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बुधवार, 2 मई 2012

जाने कब से तलाश थी अस्मिता की



शांत नदी में एक कंकड़ .... अनगिनत हिलोरें , फिर शांत होने का उपक्रम ... कुछ ऐसा ही लगा लीना मल्होत्रा जी की भावनाओं की अस्मिता http://lee-mainekaha.blogspot.in/
से मिलकर . ब्लॉग कहता है अभी चलना शुरू किया है , पर रचनाएँ कहती हैं - जाने कब से तलाश थी अस्मिता की , अब एक छाँव मिली है कड़ी धूप के बीच .
2011 की शाखा से मैंने कुछ अविस्मर्णीय एहसासों के फल तोड़े हैं , चखा है और भूख बढ़ती जा रही है . एहसासों के फल मुझे मिलें और मैं अकेली उनके स्वाद में रहूँ , इतनी
स्वार्थी मैं नहीं ..... तो आइये एक कप कॉफ़ी और ठन्डे पेय के साथ हम लीना जी के एहसासों के खट्टे मीठे नमकीन स्वाद से मिलें -

माँ (http://lee-mainekaha.blogspot.in/2011/05/blog-post_08.html) .... माँ शब्द में ब्रह्मा विष्णु महेश होते हैं , होता

है शिवाला , नीलकंठ शिव , गुरुद्वारा , अल्लाह , इशु .... आँखों से निर्मल गंगा का प्रवाह होता है और माँ सीने से लगाकर बलैया

लेती है . वर्तमान में हम जो नहीं समझ पाते , वहीँ भविष्य के वर्तमान में तब्दील होते सबकुछ समझ में आने लगता है ...कुछ इस तरह ,
"माँ
जब मैं
सुई में धागा नहीं डाल पाती
तुम्हारी उंगलियों में चुभी सुइयों का दर्द बींध देता है सीना
जब दीवार पर सीलन उतर आती है
तुम्हारी सब चिंताए
मेरी आँखों की नमी में उतर आती हैं माँ I
जब मेरी बेटी पलटकर उत्तर देती है
खुद से शर्मिंदा हो जाती हूँ मैं I
और
समझ जाती हूँ
कैसा महसूस किया होगा तुमने माँ I

शाम को चाहती हूँ
हर रोज़ करूँ
गायत्री मन्त्र का पाठ
और विराम लूं रुक कर उस जगह
जहाँ रुक कर तुम सांस लेती थी
कई संकेत,
तुम्हारी कई भंगिमाएं ,
तुम्हारा पर्याय बन जाते है माँ -
कई बार जब शाम को बत्ती जलाती हूँ
और प्रणाम करती हूँ उजाले को
तो मुझे लगता है वो मै नहीं तुम हो माँ I

मै अपना एक स्पर्श तुम तक पहुँचाना चाहती हूँ I
अँधेरे में रात को कई बार उठती हूँ
तो सोचती हूँ
माँ से साक्षात्कार हो पाता
बस एक बार
पूछ सकती कैसी हो माँ
तुम नहीं आती
उत्तर चला आता है
"मै ठीक हूँ बेटी अपना ध्यान रखना"I

आँखे मूँद लेती हूँ
और देखती हूँ उस प्रक्रिया को
जो
मुझे तुम में रूपांतरित कर रही हैI
और तुम्हारे न रहने पर
मै सोचने लगी हूँ तुम बन के
मै बदल रही हूँ तुममे माँ I
सिर्फ स्मृति में नहीं माँ
जीवित हो तुम
मेरे हाव- भाव में
मेरी सोच में
मुझमें !"

प्यार की कोई उम्र नहीं होती , न धोखे से गुजरे मन की .... प्यार का अपना बसंत होता है और धोखे में सिमटा मन अक्सर ऐसा ही होता है ...
" प्यार में धोखा खाई किसी भी लड़की की
एक ही उम्र होती है,
उलटे पाँव चलने की उम्र!!
वह
दर्द को
उन के गोले की तरह लपेटती है,
और उससे एक ऐसा स्वेटर बुनना चाहती है
जिससे
धोखे की सिहरन को
रोका जा सके मन तक पहुँचने से!
वह
धोखे को धोखा
दर्द को दर्द
और
दुनिया को दुनिया
मानने से इनकार करती है......"
मन की मन में ही रखो ... सहानुभूति के शब्द बहुत तकलीफदेह होते हैं . लोग तो अपने सुकून के लिए सहानुभूति के शब्द लिए चलते हैं अब , और अपने सर पर ताज रख लेते हैं . ऐसा होता है , तभी तो कवयित्री के भाव भी कुछ यूँ उमड़े हैं -
" नहीं
मै नही दिखाना चाहती अपने घाव हरे भरे
तुम्हारी सहानुभूति नही चाहिए मुझे
मैं जानती हूँ तुम मुझे मलहम लगाने के बहाने आओगे
और
उत्खनन करोगे मेरे आत्मसम्मान की रक्त्कोशिकाओ का..."
सागर सी कवयित्री और क्रमशः ख्यालों की लहरें बताती हैं कि जितने गहरे उतरोगे ,ज़िन्दगी बहुत कुछ कहेगी .... कुछ ऐसा - जो कितनों की ज़िन्दगी से जुडी लगेगी ....
"उन बेबाक लड़कियों से क्षमा मांगनी है मुझे जो मुस्कुराते हुए चलती है सड़क पर
जो बेख़ौफ़ उस लड़के की पीठ को राईटिंग पैड बना कागज़ रख कर लिख रही है शायद कोई एप्लीकेशन
जो बस में खो गई है अपने प्रेमी की आँखों में
जिसने उंगलिया फंसा ली है लड़के की उँगलियों में
उन लड़कियों के साहस से क्षमा मांगनी है मुझे"
"अभी अभी जिस आग से उतरी है दाल
उसी आग पर चढ़ गई है रोटी जवान होकर पकने के लिए
दोनों प्रतीक्षा करते है
थाली का...
कटोरी का...
और कुछ क्षण के सानिध्य का
रोटी मोहब्बत में
टुकड़ा टुकड़ा टूट कर
समर्पित होती है ...
डूबती है दाल में
और गले मिल कर
डूब जाते हैं दोनों साथ साथ मौत के अंधे काल में
अजब इश्क है दोनों का..."

