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बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

मानिनी , सौम्य , सत्य से उद्भाषित - ब्लॉग बुलेटिन



संगीता स्वरुप यानि गीत.......मेरी अनुभूतियाँ ब्लॉग की स्वामिनी ... मानिनी , सौम्य , सत्य से उद्भाषित ! आइये उनको जानें उनके ही शब्दों में -
" कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ - जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है , उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं."
संगीता जी के बारे में , उनकी रचनाओं के विषय में कुछ भी लिखने से पूर्व मैं 2010 , 31 जनवरी का उल्लेख करुँगी , जब हम ' शब्दों का रिश्ता ' ; अनमोल संचयन ' के विमोचन के लिए प्रगति मैदान में पुस्तक मेले में हिन्दयुग्म के मंच पर मिले ... संगीता जी की रचनाओं और उनके व्यक्तित्व में गजब की समानता मिली , वही जो मैंने आरम्भ में कहा - मानिनी , सौम्य , सत्य से उद्भाषित !

प्रकृति की मौजूदा स्थिति पर दृष्टि डालते हुए अगस्त 2008 से संगीता जी ने अपना ब्लॉग आरम्भ किया प्रदुषण रचना के साथ -
"जीवन के आधार वृक्ष हैं ,
जीवन के ये अमृत हैं
फिर भी मानव ने देखो,
इसमें विष बोया है.
स्वार्थ मनुष्य का हर पल
उसके आगे आया है
अपने हाथों ही उसने
अपना गला दबाया है
काट काट कर वृक्षों को
उसने अपना लाभ कमाया है"
2008 में ही अपनी दुविधा को असमंजस में कवयित्री ने जो शब्द भाव दिए , उन शब्दभावों ने बताया कि कविता आज भी जीवंत है अपनी पैनी पहचान के साथ , कबीर के काल से लेकर आज संगीता स्वरुप के साथ -
"द्रोण ,
जो आधुनिक युग के
गुरुओं के
पथ - प्रदर्शक थे
उन्होंने सिखाया कि
पहले लक्ष्य साधो
फिर शर चलाओ
अर्थात
पहले मंजिल को देखो
फिर मंजिल पाने के लिए
कर्म करो,
कृष्ण ने कहा कि -
कर्म करो ,
फल की इच्छा मत रखो
मैं , अकिंचन
क्या करुँ ?
एक ईश्वर और एक गुरु
कबीर ने कहा -----
गुरु की महिमा अपरम्पार
जिसने बताया ईश्वर का द्वार
गुरु की मानूं तो फल - भोगी
हरि को जानूं तो कर्म - योगी
क्या बनना है क्या करना है
निर्णय नही लिया जाता है
पर लक्ष्य बिना साधे तो
कर्म नही किया जाता है ."

2009 के संजोये पन्नों पर कवयित्री ने बड़ी बारीकी से डाले फंदे सोच के ज़िन्दगी को मुकम्मल गर्माहट देने के लिए ----
" वक्त की सलाइयों पर
सोचों के फंदे डाल
ज़िन्दगी को बुन दिया है
इसी उम्मीद पर कि
शायद
ज़िन्दगी मुकम्मल हो सके
जैसे कि एक स्वेटर
मुकम्मल हो जाता है
सलाइयों पर
ऊन के फंदे बुनते हुए ।
परन्तु-
ज़िन्दगी कोई स्वेटर तो नही
जो फंदे दर फंदे
बुनते - बुनते
मुकम्मल हो जाए."

2010 का घूँघट उठा तो देखा सुडोकू .....और ज़िंदगी
उसी वर्ष के आईने में पाया स्व अस्तित्व
और तपती रेत पर पढ़ा दर्द के बिखरे कणों को
"दर्द को पढ़ना अच्छा लगता है
दर्द को सोचना अच्छा लगता है
दर्द को मैं लिख नहीं पाती
दर्द को जीना अच्छा लगता है
सोचती है दुनिया कि -
जब तक अश्क ना बहें
तो दर्द नहीं होता है
तड़पने वाला सदा ही
अपने दर्द को रोता है
पर ये दुनिया
ये नहीं जानती कि
तपती रेत में
नमी नहीं होती
अंगारे बरसते हैं
पर छाँव नहीं होती
पानी की चाह में
भटक जाती हूँ दर - ब दर
पर लगता है जैसे मेरी
कभी प्यास नहीं बुझती "

आवारा से ख्वाब बंजारों की तरह होते हैं .... न घर न ठिकाना , पर फिर भी कुछ है जिसे जीना और पाना अच्छा लगता है ! तो एक सौगात आवारा से ख्वाब
आपके लिए , देखिये 2011 के भरे हुए दामन में भी कई सुगबुगाहटें हैं ...

"चाहती हूँ कि
कर लूँ बंद
हर दरवाज़ा
और न आने दूँ
ख़्वाबों को
लेकिन इनकी
आवारगी ऐसी है
कि बंद पलकों में भी
समा जाते हैं "

यात्रा अनंत निरंतर और एहसासों के झुरमुट , बादल , बारिश , पदचिन्ह ......

झरोखा ..

कतरने ख़्वाबों की

एक सिहरन उम्मीद की

उम्मीद है तो कारवां है , कारवां है तो पड़ाव , पड़ाव है तो उम्मीदों की शक्लें हैं .... 2012 के रास्ते तो अभी शुरू हुए हैं , पर शक्लों ने अपनी पहचान देनी शुरू कर दी है ....

कृष्ण की व्यथा तार तार हुए दर्द के सांचे से निकल हमसे कहता है -

"नहीं कहा था मैंने
कि
गढ़ दो तुम
मुझे मूर्तियों में
नहीं चाहता था मैं
पत्थर होना
अलौकिक रहूँ
यह भी नहीं रही
चाहना मेरी ,

पर मानव
तुम कितने
छद्मवेशी हो
एक ओर तो
कर देते हो
मंदिर में स्थापित
और फिर
लगाते हो आरोप
और उठाते हो प्रश्न
कि
क्या सच ही
"कृष्ण" भगवान था ? ".......................

प्रवृति कवि मन क्या क्या नहीं देखता , सोचता और जीता है .... इस रचना की सूक्ष्मता यही कहती है ....
और आखिर में , निःसंदेह इस चर्चा के आखिर में उन्मादी प्रेम यह रचना मनु भण्डारी जी के उपन्यास "एक कहानी यह भी में उनके विचारों पर आधारित है , उनके विचारों को कवयित्री ने अपने शब्द देने का प्रयास किया है ...
"उफनते समुद्र की
लहरों सा
उन्मादी प्रेम
चाहता है
पूर्ण समर्पण
और निष्ठा
और जब नहीं होती
फलित सम्पूर्ण इच्छा
तो उपज आती है
मन में कुंठा
कुंठित मन
बिखेर देता है
सारे वजूद को
ज़र्रा ज़र्रा
बिखरा वजूद
बन जाता है
हास्यास्पद
घट जाता है
व्यक्ति का कद
लोगों की नज़रों में
निरीह सा
बन जाता है
अपनों से जैसे
टूट जाता नाता है .

