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रविवार, 2 दिसंबर 2012

350 वीं ब्लॉग-बुलेटिन - छूटने पायें न साथी अपने


एगो बहुत पुराना कहावत है कि जेतना चादर हो गोड़ ओतने पसारना चाहिए. एही से हम बहुत जादा ब्लॉग नहीं पढ़ पाते हैं. समय का चादर बेसी गोड़ पसारने का मौके नहीं देता है. काहे कि हमरा एगो बहुत खराब आदत है. पढेंगे त बिना अपना बिचार रखे हुए मानेंगे नहीं, अरे ओही जिसको लोग कमेन्ट बोलता है अऊर जो पढ़ने के बाद बना हुआ इम्प्रेसन से उपजता है.

एही से हमको बहुत सा करीबी लोग का कमी भी खलता है. कोई लिखना बंद कर देता है तो हाल-चाल पूछ लेते हैं. इधर हाल में बहुत सा लोग हमारे ब्लॉग पर आना बंद कर दिया, अचानक. देखे कि ऊ लोग बाकी ब्लॉग सब पढ़ कर कमेन्ट करिये रहे हैं. त इत्मिनान हुआ कि चलिए लोग ठीक-ठाक से हैं. अब जरूरी थोड़े है कि हमारा जइसा देहाती आदमी का फालतू बात में हाँ में हाँ मिलाएं.
मगर सरिता दीदी का कमी बहुत खलता था. उनका एगो एतना ममतामयी छबि दिमाग में बन गया था सुरुये से कि का बताएं. सालीनता का मूर्ति अऊर छोटा छोटा कबिता में जीवन का यथार्थ बयान करने वाली. एकाध बार फोन किये त कोनो जवाब नहीं मिला. सोचे बेटी के पास अमेरिका चली गयी होंगी. एक रोज देखे कि मेल में हमरा फोन नंबर माँगी. हम अगिला दिन फोन किये.

घंटा भर फोन पर बतियाईं. घर से लेकर ब्लॉग तक का हाल चाल पूछती रही. संजय अनेजा, चैतन्य आलोक, मनोज भारती, सतीश सक्सेना जी, क्षमा जी सबके बारे में. हमरी पत्नी, बेटी, अपना घर परिवार अऊर अगिला तीन महीना का प्रोग्राम सब बता दीं. मगर हम जब पूछे कि दीदी आजकल आप नेट से बिलकुल गायब हैं. क्या कारण है? तब उनका जवाब सुनकर हम भी खामोश हो गए. बोलीं, “शैल मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी. वो मेरी हर रचना की पहली श्रोता थीं. इतनी पुरानी दोस्त और इतना पुराना रिश्ता जब मौत ने तोड़ दिया तो मैं टूट गयी. और जब वो नहीं रही तो मुझे लगा कि मैं लिख ही नहीं सकती. बस नेट से भी रिश्ता टूट सा गया है. मगर तुम लोगों से नहीं!”
हमरा भी चैतन्य के साथ अइसने रिस्ता है. लेकिन एगो दोस्त के चले जाने के बाद जब ऊ लिखना छोड़ दीं (जो हो सकता है कि एक्सट्रीम स्टेप हो) त हमलोग कोनो ब्लोगर के बहुत दिन तक गायब रहने पर एक बार आपस में चर्चा करके उनका खैरियत त पूछिए सकते हैं ... है कि नहीं ???

ब्लॉग-बुलेटिन के आज के ३५०वाँ अंक से हम एही अनुरोध करेंगे कि बुलेटिन के ओर से एक कदम इधर भी बढ़ाया जाए. खबर खाली ओही नहीं है जो अखबार में छपता है, चाहे नेट पर दिखता है. खबर ऊहो है जिसका देस-दुनिया के लिए कोनो महत्व नहीं, मगर हमारे लिए त हो सकता है!!
एही बात पर चलिए मिलकर मोमबत्ती फूंकिए!!
-   सलिल वर्मा 

