अंशुमाला और उनका ब्लॉग
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लिफ्ट , घुटनो का दर्द और मर्फी के नियम -------mangopeople
हम दूसरी मंजिल पर रहते हैं इतने सालों में भी लिफ्ट के उपयोग की आदत ना बनी | लिफ्ट का उपयोग तभी करते जब हाथो में भारी सामान हो | दो साल पहले तक जिस आदत को अच्छा मानते थे उसे फिजियोथेरेपिस्ट ने ना केवा ख़राब आदत घोषित कर दिया बल्कि उतरने चढने के लिए लिफ्ट का उपयोग करने की सलाह दे दी | अब अचानक से लिफ्ट के इंतज़ार में खड़े होने की आदत कहाँ से आती , तो सीढ़ियों का उपयोग जारी रहा लेकिन हील की सैंडिल के प्रेम ने लिफ्ट के दरवाजे दिखा दिए और शुरू हुआ हमारी ईमारत के एकमात्र लिफ्ट पर मर्फी का पता नहीं कौन से नंबर का नियम लागू होना |
१- हम अगर बाहर से आये तो लिफ्ट कभी भी ग्राउंड फ्लोर पर नहीं होती | वो सैकेंड से लेकर टॉप फ्लोर पर कहीं भी अटकी रहती हैं |
२- हम सैकेंड फ्लोर पर हैं तो लिफ्ट पक्का वहां नहीं होगी वो ग्राउंड या टॉप पर होगी या हमारे सामने से ऊपर जा रही होगी |
३- हम बाहर से आते हैं और लिफ्ट सामने खड़ी दिखती हैं जैसे ही उसकी तरफ बढ़ते हैं वो हमें लेने से पहले ही ऊपर की और चल देती हैं |
४- अगर हम इंतज़ार करे की चलो वो नीचे आयेगी फिर जायेंगे , तो वो पक्का टॉप फ्लोर तक जायेगी और कभी कभी तो हर फ्लोर पर रुकती हुई जाएगी |
५- ऊपर जाती लिफ्ट को देखकर जिस दिन हम सोचते हैं कि छोडो इंतजार क्या करे सीढ़ी से चढ़ जाते हैं तो लिफ्ट पक्का फर्स्ट फ्लोर पर ही हमारा इंतज़ार कर रही होती हैं |
६- जिस दिन हम सोचते हैं आज तो टॉप फ्लोर से बुला कर लिफ्ट से ही नीचे उतरेंगे चाहे कुछ हो जाये | उस दिन लिफ्ट जब दूसरी मंजिल पर हर मंजिल पर रुकते हुए आती हैं तो इतनी भरी रहती हैं कि उसमे समाया नहीं जा सकता हैं |
७- कई बार तो ऐसा होता हैं बिटिया को दौड़ा कर भेजते हैं जाओ लिफ्ट रोको मैं सामान ले कर आ रहीं हूँ तो उस दिन तो लिफ्ट ही बंद मिलती हैं , या तो ख़राब होगी या फिर मेन्टेन्स हो रहा होता हैं |
८- कभी कभी लिफ्ट के पास पहले से ही इतने लोग खड़े होते हैं और वो भी सबके सब सबसे ऊपरी मंजिल वाले की लगता हैं इनका जाना ज्यादा जरुरी हैं | अपना बोझा सीढ़ी से ही ढोना बेहतर हैं |
९- कभी कभी कचरे वाली अपने कचरे के गंदे डब्बे के साथ खड़ी मिलेगी लिफ्ट की इंतज़ार में | फिर लगेगा नाक बंद करके लिफ्ट से जाने से अच्छा हैं साँस फुला कर सीढ़ियों से चले जाए ज्यादा सही रहेगा |
१०- कभी उत्साहित बच्चों की भीड़ रहेगी और दो चार बुजुर्ग , तो आप को अपने नागरिक कर्तव्यों को याद करना होता हैं , पहले आप जाए , हमारा क्या हैं ईमारत में ये सीढियाँ हमारे लिए ही बनी हैं |
