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रविवार, 11 मार्च 2012

ब्लॉग की सैर- 3 - ब्लॉग बुलेटिन



भावनाएं जब एकांत में , कोलाहल में ख़ुदकुशी करने लगती हैं तो शब्दों की हथेलियों के स्पर्श से साँसें चलने लगती हैं --- इन्हीं साँसों का आदान-प्रदान है हमारे ब्लॉग की दुनिया . . .
" कमाल के बुजुर्ग थे ऊ भी. घर के ओसारा में एगो चौकी पर अपना पूरा दुनिया बसाए हुए, उसी में खुस. घर का बाल-बच्चा दुतल्ला मकान बना लिया, मगर उनको तो ओही चौकी पर दुनिया भर का सुख हासिल था. जब पुराना मकान था तबो अउर पक्का बन जाने के बादो, ओसारा छोडकर कहीं नहीं गए. बस फरक एही हुआ कि पहले ऊ ओसारा कहलाता था, बाद में ‘वरांडा’ कहलाने लगा. मगर उनके लिए ओही सलतनत था. घर के बहु लोग से पर्दा भी हो जाता था. कभी अंगना में जाने का जरूरत होता त गला खखार कर सबको बता देते थे कि बादसाह सलामत तसरीफ ला रहे हैं. बहु लोग घूँघट माथा पर रख लेतीं. जो काम होता करने के बाद, जो बात होता कहने के बाद फिर से ओसारा में जाकर तख्तेताऊस पर बैठ जाते."

Impleadment: ख्वाब अब कोई नहीं शेष बचा इन आँखों में

"कल वो खुद ही गिरा था

आज गिरा है आंसू बन कर

ख्वाब अब कोई नहीं शेष बचा इन आँखों में." ----राजीव चतुर्वेदी

"बहती चलती .बढ़ चली ...
जाने किस ओर .. ?
मन में हिलोर ..
मन के भावों को ..
गुनती...बुनती .. ...तुम संग ..
तुम पवन मैं नदिया ...!!

हरियाली बिखेरती ....
छल छल ....कल कल ...
धरा पर अविचल ...
गीत गाती तुम संग ...
चलते हुए ...राह में ...
दिशा तुम ही देते हो मुझे ....
तुम पवन मैं नदिया ....


चीर सघन बन ...
मैं बह चलूँ ...
पत्थर तोड़ ...
यूँ राह मोड़ ..
पहाड़ों पर चढ़ूँ ...
फिर झरने सी झरूँ ...
अब वेग तुम ही दो मुझे ...

तुम पवन मैं नदिया ...!!!"
" इस बार महिला दिवस और होली दोनो का एक साथ आ जाना ... कौन जाने किस सत्‍य से परिचित करा रहा है यह दिन ..सच कहूं तो रंग खिलते भी वहीं हैं जहां स्‍त्री का सम्‍मान होता है इस सम्‍मान के लिए क्‍या कोई एक दिन निश्चित होना चाहिए .. हम मन में विकास की सोच रखें ऊपर उठने की इच्‍छा को बलवती रखें और जड़ों को कमजोर करते चलें या उन्‍हें कलंकित करने में किसी तरह की कसर न छोड़ें ... हत्‍या कर दें गर्भ में जिसकी यह भूलकर कि हमारी जननी भी यही है ये न होगी तो हमारा अस्तित्‍व ही क्‍या ... इन सब बातों का सिलसिला लम्‍बा चल सकता है लेकिन ब्‍लॉग जगत में भी कई ऐसी शख्सियत हैं जिनकी लेखनी के आगे नतमस्‍तक होने को जी चाहता है मुझे लगा इन सबको एक साथ आपके सामने लाऊँ अपनी नज़र से सबसे पहले चलते हैं हम.... आप सबकी पहचान आपकी कलम ... और आपका अपना ब्‍लॉग .."
"मैं हूँ बस अपने तरह की ही....
न किसी से मिलती-जुलती,
न किसी की तरह,
होना ही चाहती हूँ मैं !
लोग न जाने क्यूँ....
मिलाना चाहते हैं मुझे
किसी न किसी से....
किसी के चेहरे से,
किसी के व्यवहार से,
किसी के व्यक्तित्व से,
किसी के विचार से,
या फिर अपने ही
सोच,विचार और व्यवहार से !
खुद तो चाहते नहीं
कि वो भी बदलें
अपने आप को कुछ-कुछ.....
लेकिन औरों को बदलने की
चाहतें सुगबुगाती रहती हैं
उनके दिल में हर वक्त !
क्या करें बेचारे....???
अपने ही दिल से मजबूर हैं...
और मैं भी क्या करूँ...?
खुद को इतना बदलने के बाद
लगने लगा कि....
मुझमें से मैं ही
निकल गयी हूँ कहीं दूर !
जिसके साथ, जिसके लिए
निकली थी मैं....
वो ही दूर हो गया मुझसे !
और जब उसी की
कुछ बातों ने झकझोर दिया
एक दिन अचानक मुझे
बाहर-भीतर तलक...
तो लगा कि
किसी के लिए
दूसरों की तरह होना
अपने-आप से नाइंसाफी है....
और फिर u turn.........!!
और आज मैं हूँ....
बिलकुल अपनी तरह,
न किसी की हमशक्ल,
न किसी की तरह !
बस........
खुदा की बनाई
फ़क़त एक
"single piece........"

