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गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

प्रतिभाओं की कमी नहीं - अवलोकन २०११ (20) - ब्लॉग बुलेटिन



कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०११ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०११ का २० वां भाग ...
 

एक तरफ प्यार
दूसरी तरफ नफरत और भय ...
ज़रूरत
और खुद्दारी - अपनी पहचान की
दुविधा कैसी ?
प्यार से बढ़कर कोई खुद्दारी नहीं ! ......प्यार कहते ही सबकुछ ठीक हो जाता है , अस्त - व्यस्त घर भी व्यवस्थित हो जाता है - क्योंकि मन व्यवस्थित होता है . खुद्दारी के शर विषैले नहीं होते , स्थिर , अविचलित भाव से जीवन की ठोकरों में भी सार पाते हैं - सार , जो कभी गीत, कभी ग़ज़ल, कभी कहानी , कभी कविता बन बहते हैं ....

अविनाश चन्द्र http://penavinash.blogspot.com/2011/01/blog-post_27.html
"कविताएँ बुनी जा सकती हैं,
प्रशांत महासागर के,
सबसे गहरे तलौंछ पर,
जो सटकाए बैठा है,
भुवन जितने ही रहस्य।
आकाशगंगाओं , राहुओं, केतुओं,
राशियों-नक्षत्र दलों पर।
अगणित विधुर उत्कोच दबाये,
काल के प्रहरों पर।" बैठ शिला की शीतल छाँव ... मनु ने भी सृष्टि को जल प्लावित देख ऐसा सोचा होगा . सत्य की तलाश में भटकते एथेंस के सत्यार्थी ने भी कुछ ऐसा ही सोचा होगा , ..... रहस्यों की गुफा से सोच की कई किरणें निकलती हैं , हर किरण जीवन देती है . मृत्यु का वरन भी एक जीवन का आरम्भ है ...

कहते तो हैं कि ' सत्यम ब्रूयात .. न ब्रूयात सत्यम अप्रियम ' पर सत्य अधिकतर कड़वा ही होता है और यदि तुमने कड़वे को नहीं पचाया तो रक्त शुद्धि संभव नहीं !

श्याम कोरी उदय http://kaduvasach.blogspot.com/2011/12/blog-post_508.html
"संकट के समय
सभी जानवर एक हो जाते हैं
किन्तु ऐंसा नजारा
इंसानों में नजर नहीं आता !" इन्सान संकट में मज़े लेने लगता है , बड़ी तत्परता से पाप के फल गिनाने लगता है - अहमतुष्टि , स्वार्थ , उदासीनता का कटु जामा जब पहनता है तो सत्य तो कटु होगा ही . आह ! जानवर भी श्रेष्ठ ...

दोषारोपण , अपनी कचहरी , अपनी दलील , अपना फैसला - व्यक्ति की नियत यही तो नियति डगमगायेगी ही . गिरे को उठाना आसान नहीं , भार लेना ही होता है ... पर देखकर कतराके निकलना या एक पत्थर अपनी ओर से भी मारना आसान है -

"सहज है ना
थूक देना किसी पर
आक्षेप लगाना
अकर्मण्य होने पर
कहना तू व्यर्थ है
जीवन बोझ है तेरा
क्षणभर में
धूसरित करना
किसी का अस्तित्व " अस्तित्व को जो नाकारा सिद्ध करते हैं , वे नहीं देखते कि सभ्यता का लिबास उनके शरीर से किस तरह अलग होता जाता है . चंद मिनटों में पूरी ज़िन्दगी का हिसाब किताब संभव नहीं होता .

जीवन तो संघर्ष है, बिना संघर्ष जीवन नहीं -' पेड़ के नीचे लेटा मुरख आम आम चिल्लाये , लेकिन डाल तलक जो पहुँचे आम उसीने खाए '

"अनुकूल मौसम में तो हर कोई नाव चला सकते हैं
पर तूफां में कश्ती पार लगाने वाले विरले ही होते हैं
कठिन राह को जो आसाँ बना मंजिल तक पहुँचते हैं
वही धुन के पक्के इन्सां एक दिन चैंपियन बनते हैं " सौ टके की बात है - लहरों के साथ तो कोई भी तैर लेता है, असली इन्सान वही है जो लहरों को चीरकर आगे बढे ...

लहरों के साथ बहते बहते ज़रूरतें बदल गईं - रोटी ,कपड़ा और मकान के बदले टी.वी , मोबाइल और लैपटॉप की ज़रूरतें ऊपर हो गयीं -

"दो वक्त की रोटी भी जिसे नहीं मिलती,
उसकी संख्या सत्तर प्रतिशत के लगभग है,
पर अमूल वाले अपने विज्ञापन में समझाते हैं कि,
असली मक्खन के स्वाद पे सभी का हक है।" हैरां तो सब हैं, पर हैरानी में माँग यही है ,... बिना इसके कोई लाइफ स्टाइल नहीं है !

