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मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

मोहन के बापू से जब होए अँधियारा तक - ब्लॉग बुलेटिन

जिन्‍दगी़-एक खामोश सफर, पर इस बार वंदना जी ने 'मोहन के बापू का हाथ जरा तंग है' के जरिए जबरदस्‍त कटाक्ष किया है, उन लोगों पर, जो सिर्फ रूप देखकर फिसल जाते हैं। जहां रूप की बात आती है, वहां तो ग्‍लेमर आ ही जाता है, और जहां ग्‍लेमर की बात हो, वहां हम न जाएं कैसे हो सकता है, तो फिर अब आपने भी मेरी तरह उनके ब्‍लॉग पर जाकर इस रचना का आनंद उठाने का मन बना ही लिया है, तो आपको वहां जाने से रोकने की हिम्‍मत हम कैसे कर सकते हैं, जाइए और बताइए कैसा रहा, उनके ब्‍लॉग पर जाना।
'मोहन के बापू का हाथ जरा तंग है'


अगर आप अत्‍यंत साहित्‍य में रुचि रखते हैं, और अपनी हर रचना में कुछ नयापन लाने के दीवाने हैं तो इमरान अंसारी के ब्‍लॉग कलम का सिपाही पर जाकर मुंशी प्रेम चंद की कलम व दिल से निकले कुछ शब्‍दों पढ़कर, उनसे प्रेरित होकर, कुछ नया सृजित कर सकते हैं। यहां पर इमरान ने मुंशी प्रेम चंद जी की कुछ ऐसी बातें लिखी हैं, जो दिल को छूती हैं, तो ऐसे में इस ब्‍लॉग पर न जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
कलम का सिपाही

उन्‍नति की ओर हमारी बेटियां, पर डॉ संध्‍या तिवारी ने, माँ के नाम काव्‍य रचना में जन्‍म से डोली में बैठकर तक के समय को बयान किया और अंतिम में मां के लिए एक अबुझ प्रश्‍न छोड़ दिया, शायद इस सवाल का जवाब आपके पास हो। लेकिन सवाल का जवाब देने के लिए सवाल तक तो पहुंचना जरूरी है, तो पहुंचिए बिना देरी के, और बताइए कि उत्‍तर क्‍या हो सकता है।
माँ के नाम

हालिया गुड़गांव में हुई रेप वारदात के बाद वहां के पुलिस अधिकारियों ने लड़कियों को देर रात ऑफिस में काम करने से मनाही कर दी, अगर किसी को करना है तो वह पहले इसकी जानकारी देगा, इस बात सोनल रस्‍तोगी अपनी सखियों को समझाते हुए सुन री सखि ................. जब होए अँधियारा लिखती हैं, इसमें वह समाज के मूंह पर किस तरह तमाचा जड़ती है, देखने लायक है।

आज इतना ही दोस्‍तो, फिर मिलेंगे, किसी नई पोस्‍ट के साथ, तब तक के लिए शुक्रिया।

6 टिप्‍पणियां:

  1. ्वाह बहुत खूबसूरत बुलेटिन

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  2. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति।

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  3. बढ़िया बुलेटिन लगाया कुलवंत भाई आभार ...

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  4. सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

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