प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
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"हर एक लकीर, एक तजुर्बा है जनाब,
झुर्रियां चेहरों पर, यूँ ही आया नही करती।"
- अज्ञात
झुर्रियां चेहरों पर, यूँ ही आया नही करती।"
- अज्ञात
सादर आपका
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कोशिश का मूल्यांकन
मैं भाग रही हूँ तुमसे दूर
संतुष्ट है भारत
कच्चे केले का चोखा
भजन-कीर्तन भी दिनचर्या की औपचारिकता भर रह गए हैं
चिकित्सक भी डर गया है ... सहम गया है
सिने-संगीत इंद्र का घोड़ा है : 'विविध भारती' के प्रधान नियोजक और कवि नरेंद्र शर्मा से इन प्रश्नों के उत्तर सुनिए
भारत के संविधान में बहुसंख्यकों की उपेक्षा, पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ व बरुण...
एक सफर : कॉर्पोरेट से किसानी तक
गांव, मसान और गुड़गांव
बाहों में आपकी पापा !!
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अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
अच्छे लिंक ढ़ूंढ़ लाये.
जवाब देंहटाएंदो ब्लॉग व्लॉग की शक्ल में भी है. यदि हम उन्हें सुनने के साथ ही लिखा हुए भी पढ़ें तो ब्लॉग माध्यम की सार्थकता बढ़ती है.
विविधरंगी सूत्रों से सजा बुलेटिन, आभार मुझे भी शामिल करने के लिए..
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुसज्जित बुलेटिन।
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
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