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मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

प्रतिभाओं की कमी नहीं अवलोकन 2012 (3)



(पिछले वर्ष के अवलोकन को एक अंतराल के बाद हमने पुस्तक की रूपरेखा दी ..... इस बार भी यही कोशिश होगी . जिनकी रचनाओं का मैं अवलोकन कर रही हूँ , वे यदि अपनी रचना को प्रकाशित नहीं करवाना चाहें तो स्पष्टतः लिख देंगे . एक भी प्रति आपको बिना पुस्तक का मूल्य दिए नहीं दी जाएगी - अतः इस बात को भी ध्यान में रखा जाये ताकि कोई व्यवधान बाद में ना हो )


इंतज़ार - जो कभी नहीं खत्म होता . इंतज़ार के कई सिरे होते हैं, जब चाहे कहीं से अंकुरित हो पसर जाते हैं ख़ामोशी की तरह . सबको एहसास है - इस इंतज़ार से बड़ी उकताहट,बेचैनी होती है .इंतज़ार जब बहुत लम्बा हो तो वह सामर्थ्य बन जाता है . यूँ भी इंतज़ार अपने आप में एक सामर्थ्य है ..... कितनी साँसें मुरक्ति हैं,कितने लम्हें दरकते हैं .... फिर भी बना रहता है एक इंतज़ार -

रश्मि   की यह रचना इंतज़ार के सामर्थ्य और उसकी टूटन को शब्द शब्द दर्शाती है -

एक सि‍रे पर तुम खड़े हो
और 
दूसरे सि‍रे पर मैं
हमारे बीच है
बातों को
अभि‍लाषाओं का
और उलाहनों का पहाड़.....
और 
हम दोनों शायद 
कई जन्‍मों से इसे
सुलझाने में लगे हैं.....
जब तुम
अभि‍लाषाओं की बात करते हो
कामनाओं की अग्‍नि‍(
प्रदीप्‍त करते हो
दूसरे सि‍रे पर खड़ी मैं
उलाहनाओं के अंतहीन धागे से
तुम्‍हें बांधने की कोशि‍श करती हूं....
जब तुम
सारी इच्‍छाओं को परे झटक
स्‍पष्‍टीकरण की सफेद चादर
ओढ़ने लगते हो....
मैं आकाश में उड़ते परिंदों की
कतार देखती हूं......
अब ऐसे में 
बताओ
बातों की गठरी से
अपने मतलब की बातें छांटकर
कब हम सीधे उन दो छोरों पर आएंगे
जहां से , जि‍स सिरे से
मैं बात शुरू करूंगी
और तुम करोगे उसका अंत....
क्‍या है तुम्‍हारे अंदर
सामर्थ्‍य.....इतने लंबे इंतजार का .......???? .............. एक और अनुत्तरित प्रश्न इंतज़ार की तरह !

एक किताब - कभी कहानी,कभी कविता,कभी ग़ज़ल,कभी छंद .... समय गुजर जाता है . और जब व्यक्ति पन्ने पन्ने खुद किताब हो जाये तो खुद को समझने में वक़्त गुजरता है, और जब सामने से कोई किताब की शक्ल लिए आ जाये तब ? तब डॉ अजीत के शब्दभाव ही होंगे इर्द गिर्द - किताब की जीती जागती तस्वीर है यह ,




तुमसे मिलना
कविता की तरफ लौटना है
तुमसे बिछ्डने का डर
कोई उदास गजल कहने जैसा है
कभी तुम कठिन गद्य की भांति नीरस हो जाती हो
कभी शेर की तरह तीक्ष्ण  
तो कभी तुम्हारी बातों में दोहों,मुहावरों,उक्तियों की खुशबू  आती है
तुम्हारे व्याकरण को समझने के लिए
मै दिन मे कई बार संधि विच्छेद होता हूँ
अंत में
तुम्हारी लिपि को समझने का अभ्यास करते करते
सो जाता हूँ
उठते ही जी उदास हो जाता है
तुमको भूलने ही वाला होता हूँ कि
तुम्हारे निर्वचन याद आ जाते है
जिन्दगी की मुश्किल किताब सा हो गया है
तुम्हे बांचना...
प्रेम के शब्दकोश भी असमर्थ है
तुम्हारी व्याख्या करने में
मेरे जीवन की मुश्किल किताब
तुम्हे खत्म करके मै ज्ञान नही बांटना चाहता
बल्कि मुडे पन्नों
और शब्दों के चक्रव्यूह में फंसकर
दम तोड देना चाहता हूँ
क्योंकि गर्भ ज्ञान के लिहाज़ से
मै तो अभिमन्यू से भी बडा अज्ञानी हूँ .... .............. प्रेम में अज्ञान ही ज्ञान है और दिल से बेहतर कोई किताब नहीं ....

सबकुछ है जीवन में, पर सबकी अपनी चाह,अपनी सुविधा-दुविधा .... खासकर रिश्ते !- कभी अजीज,कभी अनजाने,कभी साथ,कभी दूर ... इन रिश्तों की लकीरें मंटू कुमार ने बड़ी बारीकी से खिंची है -


कुछ रिश्ते होते हैं...
जो नाम के मोहताज नही...
उन्हें बेनामी रहना पसंद है,
इस शर्त पर कि
एहसास कभी कम ना हों उन रिश्तों के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जिन्हें दूरी पसंद है
और करीब आने का रास्ता 
वे शायद भूल चुके होते हैं...

