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शुक्रवार, 4 मई 2012

पेपर , पेपर , ….आज की ताजा खबर

 

पेपर पेपर ..आज की ताजा खबर है ..दो रुपए दो रुपए , नहीं लेकिन अब कहां दो रुपए अब तो जिस तरह से अखबारों का वजन बढा है उसी तरह से उनके दाम का भी वजन बढता चला गया है । मगर ससुरे अंग्रेज यहां भी आगे ही निकल गए , इंग्रेजी का अखबार आपको फ़िर भी सस्ता ही मिलेगा …कमबख्त आज की हिंदी कित्ती महंगी हुई जा रही है हद है बाइ गॉड की कसम तो अब दो रुपए दो रुपए की आवाज कम सुनाई देती हो , एक रुपए के सांध्यकालीनों की आवाज वैसे ही लगती है । इन आवाज़ों का मेला लेकिन जहां सज़ता है वो उन तमाम स्थानों के लिए वो एक दूसरे को काटती और हिंदी अंग्रेजी अखबारों के साथ पत्रिकाओं का भी रोल कॉल चल रहा हो जैसे , हां फ़र्क तो उनपर भी पडा है , अब कहां वो नागराज और मैंड्रेक , वो चाचा चौधरी और चंदामामा की कॉमिक्स और कहां मायापुरी , फ़िल्मी कलियां अरे हां कर्नल रंजीत और वेद प्रकाश शर्मा के मोटे मोटे उपन्यास भी । अब तो रेडलाईट पर भी नहीं दिखते ,कमबख्त इन चौबीसिया घंटों के समाचार चैनलों ने तो दो रुपए में आम लोगों को मिलने वाला एक संसार ही लूट लिया मरों ने । अब हमारे जैसे कुछ ही मगजमारे हैं जो अब भी बारह तेहर समाचार पत्र के अलावा कादम्बिनी , चंदामामा के साथ सरिता भी खैंच लाते हैं घर पर । चलिए आज की ताजा खबर , अरे महाराज ब्लॉगजगत की ताजा खबर दिखाते हैं आपको ..लीजीए जहांपनाह …नोश फ़रमाइए

 

खुशदीप भाई के देशनामा से शुरूआत करते हैं , देखिए आज की बडी खबर क्या है ..काका उर्फ़ राजेश खन्ना

 

आज जहां मैं हूं, वहां कल  कोई और था, ​

​ये भी एक  दौर है, वो भी एक  दौर था...​

साठ  के दशक  के आखिर और सत्तर के दशक  के शुरू में सुपरस्टार के तौर पर जो क्रेज  राजेश  खन्ना का रहा, वैसा क्रेज़  हिंदी सिनेमा में न  पहले ​कभी किसी स्टार ने देखा और न ही बाद में...अमिताभ  और शाहरूख  ने भी नहीं...रोमांटिक  हीरो के तौर पर राजेश  खन्ना के लिए​ ये लड़कियों की दीवानगी ही थी कि अपने ख़ून से उन्हें  चिट्ठियां लिखती थीं...शायद यही वजह थी कि डिंपल  से शादी करते ही राजेश  खन्ना की ​लोकप्रियता का ग्राफ़  धड़ाम  हो गया...रही सही कसर एंग्री यंग मैन के तौर पर  ज़ंज़ीर से उभरे अमिताभ  ने पूरी कर दी...

 

 

