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गुरुवार, 17 अगस्त 2017

वीर सपूतों का देश और ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार दोस्तो,
देश की स्वतंत्रता में अनेक शूरवीरों का योगदान रहा है. आज, 17 अगस्त को देश अपने ऐसे ही दो सपूतों को याद कर रहा है. मदन लाल ढींगरा और पुलिन बिहारी दास ऐसे ही दो वीर सपूत हैं, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने आपको बलिदान कर दिया.

अमर शहीद मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 फरवरी 1883 को पंजाब में हुआ था. उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था किन्तु वे बचपन से ही क्रांतिकारी घटनाओं में सक्रिय हो गए थे. जब उनको स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के विद्यालय से निकाला गया तो परिवार ने उनसे नाता तोड़ लिया. इसके बाद उन्होंने कुछ दिन मुम्बई में काम किया और फिर अपने बड़े भाई से विचार-विमर्श कर सन 1906 में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैड चले गये. वहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश लिया.

लंदन में वह विनायक दामोदर सावरकर के संपर्क में आए. वे अभिनव भारत मंडल के सदस्य होने के साथ ही इंडिया हाउस नाम के संगठन से भी जुड़ गए जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का आधार था. इसी दौरान भारत में खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दे दी गई. इन घटनाओं से वे तिलमिला उठे और उन्होंने बदला लेने की ठानी. 1 जुलाई 1909 को इंडियन नेशनल एसोसिएशन के लंदन में आयोजित वार्षिक समारोह में ढींगरा अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के उद्देश्य से गए. अंग्रेज़ों के लिए भारतीयों से जासूसी कराने वाले ब्रिटिश अधिकारी कर्ज़न वाइली ने जैसे ही हॉल में प्रवेश किया, ढींगरा ने रिवाल्वर से उस पर चार गोलियां दाग़ दीं. उनको पकड लिया गया. इस प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट लंदन में हुई. उनको मृत्युदण्ड की सजा सुनाई गई और 17 अगस्त सन 1909 को फांसी दे दी गयी.

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महान स्वतंत्रता प्रेमी व क्रांतिकारी पुलिन बिहारी दास का जन्म 24 जनवरी 1877 को बंगाल के फ़रीदपुर ज़िले में हुआ था. उनके पिता नबा कुमार दास सब-डिविजनल कोर्ट में वकील और उनके एक चाचा डिप्टी मजिस्ट्रेट व एक चाचा मुंसिफ थे. उन्होंने फ़रीदपुर से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए ढाका कॉलेज में प्रवेश लिया. सन 1906 में बिपिन चन्द्र पाल और प्रमथ नाथ मित्र के आह्वान कि जो लोग देश के लिए अपना जीवन देने को तैयार हैं, वह आगे आयें तो पुलिन बिहारी दास तुरंत आगे बढ़ गए. उन्हें अनुशीलन समिति की ढाका इकाई का दायित्व सौंपा गया. बाद में उन्होंने 80 युवाओं के साथ ढाका अनुशीलन समिति की स्थापना की. उनके प्रयासों से जल्द ही प्रान्त में समिति की 500 से भी ज्यादा शाखाएं हो गयीं.

देशप्रेम से ओतप्रोत पुलिन दास ने क्रांतिकारी युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए ढाका में नेशनल स्कूल की स्थापना की. इसमें नौजवानों को शुरू में लाठी और लकड़ी की तलवारों से लड़ने की कला सिखाई जाती थी और बाद में उन्हें खंजर और अंत में पिस्तौल, रिवॉल्वर चलाने की भी शिक्षा दी जाती थी. क्रांतिकारी गतिविधियों के सञ्चालन हेतु धन की व्यवस्था के लिए 1908 के प्रारंभ में उन्होंने सनीसनीखेज बारा डकैती कांड को अंजाम दिया. सन 1908 में अंग्रेज़ सरकार ने उनको गिरफ्तार कर लिया और मोंटगोमरी जेल में कैद कर दिया. वे इससे डरे नहीं और 1910 में जेल से रिहा होने के बाद दोबारा क्रांतिकारी गतिविधियों को तेज करने में लग गए. उनकी गतिविधियों से घबरा कर अंग्रेज़ सरकार ने ढाका षड्यंत्र केस में पुलिन बिहारी दास और उनके साथियों को जुलाई 1910 को दोबारा गिरफ्तार कर लिया. इस केस में उनको कालेपानी की सजा हुई और उन्हें कुख्यात सेल्यूलर जेल भेज दिया गया. यहाँ उनकी भेंट अपने जैसे वीर क्रांतिकारियों - हेमचन्द्र दास, बारीन्द्र कुमार घोष और विनायक दामोदर सावरकर से हुई. प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर इनकी सजा कम कर दी गयी और 1918 में उन्हें रिहा कर दिया गया. इसके बाद भी उन्हें एक वर्ष तक गृह-बंदी में रखा गया. सन 1919 में रिहा होते ही उन्होंने फिर से समिति की गतिविधियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू किया.

क्रांतिकारी विचारधारा को फैलाने के लिए उन्होंने हक़ कथा और स्वराज नामक दो पत्रिकाएँ भी निकालीं. कतिपय आंतरिक विवादों के चलते उन्होंने सन 1922 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया किन्तु वांग्य व्यायाम समिति की स्थापना के द्वारा वह युवकों को लाठी चलाने, तलवारबाज़ी और कुश्ती की ट्रेनिंग देने लगे. 17 अगस्त 1949 को कोलकाता पश्चिम बंगाल में उनका निधन हो गया.

बुलेटिन परिवार की ओर से मदन लाल ढींगरा और पुलिन बिहारी दास को उनकी पुण्यतिथि पर नमन सहित आज की बुलेटिन प्रस्तुत है.

4 टिप्‍पणियां:

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