जैसा कि आप सब से हमारा वादा है ... हम आप के लिए कुछ न कुछ नया लाते रहेंगे ... उसी वादे को निभाते हुए हम एक नयी श्रृंखला शुरू कर रहे है जिस के अंतर्गत हर बार किसी एक ब्लॉग के बारे में आपको बताया जायेगा ... जिसे हम कहते है ... एकल ब्लॉग चर्चा ... उस ब्लॉग की शुरुआत से ले कर अब तक की पोस्टो के आधार पर आपसे उस ब्लॉग और उस ब्लॉगर का परिचय हम अपने ही अंदाज़ में करवाएँगे !
आशा है आपको यह प्रयास पसंद आएगा !
आशा है आपको यह प्रयास पसंद आएगा !
आज हमारे बीच हैं राजीव चतुर्वेदी जी
स्वान्तः सुखाय लिखता है कवि , रहता है अकेला अपने ख्यालों में .... पर अकेला रह नहीं पाता . कभी हवा उसे छू जाती है , कभी किसी बच्चे की मोहक मुस्कान में वह ठिठक जाता है और फड़फडाते पन्नों के कैनवस पर शब्दों से उसकी मुस्कान को उतनी ही सजीवता देना चाहता है , जिसमें वह ठिठका रहता है . एहसासों से भरे कई कदम उसके कमरे के बाहर चहलकदमी करते हैं , उसे पढ़ने के लिए , उसे जानने के लिए .....
इन्हीं चहलकदमियों में मुझे मिला राजीव चतुर्वेदी जी का ब्लॉग -
Shabd Setu
अंधे को क्या चाहिए दो आँख . मुझे तो वाकई दो आँखें मिली और खुदा जानता है कि मैं कभी भी अकेले सारी रौशनी नहीं रखती , सबके साथ पूरी ईमानदारी के संग बांटती हूँ . तो आज बांटने आई हूँ राजीव जी के ब्लॉग की प्रखर रौशनी .यूँ तो इन्होंने बहुत पहले से लिखना आरम्भ किया होगा पर इनकी ब्लॉग यात्रा फरवरी 2012 से शुरू हुई है .हर पृष्ठ कुछ कहता है या हर पृष्ठ में दबी एक चिंगारी है , मंथन आपके समक्ष है -
लोकतंत्र की पृष्ठभूमि की पड़तालों में
" तक्षशिला से लालकिला तक पूरक प्रशन फहरते देखो
जन-गण-मन के जोर से चलते गणपति के गणराज्य समझ लो
आत्ममुग्धता का अंधियारा और अध्ययन का उथलापन
गूलर के भुनगों की दुनिया कोलंबस की भूल के आगे नतमस्तक है
हर जुगनू की देखो ख्वाहिश सूरज की पैमाइश ही है.
"
" हम कोलंबस हैं हमारे हाथों में भूगोल की किताबें नहीं होतीं,
हमारी निगाहों में स्कूल की कतारें नहीं होती,
हमारे घर से लाता नहीं टिफिन कोई,
तुम्हारी तरह हमको पिता दिशा नहीं समझाता,
तुम्हारी तरह हमें तैरना नहीं सिखलाता,
हमारे घर पर इंतज़ार करती माँएं नहीं होती.
हम कोलंबस हैं हमारे हाथ में होती हैं पतवारें,
हमारी निगाह में रहती हैं नाव की कतारें,
हमारे पिता ने निगाह दी तारों से दिशा पहचानो,
हमारे पिता ने समझाया तूफानों की जिदें मत मानो,
हमारी मां यादों में बस सुबकती है आंसू से रोटी खाती है,
स्कूलों की छुट्टी के वख्त हमारी मां भी समंदर तक आके लौट जाती है,
मेरी मां जानती है मैं कभी न आऊँगा फिर भी मेरी सालगिरह मनाती है.
तुम साहिल पे चले निश्चित वर्तमान की तरह
मैं समंदर पर सहमा अनिश्चित भविष्य था भूगोल में गुम
तुम तो सुविधाओं को सिरहाने रख सोते ही रहे
हमने हवाओं के हौसले की हैसियत नापी
तुमने तोड़ा था उसूलों को जरूरत के लिए
हमने जज़बात की हरारत नापी
तुम तो शराब के पैमाने में ही डूब गए
मैंने समंदर के सीने की रवानी नापी
तुम्हारी काबलियत काँप जाती है नौकरी पाने के लिए
मेरी भूल भी उनवान है धरती पे लिखा
तुम्हारे और मेरे बीच यही है फर्क समझो तो
जिन्दगी की हर पहल में तुम हो नर्वस
और मैं कोलंबस
तुम्हारे हाथ में भूगोल की किताब है पढो मुझको
मुझको है मां से बिछुड़ जाने का गम . "
Shabd Setu: चीखो तुम भी ...चीखूँ मैं भी ---यह ... - blog*spot
"चुप हैं चिडियाँ गिद्धों की आहट पा कर.
