प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
सन २००८ में आई लगभग ४० मिनट की एक फिल्म इस्माइल पिंकी ने
पिंकी को भले ही शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया और फिर पिंकी की सहायता
करने वालों की एक लंबी फेहरिस्त तैयार हो गई बावजूद इसके आज पिंकी का क्या
हुआ वह क्या कर रही है, यह अब शायद ही कोई जानता हो । आज
भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पिंकी जैसी अनेकों बालक बालिकाएं हैं
जिन्हे बचपन में ही स्कूल जाने की बजाय काम पर लगा दिया जाता है जबकि एक
तरफ सरकार जहां बच्चों को कुपोषण से बचाने, उन्हे साक्षर करने के दावे कर
रही है यहीं नहीं उसने बाल श्रम पर भी रोक लगाई है, बावजूद इसके बाल श्रम
बदस्तूर जारी है।
हमारे आस पास ही देख लीजिये आपको ऐसी न जाने कितनी पिंकी और छोटू मिल जाएंगे ! गली के नुक्कड़ की चाय की दुकान हो या हाइवे का ढ़ाबा यह छोटू आप को हर जगह मिल जाता है आप चाहे या न चाहे ... और तो और कभी कभी तो आपके घर तक आ जाता है जैन साहब की दुकान से आप के महीने के राशन की 'फ्री होम डिलिवरी' करने ... कैसे बचेंगे आप और हम इस से ... कभी सोचा है !!??
अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
प्रणाम |
आज १२ जून है ... विश्व भर में बालश्रम दिवस 12 जून को मनाया जाता है।
भारत
में भी बालश्रम की समस्या दशकों से प्रचलित है। भारत सरकार ने बालश्रम की
समस्या को समाप्त कदम उठाए भी हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 खतरनाक
उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
भारत
की केंद्र सरकार ने 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित कर
दिया। इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई।
इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति
निषिद्ध है। 1987 में, राष्ट्रीय बालश्रम नीति बनाई गई थी। पर क्या यह
समितियाँ या इन में निर्धारित की गई नीतियाँ बाल श्रम को रोक पाए !?
हमारे आस पास ही देख लीजिये आपको ऐसी न जाने कितनी पिंकी और छोटू मिल जाएंगे ! गली के नुक्कड़ की चाय की दुकान हो या हाइवे का ढ़ाबा यह छोटू आप को हर जगह मिल जाता है आप चाहे या न चाहे ... और तो और कभी कभी तो आपके घर तक आ जाता है जैन साहब की दुकान से आप के महीने के राशन की 'फ्री होम डिलिवरी' करने ... कैसे बचेंगे आप और हम इस से ... कभी सोचा है !!??
ऐसे
में जब देश भर में विभिन्न संगठनों द्वारा हर १ मई को मजदूर दिवस मनाया
जाता हो तो यह सवाल पैदा होता है कि क्या किसी के भी जहन में इन मासूमों
का ख़्याल आया ... ये सारे संगठन मजदूरों को उनका हक़ दिलवाने की बात करते
थकते नहीं हैं पर कोई भी इन बाल मजदूरों के हक़ की बात नहीं करता ... कोई
ऐसा प्रयास होता नहीं दिखता कि देश में बाल मजदूरी बंद हो जाए ... पूछा जाए
तो सब ज़िम्मेदारी सरकारों पर डाल कर हर कोई खुद को पाक साफ़ दिखाता है |
भारत
से बाल मजदूरी तब तक बंद नहीं होगी जब तक हम सब मिल कर इस का विरोध नहीं
करते | हम में से हर एक को हर स्तर पर बाल मजदूरी का विरोध करना चाहिए|
जहाँ भी बाल मजदूरी होती दिखे यदि स्वंय विरोध न कर पावें तो तुरंत प्रशासन
या ऐसा किसी संगठन को सूचित करें जो बाल मजदूरों को मुक्त करवा उन्हें
समाज में पुनः स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं |
सादर आपका
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रुह एक सफ़ेद बिन्दी है
मुहब्बत की है बस इतनी कहानी ...
#नेपालयात्रा-1
इंसानियत
आँखें
क्या हुआ था उस दिन, आज की तारीख पर !
कठुआ काण्ड और अलीगढ़ काण्ड से जुड़ा एक सवाल
ठूँठ और हम
तुम्हारे नाम की है एक रेखा
इंसानियत के ह्रास पर
जीवन चक्र
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
बेहतरीन बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाएँ
सादर
बाल मजदूरी के दो मुख्य कारक अनियंत्रित जनसंख्या और बेरोजगारी है. इनका हल नहीं निकलने तक बाल श्रमपर रोक संभव नहीं. वैसे छुट्टियों में बच्चों द्वारा मेहनत कर कमाई करने का प्रचलन विदेशों में भी है. बस वहाँ उनकी सुविधाओं का भी ध्यान रखा जाता है और किर्य करने के लिए उपयुक्त वातावरण भी उपलब्ध होता है.
जवाब देंहटाएंलिंक्स ढ़ूंढ़ लाना भी महती जिम्ममेदारी है. आपके श्रम को साधुवाद!
जवाब देंहटाएंसार्थक सूत्र ! सुन्दर बुलेटिन ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शिवम् जी !
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख के साथ सूत्रों का सुंदर संयोजन!
जवाब देंहटाएंइस श्रमसाध्य कार्य के लिए आपका अभिनंदन!
आभार!
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना का सूत्र शामिल करने के लिए धन्यवाद |
भारत में बाल-श्रम रोकने के प्रयास तब तक निष्फल सिद्ध होंगे जब तक कि बाल-मज़दूरों के पुनर्वास की ठोस व्यवस्था नहीं कर दी जाती. बच्चों को मजदूरी से हटाकर हम उन्हें भूखा मरने के लिए अथवा भीख मांगने के लिए तो नहीं छोड़ सकते. जो लोग अपने पहले ही बच्चे की मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर सकते, उन से और अधिक बच्चे पैदा करने का हक़ छीन लिया जाना चाहिए. वोट-बैंक के चक्कर में ऐसा कड़ा कदम कोई सरकार नहीं उठा पाती है लेकिन ऐसे कदम उठाए बिना बाल-श्रम की समस्या का निराकरण असंभव है.
जवाब देंहटाएंसार्थक सुन्दर सूत्र ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
आप सब का बहुत बहुत आभार |
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