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रविवार, 8 नवंबर 2015

धन्य हो बिहार... ब्लॉग बुलेटिन

बिहार वाकई में बिहार है, आज चुनाव के नतीजे देख कर और लालू की वापसी को देखकर पहले तो चिंतित हुआ लेकिन फिर संयत भी हो गया। विश्व के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक, जहाँ आज भी प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का एक तिहाई, न कोई विश्व-स्तरीय शिक्षण स्थल, न कोई पांच-सितारा होटल, पर्यटन के स्थल भी गिनती के हिन्दू धर्म (बाबा धाम) और बौद्ध धर्म (गया) हैं। लालू का वह दौर याद कीजिये जब यदि कोई पटना का व्यवसायी मर्सीडीज़ खरीदता था तो उसके अगले दिन उसके घर फिरौती या फिर गुंडा टैक्स वसूली के लिए चिट्ठी पहुँच जाती थी। अपनी इस दुर्दशा के लिए बिहार किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकता है, इसके लिए सिर्फ और सिर्फ बिहार दोषी है। आज लालू की वापसी हुई और बिहार में जंगलराज की वापसी का मार्ग प्रशस्त हो गया। दिल्ली चुनाव के बाद भाजपा को समझ जाना चाहिए था कि इस देश में विकास और प्रगति की बात करने से वोट नहीं मिला करते, यहाँ सिर्फ और सिर्फ जाति समीकरण का ध्यान और अपना वोट बैंक बनाए रखने से वोट मिलते हैं। आखिर भारत जातिवाद के इस कुचक्र से कभी भी निकल सकेगा? शायद कभी नहीं, भारत में मुस्लिम समुदाय वोट बैंक बना रहेगा, दलित वोट बैंक बना रहेगा, यादव वोट बैंक बना रहेगा, और इस देश में लालुओं, मुलायमों का जंगलराज रहेगा, हमेशा रहेगा। वाकई आज के नतीजे के बाद साबित हो गया। 

जो राज्य, जाति के कुचक्र से निकलने से ही मना कर दे और आधुनिकता की ओर पीठ घुमा कर यूँ बैठ जाए कि मानो उसे इससे कुछ मतलब ही न हो तो फिर कुछ कहने का फायदा ही नहीं फिलहाल तो जय लोकतंत्र और धन्य हो बिहार, वाकई तुम धन्य हो… तुमने जंगलराज चुना है, तुम्हे जंगलराज मुबारक हो। 

(यह मेरे निजी विचार हैं, बुलेटिन के संपादक मंडल से इसे न जोड़ा जाए) 
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फ़िलहाल अब आज ब्लॉगों पर टहल कर आते हैं और आपको पिछले चौबीस घंटों की रपट दिखाते हैं.  












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आशा है आपको आज का बुलेटिन पसंद आया होगा तो मित्रों अगले रविवार तक के लिए देव बाबा को इजाजत दीजिये, शुभकामनाएं

5 टिप्‍पणियां:

  1. तेल की तलवार से वार करना और सोच लेना बकरा कट जायेगा होता है होता है एक बार के बाद तेल फैल चुका होता है :) बहुत सुंदर बुलेटिन ।

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  2. बिहार की हालत वाकई विचारणीय है.... सार्थक चिंतन के साथ बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
    सभी को धन्वन्तरी जयन्ती/धनतेरस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  3. मैं राजनीति के दाव-पेंच, उसकी सूक्ष्म नीति नहीं जानती - परन्तु राजनीति में हर बोलनेवालों की मानसिकता को थोड़ा बहुत समझने लगी हूँ। हार-जीत आपसी मतभेद की है, देश-राज्य से किसी को मतलब नहीं !
    अंधों में काना राजा का भी चयन नहीं होता , चयन करनेवाले विचारों से अंधे हैं
    बाकी क्या कहना, नज़र आएगा ही

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