वटवृक्ष का ब्लॉगर विशेषांक और परिकल्पना सम्मान

इसी वर्ष तीन फरवरी को शशि मिश्रा जी के निमंत्रण पर एम॰ डी॰ कॉलेज मुंबई के एक सेमिनार में मैंने हिस्सा लिया, विषय था उच्च शिक्षा में सूचना तकनीकी की भूमिका । देश-विदेश से आए तमाम विशेषज्ञों में से मैं एक अकेला ब्लॉगर था, वह भी हिन्दी का ब्लॉगर । शेष सारे विशेषज्ञों का उद्वोधन अंग्रेजी में था और मेरा हिन्दी में । मैं परेशान था कि उच्च शिक्षा के इन शिक्षार्थियों के बीच हिन्दी में कही गयी मेरे बातें शायद बहुत ज्यादा असर न करे। किन्तु मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मैं अपने लंबे उद्वोधन के पश्चात सभागार से बाहर निकाला और एयरपोर्ट जाने की तैयारी करने लगा । तभी कुछ शिक्षार्थी मेरे पास आए और ब्लोगिंग के विभिन्न पहलूओं पर वार्ता करने लगे । जब उन्होने यह कहा कि मैंने आपकी ब्लोगिंग वाली दोनों किताबें पढ़ी है तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा । उस क्षण के॰ एम॰ अग्रवाल कॉलेज कल्याण के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मनीष मिश्र भी मेरे साथ थे, उन्होने मुझसे पूछा कि कतिपय पत्रिकाओं के साहित्य विशेषांक आते हैं क्या ब्लॉग पर केन्द्रित कोई विशेषांक नहीं लाया जा सकता ? मैंने कहा क्यों नहीं, लाया जा सकता है और इस दिशा में मैं भी बहुत दिनों से सोच रहा हूँ ।

 

पूरा देश कन्फूजिया गवा है
 

साला पूरा देश कन्फूजिया गवा है ...

जो अभिनेता है वो क्रिकेट खेल रहा है ...

जो क्रिकेटर है वो नेता बन रहा है ...

 

 

 

 

शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' की तरह अशफाक भी बहुत अच्छे शायर थे।

अशफाक और बिस्मिल की तरही शायरी फाँसी की स्मृति में बना अमर शहीद अशफ़ाक उल्ला खां द्वार (फ़ैजाबाद जेल, उत्तर प्रदेश) राम प्रसाद 'बिस्मिल' की तरह अशफाक भी बहुत अच्छे शायर थे। इन दोनों की शायरी की अगर तुलना की जाये तो रत्ती भर का भी फर्क आपको नजर नहीं आयेगा। पहली बार की मुलाकात में ही बिस्मिल अशफाक के मुरीद हो गये थे जब एक मीटिंग में बिस्मिल के एक शेर का जबाव उन्होंने अपने उस्ताद जिगर मुरादाबादी की गजल के मक्ते से दिया था[9]। जब बिस्मिल ने कहा- "बहे बहरे-फना में जल्द या रब! लाश 'बिस्मिल' की। कि भूखी मछलियाँ हैं जौहरे-शमशीर कातिल की।।" तो अशफाक ने "आमीन" कहते हुए जबाव दिया- "जिगर मैंने छुपाया लाख अपना दर्दे-गम लेकिन। बयाँ कर दी मेरी सूरत ने सारी कैफियत दिल की।।" एक रोज का वाकया है अशफाक आर्य समाज मन्दिर शाहजहाँपुर में बिस्मिल के पास किसी काम से गये।

 

 

hursday 3 May 2012

कैसी है, पहचान तुम्हारी -सतीश सक्सेना

उपरोक्त  पंक्तियाँ   सुमन पाटिल  जी  के ताजे लेख  का  शीर्षक हैं  जिन्हें देख   पहली  चार  पंक्तियाँ  लिखी  गयीं  , बाद  में उनके  अनुरोध  पर   यह   गीत   रचना  हुई  ! आनंद लीजिये !


दिल  की परतों में सोये हो ,

लगते तो कुछ अपने जैसे

मन में इतने गए समाये 

तुम्हें छिपायें बोलो कैसे ,

जबसे तुमको मैंने देखा , पलकें अपनी बंद रखी हैं !  
कौन जान पायेगा तुमको, कैसी है पहचान तुम्हारी

 

