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शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

बुलेटिन में लिंक्स हों - ज़रूरी तो नहीं (3)



"त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम, देवौ ना जानाति कुतो मनुष्यः"

बचपन से सुना, कईयों ने कैकेयी को उदाहरण में रखा !!! पर कैकेयी ने त्रिया चरित्र नहीं निभाया।  उन्होंने तो कोप भवन का रुख किया,श्रृंगार विहीन रूप धरा और रख दिए अपने तीन वचन ! त्रिया चरित्र स्त्री का वह चेहरा है,जो स्वर्ण मृग सा भ्रमित करता है, होती है उसी की विकल पुकार और तदनन्तर आसुरी अट्टहास ! 
मोह प्रेम का हो या धन का - वह अंधा होता है सबकुछ देखते-जानते और समझते हुए भी  . पर यह मोह किस काम का,जहाँ अपनों का ही अपहरण हो और अपनों की ही शहादत - क्या सीख मिलती है भला !!! 
गीता का ज्ञान होना,उसे व्यवहार में लाना - दो अलग बात है ! सारी ज़िन्दगी तो उसकी डफली उसके राग के आगे ही खत्म हो जाती है  . समझाने का बीड़ा कौन उठाये और किसे समझाना है  . हम सब किसी न किसी विषय की पट्टी बांधे गांधारी हैं - मोह,विवशता,सामाजिकता,परिवारिकता - जो भी नाम दे दें, हैं तो गांधारी !!!

6 टिप्‍पणियां:

  1. बुलेटिन में यदि लिंक्स नही तो फिर ब्लॉग बुलेटिन का मतलब क्या .!

    नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-
    RECENT POST : पाँच दोहे,

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  2. नवरात्रि की शुभकामनायें !
    जी सब लिंक हो भी नहीं सकते कुछ हैं बहुत हैं :)

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  3. एहसास की विरक्ति कहती है - क्या ज़रूरी है !!! पर दिमाग लिंक दे ही देता है

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  4. "कुछ तो लोग कहेंगे ... लोगो का काम है कहना ... छोड़ो बेकार की बातों को ... बड़ी बहना !!"

    :)

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  5. बुलेटिन हों बस काफी नही हैं ,लिंक्स -विन्क्स हों तो मजेदार और नए नए ब्लॉग पढ़ने कों मिलते हैं |
    अजय

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!