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कभी कभी मुझे लगता है लिखना एक बीमारी है, एक फोड़े की तरह.. या फिर एक घाव जो मवाद से भरा हुआ है... जिसका शरीर में बने रहना उतना ही खतरनाक है, जितना दर्द उसको फोड़कर बहा देने में हो सकता है

-  खामोश दिल की सुगबुगाहट

एक मध्यम आकार की छिलके सहित सेब में  0.47 grams प्रोटीन, 95  केलरीज, और  4.4 grams खाद्य रेशे होते है।

-       फलों में पोषक तत्व - सेब


सुज्ञ निरामिष 

जब भी लिखती हूँ/बुरा मानते हो?
ना लिखूं तब क्यों/बुरा मानते हो?
जानते हो हाल--दिल/तन्हाइयों में?

-       ना लिखूं

-       ज़रूरत

बस एक कार्टून, कहता हुआ सारी बात बिना कहे... 

-       कार्टून :- कमर और कैश सब्‍सि‍डी का परस्‍पर संबंध


काजल कुमार के कार्टून


हो नहीं पाया अभी पूरा वणिक ही,
हो नहीं पाया अभी इतना विवश भी.

                                             संभावना

-     बेचैन आत्मा 


मुझे  निकाल के कहीं पछता  रहे हों  न  आप 
महफ़िल में  इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं :-)
यह शेर आज तब याद आया जब इस नए स्थान - राबर्ट्सगंज में नेट से कनेक्ट होने पर मुझे सहसा ब्लागिंग की सुधि आयी . इतना लम्बा अंतराल पिछले पांच वर्षों में किन्ही दो  पोस्ट के बीच नहीं हुआ था .

-       महफ़िलमें इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं :-)

-       क्वचिदन्यतोऽपि



माँगा था सुखदुख सहने की क्षमता पाया,
कैसे कह दूँवापस खाली हाथ मैं आया 

-       कैसे कह दूँ, वापस खाली हाथ मैं आया

न दैन्यम् न पलायनम्

छीन लो पुस्तकें उनसे
उन्हें पढ़ने के पश्चात
वे करते हैं विचित्र बातें
समझदार से लगते हैं!

-       छीन लो पुस्तकें उनसे!

    एक आलसी का चिट्ठा


बिठूर के घाट के दूसरी तरफ गंगा जी के किनारे महर्षि वाल्मीकि रहते थे। जहां राम ने सीता जी को वनवास दिया था और जहां लव-कुश का जन्म हुआ। यहीं पर ब्रह्मा जी का घाट है, जहां मिथक है कि ब्रह्माजी की खड़ाऊं रखी है। तीर्थ यात्री गंगाजी में स्नान कर ब्रह्मा जी का पूजन करते हैं।

मानसिक हलचल

आज सुबह चाय बड़ी सावधानी से पी। प्लेट की चाय कप से लगकर कपड़े में न गिर जाये इसलिये प्लेट कप के नीचे ही धरे रहे। चाय लाने वाले की ने असावधानी चाय पीने वाले को सावधान बना दिया।

-       सावधानी संरक्षण का सिद्धांत

-       फुरसतिया 


तेरा सब हाल मुझे है मालूम
तेरी आँखों में हैं मुख़बिर मेरे
मैं बदन हूँ कि सड़क हूँ कोई
ज़ख्म हैं ये कि मुसाफ़िर मेरे

-       हो गए ग़म सभी शातिर मेरे


लफ्ज़ पत्रिका में स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’




19 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन बुलेटिन ………सार्थक लिंक्स

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  2. fuuuuuuuuuuuuuuu:))
    fuk diye mombati:)
    blog bulletin aaap ke 3500 sanskaran ka intzaar rahega...:)
    bade bhaiyaa ka andaaaj nirala hai:)

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  3. का लिखत हैं बाबा! पाथर क करेजा होय तबो मोम अस पिघर जाय!!