शिक्षा के लॉलीपॉप / सुनील

मई 3, 2012 Aflatoon अफ़लातून द्वारा

इन दिनों बिहार में एक विवाद छिड़ा हुआ है। इसे मोतीहारी बनाम गया, नीतीश बनाम सिब्बल या राज्य बनाम केन्द्र का झगड़ा कहा जा सकता है। वर्ष 2009 में संसद में एक कानून पास करके देश के 12 प्रांतांे में एक-एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने का फैसला लिया गया था। इससे गोवा को छोड़कर देश के हर प्रांत में कम से कम एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय हो जाएगा। किंतु बिहार का केन्द्रीय विश्वविद्यालय कहां हो, इस पर मामला फंस गया है। नीतीश सरकार चाहती है कि यह मोतीहारी में हो, जिससे इस पिछड़े इलाके के विकास में मदद मिलेगी। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल इसे गया में खोलना चाहते है। उनकी दलील है कि मोतीहारी बहुत अंदर है और मुख्य रेलमार्ग व हवाई मार्ग से कटा है, इसलिए वहां केन्द्रीय विश्वविद्यालय ठीक से चल नहीं पाएगा। अच्छे प्रोफेसर भी वहां नहीं जाना चाहेंगे।

 

 

 

घूस देने वाले की उलझनें

By फ़ुरसतिया on May 4, 2012

दुनिया में करप्शन का चलन शुरु से रहा है।

अगर सृष्टि की शुरुआत के लिये बड़े धमाके वाले सिद्धांत को ही सही मान लिये जाये तो देखिये कि जरा सी जगह से निकला हुआ मसाला पूरी दुनिया में फ़ैलता जा रहा है। बिना रजिस्ट्री कराये सितारे, आकाशगंगायें, ब्लैकहोल, धूमकेतु, अलाय-बलाय बनते चले गये। जहां जगह मिली अपना तम्बू तान दिया। न किसी रजिस्ट्रार के यहां रजिस्ट्री कराई। न स्टैम्प ड्यूटी जमा की। ये करप्शन नहीं तो और क्या?

कभी-कभी तो यह भी लगता है कि ये जो प्रकाश की गति से सितारे, आकाशगंगायें, ग्रह-नक्षत्र, हेन-तेन एक दूसरे से दूर भाग रहे हैं प्रकाश की गति से वो अपराधियों की ’घपला करके फ़ूट लो’ के सिद्धांत के अनुसार है। घपले की जगह टिके तो पकड़े जाओगे।

जिस किसी दिन भी ये घपला किसी की निगाह में आ गया तो दुनिया भर के सारे घपले-घोटाले इसके सामने बौने हो जायेंगे। लेकिन किसको पड़ी है इन सबकी जांच करने की।

 

 

हमारी चिंतना

डॉ ब्रह्मदेव शर्मा

हम सब को आज इस बात की बड़ी खुशी है कि सुकमा जिलाध्यक्ष एलेक्स पॉल मेनन लोगों के बीच आ गए हैं और अपने परिवार में पहुंच जाएंगे. हमें इस बात का पूरा विश्वास है कि वे गरीबों का साथ देंगे, उनके नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करेंगे और हमारे समाज के कमजोर वर्गों के मानस में अपना स्थान अर्जित करेंगे.

एलेक्स पॉल मेनन

हम भारत की कम्युनिष्ट पार्टी (माओवादी), दक्षिण बस्तर के इस बात के लिए आभारी हैं कि उन्होंने हम पर विश्वास किया और इस बात की उम्मीद करते हैं कि हमारे बीच सार्थक विचार-विमर्श चलता रहेगा. हम छत्तीसगढ़ सरकार के उस भाव भूमि का स्वागत करते हैं जिसमें उसने हमारी मध्यस्थता को स्वीकार किया.
मध्यस्थता प्रक्रिया की सीमाओं के बावजूद उस बदलाव प्रक्रिया की शुरुआत का स्पष्ट संकेत है, जिससे राज्य में शांति और विकास की राह बन सकती है. हमारी नजर में उसमें एक ऐसे काल की संभावना अंतरनिहित है, जिसमें बस्तर की विविधतामयी छोटी सी दुनिया, जिसमें विश्व में सबसे सरल रहवासी है और जिन पर हमें गर्व है, में ऑपरेशन ग्रीन हंट, काम्बिंग ऑपरेशन जैसे आततायी पदनाम और मानवीय अधिकारों के हनन जैसी पाप-वृत्तियां जड़ से मिट जाएंगी.

 

 

May 4, 2012

पुरानी शराब..

