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रविवार, 6 अक्टूबर 2013

बुलेटिन में लिंक्स हों - ज़रूरी तो नहीं (4)



कितनी सही बात है - कहानियाँ बनती हैं,लिखी जाती हैं,अनलिखी भी होती हैं  …. पर कई बार अनलिखी कहानियाँ भी हम पढ़ लेते हैं,और कई बार लिखी कहानियों से,आस-पास उभरती कहानियों से कोसों दूर होते हैं - अन्यमनस्क प्रश्नवाचक दृष्टि लिए  … टहलते रहते हैं निरर्थक  … किसी अर्थ की तलाश में  …. 
अर्थ तो किसी युग में नहीं मिला - जो मिला, जिसे हम ज्ञान या निर्वाण कहते हैं - वो है मृत्यु ! जब तक ज़िन्दगी है - अटकलें हैं 
क्या ज़रूरी है,क्या गैरज़रूरी - कौन तय करेगा,कौन मानेगा ! कुछ भी कहने-सुनने के पीछे सामयिक स्थिति काम करती है - जो समय,स्थान से बंधी होती है 

कुछ लिंक्स - जो कुछ अर्थ दे जाएँ =

उम्मीद है सबको पढ़ते हुए कुछ न कुछ मिल जायेगा, पर पढना होगा कुशल तैराक की तरह 

7 टिप्‍पणियां:

  1. तैरना नहीं आता हो तो ?
    कोई बात नहीं डूबा भी जा सकता है :)
    बहुत सुंदर संकलन !

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  2. आदरणीया रश्मि प्रभा जी सादर नमस्कार , सभी लिंक्स बहुत अच्छे हैं आपका आभार ।

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  3. बेहतरीन बुलेटिन..........
    सभी लिंक्स बढ़िया..वैसे तो इतनी पुरानी रचनाएं पढने में नहीं आतीं....
    आभार आपका दी
    अनु

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  4. लिंकस देने के पूर्व लिखी गयी बेहतरीन प्रस्तावना...!
    शब्द शब्द सागर!

    जवाब देंहटाएं

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