बैक ग्राउंड से - बारिश की बूंदें भी बोलती हैं उस दिन भी कुछ कह रही थीं ...
उसकी आँखों में सपनों की
एक नदी बहती थी
रंगबिरंगी मछलियाँ डुबकियां लेतीं
कोई अनचाहा मछुआरा मछलियाँ न पकड़ ले
जब तब वह अपनी आँखें
कसके मींच लेती...
....
एक दिन -
किसी ने बन्द पलकों पर उंगलियाँ घुमायीं
और बड़ी बड़ी आँखों ने देखना चाहा
कौन है .....
और पलक झपकते
सपनों की नदी से
छप से एक मछली बाहर निकली
मछुआरे ने उसे अपनी आँखों की झील में डाला
और अनजानी राहों पर चल पड़ा................
बहुत सुन्दर बुलेटिन।
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