(मीठल बही छापे की कुछ पुरानी रचनाएं.. गरमी का असर होगा जो सीधे पांच पैग उंड़ेल रहा हूं, अंग्रेज़ी में मेरी आंखें मिची हुई हैं, उसमें बहकने का उद्यम सुश्री दरभंगाकुमारी के दु:स्‍साहसी पराक्रम से ही संभव हुआ है..)

(यह भी पुराना ही है..)

देशकाल से परे..

दौलतपुर, नीमतरा, हरहरा क्‍या जगहें थीं जहां रुक जाता बेमतलब. साइकिल अड़ाकर तकता उजबकों की तरह टहलता कौन लोग हैं कैसे बात करते हैं. झबरे मूंछ व पोपले मुंह वाला एक बूढ़ा हंसता बुदबुदाता कातिक-अगहन. कोई औरत दौरी उतारकर रखती ज़मीन पर, साड़ी के किनारे से पोंछती श्‍याम चेहरा, देखती ललियांही राह, थकित-चकित बूझती मन ही मन अभी और कितना आगे जाना होगा पत्‍ते में जामुन और नून सजाकर खोजने गाहक चार कौड़ी कर कमाई बास्‍ते. नंग-धड़ंग एक बच्‍चा घिसटता-दौड़ता चला जाता, कोई मुर्गी फुदकती झाड़ि‍यों से बाहर चेहरा करती जैसे बीच काम देखने आयी हो बाहर के हाल.
अभाव व दुरव्‍यवस्‍था की बड़ी-काली मक्खियां ताड़ व बांस के पत्‍तों पर गोल बांधे भिनभिनातीं, घूमतीं करियाई पुरानी मटकी पर. लगता सदियों पहले का कोई दृश्‍य हो लगता देश-काल से परे में जाने कहां घुसी चली आयी साइकिल.

 

 

आओ चुनें राष्ट्र का पति!

राष्ट्र बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है। वैसे कोई दौर ऐसा नहीं होता, जब हमारा राष्ट्र नाजुक दौर में नहीं होता। हमारे राष्ट्र के लिए हर दौर नाजुक रहा है। खैर, नाजुकता के तमाम आर्थिक, सामाजिक, सामरिक, भौगोलिक, प्राकृतिक, मानसिक, शारीरिक कारणों के साथ इस समय एक नाजुक कारण ये भी है कि राष्ट्र को अपना नया पति चुनना है। देश के भविष्य के लिए सतत चिंतनशील रहने वाले नेताओं और उनकी पार्टियों को अब ये चिंता सता रही है कि वो राष्ट्र का हाथ किसके हाथ में सौंपे। नेतागण इतने चिंतित हैं कि कुछ सोच नहीं पा रहे हैं कि इस नाजुक दौर में राष्ट्र का पति किसे बनाया जाए। दरअसल ज्यादा सोचते-सोचते सोच भी काम करना बंद कर देती है। इसलिए पार्टियों के बीच से विरोधाभासी बयान निकल-निकल कर आ रहे हैं। ये बयान आ रहे हैं या निकलवाए जा रहे हैं ये तो मीडिया ही बता सकता है। क्योंकि कोई राष्ट्रीय विषय हो और मीडिया उसमें टांग न अड़ाए तो वो विषय ही कैसा। अब संविधान ने मीडिया को लोकतंत्र के चैथे स्तंभ के रूप में कोई लिखित स्थान तो दिया नहीं है। वो तो भला हो हमारे समाजशास्त्रियों, राजनीतिक विज्ञानियों और नेताओं का कि वे खुलकर ये मानते हैं कि मीडिया चैथा स्तंभ है। लेकिन मीडिया के कलेजे को केवल मानने से ठंडक नहीं मिलती। इसलिए मीडिया कर चीज में समय से पहले और जरूरत से ज्यादा टांग घुसेड़ता है, केवल ये जताने के लिए कि भई हम भी हैं। या यूं कहें कि लोकतंत्र के बाकी के तीन स्तंभों से मीडिया चुन-चुन कर बदला लेने की कोशिश करता है कि तुमको संविधान के अंदर लिखित में जगह मिली और हमें मौखिक-मौखिक बहला दिए।

 

 

कभी यहां तुम्हें ढूंढा...कभी वहां देखा...!