गर बचना है
इस परिस्थिति से
तो मुक्त करना होगा मन
उन्माद छोड़
मोह को करना होगा भंग |
मोह के भंग होते ही
उन्माद का ज्वार
उतर जाएगा
मन का समंदर भी
शांत लहरों से
भर जायेगा .....

सिलसिला चलता है तो रुकता नहीं , कोई न कोई राग उठते ही हैं ... यह कल भी आरम्भ था , आज भी आरम्भ है ,कल भी यही होगा ....

रविवार, 26 फ़रवरी 2012

सारी दुनिया में हाहाकार, इंटरनेट की प्रलय होगी 8 मार्च को!!! -ब्लॉग बुलेटिन

पिछली बार मैंने बताया था कि  किस तरह वेबसाईट्स हैक होने से रातों की नींद, दिन का चैन गायब है. हालांकि अब काफी हद तक काबू पा लिया है हम लोगों ने. लेकिन अगर आप इंटरनेट का प्रयोग करते है तो एक बुरी खबर है कि 8  मार्च को या फिर 8 मार्च से दुनिया के लाखों कम्प्यूटर इंटरनेट से  संबंध स्थापित नहीं कर पायेंगे. इनमे भी बड़ी तादाद भारत के कम्यूटरों की है.

इसकी सबसे बड़ी वजह है डीएनएस चेंजर नाम का एक शातिर वायरस  जो पूरी दुनिया में परेशानी का सबब बन चुका है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी, एफबीआई ने 150 से अधिक देशों में इस वॉयरस को फैलने से रोकने के लिए एक सर्वर लगाया था जिसे वह आर्ठ मार्च को बंद कर सकता है जिसके चलते 8 मार्च को पूरी इंटरनेट की सेवाएं बंद होने की आशंका उठ खडी हुई है.

डीएनएस चेंजर एक प्रकार का मॉलवेयर है जिसे समाप्त करने के लिए अनेक समूह दिन रात एक किए हुए हैं. इस वॉयरस से ग्रस्‍त कंप्‍यूटर पर खोली गई अधिकतर वेबसाईट अपने असल ठिकाने को ना दिखा कर उन वेबसाईट की और मुड़ जाती हैं जिनके विज्ञापन दिखाने के लिए दुष्ट वायरस निर्मातायों ने पैसे लिए हैं अपने ग्राहकों से.

इसके अलावा यह वॉयरस बार बार कंप्‍यूटर को वॉयरस से मुक्‍त करने के लिए कई विकल्प देता है और जैसे ही कंप्यूटर उपयोग करने वाला उन विकल्पों का प्रयोग करता है, वेबसाईट का रूख मोड़ देने वाला सॉफ्टवेयर अपने आप एक बार फिर अपलोड हो जाता है। और यह किसी एंटीवायरस को स्थापित होने नहीं देता ना ही काम करने देता है.

पिछले साल डीएनएस चेंजर वायरस बनाने और उसे सभी कंप्यूटर्स में फैलाने के आरोप में पुलिस ने 6 लोगों को नवंबर 2011 में इस्टोनिया से गिरफ्तार किया ‌था तथा इसे विश्व के सभी कंप्यूटर्स में फैलने से रोकने के लिए एक कोर्ट के आदेश के मुताबिक एफबीआई ने इन वायरस निर्मातायों के सर्वर के स्थान पर एक अस्थाई डीएनएस सर्वर लगाया था लेकिन उस सर्वर की मियाद आठ मार्च को खत्म हो रही है और अभी तक इस वायरस से मुक्ति नहीं मिली।

इस वायरस ने 150 से अधिक देशों के कंप्यूटर्स को खराब कर दिया। अकेले अमेरिका में ही लाखों कंप्यूटर्स इससे प्रभावित हुए। फॉर्च्यून 500 की आधी कंपनियां और जानी मानी सरकारी संस्‍थाओं में से अधिकतर के कंप्यूटर्स इस वायरस से प्रभावित हैं।

ये संक्रमित कंप्यूटर्स 120 दिनों के लिए एफबीआई के लगाए गए अस्थाई डीएनएस सर्वर पर निर्भर हैं इंटरनेट के लिए। कोशिश चल रही कि कोर्ट इस मियाद को बढ़ा दे लेकिन अगर कोर्ट का आदेश नहीं आता है तो एफबीआई को कानूनी तौर पर उन डीएनएस सर्वर्स को हटाना होगा, जिससे इस कुख्यात वायरस से ग्रस्त कम्प्यूटरों के लिए इंटरनेट सेवा बंद हो जाएगी।



अब बात की जाए ब्लॉगों की. पिछली बार मैंने दो पहेलियाँ पूछी थीं जिसका परिणाम देख ही चुके हैं आप.

इस बार फिर दो पहेलियाँ हैं जिनका सही सही ज़वाब बताने वाला मास्टर ब्लॉगर होगा और एक सही ज़वाब वाला जागरूक ब्लॉगर. बाक़ी सब तो ब्लॉगर हैं हीं :-)


दरअसल इन लिंक्स का ख्याल मुझे तब आया जब हिंदी ब्लॉग जगत में सक्रिय महिला ब्लॉगरों पर आधारित एक अखबारी लेख देखा मैंने. घूम फिर कर वही चेहरे उन्ही ब्लॉगों के नाम. एक तरफ तो सभी कहते हैं नए ब्लॉग नहीं दिखते  , शैशव काल चल रहा, हिंदी ब्लॉगिंग मर रही. दूसरी ओर विश्लेषणों और लेखों में वही पुराने ब्लॉग दिखाए बताए जाते हैं :-(  कथित विकास कैसे हो?


तभी तो शायद महक कहती हैं कि
हम दोनो की अच्छाई से गुलशन महका/ मगर कुछ खामियाँ हम दोनो की/ तुम्हारी खामियों को तुमने खुशबू का नाम दिया/ और मेरी खामियाँ काटों का ताज कैसे बन गयी ?


