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शनिवार, 7 अप्रैल 2012

कुछ इनकी कुछ उनकी - एक अलग व्यंजन एक दिलचस्प स्वाद (3)



किसी को बाजरे की रोटी , किसी को मडुआ , किसी को सोयाबीन आटे से बनी रोटियाँ पसंद हैं .... कोई प्रेम , कोई विरह , कोई प्रकृति ..... विविधताओं से भरे संसार के अलग अलग रंगों को पसंद करता है , ..... किसान खेत में हमारी पसंद के बीज डालते हैं , रचनाकार पन्नों पर - आसानी से उपलब्ध ब्लॉग पर ... तो चलिए एक अलग व्यंजन का दिलचस्प स्वाद लें -

"मैं समय हूँ
मैं बलवान हूँ,
बदलता रहता हूँ
घाव भर देता हूँ
कभी अच्छा, कभी बुरा
कभी किसी के लिए ठहरता नहीं
ये उपमाएं दी हैं मुझे, तुम ही लोगों ने
पर मैं क्या और कैसा हूँ
कोई नहीं जानता
मेरे सिवाय " http://rachanaravindra.blogspot.in/

"हाथ में पहले तो खंजर दे दिया
फिर अचानक सामने सर दे दिया



ले लिए सपने सुनहरी धूप के

और फिर खारा समुन्दर दे दिया



एक बस फरमान साहूकार का

छीन के घर मुझको छप्पर दे दिया " http://swapnmere.blogspot.in/

" निरर्थक शब्दों के कंकर पत्थर बीनते बीनते
जोत रहा हूँ अज्ञान से भरी ऊसर भूमि को
पिछले कई-कई वर्षों से !
धूप, बारिश की परवाह किये बिना ही
हटा रहा हूँ अनर्गल विचारों की खर-पतवार
पिछले कई-कई वर्षों से !
आसमा के भरोसे ही न बैठकर
कर रहा हूँ सिंचाई भावों, संवेगों, संवेदनाओं की
पिछले कई-कई वर्षों से !
छिड़क रहा हूँ खाली जगहों पर
समास, अलंकार, रस युक्त शैली की खाद
पिछले कई-कई वर्षों से ! " http://baramasa98.blogspot.in/

" बाहर के सौंदर्य को , जानो बिल्कुल व्यर्थ,
जो अंतर्सौंदर्य है, उसका ही कुछ अर्थ।

समय नष्ट मत कीजिए, गुण शंसा निकृष्ट,
जीवन में अपनाइए, जो गुण सर्वोत्कृष्ट।

चक्की जैसी आदतें, अपनाते कुछ लोग,
हरदम पीसें और को, शोर करें खुद रोग।" http://shashwat-shilp.blogspot.in/

"कहते हैं अँधेरा अज्ञान का प्रतीक है
अँधेरे से सब कोई बचना चाहता है
उजाले को सबने अपनाया है
पर,अँधेरे को ज़िन्दगी से हटाना चाहता है.
मुझे तो अँधेरा बड़ा प्यारा लगे है
जब भी सुकून पाना हो
अपने से बतियाना हो
उजास में पोती जा रही कालिख से
आँखें चुराना हो
अँधेरे की आड़ लेना कितना सुखद होता है.
अँधेरा यूं भी कित्ता अच्छा है,
उसमें न कोई छोटा दीखता है न बड़ा
न गोरा न काला
हमें अपने को छुपाने की ज़रुरत भी नहीं होती
सब बराबर होते हैं,
किसी में भेद नहीं रखता अँधेरा !
हमारे पास केवल 'हम' होते हैं
अपना सुख हँसते हैं,दुःख रोते हैं.
अँधेरा अज्ञान का नाम नहीं
आँखें खोलने वाला होता है
जो बात हमें दिन के उजाले में नहीं समझ आती
यह उसकी हर परत खोल देता है.
कोलाहल से दूर
जीवन की भागमभाग से ज़ुदा
दो पल सुकून के देता है अँधेरा
गहरी नींद के आगोश में सुलाता है अँधेरा
हमें तो बहुत भाता है अँधेरा ! " http://www.santoshtrivedi.com/

चलिए चलिए पानी पीजिये , और मनन कीजिये .... अगली विधि के साथ मेरा इंतज़ार करें

16 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ नया परोसा गया ....वरना तो हम भूल ही गए थे ????

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  2. दिलचस्प स्वाद का क्या कहना.....मजा आगया..रश्मि जी.

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  3. बहुत सुन्दर लिंक संयोजन्।

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  4. लो जी पी लिया पानी ... और अब इंतज़ार रहेगा आपकी अगली विधि का ... तब तक आज की विधि को चख लेते है ... जय हो !

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  5. स्वयं को यहां देख कर खुशी हुई।
    आभार आपका।

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  6. बहुत ही बढ़िया लिंक्स संयोजन
    सभी बेहतरीन है..

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  7. आभार रश्मि जी !
    मैं इस बीच दिल्ली से बाहर रहा,इस लिए देरी हुई !
    माफ़ी सहित !

    जवाब देंहटाएं

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