रागवृंत पाण्डेय , जितना सुन्दर नाम उतने ही सुन्दर वे स्वयं भी ! गौर वर्ण , लंबा कद , सारी देह रेखायें एक दम अनुपात में ! सुसंस्कृत , साहित्यिक उत्तर भारतीय परिवार में जन्म और सर्वसुविधायुक्त पालन पोषण दशाओं में शैशव से युवापन तक की सुगम यात्रा ! अभियांत्रिकी स्नातक होते ही व्यवसाय प्रबंधन में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित करने का सुअवसर भी परिजन प्रदत्त...अंततः किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में एक शानदार पैकेज लेकर रागवृंत महोदय जीवन की अगली पारी खेलने के लिए तैयार ! उनके परिजन , कुलीन , सजातीय , समृद्ध परिवारों की सुकन्याओं के अनगिन छाया चित्रों और गृह नक्षत्रों में उनका भविष्य खोजने लगे ! इस कवायद में लगभग दो वर्ष यूंहीं गुज़रे , किन्तु रागवृंत के परिजन किसी समुचित निर्णय तक नहीं पहुँच सके ...और एक दिन वे असीम दुःख से भर उट्ठे ,  जबकि उन्हें  , रागवृंत के किसी अनन्य मित्र से , यह खबर मिली कि रागवृंत , डेढ़ वर्ष पहले ही अपनी बाल सखि ,  रति से प्रेम विवाह कर चुके  हैं !

 

 

जब से हुई है शादी

जी में आता है शादी नाम की मुसीबत के लिए टोकरी भर-भर के गालियां निकालूं। जाने वो कौन-सी सभ्यता रही होगी जिसने दुनिया भर के जाहिल-गंवार-नाकारा-असभ्य-गैरज़िम्मेदार लोगों को इस एक बंधन में डालकर सभ्य और ज़िम्मेदार बना डालने का बेहद बेहूदा काम किया होगा?
और बंधन कैसे इंसानों को इंसान बनाए रखते हैं, शादी क्यों जरूरी होती है और परिवार की भूमिका क्या होती है समाज में, इसके तर्क तो मेरे सामने ना ही पेश किए जाएं। मैंने भी शादी की है भाई। दो बच्चों को बड़ा कर रही हूं। ठीक-ठाक खुशहाल परिवार चला रही हूं, और भली-भांति विवाह के समस्त नियमों को निभा भी रही हूं। सात फेरों के सातों वचन भी याद हैं और पतिदेव की यादाश्त पर भी पूरा भरोसा है। फिर भी दोस्तों, शादी क्यों करते हैं लोग?

 

 

टेसू के फ़ूल

ब्लॉ.ललित शर्मा, बृहस्पतिवार, 3 मई 2012

लाया हूँ मैं
सहज ही तुम्हारे लिए
टेसू के फ़ूल
जो अभिव्यक्ति है
मेरी प्रीत की
गुलाब तो
अभिजात्य वर्ग के
नकली प्रेम की
निशानी है
गुलाबी प्रेम में
झलकती है

 

 

जादू की क्लिप

हिन्दी सिनेमा में स्त्री

रा.वन की शुरुआत के एक दृश्य में बहुत सारे मेकअप और कम कपड़ों के साथ सलीब पर लटकी प्रियंका ‘बचाओ बचाओ’ की गुहार लगा रही हैं और तब हीरो शाहरुख उन्हें बचाने आते हैं। यह सपने का सीन है लेकिन हमारे सिनेमा के कई सच बताता है। एक यह कि हीरोइन की जान (और उससे ज्यादा इज्जत) खतरे में होगी तो हीरो आकर बचाएगा और इस दौरान और इससे पहले और बाद में हीरोइन का काम है कि वह अपने शरीर से, पुकारों से और चाहे जिस भी चीज से, दर्शकों को पर्याप्त उत्तेजित करे। लेकिन अच्छा यही है कि इज्जत बची रहे और लड़की इस लायक रहे कि हीरो उसे साड़ी पहनाकर मां के सामने ले जा सके। 

