मीना भारद्वाज का ब्लॉग
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"दृष्टिकोण"
अक्सर पढ़ती हूँ तीज-त्यौहारों के संबन्धित विषयों
के बारे में..अच्छा लगता है भिन्न- भिन्न प्रान्तों के
रीति-रिवाजों के बारे में जानना । इन्द्रधनुषी सांस्कृतिक विरासत है हमारी ..संस्कृति की यही तो खूबी है कि
वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है । निरन्तरता में नव-पुरातन
घुल-मिल जाता है मिश्री और पानी की तरह मगर
उसका मूल नष्ट नही होता । इसी संस्कृति से हमारे
आचार विचार पोषित होते हैं । मगर मन खट्टा हो
जाता है जब इस तरह के क्रिया - कलापों की
आलोचनाएँ पढ़ती हूँ । नारी का साज-श्रृंगार
उसकी सुन्दरता के साथ साथ उसकी सम्पन्नता का
प्रतीक है । यही नहीं प्राचीनकाल का इतिहास यदि
चित्रों के माध्यम से समझने और देखने का प्रयास
करें तो पुरूष वर्ग भी महिला वर्ग के समान आभूषणों
से सजा दिखाई देता है ।
बाहरी आक्रमणकारियों के आने के बाद 'सोने की चिड़िया' हमारे देश की स्वर्णिम व्यवस्था चरमराई और
फिर रही सही कमी ब्रिटिशसरस् ने पूरी कर दी ।
आधुनिकता के नाम पर पायल , कंगन और अन्य वस्त्राभूषण को गुलामी या परतंत्रता का प्रतीक मानना ,
व्रत- पूजा पाठ को दकियानूसी विचार मानना मुझे तो किसी भी नजरिए से तर्क संगत नजर नहीं आता । केवल विरोध करना है तो करना है यह एक अलग पहलू है ।
आज की अधिकांश महिलाएं शिक्षित और परिपक्व सोच रखती हैं यह उनके स्वविवेक पर निर्भर करता है कि
उन्हें क्या करना है ।
व्रत , उपासना , पूजा-अर्चना करना या ना करना उनकी व्यक्तिगत भावना और आध्यात्म से जुड़ाव की भावना है । रीति-रिवाजों के लिए जबरन विचार थोपे जाएँ तो यह अवश्य गलत होगा और इस तरह की बातों का विरोध भी पुरजोर होना चाहिए मगर स्वेच्छा से किये गए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यों की आलोचना अनुचित है । हमारे विचार किसी दूसरे के विचारों से मेल खायें या नहीं खायें
यह अलग विषय है लेकिन हमें दूसरों के विचारों का सम्मान अवश्य करना चाहिए ।
★★★★★
बहुत अच्छी वार्षिक अवलोकन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार कविता जी ।
हटाएंअपने ब्लॉग के लेख "दृष्टिकोण" को "ब्लॉग बुलेटिन" के वार्षिक अवलोकन मेंं सम्मानित पा कर हृदयतल से अभिभूत हूँ । हार्दिक आभार आदरणीया रश्मि प्रभा जी 🙏🙏.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो आप को हृदयतल से बधाई मीना जी ,आपका लेख " दृष्टिकोण " सचमुच एक मंथन ही था रीति -रिवाज ,धर्म और परम्पराओं का मंथन। ब्लॉग बुलेटिन में आपके इस लेख को दोबारा पढ़ना बड़ा ही सुखद रहा ,ढेरों शुभकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धित करती अनमोल प्रतिक्रिया के हृदयतल से आभार कामिनी जी ।
हटाएंहार्दिक बधाई आदरणीया मीना दीदी जी. ब्लॉग बुलेटिन जैसे प्रतिष्ठित पटल पर आपके ब्लॉग 'मंथन' को देखकर बहुत ख़ुशी हुई. आपका सृजन मुझे बहुत प्रभावित करता है. आपका लेखन दिनोंदिन निखरता रहे. ढेर सारी शुभकामनाएँ आपको
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेह
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंहार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मीना जी ! ब्लॉग बुलेटिन पर आपकी रचना देखकर अत्यंत खुशी हुई।
जवाब देंहटाएंआपके दृष्टिकोण से मैं पूर्णतः सहमत हूँ....
आधुनिकता के नाम पर पायल , कंगन और अन्य वस्त्राभूषण को गुलामी या परतंत्रता का प्रतीक मानना ,
व्रत- पूजा पाठ को दकियानूसी विचार मानना मुझे तो किसी भी नजरिए से तर्क संगत नजर नहीं आता । केवल विरोध करना है तो करना है यह एक अलग पहलू है ।
एकदम सटीक कथन।
हृदयतल से असीम आभार सुधा जी ।
हटाएंप्रिय मीना जी , आपके सारगर्भित लेख के साथ आज की प्रस्तुति बहुत सार्थक है | आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | दृष्टिकोण में आपके दृष्टिकोण का स्वागत है | आपकी तरह मैं भी मानती हूँ कि अपनी परम्पराओं को त्याग पाश्चात्यीकरण का समर्थन करना आधुनिकता नहीं | हमारी परम्पराएँ हमारे संस्कारों की पहचान हैं , हाँ जहाँ अंधविश्वास और कुरीतियों का जमावड़ा हो वहां विरोध बनता है | आपकी प्रतिभा को सम्मान मिला , जिसके आप बखूबी योग्य हैं | पुनः बधाई |
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय रेणु जी आपके मान भरे स्नेह वचनों हेतु ..
हटाएंसार्थक प्रस्तुती के लिए हार्दिक आभार ब्लॉग बुलेटिन |
जवाब देंहटाएंमीना जी प्रभावित करता लेख है ब्लॉग बुलेटिन पर आपकी रचना देखकर खुशी हुई :))
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार संजय जी ।
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