इधर इंदु की ह्रुद्यानूभूति है कि
”‘टूटता बदन’ इश्क की थकान है/ हर अँगड़ाई पे,खिँचा तेरा नाम है/ उफ!ये टूटन,है कितनी बेदर्द/ चली आती हर सुबह-शाम है


लेकिन प्रेयशी मिश्रा की दुनिया में
कुछ कदम फिर बढ़ी/ सख्त ठोकर लगी/ चोट दिल पे लगी थी/ बुरा हाल था/ दिन अधूरा सा लगता/ जिया जाये ना/ आयी आफत बुरी थी/ सहा जाये ना


ममता गोयल बता रहीं कि
मैंने भी एक सपना देखा/ हर चेहरे को हँसते देखा/ जीवन मधुर खुशियों का मेला/ कोई ना रहे यहाँ अकेला
मै भी कुछ ऐसा कम करूँ/ जो बन जाऊं हर आँख का सपना…


शशि परगनिहा भी क्षोभग्रस्त हैं
क्या बिना किसी पुख्ता जानकारी के इस तरह की टिप्पणी जायज है? ऐसी लेखिका को अब छत्तीसगढ़ की जमी पर पैर नहीं धरने का हमें संकल्प लेना होगा.
वैसे पिछले दिनों यहीं भैसों की कैटवाक भी दिखी थी


मंजू मिश्रा की एक सहज अभिव्यक्ति देखिए
दिलों के बीच/ अगर फ़ासले न हों/ घरों के बीच फ़ासले/ कोई माने नहीं रखते



शब्दों की सखी  गायत्री कहती है
तेरे वजूद से खुद को जुदा करके जानम/ सायो की दुनिया से रुखसत हो रही हूँ/ तेरे खयालो की धुन्द में जो खो गया था/ उस अक्स को पोशीदा से रिहा कर रही हूँ


डॉ रमा द्विवेदी के अनुभूति कलश से
दादी का चश्मा/ नाक चढ़ खिसके/ दादी टिकाए/ पर ढीठ चशमा/ फिर खिसक जाए|



लिंक्स तो देख ली ना आपने. अब पहेलियों का ज़वाब दीजिए कि उपरोक्त सभी ब्लॉगों में कौन सी दो समानताएं हैं? सही ज़वाब मिलेंगे 24  घंटे बाद :-)


हालांकि ऊपर बताए गए वायरस के बारे में बहुत कुछ (हिंदी में) लिख रहा हूँ अपनी वेबसाईट ज़िंदगी के मेले पर. आखिर यह अजीबोगरीब वायरस क्या है? कैसे पहचानें? क्या क्या कर सकता है यह? लेकिन यह जान लीजिए कि इससे छुटकारा पाने का तरीका बहुत थकाऊ और उबाऊ है. जिसे मुक्ति पानी होगी वह इस मुद्दे को ब्लॉग मंच पर उठा सकता है. फिर सारी बात वहीं करेंगे :-)

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

नाम गुम जाएगा - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

एक बार झा जी को उनके दोस्त मिश्रा जी ने रात के खाने पर आमन्त्रित किया, जहाँ उन्होंने ग़ौर किया कि उनके दोस्त अपनी पत्नी से कुछ कहने के बाद उसे कुछ खास शब्दों से सम्बोधित करते है जैसे: हनी, डार्लिंग, स्वीटहार्ट, जानू इत्यादि!

 वह उनसे बहुत प्रभावित हुए , क्योंकि उन दोनों की शादी को २५ साल हो चुके थे और वे दोनों विवाहित जीवन बिता रहे थे!

 जब मिश्राजी  की पत्नी रसोई में थी तो झा जी  ने कहा, मुझे लगता है कि यह कमाल की बात है कि इतने सालों के बाद भी तुम अपनी पत्नी को इतने प्यारे नामों से बुलाते हो!

 मिश्रा जी  ने अपना सिर झटकते हुए कहा, अरे ऐसा नहीं है यार मैं तुम्हें सच्चाई बताता हूँ वास्तव में मुझे पिछले दस सालों से मुझे यही याद नहीं है कि उसका नाम क्या है?

यह तो हुयी मिश्रा जी और झा जी की बात ... आप अपनी कहिये ... आप क्या करते है ... ;-)


सादर आपका 


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अब आज्ञा दीजिये ...


जय हिंद !!

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

विश्व पुस्तक मेले की खुशबू से गमकेगी दिल्ली …नई किताबों की महक और कुछ पोस्ट कतरे - ब्लॉग बुलेटिन


कल से राजधानी दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले की शुरूआत हो जाएगी । दिल्ली में रहने का एक बहुत बडा लाभ ये जरूर है कि ऐसे राष्ट्रीय आयोजनों में भागीदारी , बेशक एक दर्शक के रूप में ही सही ,बहुत ही सुलभ हो जाती है । मैं दिल्ली पुस्तक मेले में जरूर शिरकत करता हूं और नीचे जब फ़ेसबुक पर मैंने ये लिखा और लगाया तो ज़ाहिर है कि दोस्तों को जिनकी दोस्तें किताब ही हैं ,के मन को भी खूब भाया

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घर में दोस्तों का एक अस्थाई सा ठिकाना
दिल्ली पुस्तक मेला हर वर्ष अगस्त महीने के आसपास आयोजित होता है , अप्पन हर साल हिंदी की खूब सारी किताबें धर लाते हैं । विश्व पुस्तक मेला मुझे कभी भी उतना आकर्षित नहीं कर पाया जितना हर साल और लगभग एक जैसा लगने दिखने वाला दिल्ली पुस्तक मेला , लेकिन पाठकों विशेषकर बहुभाषी पाठकों के लिए तो ये उत्सव सरीखा होता है । इस बार हम हिंदी अंतर्जालियों के लिए तो ये और भी खुशी वाला है क्योंकि अब तक लगभग आधा दर्जन साथी ब्लॉगरों के पुस्तक के लोकार्पण होने की सुखद सूचना मिल गई है । इस बहाने सत्ताइस फ़रवरी की शाम एक दूसरे से कई ब्लॉगर , फ़ेसबुकिए और गूगलिए साथी एक दूसरे के रूबरू होंगे ऐसी खबर है । नई किताबों के पन्नों के बीच की वो खुशबू ,अनोखी और बिंदास , ऐसी कि और कहीं पाई न जाए ..चलिए आइए अब कुछ पोस्टों के कतरों से मुलाकात करवाते हैं आपकी
नेह निमंत्रण -सतीश सक्सेना
आशीर्वाद दें, इन बच्चों को कि वे दोनों मिलकर एक सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकें !
आप सबको आदर सहित......


इस नेह पत्रिका के  द्वारा ,
आमंत्रण भेज रहा सब को !
अंजलि भर, आशीषों की है
बस चाह, हमारे बच्चों को !
दिल से  निकले  आशीर्वाद ,दुर्गम पथ  सरल  बनायेंगे  !
विधि-गौरव के नवजीवन में, सौभाग्य पुष्प बिखराएंगे  !


आपको क्या लगता है ब्लॉगिंग में ,हिंदी ब्लॉगिंग में विज्ञापन नहीं आ रहे हैं , देखिए अवधिया जी की इस पोस्ट पर ..आ लीजीए एक ठो कामर्शियल ब्रेक ..तब तक हम अवधिया जी पालटी के लिए जगह फ़िक्स करते हैं


पेलार्ड रेकॉर्ड चेंजर (Paillard Record Changer) का एक विज्ञापन
जी.के. अवधिया

(चित्र को बड़ा करके देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें)
(चित्र https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfxm-m2L8nN_V3jDuR1wdJmMa1kyVeOZAP4PKWJxT-hsPZXqNOo2MLVUqt_nPM55Si2101WDANfie-ld94ZtZ59Yqpo56526ksLdwg0VnQNj5S6tRddzsGkpYZsbedBgsYkJ-eNrk07wA/s1600/paillard_tomatic_record_changer_ad_1939.jpg से साभार)




बहुत खराब है महिलाओं का समय प्रबन्ध image
वैसे तो ऐसे  पुरुष भी कमतेरे नहीं हैं जिनका समय का प्रबंध बहुत लचीला रहता है -समय से आफिस नहीं पहुंचते,प्रायः बॉस की डांट खाते हैं मगर अमूमन महिलाओं का समय प्रबंध बहुत कमज़ोर होता है ऐसा मेरा अनुभव रहा है . आश्चर्य है इतने महत्वपूर्ण विषय पर आज तक कोई गंभीर अध्ययन नहीं हुआ है या कम से कम मेरी खोजबीन का नतीजा यही रहा है ...कई भारतीय महापुरुषों का समय प्रबन्ध बड़ा ही सटीक और शानदार रहा -गांधी जी समय के बड़े पाबन्द थे ...एक बार उन्होंने एक अध्यापक को मिलने का समय दिया था जो दस मिनट देर से पहुंचे तो गांधी जी ने उन्हें  बड़ी फटकार लगाई -कहा कि अगर यही आदत उनके छात्रों की होगी तो देश समय के कितने पीछे चला जायेगा ...विदेशों में समयबद्धता की कितनी मिसालें तो हम अक्सर सुनते ही रहते हैं ..मुझे विदेशी पुरुषों और महिलाओं के तुलनात्मक समय प्रबंध की कोई प्रमाणिक जानकारी तो नहीं है मगर कहे सुने की बात है कि सारी दुनिया में ही अमूमन समय प्रबंध के मामले में पुरुषों की तुलना में वे खासी फिसड्डी होती हैं ....

इक किरन मेरी नहीं !
चुभ रही हर बात हमको ,
कुछ नहीं परवाह उनको ,
मेरे हिस्से में अँधेरा ,
धूप की बौछार उनको !(१)


मौसम हुआ है फगुनई,
रुचियाँ बदलतीं नित नई,
हमने भी कोई चाह की,
तो कहानी बन गई ?(२)


क़ाबा नहीं बनता है तो बुतखाना बना दे

"बहजाद" लखनवी साहब को राज कपूर की फिल्म "आग" के मशहूर गीत "जिंदा हूँ इस तरह कि गम-ए-जिंदगी नहीं" के रचनाकार के रूप में खासी शोहरत मिली. लखनवी तहजीब को अपनी शायरी में रंग देने वाले जनाब सरदार अहमद खान यानी बहजाद लखनवी की एक गज़ल पेश है बेगम अख्तर की दिव्य आवाज़ में -



मोहब्बत के शहर से

अर्से से
संभाल रखी थी
मोहब्बत की धरोहर के लिए मशहूर
शहर से लाई एक सफ़ेद प्लेट
उसकी संग ए मरमरी जाली के पास कई रंग थे
इक-दूजे की खूबसूरती में लिपटे

" खुश करती खुशबू ......"

अहसास,
कि तुम मिलोगी,
ये आभास,
कि तुम मिलोगी,
ये ख़याल,
कि तुम होगी,
और रोज़ की तरह,
खिलखिलाती,
मींच आँखे,
सकुचाते,
लजाते,
यह कहोगी,
नहीं थे आप,
आज, वह प्लेट टूट गयी
रंग बिखर गए
सिर्फ सफ़ेद नज़र आता है अब
टूटी यादों को फेंका नहीं उसने
जोड़ा और सहेज लिया

क्या कहूँ ......

स्नेह प्यार या कहूँ
छलकता बरसता दुलार
नदिया की लहरों सी
मन बहकाती उमंगें हैं
लाल हो या गुलाबी
बड़ी हो या फिर छोटी
ये बिंदिया तो बस
तुम्हारी साँसों को ही
निरख-निरख कर
बस यूँ ही निखरती हैं
सम्मोहक बिंदु बन
तुमको आभासित करती
मन प्रभासित कर जाती है

कैसा हिन्‍दू... कैसी लक्ष्‍मी!
देश के पुराने अंगरेजी अखबार ने हिन्‍दू नाम के साथ प्रतिष्‍ठा अर्जित की है, पिछले दिनों इस हिन्‍दू पर लक्ष्‍मी नामधारी पत्रकार ने ऐसा धब्‍बा लगाया है, जिस पर अफसोस और चिन्‍ता होती है। इस मामले का उल्‍लेख मेरी पिछली पोस्‍ट 36 खसम पर है।
रायपुर से प्रकाशित समाचार पत्र दैनिक 'छत्‍तीसगढ़ वॉच' ने इसकी सुध ली है।

20 फरवरी, मंगलवार को मुखपृष्‍ठ पर प्रकाशित समाचार


शहरयार के बहाने आर्टिस्ट और आर्ट पर... image ..पूजा उपाध्याय
वो बड़ा भी है तो क्या है, है तो आखिर आदमी
इस तरह सजदे करोगे तो खुदा हो जाएगा
-बशीर बद्र
अमृता प्रीतम की रसीदी टिकट का एक हिस्सा है जिसमें वो बयान करती हैं कि उनकी जिंदगी में सिर्फ तीन ही ऐसी मौके आये जब उनके अंदर की औरत ने उनके अंदर की लेखिका को पीछे छोड़ कर अपना हक माँगा था. एक पूरी जिंदगी में सिर्फ तीन मौके...