 

 

« कटी पतन्ग है तू

गुज़रा साल और तुम

मई 3, 2012 Gayatri द्वारा

तेरे आज और कल के दरमियान/
एक सदी गुज़र गयी एक साल मे//

खोल कर मुट्ठी झान्क कर देख/
पिघला दिल सोया है किस हाल मे//

 

 

फेसबूकिया दुर्घटना …

29 अप्रै

2 Votes

मैं फेसबुक पर, कमेन्ट कमेन्ट खेल रहा था |

अपना जीवन बड़े आराम से झेल रहा था | |

कि, तभी एक दिन मेरे कमेन्ट पर कमेन्ट आया |
ठहरी जिंदगी में, जैसे कोई करेंट आया | |

कहने लगी फोटो के नीचे , अजी क्या कमाल लगते हो होठों को भींचे |

मैंने भी दाढ़ी खुजाई, और कमेन्ट का धीरे से किया रिप्लाई | |

सोचा गलती से कमेन्ट किया होगा शेयर |

वरना, ऐसे ही फेसबुक पर थोड़े ही बनता है पेयर | |

 

 

लिमिटेड हाइट सब वे (Limited Height Sub Way)

Posted on अप्रैल 25, 2012

चौखट को अंतिम टच।

रेल की पटरियों को काटते हुये सड़क यातायात निकलता है और जिस स्थान पर यह गतिविधि होती है, उसे लेवल क्रॉसिंग गेट (समपार फाटक) कहा जाता है। समपार फाटक रेल (और सड़क) यातायात में असुरक्षा का एक घटक जोड़ देते हैं।

जैसे जैसे रेल और सड़क यातायात बढ़ रहा है, उनके गुणे के अनुपात में समपार फाटक की घटनाओं/दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। अगर दुर्घटनायें नहीं भी होती, तो भी सड़क वाहन द्वारा समपार फाटक क्षतिग्रस्त करने की दशा में सुरक्षा नियमों के अंतर्गत ट्रेनों की गति कम करनी पड़ती है और रेल यातायात प्रभावित होता है।

 

शिक्षा

शिक्षा का व्यवसायिकरण इस स्तर पर पहुँच गया है जहाँ से नैतिक और चारित्रिक पतन के अध्याय से

साक्षात्कार विवशता प्रतीत होने लगती है | शिक्षा का  बाज़ार  सजाने  और  चलाने  वालों  की  बात तो

समझ में आती है परन्तु शिक्षकों की मौन सहभागिता का अर्थ समझने का प्रयास मन  को  विचलित

कर देता है | प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर  नामांकन की

प्रक्रिया का चक्रव्यूह तो शायद अभिमन्यु  भी न भेद पाते | पात्र

के साथ अन्याय सदैव से होता आया है | चाहे वह एकलव्य का

प्रसंग हो अथवा कर्ण का , सामाजिक मूल्यों के दवाब में जो कुछ

भी  हुआ , कम  से  कम  न्यायसंगत  तो  प्रतीत  नहीं   होता | 

मुसाफ़िर हूँ यारों ने पूरे किये अपने चार साल : क्यूँ जरूरी है हिंदी में यात्रा ब्लागिंग ?

पिछले हफ्ते मुसाफ़िर हूँ यारों का इंटरनेट पर चार साल का सफ़र पूरा हुआ। जब मैंने यात्रा को विषय बनाकर एक अलग ब्लॉग की शुरुआत की थी तब हिंदी के ब्लॉगिंग परिदृश्य में पूरी तरह यात्रा पर आधारित ब्लॉग नहीं के बराबर थे। यात्रा वृत्तांत तब भी लिखे जाते थे पर वो ब्लॉग पर अन्य सामग्रियों के साथ परोसे जाते रहे। पर खुशी की बात ये है कि पिछले चार सालों में यात्रा वृत्तांत संबंधी चिट्ठों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।

अगर आप ब्लागिंग पर विगत वर्षों में यात्रा लेखन पर नज़र डालना चाहें तो पिछले वर्ष शालिनी पांडे द्वारा इस सिलसिले में किया गया शोध   इसकी एक झलक जरूर देगा।  प्रश्न ये उठता है कि आख़िर इन यात्रा संस्मरणों को लिखने का क्या औचित्य है जबकि किसी स्थान के बारे में जानकारी तमाम ट्रैवेल वेबसाइट्स से मिल जाती हैं?