आदतें

"आदतन

जब पुरुष गुट बनाकर खेलते हैं पत्ते

स्त्रियाँ धूप में फैला देती हैं पापड बड़ियाँ और अपनी सर्द हड्डियाँ

जमा कर लेती हैं धूप अँधेरे में गुम आत्माओं के लिए..."

मैं अज्ञात निर्विकार अकेलापन

लड़कियां

यूँ तो लीना जी कहती हैं कि " संवेदनाएं ही मेरी धरोहर हैं. और कविता मेरे लिए कोई चर्चा का विषय नहीं

बल्कि अनुभूतियाँ हैं जो मेरी रूह में बसती हैं."

लेकिन भावनाएं ही जिनकी जिजीविषा हों वे उनसे कैसे दूर रहें , रूहों का कारवां है संवेदनाएं .....

2012 का कैलेंडर लगा है .... जनवरी का गहन चिंतन और अनुभूति के ठोस रंग से सुलगते रूहानी कैनवस -
"पता नही क्यों छिपाना चाहती हूँ अब
कि कोई रिश्ता नही है मेरा उससे..
मैं कुछ डरे हुए खंडहरों में भटक गई हूँ
और पेज नम्बर निन्यानवे से मेरे हाथ आया है
वर्षों से कर्फ्यू की दहशत का मारा
गुलाब एक सूखा हुआ
चिंदी चिंदी अनाथ टापुओं में बंटे शब्द..
जिनके अर्थ मेरी मुस्कराहट की पगडंडियों पर खो जाते थे .
वह
पागल पेड़ की जिद्दी छाया सा
टिका रहता था ठीक उसके नीचे
हवा को थक कर बदल ही लेना पड़ता था रास्ता
गुज़र नही पाती थी हम दोनों के बीच से
याद है कितना कुछ मुझे
बस याद नही कहाँ रख छोड़ी है बदले की कटार.
रख कर भूल गई हूँ कहीं
कहाँ है ?
ढूंढती हूँ हर उस जगह
जहाँ नही रखती कोई कीमती सामान.
तुलाई के नीचे बस छिछोरे बिजली पानी के बिल हैं
दाल के डिब्बों में बच्चों की फीस के लिए छिपा कर रखी पूँजी ,
मनौतियों की गुत्थी में दुआओं के इंतज़ार में सोये पुराने नोट
गर्म कोट की जेब में लुटेरी धूप निठ्ठली बैठी है सर्दियों की इंतज़ार में
नही कहीं नही है धार
न बदले की वो कटार
यही है मेरी अंतिम हार ."
संवेदनाओं का सागर अपनी जगह पे है , लहरों का आना जाना बना हुआ है - सहयात्री एहसासों का इंतज़ार और अभी और अभी और अभी ..............

15 टिप्‍पणियां:

  1. लीना जी की कुछ कवितायें फेस बुक पर पढ़ी थीं.अच्छा लगा यहाँ उन्हें देखकर.

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  2. आपके माध्यम से आज एक बार फिर एक ऐसे ब्लॉग के रूबरू हुआ जिस से अब तक रबता न था ... बहुत बहुत आभार दीदी !

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  3. परिपक्व रचनायें ...एक से बढ़कर एक .....। बड़ी पैनी दृष्टि से कविताओं को अपने आसपास से उठाकर बुना है लीना जी ने। ....आनन्दम...आनन्दम ....

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  4. आपकी पारखी नज़रों ने लीना जी की उत्‍कृष्‍ट रचनाओं का चयन किया और हमें मिला संवेदनाओं का सागर ... लीना जी को बधाई आपका आभार ...

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  5. रश्मि दी,
    आपका चयन हमेशा हीरे को चुनने जैसा होता है..इसलिए यह चुनाव भी प्रशंसा से परे हैं.. लीना जी की रचनाओं की बानगी ही उनकी उत्कृष्टता का बयान है!! बधाई उनको और आभार आपका!!

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  6. बहुत बढ़िया रचनाकार से मिलवाया आपने..

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  7. वाह रश्मिजी आपके इस ब्लॉग बुल्लेटिन का हरदम इंतज़ार रहता है ...ऐसे ऐसे नायब मोती आप चुन चुनकर लाती है .....की वाकई नि:शब्द कर देती हैं ....लीना जी को पढ़कर एक अजीबसी ताजगी का अहसास हुआ ...बहुत सुन्दर लिखतीं हैं वह .....बहुत बहुत बधाई उन्हें और आपको धन्यवाद उनसे हमारा परिचय करवाने के लिए

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  8. शुक्रिया रश्मि मैम .. आपका ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ.. आपने अपने ब्लॉग पर मुझे स्थान दिया.. सभी मित्रों का हौसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया..

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  9. Leena ki rachnaen ek alag trah ka mukaam niyat karte hue safar tay kar rahi hain .. inhen padhna hamesha sukhd laga . aapki sameeksha ne ek baar phir is blog ko padhvaya .. shukriya Rashmi ji

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