नर्मदा में जमीन हक का हल्ला बोल
Author:
पुष्पराज
Source:
रविवार, 17 फरवरी 2012
सरदार सरोवर की डूब से प्रभावित सबसे बड़ी आबादी मध्य प्रदेश की है। मध्य प्रदेश के 193 गांवों में अभी भी डेढ़ लाख से बड़ी आबादी निवास कर रही है, फिर एनवीडीए ने विस्थापितों की स्थिति को ‘‘जीरो बैलेन्स’’ क्यों बताया? सत्याग्रह स्थल पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के एक पोस्टर में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को नर्मदा घाटी ‘‘विस्थापन’’ प्राधिकरण लिखा गया है। पहाड़ के 41 और निमाड़ के 17 सहित डूब में कुल 58 आदिवासी गांव प्रभावित हैं। मध्य प्रदेश के ज्यादातर पहाड़ी गांवों के सड़क संपर्क पथ वर्षों पूर्व डूब में समा गए हैं। कई गांवों की खेती-बाड़ी, घर-बार डूब चुके हैं।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कथा “पूस की रात” के असली नायक 80 साल बाद भी पूस की रात में फसल बचाने के लिये नहीं, फसल उगाने की जमीन के हक के लिये पिछले दो महीनों से “जमीन हक सत्याग्रह” चला रहे हैं। अगर आप "पूस की रात" का संग्राम जानना चाहते हैं तो मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिला के जोबट में शासकीय कृषि फार्म की 87 एकड़ जमीन को अपने कब्जे में लेकर हल जोत रहे आदिवासियों से मिलिये। सरदार सरोवर की डूब से प्रभावित विस्थापित आदिवासियों ने 24 नवम्बर 2011 को इंदौर से 225 कि.मी. दूर स्थित जोबट में मजबूत कंटीले लौह बेड़ों के घेरे को तोड़कर शासकीय कृषि फार्म हाउस पर अपना कब्जा जमाया और खुले आकाश में “जमीन हक सत्याग्रह” शुरू कर दिया। 25 वर्षों से शांतिपूर्वक अहिंसक आंदोलन कर रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन के सैकड़ों आदिवासियों ने फार्म हाउस पर कब्जा कर सरकारी कर्मचारियों को सरकारी खेती करने से रोक दिया और फार्म हाउस पर अपना “हक कब्जा’’ घोषित कर दिया। 25 नवम्बर को विस्थापितों ने जोबट शहर में अपने “हक कब्जा’’ के पक्ष में रैली निकाली और जोबट के तहसीलदार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से ज्ञापन दिया।


Friday, February 24, 2012


बादशाह मछेरा !

मछेरे, तुमने
अपना मत्स्य जाल,
गुरुकाय व्हेल के ऊपर
डाला क्यों था?


जिन्न की रिहायश
बोतल में होती है,
यवसुरा* की शीशी से        (*बीयर)  
निकाला क्यों था?


सागर और रेत - भाग एक
पर 8:53 PM
डाकिये की ओर से :प्रस्तुत उद्धरण खलील जिब्रान की क्लासिक 'सेंड एंड फोम' के अपरिपक्व हिंदी अनुवाद है:
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तुम अंधे हो, मैं बहरा और गूंगा.
तो चलो, हाथों को छूकर समझें.
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आपकी प्रासंगिकता इस बात से नहीं है कि आप क्या पाते हैं, अपितु इससे है कि आप क्या पाना चाहते हैं.
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तुम मुझे कान दो, मैं तुम्हें आवाज़ दूँगा.
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Jesus the Son of Man (Khalil Gibran)

हंगामा है क्यूँ बरपा... 'वैलेंटाइन डे'.. एक दिन ही तो है...
पिछली कुछ  पोस्ट्स में बड़ी गंभीर बातें हों गयीं...आगे भी एक लम्बी कहानी पोस्ट करने का इरादा है...(पब्लिकली  इसलिए कह दिया ताकि कहानी पोस्ट करने में अब और देर ना कर सकूँ :)} पर इसके बीच कुछ हल्की-फुलकी बातें हो जाएँ .

'वेलेंटाइन डे' अभी-अभी गुजरा है......अखबार..टी .वी...सोशल नेटवर्क...सब जगह इसके पक्ष-विपक्ष में बातें होती रहीं...पक्ष में तो कम..जायदातर आलोचना ही होती रही कि 'प्यार का एक ही दिन क्यूँ मुक़र्रर है'..वगैरह..वगैरह...पर इतना हंगामा क्यूँ है बरपा..इस एक दिन के लिए......यूँ भी कोई भी कपल...कितने बरस ये वेलेंटाइन डे मनायेगा?..एक बरस...दो बरस...इस से ज्यादा बार 'वेलेंटाइन डे' की किस्मत में एक कपल का साथ नहीं लिखा होता...जन्मदिन या वैवाहिक वर्षगाँठ  जरूर सालो साल मनते रहते  हैं.
जून २०११ को एक मित्र की शादी हुई. २०११ वाले वेलेंटाइन डे के एक दिन पहले...उनकी प्रेमिका ने मुंबई से हैदराबाद कोरियर करके  Bournville chocolate  का एक डब्बा भेजा .उस चॉकलेट के विज्ञापन में यह संदेश रहता था.."यु हैव टु अर्न इट "..यानि की इस चॉकलेट के हकदार बनने के लिए आपको कुछ  करना होगा. वे मित्र महाशय हैदराबाद से फ्लाईट ले १४ फ़रवरी की सुबह...मुंबई पहुँच हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए अपनी माशूका के दर पर हाज़िर .साबित कर दिया कि वे उस चॉकलेट के हकदार हैं.

तो आज के लिए इतना ही …..मिलेंगे फ़िर नई यादों के साथ ..अब दिल्ली दूर नहीं

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

भावनाओं का इतिहास लिखा जा रहा है - कुछ अपने लिए , कुछ हमारे लिए - ब्लॉग बुलेटिन




आज मेरी कलम के मेहमान हैं - अमरेन्द्र शुक्ल 'अमर' . याद नहीं , कैसे इनका ब्लॉग मिला ! पर जब मिला तो यही लगा कि अंधे को क्या चाहिए दो आँख ... तो अपनी दो आँखों में दो और आँखें जोड़कर इनको आरम्भ से अब तक पढ़ गई http://amrendra-shukla.blogspot.com/ . तो मेरा कर्तव्य है कि मैं कुछ रौशनी आपके साथ साझा करूँ . दरअसल मेरे जीवन का एक उद्देश्य यह भी है कि साहित्य सागर से मुझे मोती मिले या खारेपन में भी एक मिठास ... मैं आपलोगों तक लेकर आऊँगी . सागर में सौन्दर्य है तो गहराई भी , हाहाकार भी , आग भी , गीत भी , आंसू भी , जीवन भी मौत भी , सार भी विस्तार भी .... ! मैं ४ वर्षों के विस्तार का सार लेकर आई हूँ ... आइये मिलिए अमरेन्द्र जी से -

सितम्बर २००९ में इनके ब्लॉग का बीजारोपण हुआ .... तेरी यादें
में किसी की याद को जीते हुए अमरेन्द्र जी ने कहा है -
" न जाने क्यू तेरी हर अदा कातिल सी लगती है,
तू महजबी भी लगती है कटारी भी लगती है ,
फिर भी तेरी हर अदा जान से प्यारी सी लगती है ... "

अक्तूबर ०९ को इनकी रचना आज भी समझ नहीं पाया अपने आप को
"आज निकला हूँ अपने आप से बाहर,
साथ अपने अपना ही साया बनकर" अपनी तलाश सी लगती है .

