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शुक्रवार, 10 मई 2013

ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट पर नंगे पाँव


गुलज़ार साहब की एक नज़्म है फिल्म गृह-प्रवेश से, उसमें एक बहुत ख़ूब्सूरत लाइन है:
इच्छाओं के भीगे चाबुक, चुपके-चुपके सहता हूँ,
लोगों के घर यूँ लगता है, मोज़े पहने रहता हूँ.
ख़ाली पाँव कब आँगन में बैठूँगा, कब घर होगा!
घर – दो अक्षरों के मेल से बना बिना मात्रा का शब्द. अब जहाँ मात्रा तक की मिलावट न हो शब्द में, तो वहाँ मोहब्बत में मिलावट की गुंजायश कहाँ होती है. इसीलिये मेरा हमेशा से यही मानना रहा है कि माँ के बाद दुनिया में सबसे मीठा लफ्ज़ अगर कोई है, तो वो है घर. जिसे घर की मोहब्बत का एहसास है उसे इस नज़्म में बयान की गई तकलीफ का आसानी से अन्दाज़ा हो सकता है.

एक ख़ानाबदोश ज़िन्दगी में इस लफ्ज़ के कोई मानी नहीं. ख़ानाबदोश, जिसने अपना घर अपने कन्धों पर उठा रखा हो, उसे क्या पता घर क्या होता है. लगभग बीस सालों से घर को कान्धे पर उठाये भटक रहा हूँ. कभी किसी शहर में शाम हो गयी तो साल दो साल सुस्ता लिये, कहीं मन लग गया तो चार-पाँच साल रुक गये. कभी मोहब्बत सी होने लगी किसी शहर से, तो बड़े बे-आबरू होकर निकाले गये. वो घर नहीं मिला कभी जहाँ खाली पाँव चहलकदमी कर सकें. घर जाना भी मेहमानों की तरह हुआ.

गुलज़ार साहब ने अभी हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिये एक इंटरव्यू में 68 साल बाद अपनी मातृभूमि की यात्रा के बारे में बताते हुये कहा कि मैंने पैदल ही वाघा सीमा पार की. मेरे दोस्त वहीं से मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे. मेरी तबियत हुई कि मैं अपनी जूतियाँ उतार दूँ और नंगे पाँव उस मिट्टी पर चलूँ जिसमें मैंने जन्म लिया और जहाँ मैं शायद दोबारा न आ सकूँ. आपको शायद यह सब बचपना लगे, मगर मैं उस मिट्टी को महसूस करना चाहता था.

आज ब्लॉग बुलेटिन की 500 वीं पोस्ट लेकर हाज़िर हुआ हूँ, लेकिन मन ज़रा भी नहीं लग रहा. सोच कहीं और जा रही है, दिल कुछ ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा है और हाथ साथ नहीं दे रहा. बस एक दिन बाद इतवार को मैं पटना में रहूँगा, अपने पूरे परिवार के साथ. सारे भाई-बहन, घर की सारी बहुएँ-दामाद, बाल-बच्चे...!! ख़ूब रौनक रहेगी, ख़ाली पाँव चहलकदमी करने और नंगे पाँव अपनी अम्मा की गोद में सिर रखकर, अपनी यायावरी, खानाबदोशी या बंजारेपन से दूर अपने बचपन के साथ.

मुझे माफ कीजिये, क्योंकि मैं चला सफर की तैयारी में. बस आप कमर कस लीजिये 500 वीं बुलेटिन की रफ्तार एक्स्प्रेस के लिये!!!

-          सलिल वर्मा


मन जहाँ भी रमता है 
पौधे की तरह जमता है
कहीं भी किसी भी ज़मीं
मिले जरा सी भी धूप और नमी  
फैल जातीं हैं जडें गहरे तक
बिना पूछे ,बिना जाने.


नाम सुनते ही, बस
बस आ जाते हैं फिल्मी दृश्य
जेहन मे, है न !
पर सोचना, क्या है जुड़ा नहीं ये
जिंदगी के हर पड़ाव से ...


पूर्ण श्वेत, अपने पूर्ण रूप में,
उसकी आभा और निखर आती है,
मिलते तो रोज हैं छत पर,
पर देखना तुम्हें केवल इसी दिन होता है


एकदम किसी तराशे हुए हीरे की तरह लगता थाहिमालय। सात रंगों की रोशनियाँ जगमगाया करती थीं. एक अजीब सा सुकून और गर्व का सा एहसास होता था उसे देख. कि यह धीर गंभीर, शांत, श्वेत ,पवित्र सा गिरिराज हमारा है, कोई बेहद अपना सा. 


घोड़े नहीं हुए तो रथ को गति कौन देगा?
रास न हो तो घोड़े अनियंत्रित होकर रथ को ही नष्ट कर देंगे
सारथी ही नियंत्रित करता है रथ और घोड़े को लक्ष्य तक?
और इन सभी उपादानों से युक्त रथ पर राठी रूपी आत्मा ही नहीं रही
तब इनका उपभोग कौन करेगा?


मेरी मौत की खबर या फोटो फ़ेसबुक पर शेअर न की जाए.... अगर कहीं गलती से किसी स्टेटस पर आ भी जाए तो वो आपका स्टेटस हो ... और उसे सिर्फ़ लाईक करने का ऑप्शन खुला हो ...