 

 

ए ट्रेन टू पाकिस्तान!!!

राजधानी एक्सप्रेस में एक किताब यात्रियों को मिलती है , जिसमे रेलवे के अतीत और वर्तमान के बारे में बताया जाता है | साथ में एक कहानी भी होती है जो ट्रेनों के इर्द-गिर्द लिखी गयी हो | पिछले साल दो बार राजधानी में सफर किया, दोनों बार एक-एक कहानी पढ़ने को मिली, एक थी रस्किन बोंड  की “टाइगर इन द टनेल" , और दूसरी थी एक कहानी एक गाँव के बारे में , पूरा गाँव ट्रेनों की आवाजाही से खुद को ट्यून रखता था | ट्रेन का आना जाना उनकी दिनचर्या चलाता था | खुशवंत सिंह के प्रसिद्ध उपन्यास “ट्रेन टू पाकिस्तान" का पहला अध्याय है वो कहानी |

जब से पढ़ी वो कहानी,  पूरा उपन्यास पढ़ने का मन था | पर कहीं मिली नहीं या ये कहें कि मन से कोशिश भी नहीं की | फिर पिछले दिनों यहाँ की डिस्ट्रिक्ट लाइब्रेरी में भारतीय लेखकों की किताब ढूंढते ढूंढते मिल गयी |  और पूरे दो हफ़्तों में पढ़ के निपटा डाली | आज उसी किताब के बारे में लिख रहा हूँ |

संक्षेप में कहानी :

एक प्रेम कहानी है जो भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की पृष्ठभूमि में लिखी गयी है | कहानी का मुख्य पात्र “जग्गा बदमाश" है|  वो एक सिख है | वो अपने गाँव की ही एक मुसलमान लड़की , नूरन, से प्यार करता है | गांव का नाम "मनो-माजरा" है | समय १९४७ के सितम्बर के आस-पास का है और जगह जगह धर्म के नाम पर  दंगे भड़के हुए हैं | जग्गा को सूरज ढलने के बाद गाँव छोड़कर जाने की इज़ाज़त नहीं है | पर वो रात के अँधेरे में ही नूरन से मिलने जाता है |  उसी रात उसका एक दुश्मन, मल्ली, गाँव के एक मात्र हिंदू परिवार लाला रामलाल के घर डकैती डालता है और उसका खून कर देता है |

 

 

जे थूरे सो थॉर...बूझे?

ऊ नम्बरी बदमास है...लेकिन का कहें कि लईका हमको तो चाँद ही लागे है...उसका बदमासी भी चाँदवे जैसा घटता बढ़ता रहता है न...सो. कईहो तो ऐसा जरलाहा बात कहेगा कि आग लग जाएगा और हम हियां से धमकी देंगे कि बेट्टा कोई दिन न तुमको हम किरासन तेल डाल के झरका देंगे...चांय नैतन...ढेर होसियार बनते हो...उ चोट्टा खींस निपोरे हीं हीं करके हँसता रहेगा...उसको भी बहुत्ते मज़ा आता है हमको चिढ़ा के.
एक ठो दिन मन नै लगता है उसे बतकुच्चन किये बिना...उ भी जानता है कि हम कितना भी उ थेत्थर को गरिया लें उससे बतियाए बिना हमरा भी खानवे नै पचेगा. रोज का फेरा है...घड़ी बेरा कुबेरा तो देखे नहीं...ऑफिस से छुट्टी हुआ कि बस...गप्प देना सुरु...जाने कौन गप्प है जी खतमे नै होता है. कल हमरा मूड एकदम्मे खराब था...उसको बोले कि हम अब तुमसे बतियायेंगे नहीं कुछ दिन तक...मूड ठीक होने दो तब्बे फोनियायेंगे...लेकिन ऊ राड़ बूझे तब न...सेंटी मारेगा धर धर के और ऊपर उसका किस्सा सुनो बारिस और झील में लुढ़कल चाँद का...कोई दिमागे नै है कि कौन मूड में कौन बात किया जाता है...अपने राग सुनाएगा आप जितना बकझक कर लीजिए हियाँ से. कपार पे हाथ मारते हैं कि जाने कौन बेरा ई लड़का मिला था जो एतना माथा चढ़ाये रखे हैं...इतने दुलरुआ तो कोइय्यो नहीं है हमरा.

