आई आर सी टी सी.... भारतीय रेलवे की वह सेवा जो इन्टरनेट के माध्यम से टिकट बुकिंग सुविधा देती है, यात्रियों को कैटरिंग की सुविधा भी इसी के ज़िम्मे है। लेकिन क्या यह सुविधा वाकई आम आदमी के लिए है? मैं अपना अनुभव आपके सामनें रखता हूँ ।
दिन-१: सर्विस अनएवेलेबल
दिन-२: कम्यूनिकेशन फ़ेल
दिन-३: सर्विस अनएवेलेबल
दिन-४: आज सुबह भी जब सर्विस अन-एवेलेबल देखा तो समझ में नहीं आया की आखिर टिकट बुकिंग होगी कैसे।
फ़िर खबर मिली की एजेंट के ज़रिये हमारे एक मित्र नें मुम्बई से दिल्ली की टिकट कटा ली है, कैसे ? आखिर जब एजेन्ट लागिन बन्द है तो फ़िर कोई एजेन्ट तत्काल में कैसे बुकिंग करा सकता है। पता लगा काऊंटर पे जा कर.... मतलब यह एजेन्ट लोग आपसे पैसा ले के काऊंटर पर से टिकट ला सकते हैं.... यह गोरखधंधा है क्या... रोजाना रेलवे के दस लाख
से ज्यादा टिकट ओपन होते हैं और सिर्फ एक मिनट में ही दो से ढाई हजार टिकट
बुक हो जाते हैं। साइट पर इतनी ज्यादा लोड होनें के कारण और कुछ रेलवे के दलालों की मिली भगत से होनें वाली गडबडियों के चलते आप अपनी बुकिंग नहीं कर पाते।
अब खबर मिली है की रेलवे हर यात्री को एक नई सुविधा देने वाला है, इसके तहत आप अपने पैसे रेलवे के एकाऊंट में जमा कराईए और बुकिंग के टाईम पर उसी रिफ़्रेंस नम्बर के ज़रिये टिकट बुक कर लीजिए... यह भी रेलवे का राजस्व कमानें का एक नया तरीका है... इसके ज़रिये वह आराम से अपनी नकदी मे इज़ाफ़ा कर सकेगा... ज़रा सोचिये बैंक की साईट पर कितना डिले होता है? और आईआरसीटीसी पर कितना.... अजी जनाब यदि पे-मेंट गेटवे की जगह रेलवे के खाते से पैसे निकालनें होंगे तो उसमें होने वाला डिले बैंक गेटवे से होनें वाले डिले से कहीं अधिक होगा और रेलवे फ़िर ओवर-लोड का ड्रामा करेगा।
आखिर रेलवे अपनें इस सिस्टम को रिपेयर क्यों नहीं करता, क्या आईआरसीटीसी का सर्वर इतनें ट्रांसैक्शन भी नहीं झेल सकता... आखिर इस गोरखधंधे की वजह से कब तक जनता त्रस्त रहेगी?
रेलवे की चार महीने पहले आरक्षण सुविधा: यह केवल रेलवे का राजस्व बढानें की प्रक्रिया है, आखिर कितने लोगों को चार महीनें पहले पता है की उन्हे यात्रा करनी है? यह एक महिने से अधिक नहीं होना चाहिए... लेकिन रेलवे सुविधा के नाम पर अपनी नकदी बढा लेती है।
रेलवे की तत्काल सेवा: एक दिन पहले मिलनें वाली इस सेवा का लाभ केवल दलाल ले जा रहे हैं क्योंकि सुबह आठ बजे साईट "सर्विस अन-एवेलेबल" कर देती है और जब साईट खुलती है तब तक सब टिकट बुक हो चुके होते हैं... आखिर टिकट ले कौन जाता है ?
कुछ सुझाव:
- आखिर रेलवे का निजीकरण क्यों न किया जाये, या फ़िर आई-आर-सी-टी-सी को किसी निजी कम्पनी को शत प्रतिशत दे दिया जाए...
- आरक्षण प्रणाली को कुछ अंगो में तोड दिया जाए.... जैसे रेलवे के मंडल हैं, वैसे ही रेलवे के मुख्यालयों में उस डिविजन के ट्रेनों की बुकिंग के सर्वर लगाएं जाए, यदि कोई ट्रेन मुम्बई से शुरु होती है, तो उसकी बुकिंग मुम्बई से ही हो न की दिल्ली के इकलौते सर्वर पर पूरे भारत का लोड डाला जाए...
