सब से पहले ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से १३ दिसम्बर ,२००१ के संसद भवन हमले के सभी अमर शहीदों को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
आज १३ दिसम्बर है ... १० साल पहले आज के ही दिन कुछ लोगो ने भारत के लोकतंत्र के प्रतीक संसद भवन की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी थी !
१० साल बाद ... आज यह भारत के लोकतंत्र का प्रतीक संसद फिर हमले का शिकार है ... पर अब की बार अपने ही सदस्यों के हाथो !!!
कम से कम कुछ तो लिहाज किया होता उन वीरो की क़ुरबानी का हमारे नेताओ ने ...
आज के दिन हम अमर शहीदों को शत शत नमन करते हुए साथ साथ यह दुआ भी करते है कि या तो हमारे नेताओ को सदबुद्धि आये या फिर कोई इनकी रक्षा में शहीद न हो !
१० साल बाद ... आज यह भारत के लोकतंत्र का प्रतीक संसद फिर हमले का शिकार है ... पर अब की बार अपने ही सदस्यों के हाथो !!!
कम से कम कुछ तो लिहाज किया होता उन वीरो की क़ुरबानी का हमारे नेताओ ने ...
आज के दिन हम अमर शहीदों को शत शत नमन करते हुए साथ साथ यह दुआ भी करते है कि या तो हमारे नेताओ को सदबुद्धि आये या फिर कोई इनकी रक्षा में शहीद न हो !
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कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०११ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०११ का चौथा भाग ...
चलना सीख के
ज़िन्दगी जब जीने लगो तो कभी तलवार की धार
कभी दहकते अंगारे
पाँव के नीचे होते हैं ...
पाँव के नीचे होते हैं ...
सिलसिला इतना लम्बा होता है
कि तलवार की धार भोथरी हो जाती है
अंगारे ठन्डे लगने लगते हैं -
आदत की बात हो
या प्रह्लाद बनने का हुनर
जीत चलनेवालों की ही होती है
जीवन जीने के सही मायने
उनके हिस्से ही आते हैं ...
सही मायनों को पाने के क्रम में अनुभवों की बड़ी अनमोल पोटली बनती जाती है - जिसे खरीदा नहीं जा सकता , बांटा जाता है . नज़रिया अपना अपना होता है, पर उसे पुख्ता करने के लिए , उसकी सीलन हटाने के लिए ...... इन पोटलियों से बड़ी मदद मिलती है . ऐसी ही एक अनमोल पोटली से स्थापित लेखिका वंदना गुप्ता जी का यह लिंक लायी हूँ - http://vandana-zindagi.blogspot.com/2011/11/blog-post_05.html
" दो विपरीत लिंगी
दोस्ती हो या प्रेम
हमेशा कसौटी पर ही खड़ा पाया जाता है
क्यूँ समझ नहीं आ पाता है
दोस्ती का जज्बा
नेमत खुदा की
जिसको नवाज़ा है
होगा कोई बाशिंदा
जहान से अलग
खुदा के नज़दीक
यूँ ही तो खुदा को उस पर नहीं प्यार आया है"
बड़ी बात कहना और बड़ी बात सोचना - दोनों में अंतर होता है . यह एक व्यापक सोच है .... और व्यापकता हर किसी के हिस्से नहीं आती . अपनी सोच ही मायने रखती है, अगर हम शरीर का नजरिया रखते हैं तो निःसंदेह हमारे तराजू पर शरीर का बटखरा ही होगा .
कहीं दोस्ती के चीथड़े कहीं प्रेम के पछतावे ... मोनाली जोहरी तुम्हारा प्रेम और मेरे पछतावे...
"जब कभी मैं सोचती हूं...
तुम्हारी वो सितार की झंकार सी बातें...
म्रदु कोमल क्षणों की गवाह बनी रातें...
तुम्हारे किस्से... तुम्हारी हंसी...
कल के स्वप्न... आज के प्रयत्न...
डर के जंगल में रात की रानी सा महकता तुम्हारा सानिध्य...
उस पल मैं चाहती हूं कि ये सब कुछ देर और ठहर जाये...
हो कर तेरी हंसी के घेरों में कैद, मेरा वजूद बेतरह बिखर जाये..." प्यार तो चकोर होता है, सबसे अलग, बेपरवाह - खुद में सिमटा , कभी बनता है, बिगड़ता है ... फिर पछताता है, फिर ...................... यह प्यार तो बस प्यार होता है !
और कहीं ठिठके रिश्ते , ज्वालामुखी की परतों में धधकते ..... बेचैन होकर , टूटकर कहते हैं -
मत रिश्तों की आज दुहाई मुझको दो,
दर्द मिला है बहुत मुझे रिश्ते अपनों से.
