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गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

प्रतिभाओं की कमी नहीं - अवलोकन २०११ (6) - ब्लॉग बुलेटिन



कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०११ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०११ का छटवां भाग ...

 

भावनाओं के धागे कभी ख़त्म नहीं होते हैं , न रंग , न एहसास , ............ ज़िन्दगी अपने तक नहीं होती , उस अनदेखे मासूम चेहरे से जुड़ी होती है, जिसकी धड्कनें धड़कनों से जुड़ी होती हैं .... एक लड़की से पत्नी ....फिर माँ ... ओह , माँ ' बनने की अनुभूति को बयां नहीं कर सकते . कई प्यारी शक्लें आँखों से गुजरती हैं और गुजरता है यह एहसास कि वह मेरे भीतर है .... अच्छा खाना , अच्छी सोच ......... मन गुनगुनाता है , " मेरे लाल तुम तो हमेशा थे , मेरे मन की अभिलाषा में तन की परिभाषा में , बचपन के गुडिया घर में ..."
ओह !!! स्तब्ध मातृत्व लिए वह लड़की रो भी नहीं पाती , जिसके गर्भ में पल रही बेटी को ख़त्म कर देते हैं लोग एक बेटे की ख्वाहिश में . जिसे अपने खून से प्यार नहीं हुआ ये सोचकर कि वो लड़की है, वह लड़के से क्या प्यार करेगा .
अपनी कलम से परे बढ़ती हूँ जी की कलम के खूबसूरत एहसासों तक http://www.meenakshi-meenu.blogspot.com/2011/05/blog-post_05.html सुधा की कहानी ....
"जाने कैसे कैसे ख़्याल सुधा के मन में आ रहे थे...सुबह से ही उसका दिल धड़क रहा था....आज शाम रिपोर्ट आनी थी ... कहीं फिर से लड़की हुई तो....कहीं फिर से नन्हीं जान को विदा होना पड़ा तो.... नहीं इस बार नहीं...सुधा ने मन ही मन ठान लिया कि इस बार वह ऐसा कुछ नहीं होने देगी.... " माँ एक शक्ति होती है , आरम्भ में वह पत्नी, बहू का धर्म निभाते मूक रहती है, लेकिन सबसे बड़ा रिश्ता होता है माँ और बच्चे का .... गर्भनाल का रिश्ता अनोखी ताकत देता है , अन्याय के विरोध की ताकत देता है ....

माँ बच्चे की नींद सोती है ... जागती है , आँचल को रक्षा मंत्र से भर देती है . नन्हीं सी जान को लेकर माँ कभी सुख पाती है , कभी भविष्य को लेकर आशंकित भी होती है . कुछ ऐसे ही ख्याल आते हैं , जिसके लिए अंजना दयाल http://vrinittogether.blogspot.com/2011/01/blog-post_20.html में कहती हैं ,
"चलोगे तो गिरोगे भी,
मगर हर चोट का दर्द सहना होगा तुम्हें,

हर बार उठना होगा,
और चलते रहना होगा तुम्हें"

अपने बचपन को अपनी बाहों में समेटकर एक माँ अनुभवी हो जाती है , जो ताकीद अपने बड़ों से मिली होती है - उसे दुहराने लगती है . शिक्षा की पहली सीढ़ी जो होती है माँ !
..... बेटी हो या बहन , माँ हो या पत्नी - एक स्त्री घर की सम्पूर्णता होती है . घर की हर दीवारों को वह जीवंत बनाती है , पर घर में वह कितने मीलों की दूरी तय करती है , कितने सारे काम करती है - इसका मूल्याँकन नहीं होता . पैसे कमाकर लाना ही महत्वपूर्ण होता है और काम कहलाता है , थकान उसे ही होती है, जो ऑफिस जाता है .
वंदना अवस्थी http://wwwvandanaadubey.blogspot.com/2011/04/blog-post_22.html में ऐसे ही कुछ डायरी के पन्ने लेकर आई हैं .
"प्रिया...रूमाल कहां रख दिये? एक भी नहीं मिल रहा."
" अरे! मेरा चश्मा कहाँ है? कहा रख दिया उठा के?"
" टेबल पर मेरी एक फ़ाइल रखी थी, कहाँ रख दी सहेज के?"
दौड़ के रूमाल दिया प्रिया ने.
गिरते-पड़ते चश्मा पकड़ाया प्रिया ने.
सामने रखी फ़ाइल उठा के दी प्रिया ने.
" ये क्या बना के रख दिया? पता नहीं क्या करती रहती हो तुम? कायदे का नाश्ता तक बना के नहीं दे सकतीं...."
रुआंसी हो आई प्रिया." कितना आसान होता है न इतना कुछ कहना , हर्रे लगे न फिटकिरी , नींद आए चोखा और जब प्रशंसा के शब्द पौकेट से निकालने हों तो महिला सहकर्मियों के लिए . दरअसल दूर के ढोल सुहाने होते हैं !