माया वश व्यक्ति सत्य का भीप्रस्तुतिकरण इस प्रकार करता है जिससे उसका स्वार्थ सिद्ध हो. माया ऐसा कपट है जो सर्वप्रथम ईमान अथवा निष्ठा को काट देता है. मायावी व्यक्ति कितना भी सत्य समर्थक रहे या सत्य ही प्रस्तुत करे अंततः अविश्वसनीय ही रहता है.




लहरें आती और जाती हैं।
लखते हैं,
कुछ लाती, कुछ ले जाती हैं।
छकते हैं,
इठलाती, हमें खिलाती हैं।


ताऊप्रकाशन की अपनी एक इज्जत मान मर्यादा और कर्तव्य के प्रति  लगन  है जिसकी वजह से इसने प्रकाशन जगत में अपना नाम स्थापित कर लिया है. ताऊ सद साहित्य की पुस्तकें छपने से पहले ही बिक चुकी होती हैं. इसलिये आपको पछताना ना पडे, अत: तुरंत अपनी प्रति अग्रिम देकर बुक करवा लें.


सबसे पहला धर्महमारा, वन्दे मातरम
देश हमारा सबसे न्यारा, वन्दे मातरम
देश है सबसे पहले, उसके बाद धर्म आये
सोचो इस पर आज दुबारावन्दे मातरम.



पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से सभी पाठकों का बहुत बहुत आभार ...ऐसे ही स्नेह बनाए रखें !

23 टिप्‍पणियां:

  1. जे बात.... ऐसे सैकड़ों ५०० पोस्ट्स बुलेटिन के सफरनामे में लिखे जाएँ | बहुत बहुत मुबारकबाद बुलेटिन के ५०० पोस्ट होने पर | लाजवब बुलेटिन लगाई भाई | हर हर महादेव | जय श्री राम | जय बजरंगबली महाराज | जय हो मंगलमय हो |

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  2. एक महाबुलेटिन में मेरी अदनी-सी पोस्ट को शामिल करने पर अच्छा लग रहा है .... बधाई इस पड़ाव की बुलेटिन टीम को ...

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  3. आह हा ..आज तो दिन गुलजार हो गया .
    ५०० पोस्ट की बधाई.

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  4. जै हो पंचशतक की 500 वी बधाई

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  5. बहुत ख़ूबसूरत बुलेटिन...५००वीं पोस्ट की बधाई..

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  6. वाह ... बहुत ही बढिया
    बहुत-बहुत बधाई सहित शुभकामनाएँ .... ब्‍लॉग बुलेटिन की पूरी टीम को

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  7. गुलजार जी के बहाने आपने अपनी सरल तरल संवेदनाएं व्यक्त कर इस पोस्ट को और भी पठनीय बनाया है । गृहनगर की यह यात्रा भरपूर आनन्द व स्नेहमयी हो । संचयन अच्छा है । पाँच सौ वीं पोस्ट के लिये बधाई । मेरी कविता को शामिल करने के लिये हार्दिक धन्यवाद ।

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  8. कार्टून लिंक भी लगाने के लि‍ए आपका धन्‍यवाद जी.

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  9. 500 वी पोस्ट तक सतत सफ़र तय करने के लिये हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. सलिल दादा,
    प्रणाम !
    आपका यही अंदाज़ तो हम सब को आपका मुरीद बनाता है ... आप की अपनी मातृभूमि से २ साल की जुदाई का मर्म गुलजार साहब ६८ साल की इस जुदाई के दर्द से बिलकुल मेल खाता है ... खास बात यह कि इस दर्द का अहसास वही कर सकता है जिसे केवल अपने घर से लगाव न हो बल्कि उस जगह की हर चीज़ से उतना ही लगाव हो जितना वो अपने घर से और अपने परिवार से करता है ! यह जज्बा आप मे काफी अंदर तक है इस का अहसास है हम सब को !

    ब्लॉग बुलेटिन की ५००वीं पोस्ट को अपने अहसासों से यूं जोड़ने के लिए आपको एक जोरदार जादू की झप्पी ... :)

    पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से सभी पाठकों का बहुत बहुत आभार ...ऐसे ही स्नेह बनाए रखें !

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  11. हम तो इस पंक्ति पर ही अटक गए-
    “माँ” के बाद दुनिया में सबसे मीठा लफ्ज़ अगर कोई है, तो वो है “घर”.
    ५००वी पोस्ट की बधाई...
    लिंक्स देखते हैं...सलिल दा ने चुने हैं तो अच्छे होने ही हैं..

    सादर
    अनु

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  12. बढिया अंदाज ..
    अच्‍छे अच्‍छे लिंक्‍स..
    आपकी यात्रा मंगलमय हो !!

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  13. ओ गाड़ीवाले ले चल उड़ा के मईया हमारी जहाँ .... ले चल तू हमको वहाँ .... कुछ ऐसे भाव हैं सलिल भाई के ... भाव नहीं मन की स्थिति . :)
    लिंक्स के बार में क्या कहना

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  14. अभिन्न बुलेटीन..... सार्थक सूत्र संकलन!!

    माया को सम्मलित करने के लिए आभार!!

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  15. बधाईयाँ और साथ में प्रगती पथ पर अग्रसर रहने के लिए शुभकामनाएं।

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  16. अर्धसहस्त्र होने की बधाई, अगला पड़ाव शतसहस्त्र।

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  17. http://kumarsudhakar.wordpress.com/2013/05/12/maa-a-tribute-to-all-the-mothers-across-the-globe/

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