कुछ कहानियाँ,कुछ नज्में: गुफ्तगू प्यार की

"प्यार की खुशबू कच्चे आम सी होती है,जो तन मन के सारे तंत्र जगा देती है ,देखो बहस की कोई गुंजाईश नहीं है उसने चहकते हुए कहा ...वैसे मेरी हिम्मत बहस करूँ और वो भी तुमसे ना -बाबा, तुम प्यार पर एक कुकरी बुक क्यों नहीं लिख देती title रहेगा "जायके मोहब्बत के ". तुमको मैं पगली लगती हूँ ना ..इसमें लगने की क्या बात है उसने मुस्कुराते हुए कहा,अमा यार इतने स्वादों की बात करती हो पर खुद एक दम तीखी हो मिर्च की तरह ... एक पल को उसके गाल दहक उठे ..फिर संभल कर बोली "जानते हो लेह लद्दाख में लोगों को मिर्च की गर्मी ज़िंदा रखती है " ...तुम गई हो क्या लेह .... मेरे याद में कभी अपने कसबे के बाहर पैर तो रखा नहीं तुमने . माना दुनिया नहीं घूमी मैंने पर जानती तो हूँ ना ..इन किताबों से ..टीवी से कितना कुछ बताते है ये ..और अपनी जानकारी का पिटारा मुझपर खाली कर देती हो ..और मैं दब जाता हूँ तुम्हारी इन बातों के बोझ तले...इतनी बुरी लगती है मेरी बातें ..तो ठीक है अब तुमसे कभी बात नहीं करूंगी और ना तुम मुझे फोन करना ....

बस यही तो सुनना चाहता था मैं ...जब तुम तुनक कर रूठती हो तो पता नहीं क्यों बहुत मासूम सी लगती हो ...अभी तीखी थी अभी मासूम तुम तय कर लो मैं क्या हूँ ..............

गुफ्तगू प्यार की

चलती रहेगी सुबह तक

दिल के मारो को

एक पल भी आराम कहाँ

फुर्सत मिले

तो सोचे दुनियादारी

इश्क से ज़रूरी

इनको कोई काम कहाँ "

"खूबसूरती "
खूबसूरती अब पर्दों में नहीं
बस पर्दों पर ही दिखती है
ताक़त अब रगों में नहीं
केवल कागज पर दिखती है
मेकअप से चमकती सुन्दरता
पसीने में बह जाती है
मय का जोश घटते ही
जुबान खामोश हो जाती है
वहम के नशे में जहाँ ये सारा है
मगर ये इंसां तो दिखावे का मारा है
औरत प्यार, इज्जत को तरसती है
तो आदमी की नज़र ...............................
बनावट की दुनिया से नहीं हटती है .."

क्रम जारी है ...

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर बुलेटिन दी....

    सभी लिंक्स प्यारे.
    सादर.

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  2. गज़ब का बुलेटिन लगाया है सभी लिंक्स खूबसूरत ।

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  3. "क्रम जारी है ..."

    यह क्रम यूँही चलता रहे ... जय हो ...

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  4. कुछ पढ़ी हुई पंक्तियाँ फिर से पढ़ी ...
    बढ़िया संकलन!

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  5. इतने उत्कृष्ट संकलन के बीच खुद को पाकर ....एक पल को साँस रूकती है ,दिल धड़कता है ....फिर थमता है ....फिर आती है एक मुस्कान .....!!सर झुकाकर प्रभु नमन ...फिर हाथ जोड़ ,रश्मि दी आपका आभार ....यहाँ अपने आप को देखकर बहुत खुश हूँ आज ....!!

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  6. रश्मि जी आभारी हूँ आपने मेरी रचना को स्थान दिया ... सुन्दर लिंक्स संयोजन...

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  7. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार आपका ।

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