प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
आज नेट पर खबरे पढ़ते हुए एक आलेख पर नज़र पड़ी तो बड़ी हैरत हुई और साथ साथ दुःख भी हुआ ... बताता हूँ क्यों ... अगर हम रोजाना 11 घंटे या उससे अधिक समय तक बैठे रहते है, तो अगले तीन वर्षो में हमारी मौत की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही इस पर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम शारीरिक रूप से इस दौरान सक्रिय रहे या नहीं। आस्ट्रेलिया में हाल में हुए एक अध्ययन से यह जानकारी सामने आई।
सूत्रों के मुताबिक सिडनी विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार जो लोग आधे दिन तक बैठे रहे उनमें 40 प्रतिशत तक अधिक खतरा पाया गया, शारीरिक सक्रियता और वजन को ध्यान में रखने पर भी निष्कर्ष में कोई बदलाव नहीं आया।
प्रमुख शोधार्थी हिड्डे वैन डेर प्लोएग के अनुसार, '' यह परिणाम लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से महत्वपूर्ण है। सुबह की सैर और जिम में जाकर व्यायाम करना आज भी महत्वपूर्ण है लेकिन इसके साथ-साथ लगातार लम्बे समय तक बैठने से भी बचना चाहिए।''
उन्होंने कहा, ''अध्ययन के परिणाम दर्शाते हैं कि लोग जितना समय घर, काम और यातायात में बैठकर गुजारते है, उसे चलकर या खड़े होकर घटाया जाना चाहिए।''
परिणाम यह भी बताते है कि शारीरिक क्रियाएं बहुत लाभदायक हैं। कम समय तक बैठने वाले सक्रिय लोगों के समूह की तुलना में अधिकतर वक्त बैठे रहने वाले निष्क्रिय लोगों के समूह में तीन वर्षो के भीतर मरने का खतरा दोगुना पाया गया।
निष्क्रिय लोगों में भी अधिक बैठने वालों में कम बैठने वालों की तुलना में मौत का खतरा एक तिहाई अधिक पाया गया।
यह शोध 'कार्डियोवास्कुलर रिसर्च नेटवर्क' द्वारा कराया गया था, जिसमें 'नेशनल हार्ट फाउंडेशन आस्ट्रेलिया' की एनएसडब्ल्यू विभाग का सहयोग मिला। फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी टोनी थर्लवेल ने कहा कि निष्क्रियता हृदय रोगों का सबसे बड़ा कारण है। इसकी वजह से दुनियाभर में एक वर्ष में 1 करोड़ 70 लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवाते है।
उन्होंने कहा, ''खाली समय में लोग टीवी देखते है, कम्प्यूटर पर काम करते है या इलेक्ट्रॉनिक गेम खेलते है। इससे बैठने की अवधि बढ़ जाती है।'' उन्होंने कहा, ''लेकिन हमें पता है कि जो लोग इन चीजों पर कम समय जाया करते है, वे इन पर अधिक समय जाया करने वालों की तुलना में अधिक स्वस्थ्य रहते है।''
मेरा तो अधिकतर समय बैठ हुए ही बीतता है ... यानी मैं तैयारी शुरू कर दूं ... इस जगत से प्रस्थान की या फिर ब्लॉग जगत से प्रस्थान की ... अरे भाई जितनी देर बैठा रहता हूँ ब्लॉग या फेसबुक ही तो खुला रहता है सामने कम्पूटर पर ! भाई सेहत का भी तो ख्याल रखना है कि नहीं ??? इस लिए भई हमारी मानो तो अगर ज़िंदा रहना है तो चलते फिरते नज़र आओ !
सादर आपका
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिंद !!
लिंक्स अच्छे मिले हैं, फ़ुरसत में पढ़ रहा हूं।
जवाब देंहटाएंबैठने पर अच्छी कथा सुनाई। तैयारी कोई नहीं, हम तो सरकार में तीस साल से कुर्सी पर बैठे ही हैं।
हमारे फ़ुरसतनामा को बुलेटिन में जगह मिली, शुक्रगुजार हूं।
बहुत सुंदर लिंकों से सजा ब्लॉग बुलेटिन,..
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
MY RECENT POST .....फुहार....: प्रिया तुम चली आना.....
जीवन में गतिमान रहना ही सीखना होगा।
जवाब देंहटाएंबढ़िया बात कही है ...ज्यादा बैठना हानिकारक तो है ही ....थोड़ी थोड़ी देर में चलते रहना चाहिए ....बढ़िया लिंक्स और बढ़िया बुलेटिन ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ...!!
डरा दिया भाई आपने. अब चलता-फिरता ही नजर आऊँगा.
जवाब देंहटाएंइतने अच्छे लिंक्स के लिए आभार...
बढ़िया जानकारी |
जवाब देंहटाएंआभार |
सादर ||
मिश्र जी! अच्छे लिंक देने के लिये साधुवाद! बिगबैंग अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स
जवाब देंहटाएंशिवम् भाई दुविधा में हूँ .... ,
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा दिए गए स्वास्थ्यप्रद जानकारी ज्यादा उपयोगी है,
या अच्छे-अच्छे लिंक्स ,जो दिमागी खुराक तो होगी ही .... ,
सारे लिंक्स पढ़ कर आती हूँ , तो कमेन्ट करती हूँ .... !!
चलते फिरते रहना मेरी नौकरी का हिस्सा है.. जब बैठने की जगह पर पोस्टिंग थी तब भी ऑफिस में अपने मातहतों को अपने पास बुलाने की अपेक्षा, मैं स्वयं उनके पास जाकर काम का जायजा लेता रहता था.. खैर आपने बहुत काम दे दिया.. देखूं ज़रा घूम-घूमकर!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंकों से सजा ब्लॉग बुलेटिन,..
जवाब देंहटाएंचहलकदमी ज़रूरी है ...
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स !
thanks for nice links
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स . मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया शिवमजी
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स.......
जवाब देंहटाएंचलिए आपन तो पहले ही रमता जोगी बहता पानी हैं , डोलते रहते हैं , बोलते रहते हैं आ बीच बीच में सिटिया के लिखते भी रहते हैं , लगाता बैठने वाला टेंसन नय है । पोस्ट लिंक्स सब चकाचक है एकदम । सुंदर बुलेटिन बांचे हैं
जवाब देंहटाएंकमाल के लिंक! लेकिन कितना पढ़ें, कैसे पढ़ें!
जवाब देंहटाएंएक ओर तो कहते हैं चलते-फिरते नज़र आओ दूसरी ओर इत्ते ढेर सारे लिंक देते हैं कि पढ़ने के लिए देर तक बैठना पड़े! का करें? :)
जवाब देंहटाएंbahut hi achhe
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन है..
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएं