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रविवार, 25 सितंबर 2016

भूली-बिसरी सी गलियाँ - 7



तुम्हारे विचारों का आह्वान 
मेरी ज़िद है 
मेरा मानना है 
देवताओं के साथ विचारों की उपस्थिति 
देवताओं की आरती है … 
मंदिर के पट बंद भी होते हैं
ऐसे में विचारों का शास्त्रार्थ
देवताओं के संग न हो
तो पूजा अधूरी होती है !  ... 



11 टिप्‍पणियां:

  1. भूली-बिसरी गलियों की सैर कराने हेतु बहुत बहुत आभार!

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  2. बिटिया के साथ व्यस्त रहा दो दिन... आज लौट गयी... और आज की कड़ियों में भी कई नाम ज़हन में तैर गए... कुछ नामों के साथ मुस्कराहट भी आई होठों पर...!

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  3. भूली बिसरी गली में जाना अच्छा लगा

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  4. वाह क्या बात है
    "विचारों का शास्त्रार्थ देवताओं के संग"
    हमारी तो ये सोचने की भी हिम्मत नहीं है ।

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।

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  5. बहुत -बहुत धन्यवाद रश्मि जी।

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  6. भूली बिसरी गलियां याद दिला दी । आभार

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  7. भूली बिसरी गलियां याद दिला दी । आभार

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  8. आभार, रश्मि जी ।
    इन गलियों में चहलकदमी करना अच्छा लगा ।

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  9. देर से देखा माफी चाहती हूँ पर मेरी रचना को इस सुंदर चर्चा में स्थान देने का आभार। दर असल मेरी घुटने की सर्जरी हुई है।

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