- रेलवे के सर्वर्स पर लोड-बैलेंसिग मेकेनिज़्म की जांच हो, ट्रांसैक्सन्स और पर-सेकेण्ड के लोड की किसी आई-टी औडिट फ़र्म से जांच हो, किसी प्रकार के सर्वर अप-ग्रेड की गुंजाईश को तलाशा जाए
- रेलवे के थके हुए और एकदम सुस्त कर्मचारियों को बुकिंग काऊंटर से हटाया जाए, उनकी जगह थोडे चुस्त दुरुस्त कर्मचारियों की बहाली हो...
यदि भारतीय रेलवे को वाकई जनता से कोई सरोकार है तो उसे कुछ न कुछ तो करना चाहिए, लेकिन रेलवे केवल सरकारी मंत्रियों के लिए एक लाभ का प्रक्रम है, और इसके ज़रिये होनें वाले बडे मुनाफ़े पर सभी घटक दलों की नज़र लगी रहती है। आखिर ऐसा कौन सा व्यापार होगा जिसमें माल की डिलीवरी के चार महिनें पहले पूरे पैसे की वसूली हो जाए... सोचिए ज़रा....
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चलिए अब आज के बुलेटिन पर आपको लिए चलें.....
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दगाबाज यह जीव, घूमता हर महफ़िल में- रविकर फैजाबादी at "कुछ कहना है"
कुंडली
खिड़की झिडकी खा रही, काँच उभारे अक्स ।
परदे गरदे से भरे, नहीं रहे हैं बख्स ।
नहीं रहे हैं बख्स, बसाया कैसे दिल में ?
दगाबाज यह जीव, घूमता हर महफ़िल में ।
घुसता धक्का-मार, खिड़कियाँ देखे भिड़की ।
जाए काँच बिखेर, थपेड़े खाए खिड़की ।।
दोहा
दिल-दर्पण के काँच को, लगी धाँस मन-जार ।
तन-खिड़की झिडकी गई, भंगुर छिटक अपार।।
~ dhanyavaad ~
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मई दिवस Randhir Singh Suman at लो क सं घ र्ष !
पहली मई की घटना और उसको अन्तराष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता मिले सौ वर्ष
से उपर का समय बीत चुका है |1886 से लेकर आज तक के 126 सालो के इतहास में
मजदूर दिवस ने मजदूर आंदोलनों के चढाव -उतार का इतिहास देखा है |मजदूर वर्ग को
,क्रांतिकारी मजदूर पार्टियों को समाज का क्रांतिकारी बदलाव करते हुए देखा है
|मजदूर वर्ग को शासक वर्ग बनते ,फिर उससे सत्ताच्युत होते देखा है |
अन्तराष्ट्रीय मजदूर -दिवस के प्रति विश्वव्यापी जोशो -खरोश देखा है |फिर उसके
प्रति वर्तमान समय जैसी की जा रही फर्ज अदायगी का दौर भी देखा है और देख रहा
है |
अमेरिका के शिकागो शहर में मजदूरों को गोलिया खाकर गिरते -मरते देखा है |मजद... more »
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बैंक बैलेंस को छोड़िए, किरपा होए महान अनुराग मुस्कान at चौथा बंदर
कुत्ते को रोटी खिलाते डरता हूं। कुत्ता रोटी खाकर दुम हिलाने की बजाए
कहीं बदले में होने वाली किरपा का हवाला देकर किरपा की रॉयल्टी ना मांग बैठे।
ये किरपा के महिमा मुंडन का, ‘द डर्टी पिक्चर’ के सुपरहिट होने जैसा टाइम चल
रहा है। किरपा का खेल क्रिकेट से ज़्यादा लोकप्रिय हो गया है आजकल। पहले टीवी
देखने से आंखें खराब होने का डर सताता था लेकिन अब टीवी देखने से भी किरपा आती
है। पहले पहल तो मैं समझा की किरपा कोई कन्या है जो मुझे हरी चटनी के साथ
समोसा, भल्ला, आलू टिक्की और गोलगप्पे खाता देखकर जीभ लपलपाती हुई चली आएगी।
बाद में पता चला कि इस किरपा की जीभ तो कन्या प्रजाति से भी ज्यादा चटपटाल... more »
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राष्ट्रपति चुनाव: तलाश है 24 कैरेट के मुसलमान की महेन्द्र श्रीवास्तव at आधा सच...
