Pages

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

भाव-बोध (ब्लॉग बुलेटिन)

नमस्कार मित्रो,
आज बहुत कुछ लिखने का मन नहीं हुआ. आज से ठीक पाँच वर्ष पूर्व लिखी कविता याद आ रही है. २५ सितम्बर २०१० को लिखी कविता आपके सामने, आज की बुलेटिन के साथ.
आशा है कि आपको कविता और बुलेटिन मन भाएगी.

+++++++++++++++++

मैं
भाव-बोध में
यूं अकेला चलता गया,
एक दरिया
साथ मेरे
आत्म-बोध का बहता गया।

रास्तों के मोड़ पर
चाहा नहीं रुकना कभी,
वो सामने आकर
मेरे सफर को
यूं ही बाधित करता गया।

सोचता हूं
कौन...कब...कैसे....
ये शब्द नहीं
अपने अस्तित्व की
प्रतिच्छाया लगे,
जिसकी अंधियारी पकड़ से
मैं किस कदर बचता गया।

भागता मैं,
दौड़ता मैं,
बस यूं ही कुछ
सोचता मैं,
छोड़कर पीछे समय को
फिर समय का इंतजार,
बचने की कोशिश में सदा
फिर-फिर यूं ही घिरता गया।

भाव-बोध गहरा गया,
चीखते सन्नाटे मिले,
आत्म-बोध की संगीति का
दामन पकड़ चलते रहे,
छोड़कर पीछे कहीं
अपने को,
अपने आपसे,
खुद को पाने के लिए
मैं
कदम-कदम बढ़ता गया।

+++++++++++++++++













6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविता । सुंदर बुलेटिन ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आप कविता भी लिखते हैं ... कमाल है ... जय हो राजा साहब !!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर कविता से आज की बुलेटिन.
    मुझे भी शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी कविता के साथ सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझे 25 सितम्बर 2010 को लिखी 'भाव-बोध' कविता बहुत-बहुत पसंद आई, हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

    जवाब देंहटाएं

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!