पिछला दू महीना
से टेंसन के जंगल में अइसा भटक रहे हैं कि का बताएं. मुसीबत, बीमारी अऊर नौकरी का
माया मिरिग एतना दौडाया है हमको कि दिमागी सांति की सीता मैया भी सोचती होंगी कि
कउन साईत-महूरत में हम ई मिरिग लाने गए. मगर ओही बात कि परेसानी का मार्केटिंग
करने से का फ़ायदा, एही से सीधा बुलेटिन नंबर साढ़े चार सौ पर आते हैं.
बंगाल में एगो
बी-ग्रेड सिनेमा बनाने वाला है स्वपन साहा (नाम भुला रहे हैं-मगर लगता है सहिये
है). टेक्नीशियन स्टुडियो, टॉलीगंज, कोलकाता में उनका सिनेमा का सेट लगा हुआ था.
एगो घर का दिरिस. मामूली बात लगेगा आपको. बाकी कमाल ई था कि ओही घर के सेट में एक
साथ तीन अलग अलग सिनेमा का सूटिंग, अलग-अलग कलाकार के साथ चल रहा था. मतलब खर्चा
एक अऊर चर्चा तीन.
कोई मजाक में पूछ
दिया कि स्वपन दा, आपको बुझाता नहीं है कि पब्लिक को मालूम चल जाएगा कि एही सेट
फलाना सिनेमा में भी था. ओही सोफा, ओही परदा, ओही रंग, ओही टी-सेट. स्वपन साहा
हंसकर बोले कि पागोल रे तुमी. आम सिनेमा देखने वाला का याददाश्त बहुत कमजोर होता
है. ऊ बस सिनेमा देखता है; सोफा, पर्दा अऊर टी-सेट नाहिं. हम फालतू में काहे खर्चा
करने जाएँ.
आज स्वपन साहा का
इयाद ई कारन से आया कि हमरा जब ई बुलेटिन बांचने का नंबर आया त हमहूँ सोचे कि
हमेसा के जइसा कुछ लिख देते हैं, कुछ लिंक लगा देते हैं, कुछ बात बना देते हैं. एतना
दिन बाद हमको देखकर पब्लिक अइसहीं खुस हो जाएगा (कमाल का ओभर-कॉन्फिडेंस है), कोई
सोचेगा भी नहीं कि देहाती भुच्च कहीं का, एतना दिन से लापता है, त ई सब ब्लॉग पढ़ा
कब. खाली लिंक फैला कर डीऊटी पूरा कर दिहिस.
हमरा अंतरात्मा
हमको धिक्कारा अऊर आवाज सुनाई दिया, “बिहारी! तुझे ब्लॉग में लोग तेरी पोस्ट के
कारन नहीं, तेरे कमेन्ट के कारण जानते है. इसलिए बिना पढ़े लिंक भी मत दे. वैसे भी
गुजरात में रहने के कारण तू बहुतों की आँखों की किरकिरी बना है. एक तो बिहारी और
ऊपर से गुजरात में.”
त हम भी होस में
आ गए. तुरत अर्चना को संपर्क किये, अइसा मुसीबत में हमरी छोटी बहिन हमेसा मदद करती
है. बोले, “शिवम ने ४५०वीं बुलेटिन के लिए कहा है. मैं इधर बिलकुल कट-ऑफ हूँ. एक
काम करो, पोस्ट हमारी - लिंक तुम्हारे की तर्ज़ पर, मैं पोस्ट लिख
देता हूँ, तुम लिंक्स चुन दो. बिलकुल अपनी पसंद के.” ऊ भला कहाँ मना करने वाली थी.
त आपलोग भी देखिये, छोट भाई शिवम मिश्र के अनुरोध अऊर छोट बहिन अर्चनाचावजी के सहजोग से पेस है आज का ४५० वाँ बुलेटिन.
आप आनन्द उठाइये,
हम फिर से चलते हैं टेंसन के जंगल में. दुआ कीजिये कि जल्दिये लौटें, बस एही डर
लगता है कि कहीं लौटने तक सांति की सीता का हरण न हो जाए.
आपका
भैया का आदेस है तो मना
करने का तो सवाल ही नहीं पैदा हो सकता …..भैया
की सांति की सीता के बाहर
खींच दी है - एगो लक्समन रेखा …..और खास
बुलेटिन की खातिर मैंने चुनें
है,
ये लिंक्स खास आपके लिए ----
तो
मैंने चुने हैं ये लिंक स्पेशल पोस्ट के लिए -----
१ -- चौखटें लगी हुई हैं ... आलोक दीक्षित जी के ब्लॉग पर ...
