प्रिय ब्लॉगर मित्रो,
प्रणाम !
कल १० मई थी ... सन १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम इसी दिन शुरू हुआ था | आज मैं आपको इस स्वतंत्रता संग्राम मे मैनपुरी जिले के योगदान के बारे मे कुछ बताने जा रहा हूँ !
इतिहास गवाह है कि 10 मई 1857 को
मेरठ से स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत हुई, जिसकी आग की लपटें मैनपुरी भी
पहुंची। इस आंदोलन से पांच साल पहले ही महाराजा तेजसिंह को मैनपुरी की
सत्ता हासिल हुई थी। उन्हें जैसे-जैसे अंग्रेजों के जुल्म की कहानी सुनने
को मिली, उनकी रगों में दौड़ रहा खून अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने
के लिए खौल उठा और 30 जून 1857 को अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध तेजसिंह ने
आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने मैनपुरी के स्वतंत्र राज्य की घोषणा
करते हुए ऐलान कर दिया। फिर क्या था राजा के ऐलान ने आग में घी का काम किया
और उसी दिन तेजसिंह की अगुवाई में दर्जनों अंग्रेज अधिकारी मौत के घाट
उतार दिए गए। सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेजों की सम्पत्ति पर तेजसिंह
की सेना ने कब्जा कर लिया। तेजसिंह ने तत्कालीन जिलाधिकारी पावर को प्राण
की भीख मांगने पर छोड़ दिया और मैनपुरी तेजसिंह की अगुवाई में
क्रांतिकारियों की कर्मस्थली बन गयी। मगर स्वतंत्र राज्य अंग्रेजों को
बर्दाश्त नहीं था। फलस्वरूप 27 दिसम्बर 1857 को अंग्रेजों ने मैनपुरी पर
हमला बोल दिया। इस युद्ध में तेजसिंह के 250 सैनिक भारत माता की चरणों में
अर्पित हो गए। प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में तेजसिंह की भूमिका ने
क्रांतिकारियों को एक जज्बा प्रदान कर दिया। हालांकि उनके चाचा राव भवानी
सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध तेजसिंह का साथ नहीं दिया। फलस्वरूप
तेजसिंह अंग्रेजों से लड़ते हुए गिरफ्तार हो गए और अंग्रेजों ने उन्हें
बनारस जेल भेज दिया। इसके बाद भवानी सिंह को मैनपुरी का राजा बना दिया गया।
1897 में बनारस जेल में ही तेजसिंह की मौत हो गयी।
प्रणाम !
कल १० मई थी ... सन १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम इसी दिन शुरू हुआ था | आज मैं आपको इस स्वतंत्रता संग्राम मे मैनपुरी जिले के योगदान के बारे मे कुछ बताने जा रहा हूँ !
मैनपुरी का क़िला |
वैसे तो मैनपुरी जिले का इतिहास वीर गाथाओं से भरा पड़ा
है। यहां की माटी में जन्मे लाल हमेशा गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए
हर सम्भव कोशिश करते रहे। ब्रिटिश राज में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यहां
की माटी वीर सपूतों के खून से लाल हुई है। पृथ्वीराज चौहान के बाद उनके
वंश के वीर देशभर में बिखर गए। उन्हीं में से एक वीर देवब्रह्मा ने 1193 ई.
में मैनपुरी में सर्वप्रथम चौहान वंश की स्थापना की। 1857 में जब
स्वतंत्रता आंदोलन की आग धधकी तो महाराजा तेजसिंह की अगुवाई में मैनपुरी
में भी क्रांति का बिगुल फूंक दिया गया। तेज सिंह वीरता से लड़े। और
अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए। घर के भेदी की वजह से उन्हें भले ही
अंग्रेजों को खदेड़ने में सफलता न मिली हो लेकिन इसमें उनके योगदान को
भुलाया नहीं जा सकता। तेजसिंह ने जीवन भर मैनपुरी की धाक पूरी दुनिया में
जमाए रखी।
महाराजा तेज़सिंह जी |
मुझे गर्व है कि आज महाराजा तेजसिंह जी की इसी मैनपुरी का मैं भी एक बाशिंदा हूँ और मैनपुरी मेरी भी कर्मभूमि है !