*आ*मतौर पर देश में राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर ज्यादा हो हल्ला होते नहीं
देखा जाता था, लेकिन पिछले चुनाव यानि यूपीए वन के दौरान दस दिन तक जो ड्रामा
चला, उसी से साफ हो गया कि आने वाले समय में राष्ट्रपति के चुनाव में भी वो सब
चलने लगेगा जो आमतौर पर और चुनावों में चलता है। पूर्व राष्ट्रपति डा. ए पी जे
अब्दुल कलाम साहब का कार्यकाल पूरा होने के पहले नए राष्ट्रपति के चुनाव की
बात शुरू हुई तो उस समय भी एक बड़ा तपका इस पक्ष में था कि कलाम साहब को ही
दोबारा राष्ट्रपति बना दिया जाना चाहिए। लेकिन कांग्रेस को ये बात मंजूर नहीं
थी। यूपीए वन के सहयोगी रहे लालू यादव और राम विलास पासवान की भी इस सम... more »
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एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा मुझे... ZEAL at ZEAL
एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा मुझे। जब खुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा.....
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तुम आ गये मोहन वन्दना at ज़ख्म…जो फूलों ने दिये
तुम आ गये मोहन
दीन हीन की आर्त पुकार सुन
तुम आ गये मोहन
कैसे कैसे खेल खेलते हो
कभी छुपते हो कभी दिखते हो
मगर सुनो तो ज़रा
हम हैं तुम्हारे तुम जानते हो
फिर ये लुकाछिपी का
खेल क्यों दिखाते हो
देखो ना
अब तुम्हें ही खुद आना पडा
इतना कष्ट उठाना पडा
जानती हूँ....... इसीलिये आये हो
आखिर अस्तित्व पर प्रश्न जो उठ गया था
या शायद भक्त तुम्हारा रूठ गया था
या आस्था पर प्रश्नचिन्ह लग गया था
और वचन के तुम पक्के हो
मिथ्या भाषण नहीं दिया था
योगक्षेम वहाम्यहम यूँ ही नहीं कहा था
सिर्फ यही सिद्ध करने को
आज कैसी दौड़ लगायी है मोहन
मोहन तुम और तुम्हारी माधुरी लीला
देखो ना सिर्... more »
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वो मुझसे प्यार करता है तो फिर कहता क्यों नहीं है AlbelaKhatri.com at Albelakhatri.com
ख्याले यार में गुम वो जानेमन रहता क्यों नहीं है
मेरी तरह मस्ती के दरिया में बहता क्यों नहीं है
हया कैसी मोहब्बत में उसे, डर कैसा बदनामी का
वो मुझसे प्यार करता है तो फिर कहता क्यों नहीं है
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हर फिकराकस की एक औक़ात होती है..... अदा at काव्य मंजूषा
मसक जातीं हैं,
अस्मतें,
किसी के फ़िकरों
की चुभन से,
बसते हैं मुझमें भी
हया में सिमटे
आदम और हव्वा,
जो झुकी नज़रों से
देखते हैं,
खुल्द के फल का असर |
दिखाती हैं
सही फ़ितरत,
इन्सानों की,
उनकी तहज़ीब-ओ-बोलियाँ,
वर्ना पैरहन के नीचे
सबका सच एक ही होता है ,
मानों...या न मानों
फ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
और हर फिकराकस की
एक औक़ात होती है.....
इतना तो याद है
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श्रमिक दिवस पर एक कविता मनोज कुमार at मनोज
*श्रमकर पत्थर की शय्या पर*
*---मनोज कुमार*
दिन जीते जैसे सम्राट, चैन चाहिए कंगालों की।
रहते मगन रंग महलों में, ख़बर नहीं भूचालों की।
तरु के नीचे श्रमकर सोये, पत्थर की शय्या पर।
दिन भर स्वेद बहाया, अब घर लौटे हैं थककर।
शीतलता कुछ नहीं हवा में, मच्छर काट रहे हैं।
दिन भर की झेली पीड़ाएं, कह-सुन बांट रहे हैं।
अम्बर बन गया वितान, चिंता नहीं दुशालों की।
जब से अर्ज़ा महल, तभी से तुमने नींद गंवाई।
सुख-सुविधा के जीवन में, सब आया नींद न आई।
कोमल सेज सुमन सी, करवट लेते रात ढ़लेगी।
समिधा करो कलेवर की, तब यह जीवन अग्नि जलेगी।
दुख शामिल रहता हर सुख में, ... more »
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ना चाहो तो
ख़त का जवाब ना दो
ना कभी मिलो हमसे
जानते हैं
कुछ तो मजबूरी होगी
तुम्हारी
जो रूबरू नहीं होते
हमसे
तुम याद करते हो
यही काफी हमारे लिए
रिश्तों को तोड़ना
हमारी फितरत नहीं
किसी और सहारे की
हमको ज़रुरत नहीं
तुम खुश रहो
यही काफी है जीने
के लिए
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सुप्रीम कोर्ट का तिवारी को राहत देने से इनकार. Kusum Thakur at आर्यावर्त
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" एक रोटी की कहानी " शिवम् मिश्रा at बुरा भला
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मित्रों, आज का बुलेटिन यहीं तक... कल फ़िर आयेंगे एक नये रंग में... तब तक के लिए जै राम जी की...