ज़िन्दगी को कई बार परिभाषित किया गया है, पर प्रश्न आज भी ज्वलंत है कि ज़िन्दगी क्या है ,

पी .सी. गोदियाल http://gurugodiyal.blogspot.com/2011/01/blog-post_27.html
"जिन्दगी आइसक्रीम है,
उसे तो वक्त के सांचे में
हर हाल में ढलना है,
तुम खाओ या न खाओ,
उसे तो पिघलना है।" सोचके देखो, गंभीरता के साथ तो ज़िन्दगी आइसक्रीम से अधिक कुछ नहीं ... इसलिए बेहतर है समय रहते अपनी पसंद के फ्लेवर में इसे खा लो ... पसंद की फ्लेवर ना हो तो इमैजिन कर लो ... उधेड़बुन में दिमागी करघे पर धागा चलाते रहे तो कब पिघल जाए, पता भी नहीं चलेगा .
मिट्टी अलग अलग किस्म की होती है - कुछ कुम्हार की ज़रूरत , कुछ मूर्तिकार , कुछ घर बनाने में , कुछ फूलों के लिए .... और कभी यूँ ही ,

"हर संभव चीज़ को इतना असंभव किये हुए हैं हम अपने लिए कि,
असंभव भी 'बस' संभव के समतुल्य ही असंभव है हमारे लिए." हमने कुर्सी को माथे पर रख लिया है , खुद ज़मीन पर - कुछ ऐसी ही स्थिति है सामान्य से असामान्य होने में , खोने से पाने और पाने से खोने में ....

अमां भागदौड़ इतनी है , इतनी समस्याएं , इतनी ज़रूरतें कि दिमाग सन्नाटे में है .... सन्नाटे से बाहर निकलो और खुश होने की वजहें पाओ -

"शुक्र मनाओ
सड़क पर पीछे से किसी 4 व्हीलर ने नहीं ठोका।
गड्ढो से सकुशल निकल गये।
किसी गड्ढे में नहीं गिरे,
गिरे भी तो
नहीं गिरा, तुम्हारे ही ऊपर, तुम्हारा टूव्हीलर
और तुम्हारा टूव्हीलर तुम्हारे ही ऊपर गिर भी पड़ा तो
पीछे से आती बस तुम्हें,
तुम्हारे टूव्हीलर सहित रौंदती नहीं चली गई।" जो रफ़्तार है ज़िन्दगी की कि रात में सही सलामत घर आना सुकून है , घर से निकलते समय भय साथ निकलता है , घर लौटकर आराम से दिल कहता है - शुक्र है, अच्छे भले घर लौटे ....

तो शुक्र मनाइए कि जैसे तैसे यह साल निकल चला , नया साल आने को है .... सुख है तो दुःख है , अँधेरा है तो उजाला है - है न ?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक http://uchcharan.blogspot.com/2011/12/blog-post_04.html
"जिसने मन पर कर लिया, स्वामी बन अधिकार।
मानवता का मिल गया, उसको ही उपहार।।" मन की चंचलता यदि वश में है तो जीने का मार्ग सरल है और यही प्राप्य है .

जाते साल ने हमें बहुत कुछ दिया है .... खोने को भूलकर पाने को याद करें तभी उल्लसित हो आगत का स्वागत कर पाएंगे . तैयारी शुरू कीजिये , मैं भी लेकर आती हूँ एक आखिरी तोहफा लेकर , जिसे पाकर आपकी उम्मीदें , आपकी कोशिशें २०१२ में और बढ़ जाएँ ...

रश्मि प्रभा

23 टिप्‍पणियां:

  1. सहज है ना
    थूक देना किसी पर
    par us se bhi sahaj hai kisi par
    [pyar ke do shabd barsa dena...

    ek baar fir chuninde phool samete hain di ne...
    badhai

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  2. आपका प्रयास एवं प्रस्तुति दोनों ही स्तुत्य हैं रश्मि जी ! हर बार की तरह इस बार भी चुनिन्दा लिंक्स के साथ बेहतरीन रचनाकारों की रचनाएं चुनी हैं आपने ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  3. वाह=वाह!
    उत्तम!!
    सारे टॉप क्वालिटी के ब्लॉग्स ..!!

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  4. बेहतरीन लिंक्स को पढ़ना अच्छा लगा .

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  5. सच प्रतिभाओं की कमी नहीं ..अच्छी प्रस्तुति

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  6. बहुत सुन्दर ब्लोग्स को संजोया है………सभी एक से बढकर एक हैं।

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  7. किसी एक रचनाकार के लिए बेहतर शब्‍द उपयुक्‍त नहीं लग रहा ... क्‍यों‍कि सभी एक से बढ़कर एक हैं ...इन्‍हें पढ़कर आपके इस प्रयास की सार्थकता नज़र आती है ... आभार सहित शुभकामनाएं ।

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  8. बस एक और भाग आना रह गया है अवलोकन २०११ का ... एक यादगार श्रृंखला रही ... आपने बेहद खुबसूरत तरीके से इसे प्रस्तुत किया ... बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

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  9. वाह! दी...
    बहुत सुन्दर लिंक मिले... आपका श्रम नमनीय है...
    सादर

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  10. ब्लॉग बुलेटिन में आपकी लगन और मेहनत , बहुतों का हौसला बढाने का काम किया है , मुझे बहुतों से परिचित होने का मौक़ा मिला....

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  11. तारीफ के शब्द कम पद रहे हैं आपके इस कोशिश के लिए - सचमुच कितनी कठिनाई से आपने इतने सारे रचनाकारों की अलग अलग रचनाएँ संकलित की होगी -स्तुत्य प्रयास रश्मि प्रभा जी
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  12. बहुत सुन्दर, और मेरी प्रविष्ठी शामिल करने हेतु आभार !

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