कुछ रिश्ते होते हैं...
नकाब पहने...
यूँ साथ चलते हैं जैसे...
उन्हें परवाह है हमारी...
पर अफ़सोस उनके लिए कि,
एक ना एक दिन नकाब भी साथ छोड़ देगी...
उनके,इस रवैये के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
दिखावटी,
जहाँ दम घुट रहा होता है...
खुशियों का...एहसास का...
और उन रिश्तों का होना...
शायद कभी-कभी,
जरुरी हों जाता है इस जिंदगी के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
इतने जरुरी जितने कि...
नदी के लिए पानी...
कलम के लिए कागज...
और फिर उन रिश्तों के,
होने से ही हम होते हैं...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जिनका बंधन यूँ तो मजबूत नही,
पर टूट के बिखरना,इतना आसान भी नही है...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जो दफ़न हों जाते हैं,
वक्त के गहरे समंदर में...
लेकिन उनकी परछाई हमारा साथ दे रही होती है...
आज में,
और हम होते हैं बेखबर...
कुछ रिश्ते होते हैं...और होने भी चाहिए...|
                                          
सही में रिश्तों का इस जिंदगी में होना उतना ही जरुरी है जितना की हमारे वजूद का इस जिंदगी में होना...कभी-कभी रिश्तों की डोर ढीली पड़ जाती है और फिर उन रिश्तों के लिए जीने की आशा धुँधली नज़र आती है...मन को चैन नही पड़ता...और खुली हवा में भी घुटन महसूस होती है...
एक फिल्म में एक पात्र यह कहता भी है कि "बंधन रिश्तों का नही एहसासों का होता है...अगर एहसास ना हों तो रिश्ते मजबूरी बन जाते हैं...वहाँ प्यार की कोई जगह नही होती...और वैसे भी रिश्ते,जिंदगी के लिए होते हैं,जिंदगी रिश्तों के लिए नही" .... ............

 अनुभव,नज़रिया उम्र को कितनी परिपक्वता दे जाते हैं और हम बरबस कह उठते हैं कि देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर !!!!!!!!!


18 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्ते,जिंदगी के लिए होते हैं,जिंदगी रिश्तों के लिए नही" ....

    बहुत सुन्दर :)

    समुन्दर से मोती तो चुन कर लाती ही हैं ..........

    एक अच्छी सीख भी दे जाती हैं ....

    शुभकामनायें .... !!

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  2. बेहतरीन रचनायें और भाव …………आभार पढवाने के लिये

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत ब्लोग्स और उनके लिंक्स से मुलाकात के लिए आभार रश्मि दीदी

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  4. अच्छी कवितायें पढ़ने का सुख प्राप्त हुआ...

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  5. वाह दी....आपके शब्‍द तो कवि‍ता का मान बढ़ा देते हैं। मेरी रचना पसंद आई...इसके लि‍ए आभार। और दोनों लिंक अच्‍छे लगे मुझे...धन्‍यवाद दीदी।

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  6. दोनों रचनाये भाव और अभिव्यक्ति में बहुत खुबसूरत है चयन अच्छा है.

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  7. आपकी नज़र में मेरे वजूद का होना...मेरे लिखने की प्रतिभा को और बढाता है...बहुत-बहुत आभार,इस प्रशंसनीय कार्य में मुझे शामिल करने के लिए..|
    बाकी की रचनाएँ भी सराहनीय..|

    सादर |

    जवाब देंहटाएं
  8. एक सि‍रे पर तुम खड़े हो
    और
    दूसरे सि‍रे पर मैं
    हमारे बीच है
    बातों को
    अभि‍लाषाओं का
    और उलाहनों का पहाड़.....
    ....
    कुछ रिश्ते होते हैं...
    इतने जरुरी जितने कि...
    नदी के लिए पानी...
    कलम के लिए कागज...
    और फिर उन रिश्तों के,
    होने से ही हम होते हैं...
    सभी रचनाओं का चयन लाजवाब ... आभार इस उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिये
    सादर

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  9. "बंधन रिश्तों का नही एहसासों का होता है...अगर एहसास ना हों तो रिश्ते मजबूरी बन जाते हैं...वहाँ प्यार की कोई जगह नही होती...और वैसे भी रिश्ते,जिंदगी के लिए होते हैं,जिंदगी रिश्तों के लिए नही" .... ............
    उत्कृष्ट लिंक चयन ....
    बढ़िया बुलेटिन ॥

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  10. जो इंतज़ार का फल ऐसा सुखद हो तो इंतज़ार सार्थक लगता है ... है कि नहीं ???

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  11. सभी रचनाएँ अच्छी लगीं...भूमिका के रूप में आपके शब्द...सोने में सुहागा !!

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  12. ’मैं कहता तो हूं,पर सुनता कोई नहीं-’
    सही कहा प्रितिभाओं की कमी नही
    पहचान के लिये मुहर जरूरी है.

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  13. इतनी सारी प्रतिभान और उनके चयन का आपका भागीरथ प्रयास देखकर दंग रह जाता हूँ.. और यहाँ दी गयी कवितायें उन रचनाकारों के प्रति श्रद्धा से भर देता है मन को!!

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  14. 'सामर्थ्य : लंबे इन्तेजार का' , अपनी पीड़ा पहुंचाने में सफल रही ,
    'किताब' , एक बार पहले भी पढ़ चुका था लेकिन आज भी उतने ही चाव से पढ़ी |
    'कुछ रिश्ते होते हैं' , मंटू भाई के ब्लॉग का तो नियमित पाठक हूँ | बहुत अच्छा लिखते हैं |

    सादर

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