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सुप्रीम कोर्ट का तिवारी को राहत देने से इनकार. Kusum Thakur at आर्यावर्त
एन.डी. तिवारी को किसी तरह की राहत देने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने
मंगलवार को उन्हें निर्देश दिया कि वह अपने खिलाफ चल रहे पितृत्व मामले में
डीएनए नमूने के लिए ब्लड सैंपल दें। कोर्ट ने यह भी कहा कि 'बस अब बहुत हो
गया।'
जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस सी.के. प्रसाद की बेंच ने कहा, 'बस बहुत हो गया।
आप पहले मौकों पर मौजूद नहीं थे। आपकी उम्र को देखते हुए हमने आपको सीलबंद
नमूना देने के लिए कहा था। हमने आपको आर्टिकल-21 के तहत प्रोटेक्शन दिया था
लेकिन अब बस बहुत हो गया।'
रोहित शेखर नामक युवक द्वारा दाखिल पितृत्व मामले में कोर्ट ने यह निर्देश
दिया। रोहित खुद को 86 वर्षीय तिवारी का बेटा... more »
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" एक रोटी की कहानी " शिवम् मिश्रा at बुरा भला
" एक रोटी की कहानी "
डाइनिंग टेबल पर खाना देखकर
बच्चा भड़का
...
फिर वही सब्जी,रोटी और दाल में
तड़का....?
मैंने कहा था न कि मैं
पिज्जा खाऊंगा
रोटी को बिलकुल हाथ
नहीं लगाउंगा
बच्चे ने थाली उठाई और बाहर
गिराई.......?
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बाहर थे कुत्ता और आदमी
दोनों रोटी की तरफ लपके .......?
कुत्ता आदमी पर भोंका
आदमी ने रोटी में खुद को झोंका
और हाथों से दबाया
कुत्ता कुछ भी नहीं समझ पाया
उसने भी रोटी के दूसरी तरफ मुहं
लगाया दोनों भिड़े
जानवरों की तरह लड़े
एक तो था ही जानवर,
दूसरा भी बन गया था जानवर.....
आदमी ज़मीन पर गिरा,
कुत्ता उसके ऊपर चढ़ा
कुत्ता गुर्रा रहा थ... more »
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मित्रों, आज का बुलेटिन यहीं तक... कल फ़िर आयेंगे एक नये रंग में... तब तक के लिए जै राम जी की...
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बेहतरीन लिंकों संयोजन लाजबाब प्रस्तुतिकरण,....देव जी बधाई
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
देव बेहद उम्दा प्रस्तुति है आज की बुलेटिन की ... रेलवे भारत की जीवनधारा है ... पर हमेशा से इस तरह की हरकतों के कारण बदनाम रही है ... कारण साफ है रेलवे के प्रति सरकार और रेलवे अधिकारियों की उदासीन रवैया ... जो यह लोग अपना काम ईमानदारी से करने लगे तो इन समस्याओ से निजात मिल सकती है !
जवाब देंहटाएंरेलवे पर सटीक बयान !
जवाब देंहटाएंchaar mahine pahle??? yaha to chaar din pahle bhi pata nahi hota ...ab to ye haal hai ki jis din ka ticket mile usi din chal pado....
जवाब देंहटाएंइस पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'सलिल',
जवाब देंहटाएंकि लगाए न लगे और टिकट कटाये न बने!
देव बाबू, आई.आर.सी.टी.सी. की व्यथा हमने भी इसी तरह बयान की थी.. लिंक्स सब शानदार हैं!!
अब क्या बतायें, बतान भी अच्छा नहीं लगता ।
जवाब देंहटाएंहमें भी यही परेशानी है, हम किससे रोयें ये दुखड़ा ।
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंआज तो दुखती राग पर हाथ रख दिया..पिछली बार ही लड़ कर आई हूँ इन रेलवे वालों से इसी बात पर.
जवाब देंहटाएंसुझावों से भी कुछ नहीं होता.एक नियम बनेगा उसे तोड़ने के लिए ४ पहले से बन जायेंगे.
अच्छा बुलेटिन.
आई आर सी टी की साईट आम आदमी के लिए नहीं खुलती तो एजेंट कैसे टिकेट बुक करा लेते हैं यह एक शोध का विषय है. किस न किसी को सुप्रेमे कोर्ट में जनहित याचिका दायर करनी चाहिए अगर सर्वर की कैपसिटी कम है तो उसे उप्ग्रदे ज्यों नहीं किया जाता
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