वो हमारे घर आए
हमने कहा -
हो जाए गरमागरम चाय
उन्होंने 'ना' में सर हिलाया
एक मुस्कान के साथ
दूसरे दिन वे शिकायत करते फिरे
- अमां चाय को पूछा
कोई ठंडा पेय भी तो दे सकते थे !
तौबा,तौबा
ऐसे लोगों से पानी भी नहीं माँगना चाहिए
!!!
हैरान,परेशान होने से बेहतर है, कुछ लिखिए,ब्लॉग पर डालिये
कमेंट मिल जाए तो बहुत अच्छा
न मिले तो याद रखिये,
आप एक जगह अपनी भावनाओं के साथ हैं तो
आज न कल
कोई उम्दा पाठक मिल जाएगा :)
इनसे मिलिए -
सच में ये गलियां बिछड़ी प्राचीन महबूबा की गली जैसी हो गयी :), याद तो आती है, पर गुजरना नहीं होता। याद दिलाने और मुझे सम्मिलित करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंआप सभी को एक बार फिर मिलने का अवसर दे रही हैं..बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसमझ में आ जाये सबके आपका संदेश कुछ के बहुत है :) प्रयास जारी रहना चाहिये कुछ जरूर निकल कर आना चाहिये । सोये को जगाने के लिये लोरी जैसे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
पुरानी गलियों में जाना अच्छा लगा
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जवाब देंहटाएंसार्थक प्रयास!
सच में आज कल ब्लॉग पर लोगों का ध्यान जाता ही नहीं है |आपका प्रयास सराहनीय है रश्मी जी |
जवाब देंहटाएंAabhar, Rashmi ji
जवाब देंहटाएंबढ़िया है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया है।
जवाब देंहटाएंआप का यह प्रयास हर रूप मे साधुवाद का पात्र है ... नमन है दीदी आपको |
जवाब देंहटाएंआप सदा हट कर करती रहीं है और ये उनमें से एक कदम है ।
जवाब देंहटाएंसार्थक पहल है और विचार भी उत्तम
जवाब देंहटाएंसार्थक पहल है और विचार भी उत्तम
जवाब देंहटाएंथाप की सुंदर धमक ।
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