सपने खरीदते
सपने बेचते
एक सपना मैंने तुम्हारे लिए भी खरीदा
स्नेहिल खनखनाती हँसी के झालर लगाये
पर तुम्हें ठोस हकीकत खरीदने में
सपनों की गहराई का
उसे हकीकत बनाने के सुकून का पता ही नहीं चला !
सपने बेचते
एक सपना मैंने तुम्हारे लिए भी खरीदा
स्नेहिल खनखनाती हँसी के झालर लगाये
पर तुम्हें ठोस हकीकत खरीदने में
सपनों की गहराई का
उसे हकीकत बनाने के सुकून का पता ही नहीं चला !
.... कविता रावत
हर मनुष्य की अपनी-अपनी जगह होती है
हरेक पैर में एक ही जूता नहीं पहनाया जा सकता है।
हरेक पैर के लिए अपना ही जूता ठीक रहता है।।
सभी लकड़ी तीर बनाने के लिए उपयुक्त नहीं रहती है।
सब चीजें सब लोगों पर नहीं जँचती है।।
कोई जगह नहीं मनुष्य ही उसकी शोभा बढ़ाता है।
बढ़िया कुत्ता बढ़िया हड्डी का हकदार बनता है ।।
एक मनुष्य का भोजन दूसरे के लिए विष हो सकता है ।
सबसे बढ़िया सेब को सूअर उठा ले भागता है।।
शहद गधे को खिलाने की चीज नहीं होती है ।
सोना नहीं गधे को तो घास पसंद आती है ।।
हरेक चाबी हरेक ताले में नहीं लग पाती है ।
हर मनुष्य की अपनी-अपनी जगह होती है ।।
कविता रावत जी का अनवरत ब्लॉग लेखन भी प्रभावित करता है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता..कविता जी..
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
यथार्थ वर्णन करती रचना !
जवाब देंहटाएंसत्य का बोध करवाती रचना |
जवाब देंहटाएंआभार दीदी जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना । कविता जी निरंतरता बनाये रखती हैं ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर !
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