कोलंबस की खोज और मैं .... उसने देश खोजा , मैं छुपे कवियों की तलाश में गूगल के टापू पर डेरा डालती हूँ , एहसासों के समंदर में आँख लगाकर अर्जुन की मानिंद बैठ कोलंबस होना मुझे अच्छा लगता है . आज की खोज हैं - राज सिलस्वल http://rajkibaatpatekibaat.
के लिए प्रेरित किया. मेरे अच्छे और बुरे लेखन के लिए ये दोनों भी जिम्मेदार है! "
2011 के नवम्बर महीने से इन्होंने लिखना शुरू किया - इनके ब्लॉग भ्रमण में मैंने पाया कि कहीं गीतों से पुट हैं तो कहीं अबूझे बोल से ख्याल , एक रिदम !
ब्लॉग पर इनका पहला कदम RajkiBaat: Thank you Note to Gulzar Saab
"उदण्ड कल्पनाओं ने
यथार्थ के सीमाओं
का उलंघन किया है ....और
चली गयी हैं छूने
अनंत के अंत को "
कवि पन्त ने कवि को परिभाषित किया , कवि राज ने कविता को .... कवि पन्त ने कहा - " वियोगी होगा पहला कवि , आह से उपजा होगा गान "
कवि राज ने कहा -
"ह्रदय से छलककर
कागज पर बिखरना
कविता है ...
सब्दों का
छंदों मैं बंधकर
ह्रदय में उतरना
कविता है...
भावनाओं का
ह्रदयबन्ध तोड़कर
स्वछंद नरतन
कविता है.......
शब्द गंगा का
उमड़ घुमड़ कर
अभिव्यक्तियों को
ह्रदय से बहा लेजाना
कविता है ...
स्वछंद चिंतन, मनन ,अभिकल्पन, परिकल्पन
या फिर
ह्रदय का ह्रदय से ह्रदय तक गमन
कविता है ........" कविता क्या है ?
दिसम्बर में इन्होंने कई एक रचनाएँ लिखीं (2011) , तात्पर्य यह कि नवम्बर से अधिक .... रचनाएँ तो बेशक सभी अच्छी हैं , पर सब मैं ही उठाकर
ले आई तो इनके ब्लॉग भ्रमण के दरम्यान आपके लिए कुछ नया नहीं रह जायेगा ! वैसे यह कहना भी गलत है , रचनाएँ हमेशा नवीन रहती हैं और
हर बार समयानुसार नए अर्थ दे जाती हैं . उदाहरण के तौर पर कवि दिनकर की रश्मिरथी .... जब भी पढ़ा जाए एक नया जोश होता है और कृष्ण
अपने करीब लगते हैं .
चलिए हम दिसम्बर की शाख से इनकी कुछ रचनाएँ लेते हैं - की मुझको मुक्त कर जाओ
" कि तुम हो शून्य , या कोई हकीकत
मुझको बतलाओ
कि मुझको मुक्त कर जाओ ..."
"तुम्हारी चाह में
जब उम्र भरती है उड़ान
तो पहुँच जाता है मन
अभिवयक्ति के उस क्षितिज पर
जहाँ
भाषाएँ गूंगी हैं
और बोलती हैं केवल भावनाएं
"शब्दों में बंधी
लाश को देखो
मरणासन कल्पना
में जीवन का
अंश ढूँढो "....................
समय कहाँ रुकता है , दिन -रात , महीने ,साल सब बदलते हैं तो आ गया नया साल यानि 2012 , दे गया कुछ
और सौगात हमारी साहित्यिक जिज्ञासा को -
................. और अब तक -
सुनो प्रिया ..
" सुनो प्रिया ..
वो पिघल गया है, जो बर्फ का पहाड़
तुम मेरे सीने पर छोड़ गयी थी
दरिया बनाया है मैंने उसका
आग तो थी ही, बुझने नहीं दी
आखिर बर्फ के इक सर्द ढेले में
कितना पानी होगा ?
समय लगता है पिघलने में
दरिया बनने में
कोशिश करना
अन्दर से पिघलने की
दरिया बनने और
अपने बहाव में बहने का
अलग ही मज़ा है
मठाधीशों से हारने का
तो बहाना था तुम्हारा
खुद से हारने को
दूसरों की जीत नहीं कहते
याद है
'गोन विथ द विंड'
पहले मैंने चखी थी
और फिर तुमने पढ़ी थी?
टांग दिए थे तुमने अपने बुत
उन तठस्थ स्तंभों पर
जो सदियों वहीँ खड़े हैं
तठस्थ कहीं के ! दम्भी स्तंभ !!
और हाँ तुम तथ्यों के
सत्य की प्रवंचना करती थी ना?
में आज भी संवेदनाओं का
स्पंदन हूँ
शायद इसी लिए
हर बर्फीले ठोसपन को
दरिया बना देता हूँ
तुम्हारे नल के मीठे पानी में
जो आतिश है
वो मेरे चुम्बन की है
पी के देखना
वही दरिया है ये !!
आप इनके ब्लॉग तक जाएँ .... मेरी पसंद के चनाब से एहसासों का एक घूंट भरें !
राज सिलस्वल जी से मिलना अच्छा लगा फ़ोलो भी कर लिया है।
जवाब देंहटाएं"कोलंबस" को हमारा नमन !
जवाब देंहटाएंराज जी से यह मुलाक़ात रोचक रही ... मैंने भी ब्लॉग फ़ोलो कर लिया !
राज जी से परिचय कराने के लिए आपका आभार... बहुमूल्य मोती चुनकर लाई हैं...
जवाब देंहटाएंराज जी से यह मुलाक़ात रोचक रही. आभार उनसे परिचय करने का.
जवाब देंहटाएंbadhiya kavitayein ........shandar mulakaat aabhar !
जवाब देंहटाएंवाकई कोलंबस हैं आप...परिचय के लिए आभार,ब्लॉग फौलो कर लिया है|
जवाब देंहटाएंपरिचय की कड़ी में उत्कृष्ट चयन ...आभार
जवाब देंहटाएंकविता की नयी परिभाषा पढ़कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी आभारी हूँ आप का की आपने मेरा परिचय वन्दना जी, शिवम् मिश्रा जी, संध्या शर्मा जी, शिखा वार्ष्णेय जी, मुकेश पाण्डेय जी, ऋता शेखर मधु जी, सदा जी, प्रवीण पाण्डेय जी से कराया. आप सभी का धन्यबाद की आपने मेरी रचनाओं के लिए समय निकाला और पढ़ा ! धन्यबाद !!
जवाब देंहटाएंThanks
Raj
अच्छी लगी कविता के बारे में लिखी कविता ...
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