२३ मार्च.... आज के दिन को हम कैसे याद करते हैं यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शहीदे-आज़म की शहादत का दिन आज के माहौल को देखते हुए कितना प्रासंगिक है... क्या उनकी शहादत से हमनें कोई शिक्षा ली? या इतिहास के पन्नों में कहीं लपेट कर रख दिया ताकि वर्ष में एक बार उसपर पडी धूल को झाड कर आभासी भक्ति का प्रदर्शन कर इति-श्री कर ली जाए? जी सच कह रहा हूं... आधी आबादी को पता भी नहीं है की आज के दिन का क्या अर्थ है और उन्हे शायद कोई फ़र्क भी नहीं पडता है।
कैसे हुई उनकी शहादत
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
यह वह पंक्तियां हैं जो भगत सिंह नें अपनी शहादत से दो दिन पहले अपनें भाई को लिखी थी। जान सकते हैं कितना शौर्य और किस बहादुरी से मुकाबला करनें का जुनून था। आज ही के दिन २३ मार्च १९३१ को शाम में करीब ७ बजकर ३३ मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई । फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की नहीं बल्कि राम प्रसाद 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिन्ध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिन्ध से छापी थी। कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो ।"
फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;
मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।
फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आये। इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गये। जब गाँव वाले पास आये तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया । और भगत सिंह हमेशा के लिये अमर हो गये। जब गांधी कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झण्डों के साथ उनका स्वागत किया । एकाध जग़ह पर गांधीजी पर हमला भी हुआ, किन्तु सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस ने बचा लिया।
आखिर भगत सिंह चाहते क्या थे
भगत सिंह एक नये हिन्दुस्तान की कल्पना करते थे, वह वैसे तो साम्यवादी थे लेकिन भारत के बहु-आयामी और बहुत जातिय जनतंत्र पर भी एक साफ़ नज़र रखते थे। जब कांग्रेस अंग्रेज सरकार के साथ समझौता करके डोमिनियन स्टेटस पर भी मंज़ूर थी, यह भगत सिंह ही थे जिन्होनें पूर्ण स्वराज का नारा बुलन्द किया। वह एक अपंग भारत के स्थान पर अपनें आप में आत्म निर्भर भारत की कल्पना करते थे, जिसमें समाज का हर वर्ग एक समान आज़ादी का अनुभव कर सके। ब्रिटिश राज से आज़ादी ही उनका मक्सद नहीं था, वरन वह सच्चे माईनें में आज़ादी चाहते थे।
गांधीवाद या क्रांति
बारह वर्ष के भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं ? गांधी जी का असहयोग आन्दोलन छिड़ने के बाद वे अहिंसात्मक तरीकों और क्रान्तिकारियों के हिंसक आन्दोलन में से अपने लिये रास्ता चुनने लगे। असहयोग आन्दोलन रद्द होनें के बाद देश के तमाम नवयुवकों की भाँति उनमें भी रोष हुआ और अन्ततः उन्होंने देश की स्वतन्त्रता के लिये क्रान्ति का मार्ग अपनाना अनुचित नहीं समझा। उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया तथा कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने। कुछ समय बाद भगत सिंह करतार सिंह साराभा के संपर्क में आये जिन्होंने भगत सिंह को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने की सलाह दी और साथ ही वीर सावरकर की किताब 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पढने के लिए दी, भगत सिंह इस किताब से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस किताब के बाकी संस्करण भी छापने के लिए सहायता प्रदान की, जून 1924 में भगत सिंह वीर सावरकर से येरवडा जेल में मिले और क्रांति की पहली गुरुशिक्षा ग्रहण की, यही से भगत सिंह के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया, उन्होंने सावरकर जी के कहने पर आजाद जी से मुलाकात की और उनके दल में शामिल हुए| बाद में वे अपने दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों के प्रतिनिधि भी बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, भगवतीचरण वोरा, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे।
आज भी बहुत से लोग इस बात पर बहस करते हुए दिखेंगे कि गांधी के तरीकों और भगत सिंह के तरीकों में से कौन से श्रेष्ठ थे... मित्रों इस बात का निर्णय करनें वाले हम तो कोई नहीं लेकिन आज के भारत की कई समस्याओं का ज़िक्र शहीदे-आज़म पहले ही कर चुके थे। वह कांग्रेस के तौर तरीकों से भली भांति परिचित थे। हम कह सकते हैं देश आज़ाद हो गया लेकिन हम गुलाम के गुलाम रह गये। यदि शहीदे-आज़म के तरीकों से आज़ादी मिलती तो उस आज़ादी के अपनें माईने होते।
ज़रा सोचिए.....
