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सोमवार, 9 नवंबर 2015

तीन साधू - ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को देव बाबा की राम राम, शुक्रवार को ऑफिस से घर वापसी के समय अभिषेक ने ट्रेन में लीयो टोल्स्टोय की एक कहानी सुनाई,"तीन साधू"। आइए आज आपको भी सुनाता हूँ.. 

एक बड़े चर्च के बिशप नाँव में घूम घूम कर दुनियाँ भर में ईसाई धर्म का प्रचार कर रहा था, हर नगर और देश घूमता और बाइबल में लिखी हुई बातें सबको समझाता। उसकी नाँव चलाने वाले कप्तान और बाक़ी लोग बाइबल के सारे मंतर सुनकर बहुत ख़ुश थे कि अब तो सबको मुक्ति मिलेगी और मृत्यु के बाद का जीवन एकदम सुखी होगा। एक बार वह विशप एक टापू के पास से गुज़र रहा था और उसे "तीन साधुओं" के बारे में पता चला जो प्रभु की तलाश में प्रभु की आराधना कर रहे थे। बिशप ने तुरंत अपना जहाज उस द्वीप की ओर घुमाने को कहा। जहाज़ के कप्तान ने समझाया कि वह तीनों बहुत घमंडी हैं और आपकी दया के पात्र नहीं हैं। लेकिन फिर भी बिशप के कहने पर उसने जहाज उस टीपू की और घुमाया। बड़ी तलाश के बाद वह तीन साधू एकदम अजीब सी वेशभूषा में मिले, बिशप के साफ़ सुथरे कपडे और पहनावे से वह बड़ा दिव्य प्रतीत हो रहा था लेकिन वह तीन तो एकदम गंदे और बदबूदार लग रहे थे। उनकी यह दशा देखकर बिशप बहुत हंसा और उसके उन्हें ज्ञान देना शुरू किया। फिर उनसे पुछा कि वह लोग प्रार्थना कैसे पढ़ते हैं, उन तीनों ने बहुत ही सादगी से उत्तर दिया "हम तीन, तुम तीन, हम पर दया करो"। यह सुनकर बिशप हैरान हुआ और उनके इस बर्ताव को घमंडी समझ कर हैरान भी हुआ। बहरहाल, स्थिति को समझते हुए उसने बाइबिल के मुताबिक प्रार्थना के तरीकों पर पूरी रात बैठकर प्रवचन दिया और उन्हें प्रार्थना समझायी। उन तीनों साधुओं ने समझ कर उसे बार बार रटना शुरू किया। अगले दिन अपना काम पूरा हुआ जानकर, बिशप अपने जहाज़ में वापस लौट आया और उसने वापसी की राह पकड़ी। थोड़ी ही देर बाद उसने देखा कि वह तीन साधू पानी पर दौड़ते हुए उसके जहाज की ओर भागे हुए आ रहे हैं, बिशप यह देख कर पसीने पसीने हो गया और उसने इस प्रकार से आने का कारण पूछा। उन तीन साधुओं ने कहा की प्रार्थना जब तक रटते रहे याद रही, लेकिन ज्यों ही उसे पढ़ना बंद किया हम भूल गए, एक बार और बता दो कि प्रार्थना क्या थी। 

पानी पानी हो चूका बिशप बोला, तुम्हारी प्रार्थना काफी है और अब तुम्हे किसी और प्रार्थना की जरुरत नहीं, लौट जाओ तुम्हारा मन्त्र बहुत महान है। लिओ टॉलस्टॉय ने इस कहानी को  http://www.online-literature.com/tolstoy/2896/ पर भी देखा जा सकता है। 

चलिए आज के बुलेटिन की ओर..  

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पंच दिवसीय दीप पर्व

याद तेरी है तो दीवाली है

दीप, तुम्हारे संघर्ष के कितने वितान... !!

अंधकार मिटाने में असफल आतिशबाजी

किताबों की दुनिया -113

दीप दीपावली के सजें न सजें

बचपन की दीवाली

किसी के पढ‌‌ने या समझने के लिये नहीं होता है लक्ष्मण के प्रश्न का जवाब होता है बस राम ही कहीं नहीं होता है

सफर में सफर

शान्ति पाठ

वैसे लोगों को आजकल बेवकूफ समझा जाता है - द्वितीय किस्त

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ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से सभी पाठकों को धनतेरस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें |

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8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर बुलेटिन आभार देव जी 'उलूक' के सूत्र 'किसी के पढ‌‌ने या समझने के लिये नहीं होता है लक्ष्मण के प्रश्न का जवाब होता है बस राम ही कहीं नहीं होता है' को आज के बुलेटिन में जगह देने के लिये ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
    बुलेटिन परिवार को पंच दिवसीय दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!

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  3. शुभ संध्या..
    कहानी जबरदस्त सीख देती है
    अच्छी रचनाओं से परिचित करवाया आपने
    इस सांध्य बुलेटिन में
    साधुवाद
    सादर..
    यशोदा

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  4. सुंदर सूत्रों से सजा बुलेटिन। मेरी पोस्ट को जगह देने का आभार। तीन साधु कहानी बहुत सुंदर।

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  5. क्या बात है !.....बेहद खूबसूरत पोस्ट और लिंक्स....
    आप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@आओ देखें मुहब्बत का सपना(एक प्यार भरा नगमा)

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  6. वाह देव बाबू ... शानदार और काफी ज्ञानवर्धक कथा सुनाई आपने ... जय हो महाराज |

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  7. शायद तेरी कोख में बुझदिल पैदा नहीं होते ...
    इसलिए ऐ फलस्तीन की मिटटी तुझे सलाम ..

    जब भी फलस्तीन का जिक्र आता है जहन में एक बहादूर और सहन करने वाले लोगों की
    छवि उभर आती है फलस्तीन की जनता पर क्रूर इस्राइली जुल्म की इंतिहा सालों से जारी है......
    लेकिन ..........
    फलस्तीन की उस जमीन को सलाम
    जिसके के हर बगीचे को दुश्मनों ने रोंद दिया जहाँ की हर खिड़की का शीशा तक जुल्म का शिकार होकर टुटा है..स्कूल अजायब घर नजर आते है...उस देश की हर वादी में अमन का कत्ल हुआ है.
    उस जमीन के हर घर में एक शहीद की तस्वीर दीवार पर जरूर मिलेगी है.......
    उस जमीन की हर औरत को सलाम..........
    जो खून से लथपथ अपने बच्चो को गोद में लेकर कहती है ऐ जालिम इससे ज्यादा तेरे जुल्म की इन्तिहा क्या होगी लेकिन फ़िक्र ना कर में ऐसे बहादुर बच्चो को फिर जन्म दूंगी
    उस जमीन के हर बच्चे को सलाम....
    यतीम होना इस देश के बच्चे शायद जानते तक न हो फिर भी दुश्मन के सामने खड़े होकर कहते है .
    ढा ले जुल्म तू आखरी हद तक ऐ दुश्मन लेकिन .हम तेरे सामने नहीं झुकेंगे ..हम भी जवानी में कदम रखेंगे हम फिर लड़ेंगे ....क्योंकि हमें बहादुरी सिखाई जाती है. बुजदिली नहीं


    ऐ फलस्तीनियों आखिर तुम किस मिट्टी के बने हो ..कितना जुल्म सहन करोगे .....

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