रात भर उधेड़ा था
दिन भर बुना था खुद को
फिर भी एक फंदा गिरा मिला …
नसीहतों की सूई से उठाने के लिए
जाने कितने हाथ बढे
होड़ थी नाम की
और मुझे ख़ामोशी चाहिए थी
आज तक
एक फंदा गिरा हुआ लेकर चल रही हूँ ...
दिन भर बुना था खुद को
फिर भी एक फंदा गिरा मिला …
नसीहतों की सूई से उठाने के लिए
जाने कितने हाथ बढे
होड़ थी नाम की
और मुझे ख़ामोशी चाहिए थी
आज तक
एक फंदा गिरा हुआ लेकर चल रही हूँ ...
नसीहतों से हम जबरदस्ती नहीं कर सकते,
ना ही नाम कमाना है
बस जो भावनाओं की फसल आपने लगाई थी
उसे समय समय पर सींचें
नए बीज लगायें
आज की यादें ...
कोशिश जारी है... अबकी जो आए तो :)
जवाब देंहटाएंनमन प्रयास को
जवाब देंहटाएंनमन लेखनी को
सदा की तरह निशब्द
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंऔर
गीत ये गलियाँ ये गलियाँ .....
भी साथ में
याद आ रहा है :)
भावनाओं की फ़सल को सींचते रहें यह लाज़िमी है। मुमकिन कोशिश रहेगी। सुन्दर प्रस्तुति एवं मुझे शामिल करने के लिए आभार रश्मि जी।
जवाब देंहटाएंअभिभूत हूँ 'सुधीनामा' को भी यहाँ देख कर ! आपका स्नेह अतुलनीय है रश्मिप्रभा जी ! बहुत-बहुत आभार आपका !
जवाब देंहटाएंदीदी! इनमें कितने ब्लॉग तो ऐसे हैं जिनसे पहली बार मिल रहा हूँ... यह श्रृंखला बुक मार्क करके रख लेने जैसी है... जब कभी पुराने लोगों की याद आए घूम आएँ... मेरा और चैतन्य का साझा ब्लॉग "संवेदना के स्वर" भी था...!!
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग "ये जीना भी कोई जीना है लल्लू" सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद. सभी एक से बढ़कर एक उम्दा ब्लॉग.
जवाब देंहटाएंलिंक तो छुट्टी में ही पढ़ पायेंगे हम।
जवाब देंहटाएंलिंक तो छुट्टी में ही पढ़ पायेंगे हम।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी यादें ..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत खूब |अब फिरसे इन ब्लोग्स पर जाने का मन हो रहा है |
जवाब देंहटाएंयह सभी लोग अगर फ़िर से सक्रिय हो जाएँ तो हिन्दी ब्लॉग जगत मे फ़िर से रौनक लौट आए |
जवाब देंहटाएंब्लाग को शामिल करने का लाभ यह होता है कि कई अच्छे ब्लाग पढ़ने मिल जाते हैं इसलिये धन्यवाद रश्मि जी .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअभी यहाँ का मौसम बहुत सुहाना है और बादलों सा अस्तित्व उड़ा जा रहा है ।
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