(अमर शहीदों को शत शत नमन) |
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आईए अब आज के बुलेटिन की ओर चलें
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इबादत ...
* * *तेरी मोहब्बत इबादत है मेरी .....* *तू है , तुझसे है,, ये चाहत मेरी* *ख़त्म न हो कभी ये इबादतों का सिलसिला* *प्रार्थना में माँगी हमने ....* *हरदम मोहब्बतें तेरी.....* * * * * *बेचैनी इधर भी है उधर भी .....* *आग इधर भी लगीं है उधर भी* *ना जाने कौन किसकी पहलू में है .....* *कौन किसकी आगोश में* *बस दो दिल पिघल रहे हैं ....* *एक - दुसरे की पनाहों में* *शमाँ जल रही है इश्क की.....* *रोशन चिराग इधर भी है उधर भी....* * *
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मेरा ब्लॉग सुनो
कमाल का टाइटल है, है ना? मेरा ब्लॉग सुनो, भला ऐसा भी होता है क्या ब्लॉग पढ़ा तो जाता है पर सुना भी जाता है क्या? आपके इस प्रश्न का मेरा उत्तर है हाँ, क्यूँ नहीं ब्लॉग भी सुना जा सकता है बशर्ते उसे कोई सुनाने बाला हो। तो सवाल यह है कि कोई सुनाएगा क्यूँ? पर उससे पहले सवाल यह है कि कोई सुनाये ही क्यूँ? अच्छा एक बात बताइये आपकी जिन्दगी की पहली कहानी आपने पढी थी या सुनी थी? भई मैंने तो सुनी थी, पढी
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चुनाव का खर्चा कारपोरेट सेक्टर ही उठा रहे है : कामरेड अशोक मिश्रा
ब्रिटिश साम्राज्यवाद से अमरीकी साम्राज्यवाद के सफर में सरकारों का संचालन अपने मुनाफे के लिए कारपोरेट सेक्टर करने लगा है। सरकारे उसकी इच्छानुसार नही चलती है तो उन सरकारों को उन्हे साम्राज्यवाद नेस्तनाबूत कर देता है। यह विचार शहीद भगत सिंह के बलिदान दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय परिषद सदस्य कामरेड अशोक मिश्रा ने कहा कि आज सत्तारूढ दल और विपक्षी दल दोनो पार्टियों को कारपोरेट सेक्टर ही संचालित कर रहा है। उनके चुनाव का खर्चा कारपोरेट सेक्टर ही उठा रहे है। जनेस्मा प्रवक्ता डा0 राजेश मल्ल ने कहा कि अमेरिकी साम्राज्यवाद नंगा ...more »
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सुनामी हर किसी के हिस्से होती है
यीशू तुमने कहा था - 'पहला पत्थर वह चलाये जिसने कभी कोई पाप न किया हो ...' तुम्हें सलीब पर देख आंसू बहानेवाले तुम्हारे इस कथन का अर्थ नहीं समझ सके या संभवतः समझकर अनजान हो गए ! अपना पाप दिखता नहीं प्रत्यक्ष होकर भी वचनों में अदृश्य होता है तो उसे दिखाना कठिन है ... पर दूसरों के सत्कर्म भी पाप की संज्ञा से विभूषित होते हैं उसे प्रस्तुत करते हुए “*वचनम किम* दरिद्रता” ! दर्द को सुनना फिर उसके रेशे रेशे अलग करना संवेदना नहीं दर्द का मज़ाक है और अपना सुकून ! बातों की तह तक जानेवाले बातों से कोई मतलब नहीं रखते बल्कि उसे मसालेदार बनाकर दिलचस्प ढंग से अपना समय गुजारते हैं ... ... more »
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शहीदों को नमन ...... उनके जोश और जज्बे को सलाम .......
