नमस्कार
साथियो,
स्कूल
जाते बच्चों की गर्मियों की छुट्टियाँ हो गईं हैं. इसके बाद भी बच्चे तनावमुक्त नहीं
दिख रहे हैं. वे प्रफुल्लित नहीं दिख रहे हैं. छुट्टियों के उत्साह में, उल्लास में, मस्ती में, शरारत में,
शैतानियों में वे नहीं दिख रहे हैं. मोहल्ले में, बाजार में, किसी
पार्क में टहलते-खेलते बच्चे यदि दिख भी रहे हैं तो उनके चेहरों पर आज भी वैसा ही तनाव
दिख रहा है जैसा कि स्कूल खुले होने के समय दिखाई देता है. तब के तनाव में और अब
के तनाव में बस इतना अंतर समझ आ रहा है कि तब बच्चे स्कूल की ड्रेस में, पीठ पर भारी-भरकम बस्ता टाँगे हुए तनावग्रस्त दिखाई देते थे, अब इनके बिना तनाव में दिख रहे हैं.
भले
ही स्कूल जाने की बाध्यता न हो मगर स्कूल जैसे वातावरण से बच्चों के मन को, दिमाग
को मुक्ति नहीं मिल सकी है. उनके समय को, उनकी छुट्टियों को, उनके मन को, दिमाग को
स्कूल के अप्रत्यक्ष माहौल ने अपने बंधन में बाँध रखा है. स्कूल से मिलने वाला मिला
हुआ ढेर सारा गृहकार्य, प्रोजेक्ट आदि बच्चों को अभी भी बोझिल वातावरण प्रदान कर
रहे हैं. यही वो बोझ है जिसके दबाव में बचपन गुम हो जाता है, छुट्टियों की मस्ती गुम हो जाती है. बच्चे अब मैदानों में खेलने की बजाय या
अपनी कॉपी-किताबों में खोये होते हैं. स्कूल से मिले तमाम सारे अनावश्यक प्रोजेक्ट
पूरा करने में व्यस्त रहते हैं. इन सबसे यदि थोड़ा-बहुत समय उन्हें मिलता है तो वह
कंप्यूटर में बीतता है या फिर मोबाइल में. अभिभावक भी अपने बच्चों को सबसे आगे
देखने की अंधी दौड़ में उनको जबरन पढ़ाई के दबाव में पीसे डाल रहे हैं.
अब
बच्चों में कुछ नया सीखने-सिखाने जैसी स्थिति ही नहीं दिखती. अब वे आपस में अपने अनुभव
शेयर करने के स्थान पर, कुछ नया बनाने की जगह पर वे ऊटपटांग हरकतों वाले वीडियो बनाते
नजर आते हैं. गलियों में मस्ती-शरारत करने के स्थान पर सड़कों पर तेज रफ़्तार बाइक दौड़ाते
नजर आते हैं. उनकी सक्रियता, उनकी रचनात्मकता को जैसे ग्रहण लग
गया है. इसमें यदि समय दोषी है तो स्कूल, शिक्षक, अभिभावक भी दोषी हैं. अधिक से अधिक
अंक लाने की अंधी दौड़ ने बच्चों को उनकी नैसर्गिक प्रतिभा से वंचित कर दिया है. ऐसे
में वे जैसे किसी हाथ की कठपुतली बन गए हैं. उनके आचरण में, उनके
व्यवहार में एक तरह की कृत्रिमता देखने को मिल रही है. शिक्षकों को, अभिभावकों को इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है. यह ध्यान देने की जरूरत है
कि बचपन एक बार ही आता है और इस दौर में मस्ती, शरारत,
अपनत्व के बीच अपनाई गई शिक्षा, सीखे गए काम सारे
जीवन काम आते हैं.
आइये,
अपने बच्चों में, अपने आसपास के बच्चों में उनकी छिपी प्रतिभा को जानने-उजागर करने
का काम करें. इसके साथ ही आज की बुलेटिन का भी आनंद उठायें.
++++++++++
आदरणीय, बहुत ही महत्त्वपूर्ण अग्रलेख लिखा है आपने भूमिका में। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर व अनुकरणीय आलेख के साथ आपने बुलेटिन सजाया है!
जवाब देंहटाएंसाधुवाद!
आभार!
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसही है, बच्चों का बचपन जीवन भर एक सुखद याद की तरह उनके मनों में रहने वाला है, जरूरी है वह खुशियों से भरा हो न कि तनाव से..पठनीय रचनाओं की ओर संकेत करता सुंदर बुलेटिन, आभार !
जवाब देंहटाएंसार्थक बुलेटिन प्रस्तुति राजा साहब |
जवाब देंहटाएंविलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! मैंने अभी यह सूचना देखी कि बुलेटिन के इस अंक में मेरी रचना है ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद राजकुमार सेंगर जी ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी वेबसाइट पर लिखा आर्टिकल बहुत पसंद आया इसी तरह से जानकारी share करते रहियेगा|
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