कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०११ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०११ का पांचवा भाग ...
ईश्वर ने अपनी एक आकृति बनायीं
प्राण प्रतिष्ठा की
और उसके गले लगकर बहुत रोया
एक ही शब्द उसकी सिसकियों में थे
माँ माँ माँ ........ माँ , महिमा जाई न बखानी . कहीं रहो , माँ जादू करती है , साहस देती है , महामृत्युंजय जाप बन जाती है .
डॉ. जेन्नी शबनम http://lamhon-ka-safar.blogspot.com/2011/07/blog-post_02.html अपने पुत्र अभिज्ञान के लिए गांधारी बनी स्पष्ट शब्दों में कहती हैं ,
मेरी पट्टी नितांत अकेले में खुलेगी
जब तुम स्वयं को अकेला पाओगे
दुनिया से हारे
अपनों से थके,
मेरी संवेदना
प्रेम
विश्वास
शक्ति
तुममें प्रवाहित होगी
और तुम जीवन-युद्ध में डटे रहोगे
जो तुम्हें किसी के विरुद्ध नहीं
बल्कि
स्वयं को स्थापित करने केलिए करना है|..... माँ का यह रूप संजीवनी शक्ति है , जो दुआएं बन अपने बच्चों में अविरल प्रवाहित होती हैं . माँ कर्ण का कवच बनती है , एकलव्य की निष्ठा , अर्जुन का लक्ष्य ........ कहीं भी हो , आशीष बन साथ होती है !
माहेश्वरी कनेरी http://kaneriabhivainjana.blogspot.com/2011/07/blog-post_2291.html में अपनी बिटिया के लिए यह कहती ,
तपित धरती पर सघन छाया सी, शीतल हवा है बेटी
लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती सी,बुजुर्गो की पावन दुआ है बेटी
कई माओं का मन बन जाती हैं . एक बेटी क्या होती है , यह माँ जानती है .... बेटी माँ को जीती है , माँ उसमें खुद को जीती है .
बच्चों की आत्मा होती है माँ ... माँ के लिए जो भी कह लें , कम ही लगता है .... निशांत http://nishantdixitpoetry.blogspot.com/2011/12/blog-post.html कहते हैं ,
याद करता हूँ तुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ?
तेरी आँखों में मेरी सिसकियाँ नहीं आतीं ?
जाने कैसी है जगह,अबके दुपकी है जहां
न तो खुद आती है,न मुझे बुलाती है
माँ तेरी बड़ी याद आती है.....
बच्चे की सिसकियाँ माँ के सीने में जब्त होती हैं , उन सिसकियों को माँ लोरियां सुनाती है . परछाईं बन साथ चलती है , हवा में घुलकर माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोछती है , अन्न के हर निवाले में माँ दुआएं बन समा जाती है ........ माँ कभी छोडकर नहीं जाती , कभी नहीं !
चलिए किसी मंदिर , किसी दरगाह, किसी गुरूद्वारे ... में सर झुका लें , माँ का हाथ छू जायेगा . इस आशीष के साथ हम मिलेंगे फिर कुछ प्रतिभाओं से - तब तक के लिए आज्ञा दीजिये...
रश्मि प्रभा
रश्मि प्रभा
ईश्वर ने अपनी एक आकृति बनायीं
जवाब देंहटाएंप्राण प्रतिष्ठा की
और उसके गले लगकर बहुत रोया
एक ही शब्द उसकी सिसकियों में थे
माँ माँ माँ ........
आपके चयन का प्रतिफल है यह कि इस रचना को पढ़ने का अवसर मिला ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...शुभकामनाएं ।
माँ के विविध आयामों को समेटती पोस्ट्स ...बधाई!
जवाब देंहटाएंतीनो ही रचनायें बेजोड हैं……………भावो का सुन्दर संग्रह्।
जवाब देंहटाएंनिशांत जी ने एक बच्चे के भावों को बहुत खूबसूरती से संजोया है यूँ लगा जैसे खुद पर ही गुजरी हो।
इस पहल से कई ऐसे ब्लॉग मिल रहे हैं जिन तक अपनी पहुँच नहीं हो सकी थी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर, क्या कहने
जवाब देंहटाएंतीनों ही रचनाएँ सुन्दर,सारगर्भित और भाव पूर्ण है ....यह अवलोकन नहीं दस्तावेजीकरण है उत्कृष्ट रचनाओं का !
जवाब देंहटाएंकमाल किया है तीनों ही रचनाओं ने ... भाव मय ... माँ का सुकून देता एहसास ... सारगर्भित ....
जवाब देंहटाएंअवलोकन २०११ के बहाने से ही सही ... काफी सारे नए नए लोगो को पढने का मौका मिल रहा है ... आपका बहुत बहुत आभार रश्मि दी !
जवाब देंहटाएंdi aapne to saare blogger ko ek bahut hi khubsurat platform de diya....;)
जवाब देंहटाएंwaise sach me saare post bejor hain!
माँ हृदयाघात से जूझ रही हैं , इन दिनों इन कविताओं को पढना ...काश इन भावनाओं को शब्दों मे माँ को विस्तार से समझाया जाना संभव हो पाता! साथ ही हृदयहीन लोगों को भी !
जवाब देंहटाएंरश्मि जी अद्भुत प्रयास.."मेरी प्यारी बेटी" को स्थान देने के लिए आभार..बाकी दो्नों रचनाओ ने एक माँ के ह्रदय को व्यथित कर दिया..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
आपकी ब्लॉग-बुलेटिन पढ़ कर ,
जवाब देंहटाएंलग रहा है , मुझे तो लिखना नहीं आता.... !
बहुत कुछ सिखने के लिए मिल रहा है....
बहुतों से परिचित हो रही हूँ....
माँ की बात चली और आखें नाम हुई.... !!
वाणी जी की माँ जल्द सवस्थ हों जाएँ....
तीनों ही रचनाएँ सुन्दर और भाव पूर्ण है ....
जवाब देंहटाएंbahut sundar lagi teenon rachnaayen
जवाब देंहटाएंपुनः वही .. बेमिसाल
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग 'लम्हों का सफ़र' पर मेरी रचना 'विजयी हो पुत्र' को यहाँ स्थान देकर आपने मान बढ़ाया, बहुत आभार. माँ-बच्चे के रिश्ते पर आपके अनोखे शब्द...
ईश्वर ने अपनी एक आकृति बनायीं
प्राण प्रतिष्ठा की
और उसके गले लगकर बहुत रोया
एक ही शब्द उसकी सिसकियों में थे
माँ माँ माँ ........
दोनों रचनाएँ बहुत भावपूर्ण. सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ पढ़ने को मिल रही, आपका धन्यवाद.
Bahut khubsurat..!
जवाब देंहटाएंएक अच्छी श्रृंखला चल रही है। ज़ारी रहनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास!!
जवाब देंहटाएंbahut acchhi shrinkhla jo thode se moti chun kar lati hain lekin amooly hain vo.
जवाब देंहटाएंआज माँ ही रही तीनो रचनाओं के केंद्र में ....अद्भुत रचनाएँ है तीनों !
जवाब देंहटाएंमैंने एक दिन विलंब से पढ़ पाया !
मैं यहाँ तक ज़रा देर से पहुँचा हूँ ... क्षमा करें . मेरी रचना सराहने के लिए बहुत धन्यवाद ... बाकी दोनों रचनाएं अपनी - अपनी तरह से भावनात्मक हैं |
जवाब देंहटाएंये बेहद सुन्दर प्रयास है रश्मि जी |