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रविवार, 10 मार्च 2019

एक कहानी - मानवाधिकार बनाम कुत्ताधिकार

एक घर में पूरा सम्मिलित परिवार रहता था.. मामूली खटर पटर तो होती ही थी लेकिन पड़ोसी पूरे मोहल्ले में इस परिवार को बदनाम करता रहता था... परिवार के कुछ लोगों को पड़ोस की चाय बहुत पसंद थी... पड़ोसी ने कई ख़ूँख़ार कुत्ते पाल रखे थे..  यह कुत्ते रोज़ भौंकते, गुर्राते और सामने आने वाले किसी भी शरीफ़ इंसान को काट खाते थे। पूरे मोहल्ले ने कुत्तों को बाँधकर रखने के लिए कहा लेकिन पड़ोसी ने उलटे और हड्डियाँ डाल कुत्तों को और मज़बूत बना दिया

यह कुत्ते उस घर के अंदर से आने वाली खाने की ख़ुशबू सूंघ लार टपकाए रहते थे, हमेशा घर में घुसने का मौक़ा खोजते थे, ज़रा भी दरवाज़ा खुला मिलने पर घर के अंदर घुसकर दो चार को काट खाते थे... घर में बैठे कुछ वन्यजीव प्रेमियों को यह कुत्ते बहुत प्रिय लगते थे! एक बार कुत्तों का झुंड घर के अंदर घुस गया और बच्चों को नोच खाया.. पूरा परिवार दुःख के सागर में डूब गया! घर में बैठे बुद्धिजीवियों ने मुखिया पर कोई कार्यवाही करने का आरोप लगाया... परिवार को दुःख में डूबा देखा मुखिया बहुत दुखी हुआ और उसने कुत्तों को मज़ा चखाने का सोचा। सबसे पहले घर के दरवाज़े पर डेरा जमाए बैठे कुत्तों को डरा कर दूर भगाया... डर के मारे यह कुत्ते वापस पड़ोस के अपने घर में जा छिपे... वन्यजीव प्रेमियों और बुद्धिजीवियों ने परिवार के मुखिया पर कुत्ताधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया... 

कुछ दिन तो सब शांत रहा लेकिन फिर कुत्तों ने अपनी चाल बदल दी और अब उन्होंने छिप कर हमला करना शुरू कर दिया... रोज़ रोज के इस ख़तरे से परिवार घबराने लगा तो इन ख़ूँख़ार कुत्तों के ख़िलाफ़ परिवार का मुखिया ने डंडों का इस्तेमाल किया... मारते मारते पड़ोस के उनके घर के अंदर तक घुसेड़ दिया... मुखिया ने इस बार पूरे मोहल्ले को साथ लेकर इन कुत्तों की सबके सामने कुटाई की... इस बार ख़ूब ज़ोर से हुई कुटाई के कारण कुत्ते अपने घर में जा छिपे.. मोहल्ले वालों के दवाब के कारण पड़ोसी ने भी अपने कुत्तों के गले में पट्टा डाल कर बाँध कर बिठाया... 

कुत्तों को मज़ा चखाने के बाद जब मुखिया घर आया तो उसने देखा कि घर में बैठे वन्यजीव प्रेमियों ने कुत्तों के समर्थन में भूख हड़ताल कर दी है... बुद्धिजीवियों ने मुखिया से सबूत माँगे हैं कि उसने कैसे कुत्तों को मारा और क्यों मारा! बहरहाल परिवार के बच्चे ख़ुश हैं क्योंकि वह अब आराम से खेल सकते हैं... मुखिया को संतोष है कि कम से कम बच्चे तो ख़ुश हैं


(इसका वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति से कोई लेना देना नहीं और किसी भी समानता को महज़ संयोग कहा जाएगा)

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सी थ्रू

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6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बेहतरीन बिम्ब आपकी लाज़बाब भूमिका का! सराहना से परे. आभार एवं बधाई इस सुन्दर अंक का!

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  3. एक कहानी - मानवाधिकार बनाम कुत्ताधिकार व्यंगात्मक रचना
    बेहतरीन रचनाएं
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार ....सादर

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  4. हा हा बहुत सुन्दर अपने घर की कहानी है ये तो राजनीति घर में कहाँ होती है?

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  5. सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को बुलेटन में जगह देने के लिए आभार।

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