कैलाश शर्मा http://sharmakailashc.blogspot.com/2011/06/blog-post_15.html ने कितनी बारीकी से देखा है आज की स्थिति को , कितने स्पष्ट शब्द दिए हैं उनकी व्यथा को . यदि इतने गर्म लावे हैं तो राख को रिश्ता क्यूँ कहना , .......
कहीं आंसू, कहीं हँसी, कहीं प्रकृति का सौन्दर्य , कहीं प्रकृति को झुठलाता इन्सान , कहीं भ्रम, कहीं मिट्टी ........ कितना कुछ बिखरा पड़ा है इस जीने में ! समेटकर मिलती हूँ फिर - जी हाँ , एक अंतराल के बाद...
रश्मि प्रभा
रश्मि प्रभा
बहुत अच्छी प्रस्तुति ... फिर से पढ़ना अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंइस बिखराव को समेटने के लिए आपका अवलोकन और प्रयास दोनो ही सराहनीय है बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है! बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक्स सहेजा आपने।
जवाब देंहटाएंशहीदों को मेरी ओर से भी श्रद्धांजलि
सबको फिर से पढ़ना अच्छा लगा ..सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंपहले अपनी नजर से पढ़ा था और आज , आप की नजर से पढ़ा है, रश्मि जी ..बहुत अच्छा लगा..आभार
जवाब देंहटाएंbadhiya recap chal raha hai...
जवाब देंहटाएंzaari rakhen...
शहीदों को नमन.. चुनिन्दा ब्लॉग-पोस्ट्स का अच्छा सफर!!
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत कर रहीं हैं और परिणाम भी शानदार है... आशा है अच्छे और लोकप्रिय सभी ब्लोग्स समेट पाएँगी इन कड़ियों मे...
जवाब देंहटाएंसबसे पहले शहीदों को नमन……मेरी पोस्ट को यहाँ स्थान देने के लिये आपकी आभारी हूँ रश्मि जी…………ये आपकी बहुत सुन्दर अवलोकन श्रृंखला चल रही है जिससे एक बार फिर बेहतरीन रचनायें पढने को मिल रहीहैं…………हार्दिक आभार्।
जवाब देंहटाएंIt's Too Good...!
जवाब देंहटाएंbahut badhiya ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक्स .....
जवाब देंहटाएंशहीदों को मेरी ओर से भी श्रद्धांजलि
अच्छी प्रस्तुति ...बेहतरीन,शहीदों को मेरी ओर से भी श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंअवलोकन की सूक्ष्म दृष्टी --- बिखरे को समेटने का सार्थक प्रयास
जवाब देंहटाएंशहीदों को हार्दिक श्रद्धांजलि...बेहतरीन श्रंखला...मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिये आभार...श्रंखला की सफलता के लिये हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंकई बार मैं सोंचता हूँ कि ब्लॉग जगत दीदी का कभी कर्ज चुका पायेगा कि नहीं.
जवाब देंहटाएंदीदी आपको भाव भरे हुए दिल से नमन !
शहीदों को मेरी ओर से भी नमन और श्रद्धांजलि.... !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति.... !
badiya links
जवाब देंहटाएंsuperb
जवाब देंहटाएंअमर शहीदों को शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंअविरल चलती रहे ये धारा ।
रश्मि जी अत्यन्त कठिन किन्तु सार्थक कार्य है यह ।
जवाब देंहटाएंहाथ बढ़ाया दादी माँ ने, जब अपना बचपन छूने को,
जवाब देंहटाएंठिठक गयी ममता, आँखों में अपनों की देखा वर्जन को.
कितनी बार झांक कर देखा, कितनी बार भिगोया तकिया,
इतना दर्द नहीं होता, गर वन्ध्या भी कहते सब उसको.
दुखद स्थिति ...मार्मिक रचना कैलाश जी की
सभी लिंक्स अच्छे लगे भूमिका में आपकी पंक्तियां भी अच्छी लगी
kya kahne hain vandana ke... :)
जवाब देंहटाएंsaare post jaandar!!
Bahut badhiya links mile!
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुलेटिन दी...
जवाब देंहटाएंसादर
bahut sundar buletin aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...!
जवाब देंहटाएंआज इस ब्लॉग पे पहली बार आ पाया हूँ !
मत रिश्तों की आज दुहाई मुझको दो,
जवाब देंहटाएंदर्द मिला है बहुत मुझे रिश्ते अपनों से.
सुन्दर।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
bahot achchi lagi.......
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