सादर आपका
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अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन में अत्यंत दुर्लभ पुस्तकों का विमोचन
ताऊ रामपुरिया at ताऊ डाट इन
अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन पर प्रथम पोस्ट, अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन पर द्वितीय पोस्ट *अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन पर तृतीय पोस्ट* *अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन पर चतुर्थ पोस्ट* * *अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन के पंचम सत्र में आपका स्वागत है. आज के सत्र में सबसे पहले ताऊ सद साहित्य प्रकाशन की पुस्तकों का विमोचन किया जायेगा. तदुपरांत आप सभी भक्तजनों को बाबाजी से आशीर्वाद लेने का अवसर दिया जायेगा जिससे कि आप अपनी यथा शक्ति ज्यादा से ज्यादा चढावा बाबा जी के श्री चरणों में अर्पित कर सकें. ध्यान रहे कि चढावे के समानुपाति भाव से आपका कल्याण किया जायेगा. *निष्णांत ब्... more »
डेढ़ इश्क़!
Parul kanani at Rhythm of words...तभी था ठीक,जब वो मौसमों को दिल में रखता था डर सा लगता था ,जब कभी वो बारिश को बकता था !! सुर्ख़ करके हरेक शाम, जो वो भरता था अपना ज़ाम ख़्वाबों का नशेड़ी था ,कहाँ रातों से छकता था! सुबह जो देख लेता था, दिल अपना सेक लेता था सुनहरे लिबास में इश्क उसका खूब फबता था! यूँ तो कोरी सी हवा थी,मगर उसकी तो दवा थी ज़र्रे-ज़र्रे में जैसे बस एक वही महकता था ! रोज़ के चाँद गिनता था और चुपके से बीनता था फिर आदतन खुश्क अम्बर को हँस करके तकता था! लफंगे कूचे थे कहीं, लुच्ची गलियाँ थी कहीं डेढ़ से इश्क़ में ,पगली सी फिजाएं भी चखता था!
दंभी लेखक
सुज्ञ at सुज्ञ
किसी लेखक का वैराग्य विषयक ग्रंथ पढकर एक राजा को संसार के प्रति वैराग्य उत्पन्न हुआ. ग्रंथ में व्यक्त मिमांसा युक्त वैराग्य विचारों से प्रभावित हो राजा ने सोचा, ऐसे उत्तम चिंतक ग्रंथकर्ता का जीवन विराग से ओत प्रोत होगा. उसे प्रत्यक्ष देखने की अभिलाषा से राजा नें उसके गांव जाकर मिलने का निश्चित किया. गांव जाकर बहुत खोजने पर लेखक का घर मिला. घर में घुसते ही राजा ने तीन बच्चों के साथ ममत्व भरी क्रिडा करते व पत्नि के साथ प्रेमालाप करते लेखक को देखा. राजा को बडा आश्चर्य हुआ. निराश हो सोचने लगा –“कैसा दंभी व्यक्ति निकला?” राजा को आया देखकर लेखक ने उनका सत्कार किया. राजा ने अपने आने का अभ... more »
कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान गारंटी से
Manohar Chamoli at अलविदा [alwidaa]
*कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान गारंटी से****यदि मैं आप से कहूं कि एक रास्ता है, जिस पर चलकर 'कठिन से कठिन सभी समस्याओं का समाधान गारन्टी से किया जाता है' तो आप हैरान जरूर हो जाएंगे। है न? * * * *मैं खुद हैरान हूं कि भला ऐसा कैसे हो सकता है। सुबह अखबार में एक इश्तहार नत्थी मिला। जिस पर्चे में लिखा था कि कारोबार का न चलना, लाभ, हानि, नौकरी, पद, स्थान, तबादला, विवाह, सम्बन्ध, विदेश यात्रा में रूकावट वशीकरण, ऊपरी असर, जादू-टोना, किया-कराया, गन्दी हवा, देवता बन्धन, सन्तान का न होना, गृह कलेश, कन्या ही कन्या होना, मुकदमा अदालत, दवाई का असर न होना,पुराने से पुराना कष्ट आदि समस्याओं का स... more »
व्यंग्य: फँस गये रे मामू
सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap Singh at सादर ब्लॉगस्ते!
