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सूरदास (अंग्रेज़ी:Surdas) हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उनका जन्म मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वह आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् 1540 विक्रमी के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 विक्रमी के आसपास मानी जाती है।[1]सूरदास जी के पिता रामदास गायक थे। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास जी अष्टछाप कवियों में एक थे। सूरदास जी की मृत्यु गोवर्धन के पास पारसौली ग्राम में 1563 ईस्वी में हुई।
(साभार : http://bharatdiscovery.org/india/सूरदास)
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आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
बहुत अच्छी बुलेटिन! बहुत ही अच्छे लिंक्स!
जवाब देंहटाएंबढ़िया सूत्र ! बढ़िया बुलेटिन ! मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार हर्षवर्धन जी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स। मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयपूर्वक आभार।
जवाब देंहटाएंसूरदासजी की जयंती पर उनको सादर नमन |
जवाब देंहटाएंसूरदास की जयंती पर भक्त कवि को श्रद्धा नमन ! देर से आने के लिए खेद है, आभार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन...मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार आपका
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