माँ - हर किसी के जीवन में मंदिर सी होती है , कहीं रहो , किसी हाल में ... माँ साथ होती है . २०१० की यात्रा में कवि ने भी माँ को जीया है - कुछ इस तरह , "माँ मै कोसो दूर हूँ तुमसे"
"माँ मै कोसो दूर हूँ तुमसे
पर तुम मेरे पास हो माँ
रोज रात में बाते करती, बिना फ़ोन के मेरी माँ
पास नहीं दूर हूँ उनसे , फिर भी मेरे पास है माँ
हर रात को सोने से पहले , लोरी अब भी गाती माँ
मुझे खिलाकर और सुलाकर , सोने जाती मेरी माँ
कैसे मेरे दिन -रात गुजेरते
बिन तेरे हैरान हूँ माँ ..........
आज नहीं कल आ जाऊंगा
दो दिन की तो बात है माँ
"माँ मै कोसो दूर हूँ तुमसे
पर तुम मेरे पास हो माँ " यह एहसास यह भी बताते हैं कि बचपन अन्दर से कभी नहीं जाता , तभी तो उम्र के हर पड़ाव पर ऐसे भाव जागते हैं .

कोई - जो होता है ख्यालों में , जिसकी खोज होती है , कभी विश्वास बनकर , कभी हैरां , कभी खामोश होकर "खामोश निगाहे" कुछ इस तरह ---
"शाम होते ही
पैमाने भी देखकर ,
मुझको अपने आगोश में
निकल पड़ते है तेरा पता ढूंढने " मिलो न मिलो , चुप सा इंतज़ार सीने में होता है . कोलाहल में भी आँखें बन्द किये किसी को ढूंढता है .

प्यार , ख्याल , इंतज़ार ... कभी थकान बन उठे तो हर क्षण आखिरी लगता है , उस आखिरी पल का वास्ता लिए कवि ने कुछ इस तरह अपने भावों को पिरोया है २०११ के पन्ने पर अंतिम क्षण

" चारो तरफ फैली है यादें तेरी
फिर भी यादें कम है
दर्द पहले से ज्यादा हुआ है,
फिर भी दर्द कम है .....

सपने है आँखों में जागे जागे
और आज आँखों में नींद कम ,है
यूँ तो जी रहे है हम जिंदगी से ज्यादा
फिर भी लगता है ये जिंदगी कम है..... "

एक ख्याल और प्रकृति - कितनी साम्यता है ! इक बूँद
"वो दूर से ही कहता रहा
अपना ख्याल रखना
मैंने भी रखा
वैसे ही
जैसे
सागर किनारे
नन्हे करतलो से बने
रेत के छोटे छोटे महलो ने रखा ,
जो लहर आने का इन्तेजार तो करते है
पर उनके जाने के बाद
उन महलो का निशा तक नहीं होता
वो आत्मसात हो जाते है उन्ही के साथ
उन्ही के संग
अपने वजूद को मिटा के

दूर ही सही

फिर भी,
मेरे अपने से लगते हो
दूर बादल में,
छुपी इक बूँद जैसे " कभी लहर , कभी बूंद , कभी मैं , कभी तुम - यात्रा रूकती नहीं , दृश्य ठहरते नहीं ... समय यंत्रवत कहो या सोच समझकर चलता जाता है . २०१२ यानि नए वर्ष का कैनवस , जिस पर भावों का अदभुत संयोजन जारी है ....
किसी ख़ास के लिए तुम तक आने का रास्ता
चिरंतन प्रश्न आखिर कब बदलोगे तुम ??????



यात्रा बरक़रार है , भावनाओं का इतिहास लिखा जा रहा है - कुछ अपने लिए , कुछ हमारे लिए

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

आंखों पर हावी न होने पाए ब्लोगिंग - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

कंप्यूटर या लैपटॉप हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं। इनसे हमारा काम तो आसान होता है, लेकिन सेहत भी प्रभावित होती है, विशेषकर आंखें। आंखों में होने वाली समस्या को 'कंप्यूटर विजन सिंड्रोम' कहते हैं।
लक्षण : आंखों और सिर में भारीपन, धुंधला दिखना, जलन होना, पानी आना, खुजली होना, सूखापन, पास की चीजें देखने में दिक्कत होना, रंगों का साफ न दिखना एव रंगों को पहचानने में परेशानी होना, एक वस्तु का दो दिखाई देना, अत्यधिक थकान, गर्दन, कंधों एव कमर में दर्द होना।

बचाव :

* कंप्यूटर पर काम करते वक्त पलकों को झपकाते रहना चाहिए। इससे आँख की पुतली के ऊपर नमी बनी रहती है।
* एंटीरिफ्लेक्टिव कोटिंग वाले चश्मे का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
* कंप्यूटर वाले स्थान पर पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए।
* स्क्रीन आंख से 15 डिग्री नीचे की तरफ होनी चाहिए। दोनों के बीच लगभग 25 इंच की दूरी हो। बच्चों के लिए यह दूरी 28 इंच होनी चाहिए।
* हर 15 से 20 सेकेंड में स्क्रीन से नजर हटा कर कहीं और देखना चाहिए। हर एक घटे बाद 5 से 10 मिनट का ब्रेक लें।
* कुर्सी से थोड़ा उठ कर इधर-उधर चलना चाहिए।
* आंखों की समस्या से जूझ रहे लोग पीसी के सीधे सपर्क से बचें, इससे आखों में सूखापन और बढ़ जाता है। 

तो अब आप इन बातो का ख्याल रखते हुए ही ब्लोगिंग करें ... फिलहाल चलते है आज की ब्लॉग बुलेटिन की ओर ... 

सादर आपका 


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posted by RITU at कलमदान
*बैठती नहीं हर डालपर बुलबुल हर वृक्ष खुशनसीब नहीं होता करती नहीं कोलाहल हर बगीचे में बुलबुल हर बाग़ खुशनसीब नहीं होता खिलते नहीं हर गुंचे में गुल * * हर हार खुशनसीब नहीं होता मिलते नहीं नदिया के दो ...

posted by विवेक मिश्र at अनंत अपार असीम आकाश
तू चैन है मेरे दिल की और , हमराज है मेरे राजो की । फिर भी तू मुझे सताती है , क्यों दूर यूँ मुझसे जाती है । तू पल दो पल को आती है , पल भर में गायब हो जाती है । मुझे तडफता देख के शायद... जाने कितने बादल आये...

posted by डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) at उच्चारण
*इक पुराना पेड़ है अब भी है हमारे गाँव में।*** *चाक-ए-दामन सी रहा अब भी हमारे गाँव में।।*** *सभ्यता के ज़लज़लों से लड़ रहा है दिन-रात**,*** *रंज-ओ-ग़म को पी रहा अब भी हमारे गाँव में।*** *मिल रही उसको तस...