आज " शहीद दिवस " पर मैं सभी शहीद क्रांतिकारियों और उनके जोशीले व्यक्तित्व को शत शत नमन करता हूँ ! आज की युवा पीढ़ी के लिए हमारे ये वीर शहीद एक मिशाल हैं ... जो जज्बा देश पर मर - मिटने के लिए इनके पास था , आज उसी जज्बे की जरुरत इस देश को आज के युवाओं से है ! किन्तु आज का युवा जोश में कम अपितु आवेश में अधिक रहता है ! जोश और आवेश में अंतर तो बहुत नहीं हैं किन्तु इनके अर्थ हमारे लिए अलग अलग हो सकते हैं ! एक जोशीला युवक अपने समाज और देश की स्थिति में बदलाव ला सकता है उनको सुधर सकता है ! किन्तु एक आवेशित युवक अपना और अपने समाज का सिर्फ अहित ही कर सकता है क्योकि आवेश का एक रूप गुस्सा भी हो... more »
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नन्ही ब्लागर अक्षिता (पाखी) 'हिंदुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड' के लिए नामिनेट
आप सभी की शुभकामनाओं से मुझे 'हिंदुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड' (HT Women Award) - 2013 के लिए 'पावरफुल पेन (Powerful Pen) के तहत नामिनेट किया गया है। इसके तहत उत्तर प्रदेश से कुल 88 लोग नामिनेट हुए हैं, जिनमें 'पावरफुल पेन' (Powerful Pen) कटेगरी में मात्र 17 लोग नामिनेट हैं। इसका रिजल्ट 31 मार्च को घोषित किया जायेगा और अवार्ड विनर्स को ताज विवंता, लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मानित किया जायेगा। अवार्ड हेतु विनर्स का चयन पब्लिक पोल और जज़ेज के एक पैनल द्वारा किया जायेगा। इस हेतु मेरा कोड है- 70. आप सभी से अनुरोध है कि मुझे वोट करने हेतु अपने मोबाईल फोन पर *HTW 70 टाईप कर 542... more »
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दिल में होली जल रही है .......................
जिस भी रंग को चाहा वो ही ज़िन्दगी से निकलता रहा लाल रंग .......... सुना था प्रेम का प्रतीक होता है बरसों बीते खेली ही नहीं बिना प्रेम कैसी होली उसके बाद तो मेरी हर होली ........बस हो ..........ली !!! दहकते अंगारों पर अब कितना ही पानी डालो कुछ शोले उम्र भर सुलगा करते हैं दिल में होली जल रही है .......................
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आखिरी ख़त उस दीवाने का...