२ -- नई उडा़न पर चलें साथ ... उपासना सिंह जी के साथ ...
३-- उम्मीद तो हरी है मिलेगी मंजिल अपनी ... ज्योति खरे जी की खोज जारी है ...
४-- अनुभूति हुई मुझे भी... कालीपद"प्रसाद" जी करवा रहे हैं ...
५-- स्वस्थ जीवन किसे नहीं पसन्द ?... बता रहे हैं राजेन्द्रकुमार जी
६-- एक आभा अनोखी ....रमाकान्त भैया की ....
७-- इधर उधर छिटके स्याही के बूटे .....दिखा रही हैं शिखा गुप्ता जी
8-- छू लेंगी आपको भी लहरें ... अगर पूजा के साथ कहीं चल पड़े तो ....
९-- अपनी-अपनी खामोशियाँ .... साथ लेकर सफ़र कर सकते हैं राहुल मिश्रा के साथ ....
१०--मिलिए एक ऐसी लड़की अंजना दयाल से-जो रंग बिरंगी एकता का स्वप्न संजोए हुए है....
११-- मेरा पन्ना लेकिन ये कह रहे हैं मेरा है ....भला कौन है ये ?
१२-- सिंहावलोकन ... नन्ही सी गौरैया ...और गज़ब का अवलोकन ....
१३-- आहुति .तुम्हारे लिए .... सिर्फ़ तुम्हारे
१४-- vikram7 -- पर समय कब ठहरता है ,बता रहे हैं विक्रम सिंह जी
१५--निवेदिता जी खोल लेती है ,कभी आँखों का, कभी मन का - झरोंखा
१६ -- Aabshaar -- औरों से थोड़ा हटकर ही है- विशाल ....
१७ -- क्षितिज का कोना दिखा रही हैं शैली चतुर्वेदी जी
१८ -- बच्चों का कोना बनाया है कैलाश शर्मा जी ने बच्चों के लिए ...
१९ -- सिंपल और इमोशनल पर्सन रेवा खास होने का अहसास करा रही हैं - Love के साथ ...
२०-- लाड़ली "सदा " रहती है माँ के करीब ...
२१--अन्नपूर्णा बाजपेयी जी से सुनिए - नूतन (कहानियाँ)
२२-- एक अनोखा महाकाव्य - गुरतुर गोठ पर ...
२३-- उन्मेष - ब्लॉग को लिखते हैं - अर्यमन चेतस पाण्डेय और इनका कहना है - "आप सब मम्मी लोग एक जैसी होती हैं" :-)
२४-- सुनहरी कलम से तो यही सब रचा जा सकता है,बता रहे हैं - जयकॄष्णराय तुषार ...
२५-- कलम प्रिय सखी है Sehar की और जिसमें है खुशबू जंगल की ......
सादर
अर्चना
१ -- चौखटें लगी हुई हैं ... आलोक दीक्षित जी के ब्लॉग पर ...
२ -- नई उडा़न पर चलें साथ ... उपासना सिंह जी के साथ ...
३-- उम्मीद तो हरी है मिलेगी मंजिल अपनी ... ज्योति खरे जी की खोज जारी है ...
४-- अनुभूति हुई मुझे भी... कालीपद"प्रसाद" जी करवा रहे हैं ...
५-- स्वस्थ जीवन किसे नहीं पसन्द ?... बता रहे हैं राजेन्द्रकुमार जी
६-- एक आभा अनोखी ....रमाकान्त भैया की ....
७-- इधर उधर छिटके स्याही के बूटे .....दिखा रही हैं शिखा गुप्ता जी
8-- छू लेंगी आपको भी लहरें ... अगर पूजा के साथ कहीं चल पड़े तो ....
९-- अपनी-अपनी खामोशियाँ .... साथ लेकर सफ़र कर सकते हैं राहुल मिश्रा के साथ ....
१०--मिलिए एक ऐसी लड़की अंजना दयाल से-जो रंग बिरंगी एकता का स्वप्न संजोए हुए है....
११-- मेरा पन्ना लेकिन ये कह रहे हैं मेरा है ....भला कौन है ये ?
१२-- सिंहावलोकन ... नन्ही सी गौरैया ...और गज़ब का अवलोकन ....
१३-- आहुति .तुम्हारे लिए .... सिर्फ़ तुम्हारे
१४-- vikram7 -- पर समय कब ठहरता है ,बता रहे हैं विक्रम सिंह जी
१५--निवेदिता जी खोल लेती है ,कभी आँखों का, कभी मन का - झरोंखा
१६ -- Aabshaar -- औरों से थोड़ा हटकर ही है- विशाल ....
१७ -- क्षितिज का कोना दिखा रही हैं शैली चतुर्वेदी जी
१८ -- बच्चों का कोना बनाया है कैलाश शर्मा जी ने बच्चों के लिए ...
१९ -- सिंपल और इमोशनल पर्सन रेवा खास होने का अहसास करा रही हैं - Love के साथ ...
२०-- लाड़ली "सदा " रहती है माँ के करीब ...
२१--अन्नपूर्णा बाजपेयी जी से सुनिए - नूतन (कहानियाँ)
२२-- एक अनोखा महाकाव्य - गुरतुर गोठ पर ...
२३-- उन्मेष - ब्लॉग को लिखते हैं - अर्यमन चेतस पाण्डेय और इनका कहना है - "आप सब मम्मी लोग एक जैसी होती हैं" :-)
२४-- सुनहरी कलम से तो यही सब रचा जा सकता है,बता रहे हैं - जयकॄष्णराय तुषार ...
२५-- कलम प्रिय सखी है Sehar की और जिसमें है खुशबू जंगल की ......
सादर
अर्चना
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सब पाठकों का बहुत बहुत आभार ... ऐसे ही अपना स्नेह बनाए रखिएगा !
"एक तो बिहारी और ऊपर से गुजरात में.”
जवाब देंहटाएंबहुत समय हो गया हमएं चिंता हुई कि सलिल बाबू है कहाँ। यहाँ जल्दी जल्दी में बुलेटीन बांच रहे है… :)
शानदार बुलेटीन!! और सार्थक लिंक।
अच्छा बुलेटिन !
जवाब देंहटाएं...सलिल भाई ! आपकी याद आ रही थी,आप सही-सलामत रहें यही दुआ है।
जवाब देंहटाएंबधाई इस सोपान के लिये..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिंक्स चयन के लिए अर्चना जी को बधाई,४५० वीं पोस्ट में बहुत दिनों बाद सलिल जी का लिखा पढने को मिला,सलिल जी आपको होली की बहुत२ शुभ कामनाए,और बधाई ,,,
जवाब देंहटाएंRecentPOST: रंगों के दोहे ,
अबकी जरे होलिका त भभाय के जर जाये सगरो चिंता। खिल जाय सगरो रंग, मस्त होय जाय तबियत, चकाचक होय जाय स्वास्थ, धमाल मचावें बिहारी गुजरात में।
जवाब देंहटाएंछोटकी बहिनिया दिये बा ढेर सारा लिंक, अ बुहत दिना बाद हमहूँ पढ़त हई कौनो पोस्ट..गरदनिया टेढ़ हो गयल हौ हमरो ई जिनगी क हवालात में।
मैंने तो सलिल भाई का लेखन पहले बार ही पढ़ा है | लेखनी आनंदमय है | सुन्दर है और सटीक है | लिनक्स का चयन भी दमदार है | ४५०वि बुलेटिन पर बहुत बहुत बधाई शिवम् भाई | आभार |
जवाब देंहटाएंइतिहास लिखना सहज नहीं है वर्षों तप करना पड़ता है
जवाब देंहटाएंशिवम भाई ने यह तप किया है,तभी ब्लॉग बुलेटिन का यह ४ ५ ० वां
अंक है वाकई यह इतिहास है----शिवम भाई और पूरी टीम को साधुवाद
सलिल भाई का कुशल संचालन,अर्चना बहिन के सुंदर लिंक
बधाई बधाई
शानदार व बढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंघूरने के खिलाफ कठोर कानून के बाद
सलिल दादा, बस ऐसे ही स्नेह बनाए रखिए ... हर बार छोटे भाई की ज़िद्द का मान रखना तो कोई आप से सीखे ... :)
जवाब देंहटाएंऔर इस बार तो आपने डबल धमाल ही कर दिया ... अर्चना दीदी के चुने हुये लिंक्स और आपकी प्रस्तावना इस ४५० वीं बुलेटिन को सार्थकता दे रहे है !
पूरी बुलेटिन टीम और सभी पाठकों को इस पड़ाव की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
एकदम नए स्टाइल का बुलेटिन हो गया यह तो ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया है भूमिका भी और लिनक्स भी
बधाई..
जवाब देंहटाएंशिवम् मिश्रा जी ४५० वां अंक अतुलनीय है
बुलेटिन का साढे चार सौंवां शतक , सलिल दादा की लेखनी और अर्चना दी की पारखी नज़र ..कुल मिला के संग्रहणीय और सहेजनीय पन्ना । शिवम भाई को भी अथक धन्यवाद और असीम शुभकामनाएं । सच में ही शिवम भाई की शिद्दत को सलाम :)
जवाब देंहटाएं