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गुरुवार, 9 मई 2013

ख़्वाब

प्रणाम मित्रों,
सादर नमस्कार .....

प्रस्तुत है आज का बुलेटिन इस कविता के साथ .....

हर शब् आते रहे
बहके महके ख़्वाब
ज़हन में
तुम्हारा आवा दरफ्त
जारी रहा
बेचैन दिल में
सन्नाटे का शोर
चीख चीख कर
कहता रहा
क्यों देखता है ख़्वाब
इस नींद के खुमार में
कुछ सोच कर
जब वापस गया
तो सारे ख़्वाब
टूट चुके थे
खो गए थे
काली रात के अंधियारे में
बिस्तर की सिलवटों में
तकिये पर सर रख कर
'निर्जन' फिर से खो गया
एक नए ख़्वाब के
इंतज़ार में ....

आज की कड़ियाँ 

बड़के भईया जी इश्माईल प्लीज - शिवम् मिश्रा

झरीं नीम की पत्तियाँ - देवदत्त प्रसून

मजदूर का हितैषी ठेकेदार - सुशील

प्यार की सौंधी खुश्बू - चेतन रामकिशन "देव"

सरबजीत का बदला सनाउल्लाह से - पंकज श्रीवास्तव

फूलों के बीज - सुमन

नहीं आया जीना मुझे - महेश्वरी कनेरी

नदिया - अनीता मौर्या

गूगल ग्लास - अभिमन्यु भरद्वाज

चाँद पूर्ण रूप में - विवेक रस्तोगी

ग़ज़ल : चोरी घोटाला और काली कमाई - अरुण कुमार

अब आज्ञा दें | धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी 

जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम 

7 टिप्‍पणियां:

  1. 'निर्जन' फिर से खो गया
    एक नए ख़्वाब के
    इंतज़ार में ....

    बहुत सुंदर !
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया बुलेटिन तुषार भाई ... आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. ख्वाब आते रहे ख्वाब जाते रहे
    इंतज़ार चलता गया
    कोई ख्वाब आये तो कोई बात बने
    रुके एहसासों को सांस मिले ........................... लिंक्स बहुत अच्छे

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया बुलेटिन तुषार जी |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया बुलेटिन तुषार..मुझे स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..तुषार

    जवाब देंहटाएं

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