22 मार्च 1931 साथियो, स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे नहीं चाहता । लेकिन मैं एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता । मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रान्ति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है-- इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज़ नहीं हो सकता । आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं ... अगर मैं फाँसी से ... more »
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बलिदान दिवस पर शत शत नमन
*बलिदान दिवस पर अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शत शत नमन ! * *इंकलाब ज़िंदाबाद !!*
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व्यंग्य: जी हाँ मैं बड़ा व्यंग्यकार हूँ
(यह व्यंग्य समर्पित हैं उन महान लेखकों को जो स्वयं ही बड़े बने हुए हैं और सबके सामने बड़े बन तनकर खड़े हुए हैं।) हुज़ूर आपने मुझे बिल्कुल ठीक पहचाना। जी हाँ मैं व्यंग्यकार हूँ, वो भी बड़ा व्यंग्यकार। आपने अख़बारों में मुझे पढ़ा तो होगा ही। मेरे व्यंग्य अक्सर अख़बारों में जगह पाते ही रहते हैं। मैं नियमित तौर पर छपता हूँ, इसलिए कुछ दुष्ट ईर्ष्यावश मुझे छपतेराम नाम से संबोधित करने लगे हैं। उन्होंने मेरा नाम छपते राम तो रख दिया, लेकिन उन्होंने मेरा कड़ा परिश्रम नहीं देखा। करीब बीस अख़बारों में मैं रोज अपने व्यंग्य भेजता हूँ, तब कहीं जाकर एक-दो अख़बारों में जगह हासिल हो पाती है। मैं... more »
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शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
*तेईस मार्च भारतीय क्रांतिकारी मनीषा के प्रतीक शहीद भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु तथा सुखदेव का शहादत दिवस है तो उसके कोई आधी सदी बाद उसी दिन पंजाबी के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश भी शहीद हुए थे. इस बार हत्यारे देश के भीतर के थे. वही धार्मिक कट्टरपंथ, जिसकी शिनाख्त और तीव्रतम आलोचना भगत सिंह ने अपने समय में की थी छप्पन सालों बाद उन्हें आदर्श मानने वाले पाश का हत्यारा बना. आज जब देश के भीतर धार्मिक कट्टरपंथी अलग-अलग रूपों में सर उठा रहे हैं और पूरा देश उन्माद के गिरफ्त में है तो उन्हें याद करना इसके ख़िलाफ़ होना भी है. आज इस अवसर पर पाश की कुछ कवितायें...पहली कविता उन्होंने शहीद... more »
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सो मित्रों, आज का बुलेटिन यहीं तक, कल फ़िर मिलते हैं एक नये रूप में....
जय हिन्द
देव
अपने ब्लॉग में अपनी फोटो के साथ अपना परिचय किस जगह जाकर लिखें
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बुलेटिन....
जवाब देंहटाएंशहीदों को नमन...
बढ़िया लिंक्स के लिए आभार.
सादर
अनु
वीर शहीदों को शत-शत नमन...
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स
आभार....
मेरी ब्लॉग पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशहीद भगत सिंह एवँ उनके साथियों को कोटिश: नमन ! हर भारतवासी उनके संघर्ष एवं शहादत के लिए आजन्म उनका ॠणी ! सुंदर सूत्रों से सजा बेहतरीन बुलेटिन !
जवाब देंहटाएंशहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होता।
जवाब देंहटाएंकाश, हम लोग इतना भी कर पाए होते....
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11 लाख का हो गया यश भारती...
बहुत सुन्दर सूत्र..शहीदों का बलिदान व्यर्थ न जायेगा।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक | शानदार बुलेटिन !!
जवाब देंहटाएंएक विरोधाभासी स्वभाव वाला राजा
बलिदान दिवस पर अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंइंकलाब ज़िंदाबाद !
शानदार बुलेटिन देव बाबू !
बढ़िया बुलेटिन !!
जवाब देंहटाएंपहले भी कह चुका हूं कि आप इस विषय के विशेषज्ञ हो चुके हैं शिवम भाई । आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपके इस प्रयास से हम सब भी अपने शहीदों को नमन करने का अवसर पाते हैं । आपका ये मास्टर कट पन्ने को संग्रहणीय बना देता है और उस पर पोस्ट लिंक्स मानो सोने पे सुहागा । जाते हैं एक एक को पढने के लिए । होली का जिम्मा हमारे सर है हमें याद है :)
जवाब देंहटाएंहा हा हा अभी शिवम भाई ने ध्यान दिलाया कि बुलेटिन देव बबा बांचें हैं , हमरे लिए क्या दुन्नो अपने ही अनुज हैं एक तरफ़ त एक तरफ़ ऊ ।बढियां काम हुआ है , मिसर जी की भी जय जय आ देव बबा की भी जय जय :)
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