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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

कुछ इनकी कुछ उनकी - एक अलग व्यंजन एक दिलचस्प स्वाद (2)



भावों का चूल्हा , कागज़ की कडाही , शब्दों का तड़का , संभावनाओं , यादों का लजीज गरमागरम व्यंजन , ब्लॉग बुलेटिन की प्लेट - सबकी पसंद हाज़िर है ...

"अपेक्षाओं के समुद्र में
गोता लगाना छोड़ दो
जितनी गहरायी में
जाओगे
गंद साथ लाओगे
अपेक्षाओं की थाह
फिर भी कभी ना

"जीवन की फिलॉस्फी भी
इसी तरह है
जाने कब, कहां, कैसे
जिसे हमने फेंक दिया
कूड़ा समझ कर
आज भी है उसके फेंके जाने का मलाल
सीने में एक टीस की तरह
शायद वह भी महत्वपुर्ण होता..." http://sangisathi.blogspot.in/

" कसक-सी जगती है कभी,
उनके साथ की, जो छूट गए
कुछ बहुत आगे निकल गए
कुछ पीछे-पीछे रह गए.
चलते-चलते
इसी राह में!

और झुंझलाहट भी,
कि पकड़ के पूछूँ...
"ऐ, क्यों नहीं चल सकते
हम साथ में ? " http://madhushaalaa-sumit.blogspot.in/

"शुक्र है के वो निशानी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
गाड़ी,बंगला,शान-ओ-शौकत माना के हासिल नहीं
पर बड़ों की हर निशानी है अभी तक गाँव में " http://udantashtari.blogspot.in/

"अब कोई नहीं कहता-
मैं वाणभट्ट होता तो 'कादम्बरी' लिखता
जयदेव होता तो 'गीत गोविन्द' लिखता
जायसी होता तो 'पद्मावत' लिखता....
काश ! कभी तू भूले से ही सही,
मेरे आँगन आ जाती
मैं हरसिंगार के फूल बनकर
तुम्हारा आँचल फूलों से भर देता !
कभी तुम कहती- तुम्हे कौन सा रंग पसंद है
मैं उसी रंग के फूलों का बाग़ लगा देता
उसके बीच खड़ी होकर तुम वनदेवी सी दिखती !
मैं क़यामत के दिन तक.............................................
जैसे शब्दों की गूंज ख़त्म हो गई
इसलिए लगता है, ज़माना बदल गया !" http://kalpvriksha-amma.blogspot.in/

"अभी भी चिडि़या आती है
करोड़ों इंसानों के
करोड़ों मकानों के आंगन में

अभी भी तकरीबन सारे बीज
धरती की किसी भी जमीन पर
आसानी से उग आते हैं

अभी भी मछलियां
रहने के लिए
जहरीले नदी नालों या
अनछुए सागरों में
फर्क नहीं करतीं

अभी भी
अधिकतर शेर जानवरों को ही खाते हैं
आदमियों को नहीं

अभी भी सांप बिच्छू चमगादड़
खडहरों जंगलों और वीरानों में ही रहते हैं
आदमी की रोज रहने वाली जगहों पर नहीं

कभी भी जंगल, जानवरों ने
कुदरत ने
आदमी से कुट्टी नहीं की


कभी भी शेर, चीते, भालू
चिडि़या, बाज, गिद्ध,
मछली, सांप, चमगादड़
इतनी संख्या में नहीं हुए
कि आदमी की प्रजाति को ही खत्म कर दें

अभी भी
सब कुछ कुदरती है
लाखों सालों पहले जैसा

क्यों बदल गया है
बस
आदमी ही।" http://rajey.blogspot.in/


मिलेंगे अगले भोज में ....

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे लिंक्स हैं दी....
    tasty :-)
    शुक्रिया.

    सादर.

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  2. सुंदर लिंक्स लगे,किन्तु मैंने पहले ही पढ़ लिया था,....

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  3. वाह यह भी खूब है स्वाद का स्वाद मिल जाता है और बढ़िया पोस्ट भी पढ़ने को मिल जाती है ! जय हो दीदी !

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  4. चटपटी चाट सी, चटखारे लेकर चैन से पढ़ने वाले चुनिन्दा लिंक्स की चादर या चूनर सी चमकती चुलेटिन!!!

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  5. बहुत ही मज़ेदार लिंक संयोजन्।

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  6. सुन्दर लिंक संयोजन....सुन्दर प्रस्तुति...

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  7. लिंक्स का बहुत ही बेहतरीन संयोजन ... एक सुन्दर प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  8. ओ तेरी ...ये स्वादिष्ट भोजन छूट गया था !

    जवाब देंहटाएं

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