बस्ती भी चुप है सिद्धों की आहट पा कर
अंदर के सन्नाटे से सहमा हूँ मैं पर बाहर शोर बहुत है
संगीत कभी सुन पाओ तो मुझको भी बतला देना, --कैसा लगता है ?"
विस्मित हूँ ..... राजीव जी का रचना संसार सत्य के ओज से दमक रहा है और मुझे अपना आप एथेंस के सत्यार्थी सा प्रतीत हो रहा है -
Shabd Setu: कठिन है सत्य बोलना
"कठिन है सत्य बोलना,
हनुमान जी की बातें करो
तो वेश्याओं के मोहल्ले में हाहाकार मच जाता है
कि यह व्यक्ति हमारी दूकान ही ठप्प कर देगा"
कविता पन्नों पर उकेरे भाव ही नहीं होते .... कभी बालू के घरौंदों में होते हैं , कभी समंदर की लहरों में , कभी छोटे से बच्चे की आँखों के अन्दर उमड़ते चौकलेट की चाह में , कभी आंसुओं के सिले धब्बों में ....
शायद कविता उसको भी कहते हैं
"मेरी बहने कुछ उलटे कुछ सीधे शब्दों से कविता बुनना नहीं जानती वह बुनती हैं हर सर्दी के पहले स्नेह का स्वेटर खून के रिश्ते और वह ऊन का स्वेटर कुछ उलटे फंदे से कुछ सीधे फंदे से शब्द के धंधे से दूर स्नेह के संकेत समझो तो जानते हो तो बताना बरना चुप रहना और गुनगुनाना प्रणय की आश से उपजी आहटों को मत कहो कविता बुना जाता तो स्वेटर है, गुनी जाती ही कविता है कुछ उलटे कुछ सीधे शब्दों से कविता जो बुनते हैं वह कविताए दिखती है उधड़ी उधड़ी सी कविता शब्दों का जाल नहीं कविता दिल का आलाप नहीं कविता को करुणा का क्रन्दन मत कह देना कविता को शब्दों का अनुबंधन भी मत कहना कविता शब्दों में ढला अक्श है आह्ट का कविता चिंगारी सी, अंगारों का आगाज़ किया करती है कविता सरिता में दीप बहाते गीतों सी कविता कोलाहल में शांत पड़े संगीतों सी कविता हाँफते शब्दों की कुछ साँसें हैं कविता बूढ़े सपनो की शेष बची कुछ आशें हैंकविता सहमी सी बहन खड़ी दालानों में कविता बहकी सी तरूणाई कविता चहकी सी चिड़िया, महकी सी एक कली पर रुक जाओ अब गला बैठता जाता है यह गा-गा कर संकेतों को शब्दों में गढ़ने वालो अंगारों के फूल सवालों की सूली जब पूछेगी तुमसे--- शब्दों को बुनने को कविता क्यों कहते हो ?तुम सोचोगे चुप हो जाओगे इस बसंत में जंगल को भी चिंता है नागफनी में फूल खिले हैं शब्दों से शायद कविता उसको भी कहते हैं." आँधियों की तरह इन्हें नहीं पढ़ा जा सकता ! इन्हें क्या .... किसी भी एहसास को वक़्त न दो तो आप उसके स्पर्श से वंचित रह जायेंगे . वक़्त दीजिये , रुकिए ---- यह मात्र अभिव्यक्ति नहीं एक आगाज़ है !
मार्च के आँगन में राजीव जी ने कहा है " समंदर की सतह पर एक चिड़िया ढूंढती है प्यास को अब तो जन - गण - मन के देखो टूटते विश्वास कोवर्फ से कह दो जलते जंगलों की तबाही की गवाही तुम को देनी हैऔर कह दो साजिशों से सत्य का चन्दन रगड़ कर अपने माथे पर लगा लेंऔर जितना छल सको तुम छल भी लोलेकिन समझ लो ऐ जयद्रथ वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं हैएक भी आंसू हमारा आज तक सूखा नहीं है. "
इससे आगे -
मैंने कुछ शब्द खरीदे हैं बाज़ार से खनकते से हुए ..........
