ज़िन्दगी का सार सिर्फ इतना
कुछ खट्टी कुछ कडवी सी
यादों का जहन में डोलना
और फिर उन्ही यादों से
हर सांस की गिरह में उलझ कर
वजह सिर्फ जीने की ढूँढना !!"
जीने की वजह ढूंढती, बनाती रंजू भाटिया को कौन नहीं जानता। मेरे ब्लॉग के आरम्भिक दिनों का आकर्षण रही हैं रंजू भाटिया। जीने की खूबसूरत वजहों से सराबोर रंजू जी अपनी कलम के साथ आज हमारे साथ हैं,
रुख ज़िन्दगी का
जिस तरफ़ देखो उस तरफ़ है
भागम भाग .....
हर कोई अपने में मस्त है
कैसी हो चली है यह ज़िन्दगी
एक अजब सी प्यास हर तरफ है
जब कुछ लम्हे लगे खाली
तब ज़िन्दगी
मेरी तरफ़ रुख करना
खाना पकाती माँ
क्यों झुंझला रही है
जलती बुझती चिंगारी सी
ख़ुद को तपा रही है
जब उसके लबों पर
खिले कोई मुस्कराहट
ज़िन्दगी तब तुम भी
गुलाबों सी खिलना
पिता घर को कैसे चलाए
डूबे हैं इसी सोच को ले कर
किस तरह सब को मिले सब कुछ बेहतर
इसी को सोच के घुलते जा रहे हैं
जब दिखे वह कुछ अपने पुराने रंग में
हँसते मुस्कराते जीवन से लड़ते
तब तुम भी खिलखिला के बात करना
ज़िन्दगी तब मेरी तरफ़ रुख करना
बेटी की ज़िन्दगी उलझी हुई है
चुप्पी और किसी दर्द में डूबी हुई है
याद करती है अपनी बचपन की सहेलियां
धागों सी उलझी है यह ज़िन्दगी की पहेलियाँ
उसकी चहक से गूंज उठे जब अंगना
तब तुम भी जिंदगी चहकना
तब मेरी तरफ तुम भी रुख करना
बेटा अपनी नौकरी को ले कर परेशान है
हाथ के साथ है जेब भी है खाली
फ़िर भी आँखों में हैं
एक दुनिया उम्मीद भरी
जब यह उम्मीद
सच बन कर झलके
तब तुम भी दीप सी
दिप -दिप जलना
ज़िन्दगी तुम इधर तब रुख करना
नन्हा सा बच्चा
हैरान है सबको भागता दौड़ता देख कर
जब यह सबकी हैरानी से उभरे
मस्त ज़िन्दगी की राह फ़िर से पकड़े
तब तुम इधर का रुख करना
ज़िन्दगी अपने रंगों से
खूब तुम खिलना...
भागम भाग .....
हर कोई अपने में मस्त है
कैसी हो चली है यह ज़िन्दगी
एक अजब सी प्यास हर तरफ है
जब कुछ लम्हे लगे खाली
तब ज़िन्दगी
मेरी तरफ़ रुख करना
खाना पकाती माँ
क्यों झुंझला रही है
जलती बुझती चिंगारी सी
ख़ुद को तपा रही है
जब उसके लबों पर
खिले कोई मुस्कराहट
ज़िन्दगी तब तुम भी
गुलाबों सी खिलना
पिता घर को कैसे चलाए
डूबे हैं इसी सोच को ले कर
किस तरह सब को मिले सब कुछ बेहतर
इसी को सोच के घुलते जा रहे हैं
जब दिखे वह कुछ अपने पुराने रंग में
हँसते मुस्कराते जीवन से लड़ते
तब तुम भी खिलखिला के बात करना
ज़िन्दगी तब मेरी तरफ़ रुख करना
बेटी की ज़िन्दगी उलझी हुई है
चुप्पी और किसी दर्द में डूबी हुई है
याद करती है अपनी बचपन की सहेलियां
धागों सी उलझी है यह ज़िन्दगी की पहेलियाँ
उसकी चहक से गूंज उठे जब अंगना
तब तुम भी जिंदगी चहकना
तब मेरी तरफ तुम भी रुख करना
बेटा अपनी नौकरी को ले कर परेशान है
हाथ के साथ है जेब भी है खाली
फ़िर भी आँखों में हैं
एक दुनिया उम्मीद भरी
जब यह उम्मीद
सच बन कर झलके
तब तुम भी दीप सी
दिप -दिप जलना
ज़िन्दगी तुम इधर तब रुख करना
नन्हा सा बच्चा
हैरान है सबको भागता दौड़ता देख कर
जब यह सबकी हैरानी से उभरे
मस्त ज़िन्दगी की राह फ़िर से पकड़े
तब तुम इधर का रुख करना
ज़िन्दगी अपने रंगों से
खूब तुम खिलना...
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंजिस तरफ़ देखो उस तरफ़ है
भागम भाग .....
हर कोई अपने में मस्त है
कैसी हो चली है यह ज़िन्दगी
सादर..
बहुत बहुत धन्यवाद जी
हटाएंसच्चाई! कौन नहीं इन्हें जानता होगा
जवाब देंहटाएंअमृता इमरोज की बातें भी सदा पढ़ने को मिलती है
सधी लेखनी
हार्दिक बधाई इन्हें
विभा जी धन्यवाद
हटाएंज़िन्दगी से रूबरू कराती रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी
हटाएंवाह ...👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत बहुत
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी कहाँ सुनती है . अपनी ही रफ़्तार से चलती है . बहुत खूबसूरती से मन के भावों को उकेरा है .
जवाब देंहटाएंजीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम । सुंदरता से भावों को उकेरा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर बेहद खूबसूरत कविता....शानदार।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंज़िंदगी के विविध रूपों की सुंदर विवेचना। मैंने रंजू भाटिया जी का अमृता प्रीतम वाला ब्लॉग पूरा पढ़ा है क्योंकि अमृता मेरी भी प्रिय लेखिका रही हैं और 'कुछ मेरी कलम से' पर भी आपकी कई रचनाएँ पढ़ी हैं। सशक्त लेखन है, नए ब्लॉग लेखकों को ये सभी ब्लॉग जरूर पढ़ने चाहिए जिनका परिचय इन दिनों ब्लॉग बुलेटिन दे रहा है। सादर धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद इस हौंसले के लिए
हटाएंअनगिन रंगों में ही है जिंदगी का...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी
हटाएंखूबसूरत आह्वान ! सबकी व्यस्तताओं और उनकी वजहों का हृदयग्राही चित्रण ! बहुत ही खूबसूरत कविता ! बधाई रंजना जी !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
जवाब देंहटाएंधागों सी उलझी है यह ज़िन्दगी की पहेलियाँ.... बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंरंजू जी भी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं! उनकी यह रचना एक बारीक नज़र और सूक्ष्म दृष्टि की परिचायक है! बहुत प्यारी रचना!!
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन
जवाब देंहटाएंजिंदगी मेरे घर आना..यह गाना बरबस याद आ गया आपकी कविता पढ़कर..जिंदगी तो यूँही गुजरती जाती है...हम ही खुद को ढूँढ़ नहीं पाते..
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं भावपूर्ण ! सचमुच हर तरफ़ भागदौड़ है...
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई रंजू जी!
~सादर
अनिता ललित
लाजवाब !
जवाब देंहटाएं