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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

चटगांव विद्रोह के नायक - "मास्टर दा" - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज 22 मार्च है ... आज भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी सूर्य सेन की ११९ वीं जयंती है !
22 मार्च 1894 मे जन्मे सूर्य सेन ने इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की थी और चटगांव विद्रोह का सफल नेतृत्व किया। वे नेशनल हाईस्कूल में सीनियर ग्रेजुएट शिक्षक के रूप में कार्यरत थे और लोग प्यार से उन्हें "मास्टर दा" कहकर सम्बोधित करते थे।
सूर्य सेन के पिता का नाम रमानिरंजन सेन था। चटगांव के नोआपारा इलाके के निवासी सूर्य सेन एक अध्यापक थे। १९१६ में उनके एक अध्यापक ने उनको क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित किया जब वह इंटरमीडियेट की पढ़ाई कर रहे थे और वह अनुशिलन समूह से जुड़ गये। बाद में वह बहरामपुर कालेज में बी ए की पढ़ाई करने गये और जुगन्तर से परिचित हुए और जुगन्तर के विचारों से काफी प्रभावित रहे। 
 
12 जनवरी सन 1934 मे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी सूर्य सेन को चटगांव विद्रोह का नेतृत्व करने के कारण अंग्रेजों द्वारा मेदिनीपुर जेल में फांसी दे दी गई थी | 
चटगांव विद्रोह
इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की चटगाँव शाखा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद मास्टर दा अर्थात सूर्यसेन ने काउंसिल की बैठक की जो कि लगभग पाँच घंटे तक चली तथा उसमे निम्नलिखित कार्यक्रम बना-
  • अचानक शस्त्रागार पर अधिकार करना।
  • हथियारों से लैस होना।
  • रेल्वे की संपर्क व्यवस्था को नष्ट करना।
  • अभ्यांतरित टेलीफोन बंद करना।
  • टेलीग्राफ के तार काटना।
  • बंदूकों की दूकान पर कब्जा।
  • यूरोपियनों की सामूहिक हत्या करना।
  • अस्थायी क्रांतिकारी सरकार की स्थापना करना।
  • इसके बाद शहर पर कब्जा कर वहीं से लड़ाई के मोर्चे बनाना तथा मौत को गले लगाना।
मास्टर दा ने संघर्ष के लिए १८ अप्रैल १९३० के दिन को निश्चित किया। आयरलैंड की आज़ादी की लड़ाई के इतिहास में ईस्टर विद्रोह का दिन भी था- १८ अप्रैल, शुक्रवार- गुडफ्राइडे। रात के आठ बजे। शुक्रवार। १८ अप्रैल १९३०। चटगाँव के सीने पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध सशस्त्र युवा-क्रांति की आग लहक उठी।
चटगाँव क्रांति में मास्टर दा का नेतृत्व अपरिहार्य था। मास्टर दा के क्रांतिकारी चरित्र वैशिष्ट्य के अनुसार उन्होंने जवान क्रांतिकारियों को प्रभावित करने के लिए झूठ का आश्रय न लेकर साफ़ तौर पर बताया था कि वे एक पिस्तौल भी उन्हें नहीं दे पाएँगे और उन्होंने एक भी स्वदेशी डकैती नहीं की थी। आडंबरहीन और निर्भीक नेतृत्व के प्रतीक थे मास्टर दा।


अभी हाल के ही सालों मे चटगांव विद्रोह और मास्टर दा को केन्द्रित कर 2 फिल्में भी आई है - "खेलें हम जी जान से" और  "चटगांव"| मेरा आप से अनुरोध है अगर आप ने यह फिल्में नहीं देखी है तो एक बार जरूर देखें और जाने क्रांति के उस गौरवमय इतिहास और उस के नायकों के बारे मे जिन के बारे मे अब शायद कहीं नहीं पढ़ाया जाता !
"मास्टर दा" सूर्य सेन को उनकी ११९ वीं जयंती पर हमारा शत शत नमन ! 
 
इंकलाब ज़िंदाबाद !!! 
 
सादर आपका 
 
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. इस बुलेटिन के लिए बधाई शिवम् ..इस तरह के लेख पढ़ते रहने से आज़ादी की कीमत का अंदाजा होता रहता है...वरना भूले जाते हैं हम तो ,कि क्या खोकर पायी थी ये आज़ादी...
    लिंक्स अब देखती हूँ.
    हमारे blog लिंक को शामिल करने का शुक्रिया.

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. शिवम भाई, मास्‍टर दा के बारे में पहली इतनी जानकारियां मिलीं, हार्दिक आभार।

    ............
    शुरू हो गया सम्‍मानों का सिलसिला...

    जवाब देंहटाएं
  3. इतना विस्तॄत में तो कोई जानता भी नहीं होगा याद रहना तो बहुत दूर ...तुम्हारी इस कार्य के लिए जितनी तारीफ़ की जाए कम है ...बहुत ही जानकारी प्रद सबके लिए ....

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया बुलेटिन पेश की है इसके लिए ब्लॉग बुलेटिन टीम को बधाई।
    मेरे लेख विश्व जल दिवस (World Water Day) को शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

    अन्य नये लेख :विश्व वानिकी दिवस
    "विश्व गौरैया दिवस" पर विशेष।

    जवाब देंहटाएं
  5. संजोग से कल ही देखी 'चटगांव' और आज यह पोस्ट भी पढ़ी. इन शहीदों के विषय में जानकारियां बढ़ाने के ऐसे ही प्रयासों की आवश्यकता है...

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  6. नमन है वीर सपूतों को ...
    सभी लिंक्स भी बहुत अच्छे हैं ... शुक्रिया मुझे भी स्थान देने का ...

    जवाब देंहटाएं
  7. इस सुंदर आलेख और मास्टर दा सूर्यसेन के बारे में(जिनके विषय में बंगाल के बाहर के लोग प्राय: अनभिज्ञ हैं) लोगों को अवगत कराने के लिए हार्दिक साधुवाद!

    जवाब देंहटाएं

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