posted by dheerendra at काव्यान्जलि ... 
आज के नेता... आज के नेता एक अरब लोगों को पागल बना रहे है अलग अलग पार्टी बनाकर हमे आपस में लडवाकर अपना मतलब निकाल रहे है, कर रहे है बड़े बड़े घोटाले रिश्तेदारों को टिकट दिला रहे है साले भ्रष्टाचार कर भर ...

posted by अनुपमा पाठक at अनुशील
दिखता भले नहीं, पर ईश्वर यहीं कहीं है! ये दृश्य का दोष नहीं... अगर हमारे पास दृष्टि ही नहीं है! एक भोली सी मुस्कान में वह है... कभी महसूस हुई थी जिसमें, उस ध्यान में वह है... ज़िन्दा है वह टूटती हुई सांसों...

posted by Smart Indian - स्मार्ट इंडियन at खस्ता शेर - खुदा खैर
(अनुराग शर्मा) जौहरी जौहर न करे चाची पिये न चाय दुनिया उल्टी चल पड़ी आय जेब से जाय एडवांस में फीस ली, डेट करी एडवांस पैसा लेके भग लिये, काम का नक्को चांस वोट मांगने आ गये, जोड़ रहे अब हात पाँच बरस तक पेट ...

posted by Lalit Kumar at दशमलव
आपको याद होगा कि कुछ समय पहले मैंने “अच्छे ब्लॉग्स की ज़रूरतें” नामक एक लेखमाला तैयार कर आपके सामने पेश की थी। इस लेखमाला को हिन्दी ब्लॉगर्स ने खूब सराहा और इसमें कही बातों पर अमल करके कई नए पुराने हिन्दी ब...

posted by कुमार राधारमण at स्वास्थ्य-सबके लिए
वमनकर्म आयुर्वेदीय पंचकर्म में पहला क्रिया विधान है। वमन का शाब्दिक अर्थ होता है उल्टी करना। उल्टी रोग लक्षण भी है लेकिन शरीर के शोधन में जब वमनकर्म की बात करते हैं तो अभिप्राय उल्टी करवाकर रोगों का निवार...

posted by आवेश तिवारी at नेटवर्क6 
दरअसल ये देश चलाने के नियम -कायदों को परिवारवाद और व्यक्तिवादी तरीके से ढालने की कोशिशों का एक फ्रेम है |केंद्र की यूपीए सरकार ने पहले २जी घोटालों और फिर लोकपाल के मुद्दे पर चारों खाने चित्त होने के बाद एक...

posted by उदय - uday at कडुवा सच ...
उसे तुम किसके गुनाहों की सजा दे रहे हो ? उस गुनाह की जो उसने किया नहीं ! या फिर उस गुनाह की जो खुद उसके सांथ हुआ है !! वह पीड़ित है !!! बलात्कार हुआ है ... उसके सांथ उसकी आबरू लूटी गई है सच ! गुनहगार त...

posted by noreply@blogger.com (प्रवीण पाण्डेय) at न दैन्यं न पलायनम् 
नकारात्मकता से सदा ही बचना चाहता हूँ, बहुत प्रयास करता हूँ कि किसे ऐसे विषय पर न लिखूँ जिसमें पक्ष और विपक्ष के कई पाले बना कर विवाद हो, विवाद में ऊर्जा व्यर्थ हो, ऊर्जा जो कहीं और लगायी जा सकती थी, सकारा...

posted by अमित श्रीवास्तव at "बस यूँ ही " .......अमित 
बर्फ से गाल पे, लुढकी दो बूंदे, आंसुओं की, गुनगुनी सी | बन गई लकीर, नमक की | लोग कह उठे, चेहरे पे उसके, तो नमक है | मन की भाप, कितनी उठी होगी, कितनी सूखी होगी, तब शायद, बना होगा, नमक चेहरे पे | *गुनगुने आंस...

posted by सुमित प्रताप सिंह at सुमित प्रताप सिंह 
प्रिय मित्रो सादर ब्लॉगस्ते! दोस्तो लंदन शहर कितना खूबसूरत है. यहाँ की हर इमारत,हर गली,हर दुकान अद्भुत छटा लिए हुए है. टावर ब्रिज, वेस्टमिंस्टर महल, ब्रिटिश संग्रहालय व रोयल अलबर्ट हॉल इत्यादि द...

मर्लिन मनरो के नाम की बिल्डिंग कोई आलेख या पुस्तक पढ़कर उसके अंश अपने ब्लॉग पर शेयर करने पर सिर्फ दूसरों से ये जानकारी बांटने का संतोष ही नहीं मिलता...बल्कि उनमे कुछ और नई जानकारियाँ भी जुड़ जाती हैं. अव...

posted by Udan Tashtari at उड़न तश्तरी .... 
मेरे मनोभावों का अनवरत अथक प्रवाह बना रहता है. और फ़िर शुरू हो जाती है एक खोज - एक प्रयास - उन्हें बेहतरीन शब्दों का जामा पहनाने की. उन्हें कुछ इस तरह कागज पर उतार देने की चाहत कि पढ़ने वाला हर पाठक खो जाय...
posted by Er. Shilpa Mehta at निरामिष
सामिष / निरामिष भोजन और स्वास्थ्य [ *नोट:* इस लेख की इन सब बातों में जानते बूझते ही क्रूरता आदि की बात नहीं की जा रही है। यह पोस्ट सिर्फ और सिर्फ स्वास्थ्य के विभिन्न पक्षों का तुलनात्मक अध्ययन है |] स्व...


posted by मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते 
*प्रिय कवि-कथाकार उदय प्रकाश जी ने आज अपने इस फेसबुक नोट में मुझे टैग किया. मुझे लगा कि इसे हिन्दी में भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए. * * * * * * कला को 'सचमुच' सराहने वाले कितने लोग हैं * (अनुवाद : मनोज पट...
यूँ तो वो सबके हैं मगर केवल मेरे हैं तभी कहता है इंसान जब पूरा उसमे डूब जाता है जैसे गोपियाँ … तुम केवल मेरे हो , आँखों के कोटर मे बंद कर लूंगी श्याम पलकों के किवाड लगा दूंगी ना खुद कुछ देखूंगी ना तोहे ...

१३ फ़रवरी २०१२ को जानेमाने शायर शहरयार का इन्तकाल हो गया। कुछ फ़िल्मों के लिए उन्होंने गीत व ग़ज़लें भी लिखे जिनका स्तर आम फ़िल्मी रचनाओं से बहुत उपर है। 'उमरावजान', 'गमन', 'फ़ासले', 'अंजुमन' जैसी फ़िल्मों...
posted by जयदीप शेखर at नाज़-ए-हिन्द सुभाष 

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अब एक पोस्ट ख़ास हमारे मैनपुरी के लोगो के नाम 

posted by शिवम् मिश्रा at मेरा मैनपुरी
*आज कल मैनपुरी जनपद में भी उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों की तरह चुनावी माहौल चल रहा है ... आप में से भी बहुतो ने पहले भी अपने अपने मतदाता होने के अधिकारों का उपयोग किया होगा और बहुत से शायद पहली बार ऐसा करन...