अभी तो सूरज निकला है , तेज सर चढ़कर बोलेगा .... मेरी शुभकामनायें हैं शब्द सेतु को
"मेरी बहने कुछ उलटे कुछ सीधे शब्दों से
कविता बुनना नहीं जानती
वह बुनती हैं हर सर्दी के पहले स्नेह का स्वेटर
खून के रिश्ते और वह ऊन का स्वेटर
कुछ उलटे फंदे से कुछ सीधे फंदे से
शब्द के धंधे से दूर स्नेह के संकेत समझो तो
जानते हो तो बताना बरना चुप रहना और गुनगुनाना
प्रणय की आश से उपजी आहटों को मत कहो कविता
बुना जाता तो स्वेटर है, गुनी जाती ही कविता है
कुछ उलटे कुछ सीधे शब्दों से कविता जो बुनते हैं
वह कविताए दिखती है उधड़ी उधड़ी सी
कविता शब्दों का जाल नहीं
कविता दिल का आलाप नहीं
कविता को करुणा का क्रन्दन मत कह देना
कविता को शब्दों का अनुबंधन भी मत कहना
कविता शब्दों में ढला अक्श है आह्ट का
कविता चिंगारी सी, अंगारों का आगाज़ किया करती है
कविता सरिता में दीप बहाते गीतों सी
कविता कोलाहल में शांत पड़े संगीतों सी
कविता हाँफते शब्दों की कुछ साँसें हैं
कविता बूढ़े सपनो की शेष बची कुछ आशें हैं
कविता सहमी सी बहन खड़ी दालानों में
कविता बहकी सी तरूणाई
कविता चहकी सी चिड़िया, महकी सी एक कली
पर रुक जाओ अब गला बैठता जाता है यह गा-गा कर
संकेतों को शब्दों में गढ़ने वालो
अंगारों के फूल सवालों की सूली
जब पूछेगी तुमसे--- शब्दों को बुनने को कविता क्यों कहते हो ?
तुम सोचोगे चुप हो जाओगे
इस बसंत में जंगल को भी चिंता है
नागफनी में फूल खिले हैं शब्दों से
शायद कविता उसको भी कहते हैं."
आँधियों की तरह इन्हें नहीं पढ़ा जा सकता ! इन्हें क्या .... किसी भी एहसास को वक़्त न दो तो आप उसके स्पर्श से वंचित रह जायेंगे . वक़्त दीजिये , रुकिए ---- यह मात्र अभिव्यक्ति नहीं एक आगाज़ है !
मार्च के आँगन में राजीव जी ने कहा है
" समंदर की सतह पर एक चिड़िया ढूंढती है प्यास को
अब तो जन - गण - मन के देखो टूटते विश्वास को
वर्फ से कह दो जलते जंगलों की तबाही की गवाही तुम को देनी है
और कह दो साजिशों से सत्य का चन्दन रगड़ कर अपने माथे पर लगा लें
और जितना छल सको तुम छल भी लो
लेकिन समझ लो ऐ जयद्रथ वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं है
एक भी आंसू हमारा आज तक सूखा नहीं है. "
इससे आगे -
राजीव जी को आपकी पारखी नज़र ने खूब परखा है और उकेरा है।
जवाब देंहटाएंएक अच्छे ब्लॉग से परिचय कराने का शुक्रिया रश्मिजी..
जवाब देंहटाएंबढिया प्रयास
जवाब देंहटाएंराजीव जी की रचनाओं में आग है, दिशा है और रास्ता भी।
बहुत शुक्रिया रश्मि दी आपका....
जवाब देंहटाएंराजीव जी का लेखन अद्भुत है...
सादर.
राजीव जी का ब्लॉग देखा था ... सब तक लाने के लिए आपका आभार ....
जवाब देंहटाएंपरिचय के लिए आभार!ब्लॉग देखा ...सभी रचनाएँ अच्छी लगीं...राजीव जी को शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएंएक और सशक्त ब्लॉग से परिचय!!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंप्रखर रौशनी ...इस क़दर है कि हर ओर उजाला है ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ..आपका आभार राजीव जी को शुभकामनाएं ..
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा।..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा,......
जवाब देंहटाएंmy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
rashmi ji bahut bahut dhanyawaad ek achchhe blog se parichit krane ke liye
जवाब देंहटाएंआभार परिचय का, फीड संरक्षित कर ली है।
जवाब देंहटाएंचतुर्वेदी सर का ब्लॉग देखा और यहाँ भी उनकी रचनाएँ पढ़ीं...बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसादर