(पिछले वर्ष के अवलोकन को एक अंतराल के बाद हमने पुस्तक की रूपरेखा दी ..... इस बार भी यही कोशिश होगी . जिनकी रचनाओं का मैं अवलोकन कर रही हूँ , वे यदि अपनी रचना को प्रकाशित नहीं करवाना चाहें तो स्पष्टतः लिख देंगे . एक भी प्रति आपको बिना पुस्तक का मूल्य दिए नहीं दी जाएगी - अतः इस बात को भी ध्यान में रखा जाये ताकि कोई व्यवधान बाद में ना हो )
पूनम जैन कासलीवाल की रचना में सबकुछ है -
अव्वल दर्जा , सुंदर रंग -रूप ,
घर - बाहर का तालमेल ,
चक्र घिन्नी से बंधे पाँव ,
नहीं कम किसी से पर ,
फिर भी क्यों सुनना पड़ता है ,
साबित करो...
अपनी कोख को खुद ही बांधा,
मेरा खुद का निर्णय ,
मुझे है स्वीकार ,
फिर भी सुनना पड़ता है ,
खुदगर्ज़....
जो खोया मैने,
मेरा था ,किसी अन्य को हो, क्यों कर एतराज़ ,
हाँ - हाँ भरने चाहे सपनों मे रंग ,
न थी कमी मेरी उड़ान मे ,
न थी पंखों की ताकत कम ,
पर जब भी छूना चाहा आकाश ,
सुनना पड़ा हर बार ,बार -बार,
... औरत जात......!!!
अपर्णा भागवत ने तर्कजनित प्रश्नों के वैचारिक पक्ष पर स्वयं तो चिंतन किया ही है , पाठकों के आगे भी सोच की दिशा देती हैं -
The Diary: युगंधरा एक सवाल है और चेतावनी भी ...
पितामह की वचनबद्ध लाचारी, धृतराष्ट्र का पुत्रप्रेम,
न्याय रूपी गांधारी के आँखों की पट्टी,
मेरे योद्धाओं के बंधे हाथ और झुके सिर,
क्या सिर्फ यही हैं कारणीभूत मेरे चीरहरण के - जब जब मैं हुई?
मैं याज्ञसेनी, मैं ही युगंधरा,
हाँ, मैं नारी, और मैं ही दुर्गा,
किन्तु वह - जिसे मूक दर्शक न बनते आया,
और मेरी उत्त्पत्ति से ही शुरू हुआ था इतिहास में बदलाव।
मैं अरुंधती, मैं तसलीमा, मैं मलाला, मैं वक्ता,
सत्य की कीमत अदा की है मैंने,
फिर जब कभी मैंने बोला जला है कोई लाक्षाग्रह,
और दग्ध हुई है एक सैरंध्री।
लेकिन फिर भी, मैं थी, मैं हूँ,
और मैं फिर पलट कर आउंगी,
क्योंकि यह महाभारत भी एक "सत्य" के हक़ का युद्ध है,
वह - जिसमें कोई युद्ध विराम नहीं।
समय की तेज रफ़्तार और बदलती भावनाएं .... कभी जिस बात पर दुनिया से बेखबर हम बेसाख्ता हँसते होते हैं , उसी बात पर अंकुश लगा हम ही कहते हैं - 'क्या बेवकूफी है!' क्या समय इतना उकता देता है कि ........ सरस दरबारी जी की रचना इसी दर्द की अभिव्यक्ति है, जिसमें कईयों को अपनी छवि दिखेगी . रचना की कामयाबी इसी बात पर निर्भर करती है कि वह आईने की शक्ल ले ले ...
बहुत सोचती हो माँ
बेटे के यह शब्द
पुन: उधेड़ देते हैं वह सच
जो ढक मूंदकर रखा था अब तक....
हाँ सोचती हूँ -
हफ़्तों महीनों के बाद मिले उन दिनों को -
जो हमने आज की कल्पना में काटे थे !
