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शनिवार, 19 दिसंबर 2015

प्रतिभाओं की कमी नहीं - एक अवलोकन 2015 (१९)


चलो आज सपनों के हाट से एक सपना खरीदें 
बन जाएँ सिंड्रेला 
घुमाके जादुई छड़ी 
ढेर सारी खुशियाँ खरीदें 
एक मुट्ठी लेमनचूस 
थोड़ी खट्टी गोलियाँ 
खुले मैदान में दौड़ें 
आसमान को उछलकर छू लें  .... 

मृदुला प्रधान






चलो आसमान को छू लें 

चलो आज हम अपने ऊपर
एक नया
आसमान बनायें..
सपनों की पगडण्डी पर
हम फूलों का
मेहराब सजायें..
वारिधि की उत्तेजित लहरों से
कल्लोलिनी
वातों में..
अंतहीन मेघाच्छन्न नभ की
चंद रुपहली रातों में..
धवल ताल में
कमल खिलें और नवल स्वरों के
गुंजन में..
धूप खड़ी पनघट से झाँके
नीले नभ के
दर्पण में..
रंगों की बारिश में भीगी
तितली पंख
सुखाती हो..
विविध पुलिन पंखुड़ियों से
जाकर बातें
कर आती हो..
झरने का मीठा पानी
पीने बादल नीचे आयें
पके फलों से झुके
पेड़ पर
तोता-मैना मंडरायें..
सघन वनों की छाया में
छिट-पुट किरणें
रहती हों..
माटी के टीलों पर
पैरों की छापें
पड़ती हों..
जहाँ धरती से आकाश मिले
उस दूरी तक
हम हो लें..
मृदुल कल्पना के पंखों से
आसमान को छू लें..

8 टिप्‍पणियां:

  1. मृदुला जी सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. दीदी को पढ़ना हमेशा सुखद होता है |

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