बेहतर है - घर की दीवारों को छू कर देखिये , वे कहेंगी कहानी उस स्त्री की , जो बेटी, बहन, पत्नी, माँ ..... जैसे कई रूपों को बड़ी निष्ठा से जीती हैं . तो आप ज्ञान पाइए , मैं अगले आयामों की खोज करके मिलती हूँ
कुछ इनकी और कुछ उनकी लेकर फिर मिलूंगी - सायोनारा 

रश्मि प्रभा

26 टिप्‍पणियां:

  1. aap kisi ki bhi lekar aaiye behatar li layengi ...(sorry hindi nahi likh pa rahi yaha )link par dheere dheere jaungi ...filhal aapke likhe ko sahejne ka kaam jari hai ...

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  2. kitni mehanatkaa kaam hai.... jo aap kar rahi hai aur ham aaraam se chune huye aasaani se padh daalte hai Thanks

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  3. शानदार रचनाएं हैं मीनाक्षी जी की भी और वंदना जी की भी। आपके इस रचनात्मक कार्य की तो जितनी प्रशंसा की जाए कम है। बहरहाल लगातार एक से बढकर एक बेहतर लिंक्स मिल रहे हैं।

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  4. बेजोड रचनाओं का संकलन .... इस परिश्रम को नमन है ...

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  5. बहुत सुन्दर लिंक हैं दी....
    सादर आभार.

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  6. वाह वाह आपकी मेहनत को सलाम ..

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  7. आपकी इस महनत का ही नतीजा है कि बैठे बिठाए...आराम से ..एक से बढ़कर एक लेख,कहानी ,कविता पढ़ने को मिल रही हैं.....धन्यवाद!!

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  8. हर चयन में आपके अंदर के संपादक के दर्शन हो रहे हैं दीदी !
    सच में अच्छी रचनाएँ आ रही हैं !

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  9. रश्मि जी , बहुत मेहनत का काम कर रही हैं आप । इतने ब्लोग्स को पढना , पसंद करना और चयन करना , वास्तव में बड़ा सराहनीय काम है । आभार ।

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  10. आज फिर बेजोड रचनाओं का संकलन रश्मि जी.बहुत सुन्दर...आभार

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  11. बेजोड रचनाओं का संकलन .... ! इस परिश्रम को नमन है .... !!

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  12. इन सारे लिंक्स को पढ़ना वाकई बहुत सुखद रहा।

    सादर

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  13. भावनाओं के धागे कभी ख़त्म नहीं होते हैं , न रंग , न एहसास , ....बिल्‍कुल सच कहा इन शब्‍दों में आपने यदि उनमें पिरोये जाने वाले मोतियों का पारखी आप सा हो .. प्रत्‍येक रचना अनुपम बन पड़ी है इन्‍हें हम तक पहुंचाने का सारा श्रेय आपका है तो ... आभार सहित शुभकामनाएं ।

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  14. अरे वाह!!! यहां तो मेरा लिंक भी है :)
    बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद दी :) :)

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  15. प्रशंसनीय प्रयास रश्मि प्रभा जी।
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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