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शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

भूली-बिसरी सी गलियाँ - 5



वो हमारे घर आए 

हमने कहा - 
हो जाए गरमागरम चाय 
उन्होंने 'ना' में सर हिलाया 
एक मुस्कान के साथ 
दूसरे दिन वे शिकायत करते फिरे 
- अमां चाय को पूछा 
कोई ठंडा पेय भी तो दे सकते थे !
तौबा,तौबा 
ऐसे लोगों से पानी भी नहीं माँगना चाहिए 
!!!


हैरान,परेशान होने से बेहतर है, कुछ लिखिए,ब्लॉग पर डालिये 
कमेंट मिल जाए तो बहुत अच्छा 
न मिले तो याद रखिये,
आप एक जगह अपनी भावनाओं के साथ हैं तो 
आज न कल 
कोई उम्दा पाठक मिल जाएगा :)

इनसे मिलिए -


14 टिप्‍पणियां:

  1. सच में ये गलियां बिछड़ी प्राचीन महबूबा की गली जैसी हो गयी :), याद तो आती है, पर गुजरना नहीं होता। याद दिलाने और मुझे सम्मिलित करने के लिए आभार।

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  2. आप सभी को एक बार फिर मिलने का अवसर दे रही हैं..बहुत बहुत आभार !

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  3. समझ में आ जाये सबके आपका संदेश कुछ के बहुत है :) प्रयास जारी रहना चाहिये कुछ जरूर निकल कर आना चाहिये । सोये को जगाने के लिये लोरी जैसे ।

    बहुत सुन्दर ।

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  4. पुरानी गलियों में जाना अच्छा लगा

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  5. सच में आज कल ब्लॉग पर लोगों का ध्यान जाता ही नहीं है |आपका प्रयास सराहनीय है रश्मी जी |

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  6. आप का यह प्रयास हर रूप मे साधुवाद का पात्र है ... नमन है दीदी आपको |

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  7. आप सदा हट कर करती रहीं है और ये उनमें से एक कदम है ।

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  8. सार्थक पहल है और विचार भी उत्तम

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  9. सार्थक पहल है और विचार भी उत्तम

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