सुना , पढ़ा और एहसास किया - वर्तमान का हर पल अतीत की नींव पर चलता है . बनते हैं कमरे रिश्तों के , बनते हैं कमरे यादों के , बनते हैं कमरे हंसी के ..स्विम्मिंग पूल आंसुओं के... ..बागवानी होती है बच्चों की ..काट - छांट सुन्दर सुडौल वृक्ष तैयार करता है ..जिद्द बना देता है फूलभंगा ! ..पॉलिश दर पॉलिश दीवारें क़ैद करती हैं तस्वीरों को और ज़मीन उनकी पद-चाप को सीने में क़ैद करती है ..दीवार का कोना कैलेंडर के पन्ने पलटता है ..और धीरे धीरे पूरा पन्ना पलट जाता है , सारे दृश्य बदल जाते हैं - बढ़ते वक़्त का अपना अतीत होता है और उसके वर्तमान का निर्माण ..ना कभी अतीत का क्रम ख़त्म होता है ,ना वर्तमान का ..नहीं ख़त्म होती है भविष्य की योजनायें ...कल पुरानी पीढ़ी थी ..आज नयी पीढ़ी , आगे आने वाली पीढ़ी ..
हम ही गाते हैं " जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है " पर उसे रोक लेने की ख्वाहिश रखते हैं ..खाली कमरे में बैठ कर समय को रिवाइंड करते हैं और आह भरते हैं ...ये खाली कमरे तो हर अतीत हर वर्तमान , हर भविष्य में हैं ..वापस लौटना आसान नहीं ..बेचैनी हर सेंसिटिव दिमाग में है ..अतीत की पुकार , वर्तमान की पुकार , भविष्य की पुकार - शोर बन कर दिल दिमाग में गूंजते हैं ..अब क्षमता आपकी - बीमार पड़ते हैं , थकते हैं या चलते हैं ..
क्रम चलता रहता है ..गीत गूंजते हैं कानों में .."बीते हुए दिन कुछ ऐसे ही हैं ..याद आते ही दिल मचल जाए "
"दूरियां
हर एक से बना कर रखिये
अपनों के दरमियाँ भी
थोड़ा फासला तो रखिए
.
दोस्त या दुश्मन
की परख तो रखिये
दिल की किताब में
हर एक का हिसाब तो रखिये
.
जिंदगी
में है कई रंज-औ-गम
पर कुछ गमो को
हमराज बना कर तो रखिये
.
दोस्ती है
तो गुफ्त-गु और दिल-ऐ-बयां भी कीजिये
मगर
कुछ तो पर्दा भी रखिये
.
दिल है तो
गमो का बादल भी होगा
पर खुशियों के बरसात
बरसा कर के तो रखिये " http://www.jindagikeerahen. blogspot.in/
"मेरे inbox में पड़ा तुम्हारा सन्देश.......
'क्या हुआ
r u there "?.....
"where r u ????????"
आज मुझे चिढ़ा रहा है,
खूब रुला रहा है,
जितनी पीड़ा ताउम्र नहीं मिली,
उससे ज्यादा आज तड़प
एक पल में पा ली....
जीवन भर न मिट पानेवाली
ग्लानि पा ली.....
मैं रुक न सकी दो पल,
और तुम इतनी आगे निकल गए...
मेरे उत्तर की प्रतीक्षा भी न कर सके?
मेरा जवाब तो सुन लेते,
जाते-जाते कुछ तो कह जाते .
आज बार-बार मैं msg कर रही हूँ..
'क्या हुआ, r u there ?'
कोई जवाब नहीं...
अब; कभी कोई जवाब नहीं...
जीवन भर पूछती ही रह जाऊँगी
पर अब कभी कोई जवाब न पाऊँगी
क्यों न इंतज़ार कर सकी उस पल
और अब इंतज़ार हर पल
अविराम........" http://ragini-astitva. blogspot.in/
" कभी तल्ख़ सा चुभता है ये
कभी संजोये सुमधुर ख्वाबकभी कह जाता क्षण-क्षण
और कभी निशब्द हो जाता है....|
थामना चाहती हूँ जब कभी
रफ़्तार उसकी बढ सी जाती है
कभी गुजर जाने की चाह में ये
शूल सी पीड़ा दे जाता है....|
मैं हूँ बेसुध खोज में इसकी
चाहती हूँ हर पल साथ चलना
पर मुझे ही उलझा कुछ पलों में ये
आगे बढ जाता मेरा ही चिर प्रतिद्वंदी
ये निष्ठुर समय....|| " http://asha-bisht.blogspot.in/
"सूरज छुट्टी पर है और चाँद को उतार कर आले पर रख दिया है। दिन एकसार हो गये हैं और रातें रोशनीखोर। ऐसे में न प्रात होती है और न साँझ। तबियत नासाज नहीं, क़ैद हो गई है – न जेल का पता और न जेलर का। इस क़ैदखाने में कोई गाछ नहीं। कउवा की बोली का सवाल ही नहीं उठता कि सुन कर सूफियाना हो जाऊँ और कहूँ मुझे नोच नोच खा ले, आँखों को भी न छोड़! रखने से भी क्या होगा जब कि सब एक सा दिख्खे! आवाज़ों से जानता हूँ कि दुनिया बदस्तूर उन मुलायमबाजियों में व्यस्त बढ़ती जा रही है जिन्हें मैं लिजलिजा कह थूकता रहा हूँ।