११ - कभी कभी लिफ्ट के बाहर इंतज़ार करती पहली मंजिल पर रहने वाली वो पड़ोसन मिलेगी जिसका वजन सवा सौ किलो से पाव भर भी कम ना होगा | उसके देखते ही वजन बढ़ने की चिंता इतने भयानक होती हैं कि मारों गोली घुटनों को , कम से कम सीढियाँ चढ़ उतर कर सौ दो सौ ग्राम वजन रोज तो बढ़ने से रोक ही सकते हैं | तो सीढियाँ जिंदाबाद |
१२ - फिर कभी सामने से लिफ्ट एकदम से हमारे सामने नीचे आती और रुकती दिखती हैं और हम पूरी तरह से ऊपरवाले को धनबाद , पटना दे ही रहे होते हैं कि उसमे से चिपकू बकबकिया पड़ोसन हमें देखते मुस्कराते निकलेंगी और अरे बड़े दिनों के बाद दिखी से शुरू होती हैं तो खड़े खड़े दस पंद्रह मिनट निकल जाते हैं | उतने के बीच लिफ्ट चार बार ऊपर नीचे कर लेती हैं और जब वो जाती हैं तो लिफ्ट भी उनके साथ ऊपर की और जाते देख मन मसोस हम फिर सीढ़ियों की शरण में होते हैं |
फिर इन तमाम तरह की दुश्वारियों से तंग आ कर हमने तय किया कि बस अब और लिफ्ट को भाव ना दिया जायेगा और उसकी जगह अपनी प्यारी हील के सैंडिलों की ही तिलांजलि दी जायेगी | बहुत जरुरत हुआ तो सैंडिल हाथ में लेकर सीढियाँ उतर जायेंगे और क्या
हम दूसरी मंजिल पर रहते हैं इतने सालों में भी लिफ्ट के उपयोग की आदत ना बनी | लिफ्ट का उपयोग तभी करते जब हाथो में भारी सामान हो | दो साल पहले तक जिस आदत को अच्छा मानते थे उसे फिजियोथेरेपिस्ट ने ना केवा ख़राब आदत घोषित कर दिया बल्कि उतरने चढने के लिए लिफ्ट का उपयोग करने की सलाह दे दी | अब अचानक से लिफ्ट के इंतज़ार में खड़े होने की आदत कहाँ से आती , तो सीढ़ियों का उपयोग जारी रहा लेकिन हील की सैंडिल के प्रेम ने लिफ्ट के दरवाजे दिखा दिए और शुरू हुआ हमारी ईमारत के एकमात्र लिफ्ट पर मर्फी का पता नहीं कौन से नंबर का नियम लागू होना |
१- हम अगर बाहर से आये तो लिफ्ट कभी भी ग्राउंड फ्लोर पर नहीं होती | वो सैकेंड से लेकर टॉप फ्लोर पर कहीं भी अटकी रहती हैं |
२- हम सैकेंड फ्लोर पर हैं तो लिफ्ट पक्का वहां नहीं होगी वो ग्राउंड या टॉप पर होगी या हमारे सामने से ऊपर जा रही होगी |
३- हम बाहर से आते हैं और लिफ्ट सामने खड़ी दिखती हैं जैसे ही उसकी तरफ बढ़ते हैं वो हमें लेने से पहले ही ऊपर की और चल देती हैं |
४- अगर हम इंतज़ार करे की चलो वो नीचे आयेगी फिर जायेंगे , तो वो पक्का टॉप फ्लोर तक जायेगी और कभी कभी तो हर फ्लोर पर रुकती हुई जाएगी |
५- ऊपर जाती लिफ्ट को देखकर जिस दिन हम सोचते हैं कि छोडो इंतजार क्या करे सीढ़ी से चढ़ जाते हैं तो लिफ्ट पक्का फर्स्ट फ्लोर पर ही हमारा इंतज़ार कर रही होती हैं |
६- जिस दिन हम सोचते हैं आज तो टॉप फ्लोर से बुला कर लिफ्ट से ही नीचे उतरेंगे चाहे कुछ हो जाये | उस दिन लिफ्ट जब दूसरी मंजिल पर हर मंजिल पर रुकते हुए आती हैं तो इतनी भरी रहती हैं कि उसमे समाया नहीं जा सकता हैं |
७- कई बार तो ऐसा होता हैं बिटिया को दौड़ा कर भेजते हैं जाओ लिफ्ट रोको मैं सामान ले कर आ रहीं हूँ तो उस दिन तो लिफ्ट ही बंद मिलती हैं , या तो ख़राब होगी या फिर मेन्टेन्स हो रहा होता हैं |