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फिर मुलाकात होगी ... अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिंद !!!

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

कैसे मतदाता है आप - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

देश में चुनावी माहौल चल रहा है ... आप में से भी बहुतो ने अपने अपने मतदाता होने के अधिकारों का उपयोग किया होगा या करने वाले होगें !

ऐसा में सवाल यह उठता है कि मान लीजिये जब आप वोट करने जाए और देखें कि प्रत्याशियों की सूचि में एक भी ऐसा प्रत्याशी नहीं है जो आपकी आशाओं पर खरा उतरे तो क्या करेंगे आप ... ??

वैसे अगर आप नीचे दिए जा रहे कारणों से वोट देते है ... तो ऊपर वाले सवाल पर ध्यान न दें ...

" क्या फर्क पड़ता है यार किसी को भी वोट दे कर अपना काम खत्म करो "  यह सोच किसी भी एक को अपना वोट दे देंगे !?

आपका परिवार सालों से एक ही पार्टी विशेष को वोट देता आया है इस लिए आप भी उसी पार्टी को वोट देंगे ... प्रत्याशी से आपको कोई मतलब नहीं !?

प्रत्याशी आपका परिचित है ... अब भले ही वो किसी भी पार्टी में हो ... अपने काम करें न करें ... आपको फर्क नहीं पड़ता !?

प्रत्याशी आपकी ही जाति / धर्म का है ... अब ऐसे में किसी और को वोट देने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है !?  

पर अगर आप एक जागरूक मतदाता है और अपने वोट की कीमत जानते है तो नीचे दिए जा रहे चित्र को ध्यान से देखें और अगर जरुरत पड़े तो अपने अधिकार का उपयोग करते हुए एक सच्चे मतदाता होने का फ़र्ज़ निभाएं !

(चित्र पर क्लिक कर बड़ा करें)
 आप इस पर विचार कीजिये ... तब तक मैं आपके लिए आज की ब्लॉग बुलेटिन तैयार करता हूँ ...

सादर आपका 

शिवम् मिश्रा

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posted by डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर at रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
मतदाता जागरूकता को लेकर तमाम सारी संस्थायें, व्यक्ति कार्य करते दिखाई दे रहे हैं। मतदाता जागरूकता कार्यक्रमों का और चुनाव आयोग की सख्ती का, सकारात्मक सक्रियता का परिणाम यह रहा कि मतदान प्रतिशत पिछले बार ...
posted by गिरिजेश राव, Girijesh Rao at एक आलसी का चिठ्ठा
कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन शिव का विवाह गौरी से हुआ था। दिगम्बर शिव से लिपट गौरी ने उन्हें दिव्याम्बर कर दिया। वही गौरी जिनके बिना शिव उनके शव को कन्धे पर लिये ब्रह्मांड में घूमने लगे और सृष्टि से शव...
posted by मनोज कुमार at विचार
*सूफ़ियों ने विश्व-प्रेम का पाठ पढ़ाया अंक-7* *सूफ़ी दर्शन-**2* अंक-1 : सूफ़ी शब्द का अर्थ *अंक-2 सूफ़ीमत का उदय अंक-3 : *सूफ़ीमत की प्रारंभिक अवस्था अंक-4. *सूफ़ीमत का विकास-1 अंक-5 सूफ़ीमत का विकास-2 अंक-6 ...
 
posted by सतीश सक्सेना at मेरे गीत !
*दूसरों के धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होना मुझे हमेशा अच्छा लगता है , मेरा प्रयत्न रहता है कि वहां उनके अनुष्ठानों के प्रति पूरा सम्मान भी, भाग लेने पर ,ईमानदारी के साथ व्यक्त किया जाए !* * * *अधिकतर ऐसे ...

posted by ZEAL at ZEAL
मैकाले की शिक्षा पद्धति ने ब्रेन-वाश कर दिया है हमारे भारतीय समाज का। divide and rule policy चलाकर उन्होंने हमें टुकड़ों-टुकड़ों में बाँट दिया। आज इसी विभाजन की "मंथरा-नीति" से कांग्रेस हमें नोच-नोच कर खा रह...

posted by रेखा श्रीवास्तव at मेरा सरोकार
प्रियंका श्रीवास्तव (सोनू) ये संघर्ष जिसका है वो मेरी बेटी है लेकिन लिखा उसकी कलम से ही गया है। मैं उसके संघर्ष की क़द्र करती हूँ क्योंकि मन तो सिर्फ उसको संभाल रहे थे वह दर्द और कष्ट तो उसने ही सहा ...

posted by सजीव सारथी at रेडियो प्लेबैक इंडिया
* शिखा वार्ष्णेय से जब मैंने गीत मांगे, तो सुना और भूल गईं. छोटी बहन ने सोचा - अरे यह रश्मि दी की आदत है, कभी ये लिखो, वो दो, ये करो .... हुंह. मैंने भी रहने दिया. पर अचानक जब उसने समीर जी की पसंद को सुन...
posted by विवेक सिंह at स्वप्नलोक
[image: DSCN3169] [image: DSCN3170] [image: DSCN3171] [image: DSCN3172] [image: DSCN3173] [image: DSCN3174] [image: DSCN3175] [image: DSCN3176] [image: DSCN3177] [image: DSCN3178] [image: DSCN3...
posted by vedvyathit at एक ब्लॉग सबका
नव गीतिका *दिल किरच किरच टूटे * * * *दिल किरच किरच टूटे और टूटता ही जाये * *बाक़ी बचे न कुछ भी फिर भी धडकता जाये * *कहने को साँस चलती रहती है खुद ब खुद ही * *ये ही नही है काफी बस साँस चलती जाये * *मौसम की...
posted by अविनाश वाचस्पति at पिताजी 
पिता चाहे बुजुर्ग थे परंतु तकनीक से पूरी तौर पर जुड़े हुए। तकनीक में प्रगति हो और वे बिना जाने-अपनाए रह जाएं, संभव ही नहीं था। आधुनिक स्‍मार्ट आई फोन तभी से रखते थे जब भारत में उसका कोई नाम नहीं जानता था।...
posted by मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते
*एंतोनियो पोर्चिया की 'आवाजें' श्रृंखला से... * * * * * *आवाजें : एंतोनियो पोर्चिया * (अनुवाद : मनोज पटेल) जिसका मैं इंतज़ार कर रहा था, उससे मेरी इंतज़ार की आदत आई. :: :: :: स्वर्ग जरूर जाऊंगा, मगर अ...

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अब आज्ञा दीजिये ... फिर मिलेंगे ।
जय हिंद !!