 

मन गुदगुदाता है

विनोद वर्मा विनोद वर्मा | शनिवार, 28 अप्रैल 2012, 15:12 IST

आश्चर्य है. प्रोफ़ेसर मटुकनाथ की प्रेमिका जूली को उनकी पत्नी सरेआम पीटती हैं. टेलीविज़न चैनल वाले किसी प्रायोजित कार्यक्रम की तरह इसका लाइव प्रसारण करते हैं. फिर बाद में लूप में डालकर बार-बार दिखाते हैं.

आश्चर्य न पिटाई में है न टीवी चैनलों की बेहयाई में. आश्चर्य उस गुदगुदी में है, जो मन के भीतर होती है.

आश्चर्य है कि यह सब देखकर मन नहीं पसीजता, दुख नहीं उपजता. जुगुप्सा जागती है. मन कसमसाता है. चरमसुख जैसा कुछ मिलता सा लगता है.

ऐसा सुख तब भी मिलता था जब अभी 'पीपली लाइव' का ज़माना नहीं आया था. तब अख़बारों में और बाद में पत्रिकाओं में तस्वीरें देखा करते थे. बार-बार देखा करते थे.

याद है आपको? घर की बड़ी बहू सोनिया गांधी के दिवंगत देवर की पत्नी और घर की छोटी बहू मेनका गांधी को घर से निकाल दिया गया था. सामान सड़क पर पड़ा था. एक छोटा बच्चा सामान के साथ खड़ा था. याद है आपको मन कैसा मुदित होता था ये तस्वीर देखकर?

चलिए आज के लिए आपको बराबर मानसिक खुराक का इंतज़ाम तो हमने कर दिया है , बकिया कल मिलते हैं ..पेपर …..पेपर ….आज की ताजा खबर ..दो रुपए दो रुपए

12 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो ऊपर से पढ़ना शुरू किये और पढ़ते पढ़ते अपनी पोस्ट देख के खुश हो गए :) :)
    लिंक्स बढ़िया हैं और हमारी पोस्ट शामिल करने का शुक्रिया :) :)

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  2. ई त दू रुपईया में फ़ुल इस्केप पेज का मैटेरियल मिल गया जी.....

    जै हो. बडी जबरदस्त बुलेटिन बांचे अजय भईया....

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  3. गज़ब महाराज गज़ब ... कहाँ कहाँ से लाये है आज की खबरे खोज खोज कर ... मान गए साहब ... एक दम पैसा वसूल बुलेटिन लगाए है जी ... 2 का 4 रुपया ले लीजिये ... किसी को बुरा नहीं लगेगा !

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  4. सुप्रभात भाई .... !!
    तुसी ग्रेट हो .... !!
    ब्लॉग-बुलेटिन फिर कल भी आयेगा ,
    न न आज आयेगा ये तो कल का है ....
    सब कैसे पढुगीं .... ??
    कोशिश करती हूँ .... एक-एक लिंक्स पढ़ लूं .... :D

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  5. kabhi unki baat.....aur apki chit suna tha....
    is khabar ko dekh lagta hai apko bhi fursatiya
    ka asar para tha.....

    agar ye regular rajdhani chalayenge to.....
    aap hanfe na hanfe....pathak padhne me kankh jayenge....


    g a j n a t....


    pranam.

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  6. बहुत कुछ नया पढ़ने को मिला है..

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  7. सूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें। 

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