबर 2018

कुंवर नारायण और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
कुंवर नारायण
कुंवर नारायण (अंग्रेज़ी: Kunwar Narayan, जन्म- 19 सितम्बर, 1927, फ़ैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 15 नवम्बर, 2017 दिल्ली) हिन्दी के सम्मानित कवियों में गिने जाते थे। कुंवर जी की प्रतिष्ठा और आदर हिन्दी साहित्य की भयानक गुटबाजी के परे सर्वमान्य है। उनकी ख्याति सिर्फ़ एक लेखक की तरह ही नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले रसिक विचारक के समान भी है। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं है। फ़िल्म समीक्षा तथा अन्य कलाओं पर भी उनके लेख नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। आपने अनेक अन्य भाषाओं के कवियों का हिन्दी में अनुवाद किया है और उनकी स्वयं की कविताओं और कहानियों के कई अनुवाद विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में छपे हैं। 'आत्मजयी' का 1989 में इतालवी अनुवाद रोम से प्रकाशित हो चुका है। 'युगचेतना' और 'नया प्रतीक' तथा 'छायानट' के संपादक-मण्डल में भी कुंवर नारायण रहे हैं।


आज कुंवर नारायण जी के 91वें जन्मदिवस पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

सेल्फी के शौक का जानलेवा पागलपन : ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
दूरसंचार तकनीक में आई क्रांति ने घर के किसी कोने में रखे फोन को मोबाइल में बदला और उसी तकनीकी बदलाव ने मोबाइल को बहुतेरे कामों की मशीन बना दिया. विकासशील देश होने के कारण अपने देश में स्मार्टफोन का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है. यहाँ मोबाइल को आजकल बातचीत के लिए कम और सेल्फी फोन के रूप में ज्यादा प्रचारित किया जा रहा है. कम्पनियाँ भी मोबाइल को  सेल्फी के विभिन्न लाभों के साथ बाजार में उतार रही हैं. इस कारण नई पीढ़ी तेजी से इस तरफ आकर्षित हुई है.  इसकी सशक्तता यहाँ तक तो ठीक थी मगर सोशल मीडिया के बुखार ने सभी को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. खुद को अधिक से अधिक प्रचारित, प्रसारित करने के चक्कर में मोबाइल कैमरे का उपयोग सामने वाले की, प्राकृतिक दृश्यों के चित्र खींचने से अधिक सेल्फी लेने के लिए होने लगा है. जगह कोई भी हो, स्थिति कोई भी हो, अवसर कोई भी हो व्यक्ति सेल्फी लेने से चूकता नहीं है. 


ये शौक अब जानलेवा साबित हो रहा है. देश की गंभीर समस्याओं में से एक प्रमुख है मोबाइल कैमरे के द्वारा सेल्फी लेने में दुर्घटना होना. नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह फँस चुकी है. आज हर कोई रोमांचक, हैरानी में डालने वाली एवं विस्मयकारी सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान की भी परवाह नहीं कर रहा है. कभी ऊंची पहाड़ी की चोटी पर, कभी बीच नदी की धार में, कभी बाइक पर स्टंट करते हुए, कभी ट्रेन से होड़ करते हुए. वे अपनी मनचाही तस्वीरें खींचते हैं और सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अपने दोस्तों से शेयर करते हैं. इसमें उनमें फैशन और आधुनिक होने के भाव झलकते हैं. यह हरकत इसलिए भी चिंतनीय है क्योंकि ये काम पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा किया जा रहा है.
देश में पर्यटन केन्द्रों पर इस तरह के सूचना बोर्ड लगाने का काम तेजी से चल रहा है, जिसमें पर्यटकों से अनुरोध किया गया है कि वे सेल्फी लेते वक्त सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें. इसके बाद भी रोज ही दुर्घटनाएं हो रही हैं. यह समझ से पर है कि खुद को किसलिए, किसके लिए सबसे अलग दिखाने की कोशिश की जाती है? क्यों खतरनाक जगहों पर जाकर स्टंट करते हुए सेल्फी लेने की कोशिश की जाती है? क्यों तेज रफ़्तार बाइक पर, तेज गति से भागती ट्रेन पर सेल्फी लेकर खुद को क्या सिद्ध किया जाता है? इस तरह की जानलेवा हरकतों को सिवाय पागलपन के कुछ नहीं कहा जा सकता है. इस पागलपन को नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता है. मोबाइल जिस काम के लिए बना है उसके लिए ही अधिकाधिक उपयोग किये जाने की आवश्यकता है. अन्यथा की स्थिति में यह पागलपन लगातार घरों के चिरागों को बुझाता रहेगा.

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सोमवार, 17 सितंबर 2018

विश्वकर्मा जयंती और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
भगवान विश्वकर्मा
विश्वकर्मा जयन्ती सनातन परंपरा में पूरी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे, मशीनों तथा औज़ारों से सम्बंधित कार्य करने वाले, वाहन शोरूम आदि में विश्वकर्मा की पूजा होती है। इस अवसर पर मशीनों और औज़ारों की साफ-सफाई आदि की जाती है और उन पर रंग किया जाता है। विश्वकर्मा जयन्ती के अवसर पर ज़्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है। विश्वकर्मा हिन्दू मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवताओं के शिल्पी के रूप में जाने जाते हैं।


आप सभी को विश्वकर्मा जयंती की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।