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शनिवार, 10 मार्च 2012

ब्लॉग की सैर -2 - ब्लॉग बुलेटिन



ब्लॉग के साहित्यिक बगीचे में तरह तरह के फूल हैं , कोई गुलाब , कोई कमल, कोई रजनीगंधा....... वृक्ष भी सशक्त - कोई देवदार , कोई बरगद , कोई पीपल .... सबकी अपनी पहचान , अपनी श्रेष्ठता ...
इस श्रेष्ठ काफिले से आज की शुरुआत Sudhinama: वेदना की राह पर
"वेदना की राह पर
बेचैन मैं हर पल घड़ी ,
तुम सदा थे साथ फिर
क्यों आज मैं एकल खड़ी !

थाम कर उँगली तुम्हारी
एक भोली आस पर ,
चल पड़ी सागर किनारे
एक अनबुझ प्यास धर !

मैं तो अमृत का कलश
लेकर चली थी साथ पर ,
फिर भला क्यों रह गये
यूँ चिर तृषित मेरे अधर !

मैं झुलस कर रह गयी
रिश्ते बचाने के लिये ,
मैं बिखर कर रह गयी
सपने सजाने के लिये !

रात का अंतिम पहर
अब अस्त होने को चला ,
पर दुखों की राह का
कब अंत होता है भला !

चल रही हूँ रात दिन
पर राह यह थमती नहीं ,
कल जहाँ थी आज भी
मैं देखती खुद को वहीं !

थक चुकी हूँ आज इतना
और चल सकती नहीं ,
मंजिलों की राह पर
अब पैर मुड़ सकते नहीं

कल उठूँगी, फिर चलूँगी
पार तो जाना ही है ,
साथ हो कोई, न कोई
इष्ट तो पाना ही है ! "
"टूट कर बिखरे हुवे पत्थर समय से मांगते
कुछ अधूरी दास्ताँ खंडहर समय से मांगते

क्यों हुयी अग्नी परीक्षा, दाव पर क्यों द्रोपदी
आज भी कुछ प्रश्न हैं उत्तर समय से मांगते

हड़ताल पर बैठे हुवे तारों का हठ तो देखिये
चाँद जैसी प्रतिष्ठा आदर समय से मांगते

चाँदनी से जल गए थे जिनके दरवाजे कभी
रौशनी सूरज की वो अक्सर समय से मांगते

फूल जो काँटों का दर्द सह नही पाते यहाँ
समय से पहले वही पतझड़ समय से मांगते "

अंतर्मंथन: भीख दोगे तो बनोगे भिखारी

" एक चौराहे पर जब मैं रुका और नजर घुमाई ,

फुटपाथ पर खड़े एक भिखारी ने जेब से मोबाईल निकला और कॉल लगाई।

और उधर से कोई पुकारा, दीनानाथ आज तुम्हारी वी आई पी रूट पर ड्यूटी है।

भिखारी बिगड़ गया और बोला सौरी, मेरी सी एल लगा देना , आज मेरी छुट्टी है।"


......... यह मंथन नहीं , यात्रा है - अविराम , अभिराम ...

.................सहर हो गई - शेफ़ा कजगाँवी - شفا کجگاونوی

"दुआ जो मेरी बेअसर हो गई

फिर इक आरज़ू दर बदर हो गई


वफ़ा हम ने तुझ से निभाई मगर

निगह में तेरी बे समर हो गई


तलाश ए सुकूँ में भटकते रहे

हयात अपनी यूंही बसर हो गई


कड़ी धूप की सख़्तियाँ झेल कर

थी ममता जो मिस्ले शजर हो गई


न जाने कि लोरी बनी कब ग़ज़ल

"ज़रा आँख झपकी सहर हो गई"


वो लम्बी मसाफ़त की मंज़िल मेरी

तेरा साथ था ,मुख़्तसर हो गई


मैं जब भी उठा ले के परचम कोई

तो काँटों भरी रहगुज़र हो गई


’शेफ़ा’ तेरा लहजा ही कमज़ोर था

तेरी बात गर्द ए सफ़र हो गई

_____________________________________


बेसमर = असफल ; शजर = पेड़ ; मसाफ़त = दूरी , फ़ासला ;

मुख़्तसर = छोटी ; परचम = झंडा ; रहगुज़र = रास्ता

गर्द ए सफ़र = राह की धूल "


"आज भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू का शहादत दिवस है। शहीदों को सलाम। मैं बचपन से ही भग‍तसिंह से बहुत प्रभावित रहा हूं। उनकी जीवनी और कहानी तो यहां-वहां पढ़ने में आती ही रही है। उन पर बनी पर दूसरी ‘शहीद’ फिल्‍म जिसमें मनोज कुमार ने भगतसिंह का रोल किया था, अभी भी स्‍मृतियों
में है। (पहली ‘शहीद’ फिल्‍म में दिलीप कुमार ने यह रोल किया था।) उसका एक गाना, ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ मुझे आज भी पूरा याद है। मुझे जहां मौका मिलता था, मैं इस गाने को अवश्‍य गाता था। भगतसिंह के बारे में जो भी किताब मिलती उसे पढ़ता था। उनके लेख 'मैं नास्तिक क्‍यों हूं।' ने भी बहुत प्रभावित किया।"
"यूँ ही इक दिन खिड़की से जाने किसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही......

ख्यालो में खोई थी या,
खुद के अन्दर उठे सवालों में उलझी थी
मन आवाज़ दे रहा था,
पर मौन खड़ी अपलक खिड़की से उसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....

मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
शायद मुझे छोड़ कर
रूठ गयी थी मैं खुद से...
मैं रोक लेना चाहती थी,
मना लेना चाहती थी खुद को,
जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....

कुछ सवाल थे उसके,
जिनके जवाब मैं नही दे पायी थी
मैं क्यों रोकना चाहती हूँ उसको
मैं नही कह पायी थी...
मेरी हर कोशिश नाकाम हो गयी......!!!

यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही....."

क्रम जारी है ...

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत लिंक्स संजोये हैं…………

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  2. सुंदर चयन ....उत्कृष्ट प्रस्तुति ....

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  3. "वेदना की राह पर
    बेचैन मैं हर पल घड़ी ,
    तुम सदा थे साथ फिर
    क्यों आज मैं एकल खड़ी !
    आपके द्वारा चुने लिंक्स अद्धभुत अनुभूति देते हैं .... !!

    जवाब देंहटाएं
  4. एक बार फिर एक बेहद उम्दा पोस्ट के मार्फ़त ब्लॉग जगत की सैर करवाई आपने रश्मि दीदी ... आभार !

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  5. रश्मि जी आभारी हूँ आपने मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान दिया ! कल कुछ व्यस्तता तथा कुछ बिजली की समस्या के चलते इसे देख ही नहीं पाई ! विलंबित प्रतिक्रिया के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ १

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  6. आज 20/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. रश्मिजी बहुत ही उम्दा काम किया है आपने ....बहुत ही सुन्दर रचनाएं चुनी हैं ...आभार!

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  8. बहुत खूबसूरत लिंक्स संजोये हैं..

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत खूबसूरत लिंक्स...
    सादर आभार.

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  10. वेदना की राह पर
    बेचैन मैं हर पल घड़ी ,


    सुंदर लिंक्स

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