मैं जब भी सीरियस होता हूँ तो स बोलने पर श हो जाता है। जीभ अपने आप तालू की ओर आवारा चुम्बन को बढ़ जाती है। मुझे फिल्मों के एलियन कौंधते हैं जिनके समूचे चेहरे से श्लेष्मा टपकती रहती हैं और फिर वह कथा जिसमें एक राजकुमारी को मेढक को चूमना होता है जिससे वह सुन्दर राजकुमार बन जाता है। दुनिया बदलने का जिम्मा राजकुमारियों को दिया गया है जो अनिवार्यत: बला की खूबसूरत होती हैं, जिनकी हँसी से फूल झड़ते हैं और रुलाई से मोती गो कि दुनिया उन्हें रुला रुला कर ही धनी होती रही है। उनके हँसने से तो हवा में पराग फैलते हैं, एलर्जी की बीमारियाँ बढ़ती हैं। अब जीभ तो रहती ही लार सार के बीच है, तालू पर भी वही लिपटा हो तो की फरक पैंदा? लेकिन राजकुमारी को कैसे हिम्मत होती होगी एक बदसूरत श्लेष्मा पोते मेढक को चूमने की? उसे उबकाई नहीं आती? " http://girijeshrao.blogspot. in/
" प्रयाण कर प्रयाण कर
हे यायावर, प्रयाण कर
अब मुक्त हुआ तू शिखा काटकर
खोज निलय का नाभी-अमृत
ढून्ढ क्षितिज का धरणी पर रथ
प्रयाण कर, प्रयाण कर
हे यायावर, प्रयाण कर
श्रृष्टि बीज का अंकुर अब तू
कंठ गरल का शंकर अब तू
दिनकर के कर कहाँ छुपे हैं ?
पहचान कर पहचान कर
अनुशंधान कर, शंधान कर
प्रयाण कर, प्रयाण कर
हे यायावर, प्रयाण कर
शशि की शीतल चेतना को
मरू की मार्मिक वेदना को
नभ सी गहरी तन्द्रा को
अंतस से पकड़, अंतस से पकड़
प्रयाण कर, प्रयाण कर
हे यायावर, प्रयाण कर
है व्योम का सारांश तू अब
ओ ब्रह्म-नाभी के धवल कमल
शिव तांडव के रचना फल
ओ 'जद दृष्टम तद श्रृटम'
निर्माण कर, निर्माण कर
प्रयाण कर, प्रयाण कर
हे यायावर, प्रयाण कर
जिजीविसाओं की रिचाओं
का तुझे संज्ञान है
इस नित नए से मार्ग का
अज्ञान ही विज्ञान है
कर्म से संसर्ग कर
प्रयाण कर, प्रयाण कर
हे यायावर, प्रयाण कर " http://rajkibaatpatekibaat. blogspot.in/
मुझे तो व्यंजनों की खोज ने दीवाना बना दिया , आपका क्या ख्याल है ?
आज के बुलेटिन की प्रस्तुति और रचनायें निशब्द कर गयीं...आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना सूत्र,.....
जवाब देंहटाएंआज अत्यन्त स्तरीय रचनाओं से भेंट करायी है आपने।
जवाब देंहटाएंलिंक्स ... अलग हटके।
जवाब देंहटाएंBahut sundar links...aiwam meri rachna ko bhi sthan dene ke liye hardik dhanywaad...
जवाब देंहटाएं..ना कभी अतीत का क्रम ख़त्म होता है ,ना वर्तमान का ..नहीं ख़त्म होती है भविष्य की योजनायें ...कल पुरानी पीढ़ी थी ..आज नयी पीढ़ी , आगे आने वाली पीढ़ी ..
जवाब देंहटाएंजिंदगी
में है कई रंज-औ-गम
पर कुछ गमो को
हमराज बना कर तो रखिये
क्यों न इंतज़ार कर सकी उस पल
और अब इंतज़ार हर पल
पर मुझे ही उलझा कुछ पलों में ये
आगे बढ जाता मेरा ही चिर प्रतिद्वंदी
ये निष्ठुर समय....||
जिजीविसाओं की रिचाओं
का तुझे संज्ञान है
इस नित नए से मार्ग का
अज्ञान ही विज्ञान है
तबियत नासाज नहीं, क़ैद हो गई है – न जेल का पता और न जेलर का। इस क़ैदखाने में कोई गाछ नहीं।
कुछ तो छांव मिलता .... !!
बेहद उम्दा स्वाद है इन व्यंजनों का ... दीवाना होना लाज़मी है ... जय हो दीदी !
जवाब देंहटाएंवाह! एक अलग ही अंदाज़.... बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संचयन ..... आभार
जवाब देंहटाएंवाह................................
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी..
achchha lagta hai jab rashmi di aapki rachnaon ko kahin share kare... thanx:)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंक्या स्वाद है , हमारी पसंद का तड़का भी डाल दीजिये !
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