इन दिनों मामा जी बहुत दुखी हैं। कारण उनके भांजे ने उनकी लुटिया डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने तो अपने भांजे को प्यार-दुलार पूरा दिया और इतना दिया, कि उसका व्यापार चलते-चलते दौड़ने लगा, लेकिन भांजा बड़ा बेकार निकला और उसने अपने मामा की ऐसी-तैसी करवा डाली। वैसे मामा और भांजे के बीच यह समस्या आज की नहीं है, बल्कि यदि हम द्वापर युग की ओर चलें तो पायेंगे, कि मामा कंस की लुटिया भी उसके भांजे कृष्ण ने ही डुबोई थी। बेचारा मामा कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था, लेकिन जब उसे आकाशवाणी द्वारा ज्ञात हुआ, कि उसकी बहन की कोख से उत्पन्न संतान ही उसका वध करेगी, तो सोचिए उसके ह... more »
सर्वदलीय निंदा, लानत हो और बर्खास्त हो “वन्दे-मातरम्” का अपमान कर्ता सांसद
Praveen Gugnani at Swatantra Vichar
सर्वदलीय निंदा, लानत हो और बर्खास्त हो “वन्दे-मातरम्” का अपमान कर्ता सांसद महान कवि और लेखक बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रविवार, कार्तिक सुदी नवमी, शके १७९७ (७ नवम्बर १८७५) को पूर्ण किये गए अप्रतिम, भावपूर्ण और सुन्दर गीत वन्देमातरम के विषय में कौन सच्चा भारतीय गौरव भान और आदर भाव नहीं रखना चाहेगा यह अविश्वसनीय सवाल है!! भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण, जीवट भूमिका निभानें वाले और अबाल वृद्ध देश भक्त भारतीयों में देश प्रेम और मातृभुमि के प्रति आस्था जागृत करनें वाला यह गीत स्वातंत्र्य संघर्ष काल में सम्पूर्ण भारत में एक बड़ा सम्बल और देश प्रेमियों के ... more »
ब्लॉग व्यवस्था, तृप्त अवस्था
प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्
गूगल रीडर में बढ़ते बढ़ते ब्लॉगों की संख्या ६५० के पार पहुँच गयी। तकनीक और न्यूनतम जीवन शैली विषयक लगभग ५० ब्लॉग निकाल दें, तब भी हिन्दी से जुड़े लगभग ६०० ब्लॉगों की बड़ी सूची का होना यदि कुछ इंगित करता है, तो वह अन्तर जिसे हर दिन पूरा करने के लिये कुछ न कुछ नया पढ़ते रहना आवश्यक हो जाता है। पढ़ने वाले ब्लॉगों की संख्या चाह कर भी कम नहीं कर पा रहा हूँ, यह भी इंगित करता है कि अच्छे बुरे ब्लॉगों में अन्तर की समझ भी विकसित होना शेष है, मेरे साहित्यिक पथ में। पिछले ४ वर्षों में जो भी रोचक लगता गया, सूची में स्थान पाता गया। कई और श्रेष्ठ ब्लॉगों को सूची में होना था, पर दुर्भाग्य ही कहा ... more »
" मूंछों में रखा ही क्या है ......"