८- कभी कभी लिफ्ट के पास पहले से ही इतने लोग खड़े होते हैं और वो भी सबके सब सबसे ऊपरी मंजिल वाले की लगता हैं इनका जाना ज्यादा जरुरी हैं | अपना बोझा सीढ़ी से ही ढोना बेहतर हैं |
९- कभी कभी कचरे वाली अपने कचरे के गंदे डब्बे के साथ खड़ी मिलेगी लिफ्ट की इंतज़ार में | फिर लगेगा नाक बंद करके लिफ्ट से जाने से अच्छा हैं साँस फुला कर सीढ़ियों से चले जाए ज्यादा सही रहेगा |
१०- कभी उत्साहित बच्चों की भीड़ रहेगी और दो चार बुजुर्ग , तो आप को अपने नागरिक कर्तव्यों को याद करना होता हैं , पहले आप जाए , हमारा क्या हैं ईमारत में ये सीढियाँ हमारे लिए ही बनी हैं |
११ - कभी कभी लिफ्ट के बाहर इंतज़ार करती पहली मंजिल पर रहने वाली वो पड़ोसन मिलेगी जिसका वजन सवा सौ किलो से पाव भर भी कम ना होगा | उसके देखते ही वजन बढ़ने की चिंता इतने भयानक होती हैं कि मारों गोली घुटनों को , कम से कम सीढियाँ चढ़ उतर कर सौ दो सौ ग्राम वजन रोज तो बढ़ने से रोक ही सकते हैं | तो सीढियाँ जिंदाबाद |
१२ - फिर कभी सामने से लिफ्ट एकदम से हमारे सामने नीचे आती और रुकती दिखती हैं और हम पूरी तरह से ऊपरवाले को धनबाद , पटना दे ही रहे होते हैं कि उसमे से चिपकू बकबकिया पड़ोसन हमें देखते मुस्कराते निकलेंगी और अरे बड़े दिनों के बाद दिखी से शुरू होती हैं तो खड़े खड़े दस पंद्रह मिनट निकल जाते हैं | उतने के बीच लिफ्ट चार बार ऊपर नीचे कर लेती हैं और जब वो जाती हैं तो लिफ्ट भी उनके साथ ऊपर की और जाते देख मन मसोस हम फिर सीढ़ियों की शरण में होते हैं |
फिर इन तमाम तरह की दुश्वारियों से तंग आ कर हमने तय किया कि बस अब और लिफ्ट को भाव ना दिया जायेगा और उसकी जगह अपनी प्यारी हील के सैंडिलों की ही तिलांजलि दी जायेगी | बहुत जरुरत हुआ तो सैंडिल हाथ में लेकर सीढियाँ उतर जायेंगे और क्या
बहुत अच्छी लगी वार्षिक अवलोकन के तहत अंशुमाला की ब्लॉग पोस्ट !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरे ब्लॉग की चर्चा वार्षिक अवलोकन में करने के लिए 🙏
जवाब देंहटाएंCheck our blog for latest blogging tips
जवाब देंहटाएंBlueBlogging
Rajssp Kya Hota Hai - Rajssp भी एक ऐसी ही योजना है जिसे राजस्थान सरकार ने launch किया था। ये एक ऐसी योजना है जिससे गरीब व असहाय लोगों को pension देने के लिए शुरू किया है ताकि उन लोगों का पेंशन के पैसों से 2 वक़्त की रोटी खा सके और वे खाने के लिए किसी दूसरे पर निर्भर ना हो।
जवाब देंहटाएंNice information keep it in future
जवाब देंहटाएंरावण का असली नाम क्या था
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ধন্যবাদ শেয়ার করার জন্য।
जवाब देंहटाएंস্যার, আপনি কি বাসা/ অফিস শিফটিং করতে চান? নীচের তথ্য দিয়ে অপেক্ষা করুন: শীঘ্রই আমাদের সার্ভিস ম্যানেজার আপনার সাথে যোগাযোগ করবে।
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