सोचती हूँ उन पलों को -
जो हमने -
"बस थोड़ी सी देर और " की ललक में
चुराए थे !
उस छटपटाहट को जो हमारे "कल" में थी
हमारे "आज" के लिए ......
फिर सोचती हूँ वह आज -
जब नींद में छुआ हाथ,
तुम बेरुखी से खींच लेते हो -
और महसूस होता है उन झरोखों का पट जाना-
जहाँ से एक दूसरे की आत्मा में झांकते थे कभी ....
क्या यही था वह आज !!!!!
.....फिर -
-यह बेरुखी -
-यह अजनबीपन -
-यह बर्फ-
कैसे घुल गयी हमारे रिश्ते में -
-शायद तुम ही बता सको....!!!!!
ऐसे सवाल बस कई मन के कोनों से उभरते हैं और तार्किक ताबूत में दम तोड़ देते हैं ..... जवाब कभी नहीं मिलता, देगा कौन !!!
रश्मिजी आपकी नज़रों से अपनी कविता को पढ़ा ...'और' अच्छी लगी ..आभार ..बहुत बहुत आभार .....इसे ब्लॉग बुलेटिन पर स्थान देने के लिए...:)
जवाब देंहटाएं...
...और हाँ अपर्नाजी की और पूनमजी रचनायें बहुत ही सशक्त और सुन्दर लगीं
Rashmi prabhaji, dil ko chhune vale rachnaon se parichay karane ke liye aabhar .
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ उम्दा....एक से बढ़ कर एक..
जवाब देंहटाएंआभार दी...
अनु
न थी कमी मेरी उड़ान मे ,
जवाब देंहटाएंन थी पंखों की ताकत कम ,
पर जब भी छूना चाहा आकाश ,
सुनना पड़ा हर बार ,बार -बार,
... औरत जात......!!! wah .........har aourat ke dil ki bat ........
मैं अरुंधती, मैं तसलीमा, मैं मलाला, मैं वक्ता,
सत्य की कीमत अदा की है मैंने,
फिर जब कभी मैंने बोला जला है कोई लाक्षाग्रह,
और दग्ध हुई है एक सैरंध्री।......... superbb
ऐसे सवाल बस कई मन के कोनों से उभरते हैं और तार्किक ताबूत में दम तोड़ देते हैं ..... जवाब कभी नहीं मिलता, देगा कौन !!!
is swal ka jawab hi to khojte hain ham or jante bhi hain k hamare prashn anutrit hi rahenge hamessha
bahut umda
bahut achche links padne ko mile Shukriya Rashmi jee
सोचती हूँ उन पलों को -
जवाब देंहटाएंजो हमने -
"बस थोड़ी सी देर और " की ललक में
चुराए थे !
उस छटपटाहट को जो हमारे "कल" में थी
हमारे "आज" के लिए ......
वाह ... बेहतरीन सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई
आभार सहित
सादर
अनमोल मोती चुनकर लाना कोई आपसे सीखे
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ सच्चाई का दर्पण...पढ़वाने के लिए आभार !!
जवाब देंहटाएंसभी रचनायें भावपूर्ण और जीवन का सच कह रही हैं----
जवाब देंहटाएंरचनाओं मैं व्यथा के साथ एक दर्शन भी झलकता है
यही तो रचनाओं की मौलिकता होती है------
मर्म को भेदती रचनायें----सभी को बधाई
पिछली बार की ही तरह इस बार भी अवलोकन 2012 मे ब्लॉग जगत के इस सागर मे से चिर परिचित नगीनों के साथ साथ काफी नए नए मोती भी मिलेंगे ... आपका बहुत बहुत आभार रश्मि दीदी !
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 4/12/12को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंbehtreen rachnaaye...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनायें, पढ़वाने का आभार..
जवाब देंहटाएंआपके चयनं और सुन्दर रचनाएँ पढवाने के लिए शुक्रिया,,,रश्मी जी..
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति , युगंधरा विशेष पसंद आयी |
जवाब देंहटाएंसादर