Amit Srivastava at "बस यूँ ही " .......अमित
( यह पोस्ट फेसबुक पर फोटो चस्पा करने के बाद शिवम् जी के आदेश और स्नेहिल आग्रह पर लिखी गई है ) बहुत छोटे छोटे बाल और एक अदद गाढ़ी मूंछ का मै हमेशा से ही दीवाना रहा हूँ और मुझे याद नहीं पड़ता कि मुझे कभी अपने बालों के लिए कंघे की आवश्यकता हुई हो । मूंछे भी मैंने हमेशा भरी पूरी रखी । कभी कभार मूंछों के प्रति मेरी दीवानगी देख श्रीमती जी ने प्रलोभन भी दिया कि अगर आप क्लीन शेव हो जाएँ तो ऐसा होगा या वैसा होगा परन्तु मैंने कभी समर्पण नहीं किया। इस पर उनको संदेह भी हुआ कि कोई मेरी मूंछों का जबरदस्त फैन तो नहीं । खैर हम कहाँ कुछ खुलासा करने वाले इन बातों का । इधर बीते कुछ दिनो... more »
बलगम या कफ़ खतरनाक भी हो सकता है, बता रहे हैं बेटेलाल
Vivek Rastogi at कल्पनाओं का वृक्ष
हम बेटेलाल के साथ खेल रहे थे और अच्छी बात यह थी कि बेटेलाल कैरम में हमसे जीत रहे थे, तभी हमें थोड़ी खाँसी उठी, मुँह में बलगम था, हम बलगम थूकने के लिये उठे तो बेटेलाल बोले “डैडी, आज हार रहे हो, तो बीच में ही उठकर जा रहे हो”, हमने कहा “अरे नहीं, अभी दो मिनिट में आ रहे हैं, बलगम थूककर” बेटेलाल बोले “अच्छा डैडी!! जल्दी से आओ आज तो देखो मैं कैरम जीतकर ही दिखाऊँगा”, तब तक हम वाशबेसिन पर जाकर बलगम थूक चुके थे और गला खंखार रहे थे। जब तक वापिस आये तो देखा बेटेलाल लेपटॉप खोलकर गूगल में बलगम याने कि how cough is made in body.. और बोले “डैडी देखो अभी हम पता लगाते हैं कि ये कफ़ कैसे हो... more »
गांवों का देश भारत
Nityanand Gayen at मेरी संवेदनानर्मदा से होकर कोसी के किनारे से लेकर हुगली नदी के तट तक रेतीले धूल से पंकिल किनारे तक भारत को देखा गेंहुआ रंग , पसीने में भीगा हुआ तन धूल से सना हुआ चेहरे घुटनों तक गीली मिटटी का लेप काले -पीले कुछ कत्थई दांत पेड़ पर बैठे नीलकंठ इनमें देखा मैंने साहित्य और किताबों से गायब होते गांवों का देश भारत दिल्ली से कहाँ दीखती है ये तस्वीर ...? फिर भी तमाम राजधानी निवासी लेखक आंक रहे हैं ग्रामीण भारत की तस्वीर योजना आयोग की तरह .... *मध्य प्रदेश से होकर बिहार ,बंगाल की यात्रा के बाद लिखी गई एक कविता
गीली आँखों के सूखते सपने --
Divya Shukla at ये पन्ने ........सारे मेरे अपने -
गीली आँखों के सूखते सपने ---------------------------- मासूम आँखों में तिर रहे हैं कुछ प्रश्न आक्रोश भरे -- क्या हमें पानी भी नहीं मिल सकता ? जितना पानी व्यर्थ बहाते हो तुम सब हम और हमारे ढोर उतने में ही अपनी प्यास बुझाते हैं पता भी है तुम्हे नालियों से गड्ढों से पानी पीना कैसा होता है पर जीना है तो पीना है ऐसे में कैसे सपने देखें किताबों के खिलौने के पता है अम्मा के चौके में चूल्हे पे चढ़ी बटलोई में खदकते अदहन की आवाज़ आती है दूसरे तीसरे दिन तभी कौंध जाता है एक सपना भरे पेट सोने का -तिर जाती है मुस्कान पर अक्सर ऐसा भी होता है जब अदहन सूख जाता है बटलोई में ही खदक के और अम्मा की सिसकी से जो ... more »
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कैफ़ी आज़मी साहब |
संयोग से कल ही यानि १० मई २०१३ को मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी साहब की पुण्यतिथि भी थी ऐसे मे एक और संयोग देखने को मिला जब कैफ़ी साहब की एक ही नज़्म दो अलग अलग ब्लॉग पर देखी गई !