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  4. सच्ची सलिल दा ...आप हंसाने में महारथ रखते हैं तो रुलाने में भी उस्ताद हैं....
    सादर
    अनु

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  5. आपकी सोच के संतुलित क़दमों की प्रशंसा गहराई से निकलती है -

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  6. तू सांस लेगा जब तलक ,
    मेरी जिंदगी तभी तक है | :(
    .
    कुछ रिश्ते वाकई इतने ही मजबूत होते हैं |

    सादर नमन

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  7. मन दुखी तो होता है अपनों के जाने से ,पर अपनों की खातिर ही हमें मिलते रहना है ...

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  8. सभी पोस्ट पढ़ डाले। आज बहुत दिनो बाद इत्ते पढ़े।

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  9. बढ़िया लिंक्स से सजी बढ़िया बुलेटिन.

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  10. पूरी बुलेटिन टीम और सभी पाठकों को ३५० वी पोस्ट के इस पड़ाव तक पहुँचने की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !

    सलिल दादा, आज आपने एक बेहद जरूरी मुद्दा उठाया है ... वादा करता हूँ कि मेरे प्रयास रहेंगे कि ब्लॉग बुलेटिन टीम के सदस्य के रूप मे और निजी रूप मे भी हमारे सब के बीच बने इन रिश्तों का मान बना रहे !

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  11. बढ़िया बुलेटिन...भूले हुए लोगों को याद करने का सार्थक प्रयास!

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  12. मैं मंच पर कम दीखता हूँ, मगर नेपथ्य में अपने दोस्तों की सुध लेता रहता हूँ. कुछ दोस्त बीच-बीच में गायब हो जाते हैं. जैसे अपनी निम्मो दी (निर्मला कपिला जी... उनकी बीमारी का पता नहीं चलता अगर मैंने संपर्क न किया होता. उन्हें भी अच्छा लगा कि कोई तो है जो उनकी भी सुध लेता है... परिवार से बाहर परिवार की बात हम सब करते हैं, मगर कुछ और चाहिए.. पोस्ट, कमेंट्स और लैक्स के ज़रिये जो रिश्ते बनाते हैं उन्हें सिर्फ यहीं तक मत रखिये.. या फिर रिश्ते बनाइये ही मत!!
    कल को हम न रहे तो किसे फुर्सत होगी याद करने की..

    वो कौन था, कहाँ से था, क्या हुआ था उसे,
    सुना है आज कोई शख्स मर गया यारो!!

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  13. यही बतिया तो हम कर रहे थे .... मील के इस पत्थर पर मेरी शुभकामनाएँ !

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  14. आपकी यह पोस्ट दिल को छू गई। इस ब्लॉग के माध्यम से काफी लोग बिना साक्षात मिले,अपने बने हैं। साधुवाद।

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  15. सलिल अंकल बहुत्ते सही पॉइंट बताये हैं ... और हाँ बिलकुल, हम लोग सब कोई मिलके फूकेंगे मोमबत्ती ..
    बहुत्ते शुभकामना हमरी तरफ से भी ब्लॉग बुलेटिन के सभी टीम-गण को।
    सादर
    मधुरेश

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  16. सलिल भाई,
    बहुत से दोस्त बंधु इधर से नदारद हैं। दीपक सैनी, रवि शंकर, राजेन्द्र मीणा, दीप पाण्डे आदि मेरी वाली लिस्ट में से कुछ नाम हैं। वहीं बहुत से ब्लॉगर्स पहले के मुकाबले कम सक्रिय हैं। सबसे संपर्क नहीं हो पाता लेकिन याद तो सबको करते ही हैं। कामना यही है कि सब सुखी हों और ज्यादा जरूरी वाले काम करते रहें।
    उस दिन फ़ोन करके आपने शुरुआत में ही कहा था कि एक शिकायत है तो मैं घबरा ही गया था, फ़िर आपने सरिता दी वाली बात बताई। हम उन्हें मिस करते हैं, इससे ज्यादा बड़ी बात ये लगी कि उन्होंने हमें याद रखा।
    इस पोस्ट के माध्यम से एक बार फ़िर आपने सिद्ध कर दिया कि आप की नजर जो दिख रहा है उसके अलावा उधर भी रहती है जो अमूमन नहीं दिख रहा।

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!