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सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

बुलेटिन में लिंक्स हों - ज़रूरी तो नहीं (5)




फिर होगी लोरी 
फिर बनेंगे मिटटी के खिलौने 
क्योंकि लोग टूट रहे 
रिश्ते कृत्रिम हो रहे 
मॉम में घरेलु खुशबू कहाँ 
मिटटी सने पाँव जैसी बात कहाँ 
धमाचौकड़ी धूप में न हो 
तो बच्चे का चेहरा नहीं खिलता 
बिना कान उमेठे 
संस्कारों की नीव नहीं पड़ती 

11 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ अपने आप सब कुछ समेटे हुये है ठीक वैसे ही आपने भी इस बुलेटिन मे सब कुछ समेटने की बेहद उम्दा कोशिश की है !

    आभार दीदी !

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  2. बहुत सुंदर !
    जाते हुऐ दिख रहे हैं रिश्ते
    उम्मीद तो है कि लौटेंगे !

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  3. बहुत ही सुंदर चयन और वो भी एकदम अनोखे अंदाज़ में । शुक्रिया रश्मि दीदी

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  4. बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ...

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  5. बिना कान उमेठे
    संस्कारों की नीव नहीं पड़ती ....सच्‍ची बात

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  6. धूप में खेले बिना बचपन नहीं खिलता …
    क्या बात !
    बहुत आभार !

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  7. बहुत सुन्दर अंकन है पूर्व की सीधी सरल जीवन की रवानगी का

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