कैफ़ी आज़मी : बुतशिकन कोई कहीं से भी ना आने पाये
निवेदिता श्रीवास्तव at संकलन
बुतशिकन कोई कहीं से भी ना आने पाये हमने कुछ बुत अभी सीने में सजा रक्खे हैं अपनी यादों में बसा रक्खे हैं दिल पे यह सोच के पथराव करो दीवानो कि जहाँ हमने सनम अपने छिपा रक्खे हैं वहीं गज़नी के खुदा रक्खे हैं बुत जो टूटे तो किसी तरह बना लेंगे उन्हें टुकड़े टुकड़े सही दामन में उठा लेंगे उन्हें फिर से उजड़े हुये सीने में सजा लेंगे उन्हें गर खुदा टूटेगा हम तो न बना पायेंगे उस के बिखरे हुये टुकड़े न उठा पायेंगे तुम उठा लो तो उठा लो शायद तुम बना लो तो बना लो शायद तुम बनाओ तो खुदा जाने बनाओ क्या अपने जैसा ही बनाया तो कयामत होगी प्यार होगा न ज़माने में मुहब्बत होगी दुश्मनी होगी अदावत होगी हम से उस ... more »
और
सोमनाथ - कैफ़ी आज़मी साहब की पुण्यतिथि पर विशेष
शिवम् मिश्रा at बुरा भला
* * ** *सोमनाथ - कैफ़ी आज़मी ============================ बुतशिकन कोई कहीं से भी ना आने पाये हमने कुछ बुत अभी सीने में सजा रक्खे हैं अपनी यादों में बसा रक्खे हैं दिल पे यह सोच के पथराव करो दीवानो कि जहाँ हमने सनम अपने छिपा रक्खे हैं वहीं गज़नी के खुदा रक्खे हैं बुत जो टूटे तो किसी तरह बना लेंगे उन्हें टुकड़े टुकड़े सही दामन में उठा लेंगे उन्हें फिर से उजड़े हुये सीने में सजा लेंगे उन्हें गर खुदा टूटेगा हम तो न बना पायेंगे उस के बिखरे हुये टुकड़े न उठा पायेंगे तुम उठा लो तो उठा लो शायद तुम बना लो तो बना लो शायद तुम बनाओ तो खुदा जाने बनाओ क्या अपने जैसा ही बनाया तो कयामत होगी प्यार होगा ... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
स्वतंत्रता संग्राम में मैनपुरी के वीरों के योगदान के बारे में आपके इस बुलेटिन से पता चला. काश गद्दारों का भी क्रमवार इतिहास लिखा जाता तो शहीदों को पुष्पमालाएँ पहनाने के साथ-साथ उसी दिन गद्दारों को जूतों की मालाएँ पहनाने का सौभाग्य भी देश प्रेमियों को समय-समय पर मिलता रहता...
जवाब देंहटाएंनोट: कृपया तिथि की प्रूफ रीडिंग कर लें. 27 दिसम्बर 1857 की बजाय जल्दी में 27 दिसम्बर 1957 लिख दिया गाया है...
जय हिंद!
वंदे मातरम!
मैनपुरी की ऐतिहासिक जानकारी के लिये आभार, लिंक्स बहुत ही उपयोगी मिले. आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
@ सुमित भाई धन्यवाद ... भूल सुधार दी गई है ! ऐसे ही सहयोग और स्नेह बनाएँ रहे !
जवाब देंहटाएंजय हो बहुत खूब बुलेटिन सजाई भैयाजी | उम्दा कड़ियाँ | हर हर महादेव | कैफ़ी आज़मी साहब को श्रद्धांजली |
जवाब देंहटाएंजिन्होंने बलिदान दिया महाराज तेज सिंह को नमन और अंग्रेजों ने जिनको राजा बनाया याने कि भवानी सिंह उनके पोते नाती आज मैनपुरी में मजे कर रहे होंगे
जवाब देंहटाएंmeri rachna ko shamil karne ke liye dhanywaad :)
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंमहाराजा तेजसिंह जी को शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंशानदार बुलेटीन!!
सुज्ञ ब्लॉग पर के लेख सम्मलित करने के लिए आभार!!
बहुत ही सुन्दर सूत्र।
जवाब देंहटाएंअंग्रेज़ी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने वालों का अंजाम ऐन-केन प्रकारेण मौत ही हुआ करती थी। कभी जेल में या फिर नज़रबन्दी के दौरान ख़ुद के ही महल में। अंग्रेज माफ़ी मांगने, और पलट कर हमला करने, वायदा करने और फिर उसे तोड़ देने में माहिर थे। उनका गण राक्षस और योनि श्रृगाल हुआ करती है, इसमें कोई संशय नहीं है।
जवाब देंहटाएं